भारत पाकिस्तान शांति वार्ता की पेचीदिगियां

देखने से ऐसा नजर आता है कि जुलाई, २०१० की भारत व पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के स्तर की वार्ता विफल हो गई। किन्तु किन परिस्थितियों में यह वार्ता हुई उसकी पेचीदिगियों को समझ लेना जरूरी हैं । पहले तो मुम्बई हमले के बाद भारत ने ऐलान कर दिया कि दोनों देशो के बीच चल रही वार्ता तब तक दोबारा नहीं शुरू होगी जब तक पाकिस्तान मुम्बई हमलों के दोषियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं करता। फिर पता नहीं किन परिस्थितियों में वह वार्ता के लिए तैयार भी हो गया। कुछ लोग कहते हैं के यह अमरीका का दबाव था। या हो सकता है भारत का बड़प्पन हो। या फिर भारत को यह समझ में आ गया हो कि मुम्बई हमलों के दोषियों के खिलाफ कार्यवाही के लिए भी वार्ता जरूरी ही हैं । हमलों के दोषियों के खिलाफ कार्यवाही के लिए भी वार्ता जरूरी ही है।

भारत की इस वार्ता में पाकिस्तान से यह अपेक्षा थी कि वह मुम्बई हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्यवाही के कोई सबूत देगा। भारत मानता है कि मुम्बई हमले में लश्कर-ए-तोइबा के संस्थापक हाफिज सईद के खिलाफ पाकिस्तान सरकार को कुछ करना चाहिए। दूसरे अमरीका में हैडली से बातचीत के बाद आई.एस.आई. की हमले में स्पष्ट भूमिका उजागर हुई है। किन्तु इससे पहले कि हम पाकिस्तान से कोई अपेक्षा करें हमें उसकी विशेष परिस्थिति पर एक बार गौर कर लेना चाहिए। पाकिस्तान में खुफिया संस्था आई.एस.आई. व वहां की सेना उस तरह से वहां की सरकार के अधीन नहीं हैं जैसा कि हमारे यहां। क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि पाकिस्तान की कोई चुनी हुई सरकार वहां आई। एस.आई. के खिलाफ कोई कार्यवाही करेगी ? इसी तरह आतंकवादी संगठनों के ऊपर भी पाकिस्तानी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं। यही वजह है कि पाकिस्तान की सरकार हाफिज सईद के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही। हाफिज सईद एक जमाने में पाकिस्तानी सत्ता तंत्र के काफी नजदीक रहा व्यक्ति है। यदि हाफिज सईद ने पाकिस्तानी शासक वर्ग के बारे में अपना मुंह खोला तो वहां बहुत से लोगों के लिए असुविधाजनक परिस्थिति पैदा हो जाएगी।पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी मुल्तान में सूफी संत बहाउददीन जकरिया की मजार के सज्जादा नशीं भी हैं। एक बार 2005 में जब दोनों देशों के नागरिक समाज द्वारा निकाली गई दिल्ली से मुल्तान भारत - पाकिस्तान शांति पदयात्रा का वहां समापन हो रहा था तो उन्होंने ऐसी बात कह दी थी जो आम तौर पर पाकिस्तान में लोग कहने से बचते हैं। उन्होंने कहा था कि जिस तरह दोनों जर्मनियों के बीच दीवार गिर गई एक दिन भारत पाकिस्तान के बीच की दीवार भी गिर जाएगी। जिस मुल्क का जन्म व अस्तित्व दो राष्ट्रों के सिद्धांत व विभाजन की हकीकत पर टिका हो वहां इस बात को पचा पाना आसान नहीं। किन्तु मुल्तान में लोगों ने यह बात सुनी क्योंकि शाह महमूद कुरैशी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बड़े नेता हैं तथा एक मजार के सज्जादा नशीं भी।

