क्या इन्टरनेट पर उपलब्ध 'पोर्न' (अश्लील विडियो, फोटो) हमारी मानसिकता विकृत कर रहा है?

नव भारत टाइम्स, 9 फरवरी 2017
चंद महीनों की बच्चियों तक के साथ क्रूरतम दरिन्दिगी के समाचार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि ऐसा कौन सा कारण है जो मनुष्य को यह घिनोना कृत करने को उकसाता है? इस चरम दरिन्दिगी को सिर्फ यौनिक अपराध कह देना पर्याप्त नहीं है. क्या इसके लिए कुछ हद तक इन्टरनेट पर उपलब्ध 'पोर्न' या अश्लील विडियो और तस्वीरें जिम्मेदार हो सकती हैं?

प्रख्यात 'टेड टॉक' (व्याख्यानमाला) में तेल अवीव विश्वविद्यालय के एक विशेषज्ञ भी ऐसे कुछ सवाल उठाते हैं. पोर्न से हमारी मानसिकता विकृत हो रही है, हमारी यौनिक सोच भी खतरनाक ढंग से विकृत हो रही है और संभव है कि अन्य संगीन कारणों के साथ यह भी कुछ हद तक, चरम दरिन्दिगी के लिए प्रेरक हो.

एक और तथ्य: जैसा कि हम जानते हैं, वेबसाइट के 'डोमेन' नाम (www.डोमेन-नाम.com) एक साल के लिए किराये पर लिए जाते हैं.सबसे महंगा डोमेन नाम है: सेक्स.com. (लगभग 100 करोड़ सालाना किराया!) सोचने की बात है कि जब तक फ्री में पोर्न विडियो और फोटो दिखा के 100 करोड़ से अधिक कमाई न हो, तो आखिर क्यों कोई इतना खर्चा करेगा? जाहिर सी बात है कि फ्री में दिखाए जा रहे पोर्न विडियो और फोटो के पीछे एक बड़ा तगड़ा और खतरनाक मिलीभगत वाला गुट है जो किसी न किसी तरह से देह व्यापार, यौन सम्बन्धी व्यापार, यौन "उपचार या वृद्धि के नुस्खे वाले व्यापार" और वियाग्रा आदि के व्यापार से जुड़ा है.

क्रूरतम दरिन्दिगी के लिए सिर्फ पोर्न को जिम्मेदार ठहराना नासमझदारी 

क्रूरतम दरिन्दिगी के लिए सिर्फ पोर्न को जिम्मेदार ठहराना नासमझदारी है. पित्र्सत्ता हमारी रग में है और भांति-भांति प्रकार से हमारे जीवन में गैर-बराबरी को जनती है. पर पोर्न को दरकिनार कर सिर्फ पित्रसत्तात्मक रवैये को जिम्मेदार ठहराना भी उचित नहीं है.

उत्तरी थाईलैंड में मैं हेल्थ एंड डेवलपमेंट नेटवर्क्स (एचडीएन) के साथ एशिया संवाददाता के रूप में अनेक साल कार्यरत रहा हूँ. थाईलैंड में, मेरे अनुसार, यह प्रशंसनीय है कि महिलाओं-बालिकाओं को शिक्षा, रोज़गार आदि के अवसर उपलब्ध करवाए गए और अधिकाँश व्यापार आदि महिलाओं द्वारा ही चलाये जा रहे हैं. अनेक गेस्ट हाउस, होटल, रेस्टोरेंट, बैंक, परचून दुकानें, आदि ऐसी हैं जिसमें सभी कर्मी या अधिकाँश कर्मी महिलाएं हैं और निर्णायक भूमिका में हैं. अनेक 7-11, लोटस आदि की बड़ी दुकानें ऐसी हैं जो 24 घंटे खुली हैं और महिलाएं सुरक्षित रूप से काम कर रही हैं. भारत जैसी कोई तगड़ी सुरक्षाव्यवस्था भी नहीं है - उदहारण के लिए 7-11 के बाहर रात में भी कोई बंदूकधारी सुरक्षाकर्मी नहीं है. यह सही है कि थाईलैंड कोई "राम राज्य" जैसा उदहारण नहीं है पर लिंग जनित समानता जो वहां पर है वो प्रशंसा योग्य है. न सिर्फ महिलाएं, हिजरा समुदाय भी जिस तरह से शिक्षित हो कर रोज़गार आदि प्राप्त करता है और सम्मान से ज़िन्दगी जीता है, वो भी सराहनीय है.

जब महिलाएं अधिक सक्रीय रूप से निर्णायक रूप में कार्यरत होंगी तो जाहिर है कि कार्यस्थल उनके लिए अधिक सुरक्षित और सम्मानजनक होगा. थाईलैंड में इसीलिए हिजरा और महिलाएं पुरुषों के साथ मिलजुल कर सम्मानजनक ढंग से कार्य कर पा रही हैं और मौहौल भी काफी हद तक सुरक्षित है.

भारत में अनेक रोज़गार ऐसे हैं जहाँ महिलाओं को मौका कम मिलता है. उदहारण के लिए टैक्सी-चालक, मध्य-रात्रि में टैक्सी-चालक, पुरुष शौचालय के लिए स्वच्छता-कर्मी आदि जैसे रोज़गार भारत में अधिकाँश पुरुष के लिए ही हैं. पर थाईलैंड में इन कामों को महिलाओं को सम्मान और लगन से करते हुए देखना सामान्य है.

हर बालिका-महिला-हिजरा को शिक्षा, रोज़गार मिले

यदि लिंग जनित समानता का सपना पूरा करना है तो लिंग-जनित हिंसा को रोकने के सभी प्रयासों के साथ साथ यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सभी बालिकाएं शिक्षित हों, महिलाएं शिक्षित हों, सभी रोजगारों में उनकी प्रतिभागिता बढ़ें और उनको निर्णायक भूमिकाओं में भी अधिक से अधिक स्थान मिले. भारत सरकार ने 190 देशों से अधिक की सरकारों के साथ संयुक्त राष्ट्र में यह वादा किया है कि 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals/ SDGs) पूरा करेंगे. इन सतत विकास लक्ष्य में लिंग जनित समानता 100 प्रतिशत हासिल करना और सभी को समान शिक्षा देना आदि शामिल है. आशा है कि सरकारें अपने किये हुए वादे को पूरा करेंगी.

बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
9 फरवरी 2017