[English] सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब "नोटा" (None Of The Above/ 'नन ऑफ द एबव', यानि 'इनमें से कोई नहीं') का बटन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर होता है पर चाहे "नोटा" वोटों की संख्या कितनी भी अधिक हो इसका चुनाव नतीजे पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता. एक तरफ चुनाव आयोग का कार्य प्रशंसनीय है कि चुनाव प्रणाली पिछले सालों में निरंतर दुरुस्त हो रही है, अलबत्ता धीरे धीरे. दूसरी ओर लोकतंत्र में "नोटा" अभी भी मात्र 'कागज़ी शेर' जैसा ही है जो चिंताजनक है.
लखनऊ के चंद नागरिकों ने उत्तर प्रदेश 2017 चुनाव में "नोटा" का उपयोग किया. उन्होंने चुनाव आयोग अधिकारियों को पत्र लिख कर अपील की कि "नोटा" को कैसे शक्तिशाली बनाया जाये (नोट: इस पत्र को एस लेख के नीचे पढ़ा जा सकता है).
आशा परिवार से जुड़े मुदित शुक्ला ने कहा कि "हम चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के आभारी हैं कि "नोटा" का बटन ईवीएम मशीन पर उपलब्ध हो गया है. पहले "नोटा" के उपयोग में बहुत समस्याएं होती थीं. "नोटा" बटन को ईवीएम मशीन पर लगाने के लिए शुक्रिया. पर इतना पर्याप्त नहीं है. लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि "नोटा" वोटों का चुनाव नतीजे पर सीधा प्रभाव पड़े."
"नोटा" वोट अधिकतम हों तो चुनाव रद्द हो: डॉ संदीप पाण्डेय
मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने बताया कि "हम लोगों का सुझाव है कि: यदि "नोटा" वोटों की संख्या जीतने वाले प्रतियाशी के वोटों की संख्या से अधिक हो तो चुनाव को रद्द किया जाए, और सभी उम्मीदवारों को इस चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए 6 साल तक प्रतिबंधित किया जाए."
डॉ संदीप पाण्डेय जो अनेक आईआईटी में पढ़ा चुके हैं और जन-आंदोलनों का नेत्रित्व दशकों से करते रहे हैं, उनकी मांग लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जायज़ है. यदि "नोटा" वोटों का सीधा प्रभाव चुनाव नतीजे पर पड़ेगा तो चुनाव प्रणाली बेहतर होगी.
यदि किसी चुनाव क्षेत्र की अधिकाँश जनता किसी भी उम्मीदवार से संतुष्ट न हो, तब भी सबसे अधिक वोट पाने वाला/वाली प्रतियाशी उस क्षेत्र से निर्वाचित घोषित हो जायेगा/ जाएगी - भले ही अधिकाँश जनता ने "नोटा" बटन दबाया हो. लोकतंत्र में जनता के पास यह अधिकार होना चाहिए कि यदि वो किसी भी प्रतियाशी से संतुष्ट नहीं है तो वो "नोटा" बटन दबा के चुनाव नतीजे को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सके. यदि "नोटा" वोट की संख्या जीतने वाले प्रतियाशी के वोट की संख्या से अधिक हो तो चुनाव रद्द हो और सभी प्रतियाशियों को आगामी 6 साल तक चुनाव इस क्षेत्र से लड़ने नहीं दिया जाए.
देखना है कि चुनाव आयोग इस पत्र पर क्या कार्यवाही करेगा.
बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
19 फरवरी 2017
लखनऊ के चंद नागरिकों ने उत्तर प्रदेश 2017 चुनाव में "नोटा" का उपयोग किया. उन्होंने चुनाव आयोग अधिकारियों को पत्र लिख कर अपील की कि "नोटा" को कैसे शक्तिशाली बनाया जाये (नोट: इस पत्र को एस लेख के नीचे पढ़ा जा सकता है).
आशा परिवार से जुड़े मुदित शुक्ला ने कहा कि "हम चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के आभारी हैं कि "नोटा" का बटन ईवीएम मशीन पर उपलब्ध हो गया है. पहले "नोटा" के उपयोग में बहुत समस्याएं होती थीं. "नोटा" बटन को ईवीएम मशीन पर लगाने के लिए शुक्रिया. पर इतना पर्याप्त नहीं है. लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि "नोटा" वोटों का चुनाव नतीजे पर सीधा प्रभाव पड़े."
