तम्बाकू एक ज़हर

डा0 सूर्य कान्त, सीएनएस स्तंभकार 
तम्बाकू आज के समय में फैल रही अधिकांश बीमारियों के पीछे एक बड़ा कारण है। इस की लत का प्रसार एक दुर्दम महामारी का रूप ले चुका है। ऐसे हालात में तम्बाकू से निर्मित उत्पादों के सेवन से न केवल  व्यक्तिगत, शारीरिक, एवं बौद्धिक ह्रास हो रहा है, अपितु समाज पर भी इसके दूरगामी, व्यक्तिगत, सामाजिक, एवं आर्थिक दुष्प्रभाव दिखाई देने लगे है। 16 वीं शताब्दी में अकबर के शासन मे पुर्तगाली पहली बार तम्बाकू ले कर भारत आये थे। जहाँगीर के शासनकाल मे इसके उपभोग को नियंत्रित करने के लिए इस पर भारी मात्रा पर कर लगाये गये। परंतु सदियां बीत गयी तम्बाकू व्यापार और उपभोग पर लेश मात्र भी अंकुश न लगा।

हालात यह हैं कि ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे (GATS 2016-17) रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 15 वर्ष से  अधिक आयु के लोगो में से लगभग 10 करोड़ लोग सिगरेट या बीड़ी का सेवन करते है। पान मसाला, बीड़ी, खैनी, पान या गुलमंजन का सेवन करने वालो की संख्या लगभग 20 करोड़ है तथा 5 करोड़ लोग दोनों प्रकार की तम्बाकू का सेवन करते है। अगर यही स्थिति रही तो वर्ष 2020 तक विश्व में लगभग 1.64 करोड़ लोग धूम्रपान की लत के शिकार हो जाएँगे। वैश्विक स्तर परतम्बाकू के उपभोग के कारण 70 लाख व्यक्तियों की प्रति वर्ष मृत्यु हो जाती है। इनमें से 20 लाख विकासशील देशों से सम्बंधित हैं। अकेले भारत मे प्रति वर्ष लगभग 12 लाख लोग तम्बाकू सेवन के चलते विभिन्न कारणो से मौत के घाट उतर जाते है। विकसित देशों में धूम्रपान के विषय में जागरूकता के परिणाम स्वरूप धूम्रपान का औसत गिरता जा रहा है। लेकिन विकासशील देशों में अभी भी धूम्रपान के सम्बंध में चेतना की कमी है। देखने में भले ही ये तीव्र गति से बदलता स्वरूप प्रगति अथवा राष्ट्र निर्माण प्रतीत हो रहा हो परन्तु असलियत में विश्व का यह बदलता स्वरूप आइना है उस अंधेरे भविष्य का जिसे तम्बाकू से निकले जहरीले धुएं ने धूमिल कर रखा है।

आई सी एम आर (इंडियन काउन्सिल औफ़ मेडिकल रिसर्च) की वर्ष 1999 की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार तम्बाकू के उत्पादों से प्रतिवर्ष 24,400 करोड़ रूपये अर्जित होते थे और इसके चलते हम 27,761 करोड़ रूपये तम्बाकू के दुष्प्रभावों से हो रही प्रथम तीन बीमारियों पर खर्च करते थे। नये आंकड़ों के अनुसार लगभग 1 लाख करोड़  रूपये  तम्बाकू उत्पादो से अर्जित होते रहे हैं। लाखों लोग तम्बाकू की खेती और व्यापार से अपनी आजीविका कमाते है। ऐसे मे स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि इन विरोधाभासो के बीच हल कहाँ है। दरअसल तम्बाकू की समस्या का हल हर स्तर पर इच्छा शक्ति से जुड़ा हुआ है। फिर चाहे यह इच्छा शक्ति तम्बाकू की लत की हो, उससे इस लत से निजात दिलाने की कोशिश करने वालों की हो, अथवा नियम कायदे कानून और हमारी सेहत की निगाहबान सरकारो की हो। बहुत साल पहले हैदराबाद मे तम्बाकू किसानों को सम्बोधित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटल बिहारी बाजपेई जी ने कहा था कि क्या ही अच्छा हो यदि तम्बाकू की जहरीली खेती को फूलो की खेती में तब्दील कर दिया जाये। जाहिर है कि ऐसे कई मौलिक उपाय  तम्बाकू से आजीविका कमाने वाले हज़ारों लाखो लोगो के लिए किए जा सकते है।