यदि शाह महमूद कुरैशी को या फिर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को अपने विवेक से भारत-पाकिस्तान समस्या का हल निकालना होता तो उस हल का स्वरूप शायद कुछ और होता। किन्तु जब शाह महमूद कुरैशी पाकिस्तान सरकार के प्रतिनिधि के रूप में वार्ता में शामिल होते हैं तो उनके ऊपर सेना, आई.एस.आई. व यहां तक कि आतंकवादी संगठनों का भी दबाव रहता है। शायद उन्हें कड़ी हिदायत भी दी जाती हो कि भारत के सामने झुकना नहीं है। जब इतने वर्षों से दोनों देशों की आपसी विदेश नीति का आधार विश्वास के बजाए ईंट का जवाब पत्थर से देना रहा हो तो अचानक चीजें नहीं बदलने वाली। यदि भारतीय विदेश मंत्री पाकिस्तान के ऊपर मुम्बई हमले के दोषियों के खिलाफ कार्यवाही का दबाव बनाते हैं तो पाकिस्तान की औपचारिक रूप से एक ही प्रतिक्रिया होगी, भारत के ऊपर किसी बात को लेकर उल्टा दबाव बनाना। पाकिस्तान के विभिन्न सत्ता केन्द्रों की नजर में अपनी हैसियत बनाए रखने के लिए शाह महमूद कुरैशी का भारत के सामने मजबूत दिखना उनकी मजबूरी थी।

लेकिन फरवरी, 2009 में एक अनौपचारिक वार्ता में आसिफ अली जरदारी की बहन और पाकिस्तान की सांसद फरयाल तारपुर ने कुलदीप नैयर से कहा कि पाकिस्तानी सरकार को अपने यहां स्थिति पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए भारत सरकार की मदद चाहिए। पाकिस्तान के अंदर आतंकवादी संगठनों ने हजारों की तादाद में लोगों को मार डाला है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि यह भारत के हित में है कि पाकिस्तान में एक मजबूत लोकतांत्रिक सरकार रहे। वह नहीं चाहेगा कि कभी उसे शांति के लिए सेना, आई.एस.आई. लश्कर - ए-तोइबा या फिर तालिबान के भरोसे रहना पड़े। इसलिए हमारे पास पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार के साथ वार्ता के सिवाए कोई विकल्प ही नहीं है। बस दुर्भाग्य यह है कि हम एक वैमनस्य का इतिहास ढो रहे हैं। एक दूसरे को शक से देखने की आदत छोड़ कर सहयोग का रवैया अपनाने में हमें डर लगता है कि हम कहीं कमजोर न मान लिए जाएं।

एक काम जो भारत और पाकिस्तान की सरकारों को करना चाहिए वह है दोनों देशों के बीच सामान्य नागरिकों के लिए यात्रा करना आसान बनाना। अभी भारत-पाकिस्तान की सीमा पार करना काफी कठिन काम है। यह दोनों तरफ के लोगों की एक लोकप्रिय मांग है। यदि यह काम हो जाता है तो भारत व पाकिस्तान को अपनी बाकी
समस्याओं को सुलझाने में भी काफी मदद मिलेगी क्योंकि इससे हमारा आपसी भरोसा बढ़ेगा। कुछ लोगों को यह डर है कि ऐसा करने से तमाम आतंकवादी हमारे यहां घुसे चले आएंगे। लेकिन आतंकवादी तो वैसे भी बिना पासपोर्ट-वीसा के आ-जा रहे हैं। तो आना-जाना कठिन बना कर हम उनको तो रोक नहीं पा रहे जिनको हम रोकना चाह रहे है। बदले में होता यह है कि जिन्हें हम रोकना नहीं चाहते वे परेशान होते हैं।

संदीप

प्रोफेसर डॉ० रमा कान्त को रॉयल कॉलेज ऑफ़ सर्जन्स् ने मानद् एफ०आर०सी०एस० प्रदान किया

प्रोफेसर डॉ० रमा कान्त को रॉयल कॉलेज ऑफ़ सर्जन्स् ने मानद् एफ०आर०सी०एस० प्रदान किया
प्रोफेसर डॉ० रमा कान्त से पहले, मदर टिरेसा १९९४, नेलसन मन्डेला १९९५, भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जिमी र्काटर, आदि भी मानद् एफ०आर०सी०एस० आइरलैण्ड, से सम्मानित हो चुके हैं

रॉयल कॉलेज आफ सर्जन्स आइरलैण्ड ने छ०शा०म० चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ० रमा कान्त को मानद् एफ०आर०सी०एस० उपाधि से अलंकृत किया। यह रॉयल कॉलेज आफ सर्जन्स आइरलैण्ड का दीक्षान्त समारोह आइरलैण्ड की राजधानी में सम्पन्न हुया जहॉ अध्यक्ष डॉ० इलिस मेकगोवर्न ने प्रोफेसर डॉ० रमा कान्त को मानद् उपाधि से सम्मानित किया।

बृहस्पतवार १५ जुलाई को आइरलैण्ड में भारतीय दूतावास ने भी प्रो० डॉ० रमा कान्त को आमंत्रित किया है।

