कैंसर मृत्यु दर में तेज़ी से गिरावट के बगैर 2030 के वायदे पूरे करना संभव नहीं

(वेबिनार रिकॉर्डिंग, पॉडकास्ट) विश्व कैंसर दिवस 2017 पर सरकार को यह मूल्यांकन करना जरुरी है कि विभिन्न प्रकार के कैंसर की दर कितनी तेज़ी से कम हो रही है ताकि भारत सरकार अपने वायदे अनुसार, 2030 तक कैंसर मृत्यु दर में एक-तिहाई गिरावट ला सके (सतत विकास लक्ष्य या एस.डी.जी.).

कैंसर-सम्बंधित शर्मिंदगी पर चुप्पी तोड़ना जरुरी

लखनऊ की वरिष्ठ शिक्षाविद् और स्तन-कैंसर पर सफलतापूर्वक विजय पा चुकीं नीता मलिक ने इस बात को पुरजोर रूप से कहा कि कैंसर की अविलम्ब सही जांच और उपचार सभी जरुरतमंदों को उपलब्ध कराया जाना एक जन-स्वास्थ्य प्राथमिकता है. महिलाओं में (और पुरुषों और हिजड़ा-समुदाय में भी) स्तन-कैंसर के प्रति जागरूकता पूर्ण रूप से फैलानी चाहिए जिससे कि सभी को स्तन कैंसर के प्रारंभिक लक्षण, नियमित स्व-जांच और आवश्यकतानुसार चिकित्सकीय जांच और उपचार सम्बन्धी सही जानकारी मिल सके. इसके साथ यह भी आवश्यक है कि चिकित्सा-शोध कार्य रफ़्तार पकड़े ताकि कैंसर की पक्की जांच और कम-कष्टदायक व अधिक प्रभावकारी उपचार लोगों को मिल सके.

नीता मलिक ने अपने निजी अनुभव को साझा करते हुए कहा कि महिलाओं को कैंसर के बारे में किसी भी प्रकार की झिझक या शर्मिंदगी नहीं महसूस करनी चाहिए और खुल कर बात करनी चाहिए ताकि जरूरतमंद महिलाओं को बिना समय गँवाए सही जांच और उपचार मिल सके.

जिन कैंसर से बचाव मुमकिन है हम उन्हें क्यों नहीं रोक पा रहे?

स्वास्थ्य को वोट अभियान से जुड़ी वरिष्ठ सलाहकार और लोरेटो कान्वेंट की पूर्व वरिष्ठ शिक्षिका शोभा शुक्ला ने कहा कि “यह अत्यंत शोचनीय है कि जिन कैंसर से बचाव मुमकिन है हम उन्हें भी रोक नहीं पा रहे हैं. उदहारण के लिए तमाम प्रकार के तम्बाकू जनित कैंसर लाखों लोगों का जीवन नष्ट कर रहे हैं जो चिंताजनक है. प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण से न केवल तम्बाकू जनित कैंसर दर पर अंकुश लगेगा बल्कि अन्य तम्बाकू जनित जानलेवा रोग भी कम होंगे जैसे कि ह्रदय रोग और पक्षाघात, आदि.”

प्रख्यात तम्बाकू नियंत्रण विशेषज्ञ और इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी एंड लंग डीजीस से जुड़ी ऐनी जोंस ने कहा कि 20% से अधिक कैंसर से मृत्यु का कारण तम्बाकू है. तम्बाकू से फेफड़े के कैंसर समेत 14 प्रकार के अन्य कैंसर का खतरा भी बढ़ता है.

टीबी और फेफड़े के कैंसर: लक्षण समान लग सकते हैं

भारत के फेफड़े कैंसर शोध संस्था के सचिव और पीजीआई चंडीगढ़ के फेफड़े के कैंसर विशेषज्ञ डॉ नवनीत सिंह ने कहा कि टीबी और फेफड़े के कैंसर दोनों की पक्की जांच होनी जरुरी है. यदि टीबी की पक्की जांच नहीं हो पा रही हो तो टीबी की दवा नहीं शुरू करनी चाहिए और रोगी को फेफड़े के कैंसर की जांच उपलब्ध करवानी चाहिए जैसे सीटी स्कैन, ऍफ़एनएसी, बाइओप्सी, ब्रोंकोस्कोपी आदि. डॉ नवनीत सिंह के फेफड़े के कैंसर रोगियों में 85% लोग स्टेज 3बी/4 पर जांच के लिए आते हैं जब उपचार फिलहाल संभव नहीं है. इसीलिए समय से जांच और अविलम्ब सही उपचार सबको मिलना अत्यंत आवश्यक है.

सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
3 फरवरी 2017
Published In
सिटीजन न्यूज़ सर्विस, इंडिया
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