तम्बाकू के सेवन से होने वाले कु:प्रभाव धूम्रपान के इस्तेमाल से 4000 हानिकारक रासायनिक पदार्थ निकलते हैं, जिनमें निकोटीन और टार प्रमुख हैं। शोध द्वारा 50 रासायनिक पदार्थ कैंसरकारी पाये गये हैं। विश्व भर में होने वाली मृत्यु में 50 प्रतिशत मौंतों का कारण  धूम्रपान है। तम्बाकू सेवन और धूम्रपान के परिणामस्वरूप रक्त का संचरण प्रभावित  हो जाता है, ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है, सांस फूलने लगती है और नित्य क्रियाओं में अवरोध आने लगता है।

हमारे देश में महिलाओं की अपेक्षा पुरूष अधिक धूम्रपान करते हैं। जब कोई धूम्रपान करता हैं तो बीड़ी या सिगरेट का धुआं उसको पीने वाले के फेफडे़ में 30 प्रतिशत जाता हैं व 70 प्रतिशत आस-पास के वातावरण में रह जाता है, जिससे उस धुएँ के सम्पर्क में आने वाले आस पास के लोग प्रभावित होते हैं, जिसको हम परोक्ष धूम्रपान कहते हैं। आज भी 38.7 प्रतिशत व्यक्ति अप्रत्यक्ष धूम्रपान का शिकार होते है। इन 38.7 प्रतिशत लोगों मे 62 प्रतिशत लोग अपने घरों पर व 29 प्रतिशत लोग अपने ऑफिस या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर अप्रत्यक्ष धूम्रपान के शिकार है।

सिगरेट की तुलना में बीड़ी पीना अधिक नुकसानदायक होता हैं। बीड़ी में निकोटीन की मात्रा कम होने के कारण निकोटीन की लत के शिकार लोगों को इसकी आवश्यकता बार बार पड़ती है। धूम्रपान से होने वाली प्रमुख बीमारियां हैं- ब्रानकाइटिस, एसिडिटी, टीबी, ब्लडप्रेशर, हार्ट अटैक, फालिज, नपुंसकता, माइग्रेन, सिरदर्द, बालों का जल्दी सफेद होना, आदि।

तम्बाकू से लगभग 25 तरह की शारीरिक बीमारियां व 40 तरह के कैंसर हो सकते हैं जिसमें प्रमुख कैंसर हैं मुँह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफडे का कैंसर, प्रोस्टेट का कैंसर, पेट का कैंसर, ब्रेन ट्यूमर आदि। तम्बाकू व धूम्रपान से हो रहे विभिन्न प्रकार के कैंसरों में विश्व में मुख का कैंसर सबसे ज्यादा हैं। तम्बाकू के कारण 45 लाख लोग प्रतिवर्ष हृदय रोग से पीड़ित होते हैं और 40 लाख लोग प्रतिवर्ष फेफड़े से संबधित बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। इसके साथ ही अन्य कई बीमारियां जैसे गर्भपात, एसिडिटी, पेट मे छाले, नपुंसकता, प्रतिरोधक क्षमता में कमी इत्यादि भी तम्बाकू के सेवन से होती है।

यदि महिलायें गर्भावस्था के दौरान परोक्ष या अपरोक्ष रुप से धूम्रपान करती हैं तो होने वाले नवजात शिशु का वजन कम होना, गर्भाशय में ही या पैदा होने के बाद मृत्यु हो जाना व पैदाइशी बीमारियाँ होने आदि का खतरा बढ़ जाता है। 

धूम्रपान की लत के कारण

बीड़ी या सिगरेट के धुए में मौजूद निकोटिन व अन्य विषैले तत्व हमारे मस्तिष्क में लगभग 10 से 19 सेकेंड में पहुंच जाते हैं। निकोटिन सर्वप्रथम मस्तिष्क के मध्य भाग को प्रभावित करता हैं। जिसके कारण निकोटिन के अभिग्राहक (रिसेप्टर) सक्रिय हो जाते हैं तथा (तंत्रिका संचारक) का अधिक स्राव होने लगता हैं जो कि हमारे लिए हानिकारक हैं। इसके कारण हमारे सोचने समझने और कार्यपद्धति में बदलाव होने लगता हैं। यह सब केवल कुछ समय के लिए होता हैं क्योंकि निकोटिन का कार्यकाल आधे घंटे से दो घंटे के बीच का होता हैं। इसके बाद आपको पुनः इसकी ज़रूरत महसूस होने लगती हैं।