प्रो० डॉ० रमा कान्त को वर्ष २००५ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्मानित किया था। प्रो० डॉ० रमा कान्त, एसोसिएशन आफ सर्जन्स् आफ इण्डिया के उ०प्र० इकाई के अध्यक्ष हैं, और लखनऊ कॉलेज आफ सर्जन्स् का भी नेतृत्व कर रहे हैं।

मानद् उपाधि के साथ प्रोफेसर डॉ० रमा कान्त १७ जुलाई को भारत वापस लौट रहे हैं।

तोड़ डालिए नशीली दवाओं का भ्रमजाल

                            तोड़ डालिए नशीली दवाओं का भ्रमजाल

अभी हाल ही में मादक द्रव्यों के दुरुपयोग एवम् उनके अवैध व्यापार के विरुद्ध मनाये गए अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर इस बात पर जोर दिया गया कि नशीले पदार्थों के सेवन से वैश्विक स्तर पर अनेकों जीवन बर्बाद हो रहे हैं, अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है तथा आर्थिक विकास पर अंकुश लग रहा है.
इस अवसर पर यू.एन.ओ. के सेक्रेटरी जनरल बन की मून ने अपने सन्देश में समस्त विश्व का आह्वान करते हुए अपील करी कि ' हम सभी को स्वयं के, तथा औरों के जीवन को मादक द्रव्यों के चंगुल से दूर रखना होगा. इनके इस्तेमाल से जहां एक ओर एड्स तथा अन्य घातक रोग हमारे स्वास्थ्य पर हमला करते हैं, वहीं इनकी खेती करने से हमारा पर्यावरण भी दूषित होता है. समाज में अपराधिक प्रवृत्तियां पनप कर देशों की न्यायिक व्यवस्था को खोखला करते हुए गरीबी और अव्यवस्था को जन्म देती हैं, तथा उपभोक्ता विनाश के गर्त में गिरता जाता है. इस विषम स्थिति से मुक्ति पाने के लिए, इन पदार्थों की खेती करने वाले क्षेत्रों से गरीबी दूर करके उनका उचित विकास करना प्रत्येक राष्ट्र एवम् समुदाय का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए. '

यदि हम वैश्विक आंकड़ों पर नज़र डालें तो स्थिति वास्तव में गंभीर है. मादक द्रव्यों का अवैध धंधा, पेट्रोलियम और शस्त्र उद्योग के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कारोबार है. संसार का कोई भी क्षेत्र इन द्रव्यों के व्यसन एवम् अवैध व्यापार के श्राप से मुक्त नही है. लाखों व्यसनी, ज़िन्दगी और मौत के बीच झूलते हुए, नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं. इनका प्रयोग न केवल हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बर्बाद कर रहा है, वरन इनके अवैध उत्पादन एवम् वितरण के चलते हिंसात्मक अपराध भी फल फूल रहे हैं.

हमारे देश का युवा वर्ग (विशेषकर उत्तर पूर्व राज्यों का) भी इसके भयावह चंगुल में फँसा है. अमीर गरीब, शहरी और ग्रामीण-- समाज का कोई भी अंग इनसे अछूता नहीं है. यू.एन.ओ. की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी रूप से भारत में १० लाख हेरोइन सेवी हैं. गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार यह संख्या ५० लाख तक हो सकती है. चरस, भाँग गाँजा, अफीम, हेरोइन का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है. इनके अलावा कोडीन युक्त कफ सिरप तथा इंजेक्शन द्वारा लिए जाने वाले मादक द्रव्य भी खूब प्रचलित हैं. ट्रैफिक सिग्नल पर या यूं ही सड़को पर भीख माँगते हुए इन व्यसनियों से आपका सामना अवश्य हुआ होगा. चाहे ये समाज के निम्न वर्ग के गरीब हों, अथवा संभ्रांत परिवारों के व्यसनी-- ये सभी गुमनामी के अन्धकार में डूबे, एक निष्कासित जीवन जीते हैं. जो एक बार इस व्यसन के शिकार हो जाते हैं उनके लिए इससे छुटकारा पाना सरल नहीं होता. एक बार लत लग जाने पर ये नशे की अपनी दैनिक खुराक खरीदने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. इस नशे की लत ही कुछ ऐसी होती है कि व्यक्ति विवेकशून्य हो जाता है. उसका स्वयं पर कोई अधिकार ही नहीं रहता.