"नोटा" वोट अधिकतम हों तो चुनाव रद्द हो: डॉ संदीप पाण्डेय
मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने बताया कि "हम लोगों का सुझाव है कि: यदि "नोटा" वोटों की संख्या जीतने वाले प्रतियाशी के वोटों की संख्या से अधिक हो तो चुनाव को रद्द किया जाए, और सभी उम्मीदवारों को इस चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए 6 साल तक प्रतिबंधित किया जाए."
डॉ संदीप पाण्डेय जो अनेक आईआईटी में पढ़ा चुके हैं और जन-आंदोलनों का नेत्रित्व दशकों से करते रहे हैं, उनकी मांग लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जायज़ है. यदि "नोटा" वोटों का सीधा प्रभाव चुनाव नतीजे पर पड़ेगा तो चुनाव प्रणाली बेहतर होगी.
यदि किसी चुनाव क्षेत्र की अधिकाँश जनता किसी भी उम्मीदवार से संतुष्ट न हो, तब भी सबसे अधिक वोट पाने वाला/वाली प्रतियाशी उस क्षेत्र से निर्वाचित घोषित हो जायेगा/ जाएगी - भले ही अधिकाँश जनता ने "नोटा" बटन दबाया हो. लोकतंत्र में जनता के पास यह अधिकार होना चाहिए कि यदि वो किसी भी प्रतियाशी से संतुष्ट नहीं है तो वो "नोटा" बटन दबा के चुनाव नतीजे को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सके. यदि "नोटा" वोट की संख्या जीतने वाले प्रतियाशी के वोट की संख्या से अधिक हो तो चुनाव रद्द हो और सभी प्रतियाशियों को आगामी 6 साल तक चुनाव इस क्षेत्र से लड़ने नहीं दिया जाए.
देखना है कि चुनाव आयोग इस पत्र पर क्या कार्यवाही करेगा.
बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
19 फरवरी 2017
चुनाव आयोग को लिखे गए पत्र की प्रति
सेवा में
श्री टी वेंकटेश, मुख्य चुनाव अधिकारी और प्रमुख सचिव (चुनाव), भारतीय चुनाव आयोग (उत्तर प्रदेश)
और
श्री एसके अगरवाल, राज्य चुनाव आयुक्त
तिथि: 19 फरवरी 2017
विषय: "नोटा" (नन ऑफ द एबव, यानि इनमें से कोई नहीं) को शक्तिशाली बनाने की अपील
आदरणीय श्री वेंकटेश और श्री अगरवाल,
"नोटा" (नन ऑफ द एबव, यानि इनमें से कोई नहीं) को शक्तिशाली बनाने के आशय से हम नागरिक आपसे कुछ सुझाव साझा करना चाहते हैं. हम लोगों में से अधिकाँश ने उत्तर प्रदेश चुनाव 2017 में "नोटा" का इस्तेमाल किया है और हमें बहुत निराशा है कि "नोटा" का चुनाव नतीजे पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है.
हम चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के आभारी हैं कि "नोटा" का बटन ईवीएम मशीन पर उपलब्ध हो गया है. पहले "नोटा" के उपयोग में बहुत समस्याएं होती थीं. "नोटा" बटन को ईवीएम मशीन पर लगाने के लिए शुक्रिया. पर इतना पर्याप्त नहीं है. लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि "नोटा" वोटों का चुनाव नतीजे पर सीधा प्रभाव पड़ना चाहिए. हम लोगों का सुझाव है कि: यदि "नोटा" वोटों की संख्या जीतने वाले प्रतियाशी के वोटों की संख्या से अधिक हो तो चुनाव को रद्द किया जाए, और सभी उम्मीदवारों को इस चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए 6 साल तक प्रतिबंधित किया जाए.
हमें उम्मीद है कि लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए आप इस सुझाव पर विचार करेंगे,
साधुवाद,
डॉ संदीप पाण्डेय, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), ए-893, इंदिरा नगर, लखनऊ-226016. ईमेल: ashaashram@yahoo.com
मुदित शुक्ला, आशा परिवार, सी-1337, इंदिरा नगर, लखनऊ-226016. ईमेल: muditshukla01@gmail.com
बाबी रमाकांत, सी-2211, इंदिरा नगर, लखनऊ-226016. फोन: 98390-73355, ईमेल: bobbyramakant@yahoo.com