लोगो में धूम्रपान करने के बहुत से कारण हैं, जैसे कि उत्तेजना, इसका स्वाद जानने की इच्छा व चिंता से मुक्ति आदि। लोगों में ऐसी भ्रांति भी है कि धूम्रपान से मानसिक तनाव भी कम होता हैं। इसका लोगों तक पहुचाने का सबसे बडा कारण हैं प्रचार तथा कुछ लोग इसे वैभव का प्रतीक मानते हैं। युवा वर्ग में तो यह इस कदर हावी होता जा रहा हैं कि युवा वर्ग इसके बिना अपना जीवन बेकार मानते हैं और जब एक बार आप धूम्रपान करने लगते हैं तो आपको इसकी लत लग जाती हैं तब आप महसूस करते हैं कि यह आपके जीवन में बहुत खास और महत्वपूर्ण हैं। इसकी लत ब्राउन शुगर, अफीम व चरस गाँजे जैसे नशों से भी ज़्यादा तीव्र होती हैं।
धूम्रपान बन्द करने के फायदे

धूम्रपान बंद करने के कुछ ही घंटो के अंन्दर फायदे दिखाई देने लगते है। 8 घंटो के अंन्दर कार्बन मोनोऑक्साइड तथा निकोटिन की मात्रा खून मे 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है, तथा खून मे ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है। 25 घंटे मे कार्बन मोनोऑक्साइड शरीर से पूरी तरह से बाहर हो जाती है तथा 48 घंटो मे निकोटिन शरीर से बाहर निकाल दी जाती है।

धूम्रपान बन्द करने के एक वर्ष के भीतर दिल की बीमारियां की सम्भावना 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। फेफडे का कैंसर होने की सम्भावना 10 से 15 वर्षों में 50 प्रतिशत तक कम हो जाती हैं। शरीर में रक्त का संचार सुचारू रुप से होने लगता है और शरीर में आक्सीजन की मात्रा अच्छी हो जाती हैं, ब्रान्काइटिस  व श्वसन तंत्र के अन्य रोगों की सम्भावना भी काफी कम हो जाती हैं। थकान कम होती है और मन प्रसन्न रहता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है।

धूम्रपान बन्द करने से फायदे ही फायदे हैं। आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, आपका आत्म विश्वास भी बढ़ेगा। स्वस्थ नागरिक ही देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रखेगें।

तम्बाकू  मुक्त भारत के लिए सुझाव

तम्बाकू सेवन से हो रहे दुष्प्रभावों को देखते हुए भारत सरकार ने कुछ व्यापक कदम उठाए हैं। इस श्रंखला में COTPA act 2003 के अंतर्गत तम्बाकू या उससे बने पदार्थो का प्रचार प्रसार, खरीद फरोख्त (बिक्री) एवम् वितरण पर सख्ती से रोक लगाने की बात कही गई थी। 31 मई 2004 को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर इस कानून को कार्यान्वित किया गया। भारत सरकार ने इसी क्रम मे तम्बाकू उत्पादो के पैक पर 85 फीसदी तम्बाकू विरोधी सचित्र चेतावनी रखने का निर्णय लिया है। तम्बाकू मुक्त भारत बनाने के लिए अंततः तम्बाकू की खेती पर पूर्ण रूप से रोक लगा कर वैकल्पिक फसल करनी होगी। इससे जुड़े किसानो, मजदूरों एवं व्यवसाइयों का भी पुर्नवास करना होगा।  यही एक मात्र विकल्प है। विश्व समुदाय के लोग भी इस गम्भीर विषय पर एकजुट हैं। यह भी सुझाव है कि धूम्रपान वाले उत्पादों पर टैक्स की बढ़ोतरी कर देनी चाहिये, स्वास्थ्य सम्बंधी दिक्कतो को बताना चाहिए तथा इसके अंदर निकोटीन की मा़त्रा को कम कर देना चाहिए। अतः इसके लिए तम्बाकू विरोधी निम्म अभियान चलाए जाने चाहिये:-
  1.  स्कूलों में बच्चों में जागरूकता प्रोग्राम।
  2. कार्यालयों में कम्युनिटी प्रोग्राम।
  3.  ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में लघु फिल्म दिखा कर। 
  4. सिनेमा हाल/ महोत्सव और मेलों में लघु पिक्चर का आयोजन करके।
  5. नुक्कड़ /नाटक/ खेलकूद/ पोस्टर इत्यादि।
इसके अलावा तम्बाकू व धूम्रपान से होने वाले 65 तरह के शारिरिक दुष्प्रभावों- 40 प्रकार के कैंसर व 25 प्रकार की बीमारियों पर होने वाले इलाज के खर्चो के लिए तम्बाकू/सिगरेट/बीड़ी कम्पनियों को इन बीमांरियों के उपचार के खर्च का कुछ हिस्सा देना चाहिए।

डा0 सूर्य कान्त, सीएनएस स्तंभकार 
प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग, किंग जॅार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय,लखनऊ
31 मई, 2018