उत्तर प्रदेश कि एक मद्य निषेध अधिकारी श्रीमती अरुणा जोशी के अनुसार, "युवाओं में द्रव्य अपव्यय कि बढ़ती हुई लत के  मुख्य कारण है संयुक्त परिवारों का विघटन ; माता पिता दोनों के ही कार्यरत होने के कारण बच्चों की समुचित देखभाल में कमी; एवम् आधुनिक समाज में नैतिक मूल्यों का हास. उचित आदर्शों के अभाव में युवा वर्ग का दिशा भ्रमित होना आश्चर्य की बात नहीं है."
अरुणा जी का मानना है कि समाज से इस बुराई को दूर करने में केवल सरकारी हस्तक्षेप से काम नहीं चलने वाला. डॉक्टरों, अभिभावकों और शिक्षकों को मिल जुल कर इस व्यसन से पीड़ित लोगों को नयी राह दिखानी होगी.

यहाँ यह बात समझना आवश्यक है कि नशे के व्यसनियों को अपराधी करार कर देने से समस्या का हल निकलने के बजाय स्थिति और भी बिगड़ रही है. नशा करने वालों को जेल में डाल कर तथा उन्हें समाज से निष्कासित करके हम उनके स्वास्थ्य लाभ के सारे दरवाज़े बंद कर रहे हैं. यह लत भी एक रोग के समान है और रोगी का उचित इलाज किया जाता है, न कि उसे अपराधी करार करके मरने के लिए छोड़ दिया जाता है.

जो लोग इंजेक्शन के द्वारा नशा लेते हैं, उनकी स्थिति तो और भी गंभीर है. संक्रमित सुई के उपयोग के कारण उनमें एड्स की बीमारी होने की संभावना अधिक होती है. समाज से बहिष्कृत किये जाने पर वे चोरी छुपे ड्रग्स लेते रहते हैं, और किसी भी प्रकार के उपचार/परामर्श  के अभाव में नारकीय जीवन जीते हैं. प्राय: किसी भी प्रेम भरे सहारे के अभाव में वे चाह कर भी इस लत से छुटकारा पाने में असमर्थ होते हैं. उन्हें कलंकित जीवन जीने को मजबूर करने के बजाय उचित परामर्श और चिकत्सीय सुविधा उपलब्ध कराने में परिवार एवम् समुदाय का योगदान आवश्यक है. एशिया महाद्वीप में इंजेक्शन द्वारा ड्रग लेने वालों की संख्या सबसे अधिक है. परन्तु उनके नुक्सान को कम करने वाली सेवाएँ उनको सबसे कम उपलब्ध हैं. एड्स एवम्  हेपटेटिस-सी निवारण, उपचार तथा अन्य सहायता सेवाएँ उन तक पहुँच ही नहीं पाती, क्योंकि वो समाज में एक बहिष्कृत जीवन जीते हैं.

हमारी लड़ाई रोगी के विरुद्ध  नहीं, वरन रोग के विरुद्ध होनी चाहिए. अफीम, चरस, गांजा आदि का अवैध धंधा करने वाले तथा इस विष को अवैध रूप से वितरित करने वाले ही असली अपराधी हैं. सजा उन्हें मिलनी चाहिए न कि उनके जाल में फंसे हुए लोगों को. और केवल रोग को ही नहीं वरन रोग के कारण को समूल रूप से नष्ट करना होगा. अपने बच्चों की परवरिश एक सम्मानजनक और प्यार भरे माहौल में करनी होगी. माता पिता का प्रेम शर्त रहित होना चाहिए ताकि बच्चों/युवाओं को यह विश्वास हो कि वे, बिना किसी हीन भावना के, अपनी समस्याओं को अपने अभिभावकों के समक्ष  रख सकते हैं. प्रताड़ित होने का भय ही उन्हें चोरी छिपे काम करने को उकसाता है. अत्यधिक लाड़ प्यार और अत्यधिक सख्ती, दोनों ही विनाशक हैं. असीम धैर्य, अपरिमित प्यार एवम् उचित अनुशासन ही कुशल लालन पालन का मूल्य मन्त्र है.

नारकोटिक्स कमिश्नर श्रीमती जगजीत नवाडिया के शब्दों में, " एक राष्ट्र के रूप में हमें इस मादक द्रव्य सम्बन्धी असुरक्षा को कम करने हेतु सम्मिलित प्रयत्न करने होंगे. युवा वर्ग की ऊर्जा को खेल कूद तथा अन्य सामजिक कार्यों की दिशा में मोड़ कर एक ड्रग्स रहित, स्वस्थ और सुरक्षित भारत की स्थापना के लिए एकजुट प्रयास करने होंगे."


शोभा शुक्ला
एडिटर
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस