इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टूबेर्कुलोसिस अँड लंग डीसीज़ (द यूनियन) की ‘ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट 2011’ के अनुसार बच्चों की दीर्घकालिक बीमारियों में से सबसे अधिक अनुपात अस्थमा/ दमा का है। विश्व में 23.5 करोड़ लोग अस्थमा से प्रभावित हैं। 'द यूनियन' के निदेशक डॉ निल्स बिल्लो के अनुसार “अस्थमा नियंत्रण न करने के कारण जो संसाधन व्यर्थ जाते हैं और जितनी पीड़ा लोगों को झेलनी पड़ती है उसकी कीमत प्रभावकारी अस्थमा नियंत्रण से कहीं ज्यादा है”।
अधिकांश अस्थमा के रोगी आकस्मिक चिकित्सा सेवा में ही आते हैं जब तीव्र अस्थमा अटैक पड़ता है। यदि अस्थमा के रोगियों के पास गुणात्मक दृष्टि से उत्तम और आर्थिक रूप से वहन करने योग्य कीमत पर ‘इन्हेलर’ उपलब्ध हों तो अस्थमा नियंत्रित रह सकता है। परंतु अधिकांश अस्थमा से जूझ रहे लोगों तक गुणात्मक दृष्टि से उत्तम, प्रभावकारी और सस्ते ‘इन्हेलर’ नहीं पहुँचते। स्वास्थ्य प्रणाली में अस्थमा नियंत्रण से संबन्धित प्रशिक्षण और एक प्रभावकारी अस्थमा नियंत्रण कार्यक्रम का भी अभाव है।
भारत में अस्थमा: भारत में 2.4 करोड़ लोग अस्थमा से जूझ रहे हैं जिनमें से 11.8% तक बच्चे हैं। अस्थमा के सबसे समान लक्षण ख़ासी, सांस फूलना है जो एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों से अधिक भीषण होता है। आनुवांशिक कारणों के अलावा अनेक बाहरी ऐसे तत्व हैं जो ऐलर्जी पैदा करने से अस्थमा को तीव्र करते हैं जैसे कि फूल का पोलन, धूल, तंबाकू धुआँ, लकड़ी के चूल्हे का धुआँ, ट्रेफिक धुआँ, और अन्य कारण जैसे कि मानसिक तनाव, विशेष भोजन सामग्री, ऐसिडिटी, मोटापा, मौसम बदलाव, आदि।
चूंकि अस्थमा के लक्षण अन्य रोग जैसे कि टीबी आदि से मिलते-जुलते हैं इसलिए अस्थमा की सही पहचान करने में अकसर बाधा आती है (विशेषकर बच्चों में) और अस्थमा की चिकित्सकीय पहचान, उपचार नहीं होता या विलंब से होता है। लखनऊ के वरिष्ठ चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ बी.पी.सिंह के अनुसार “यदि बच्चे को निरंतर खांसी और श्वासनली के ऊपरी भाग का संक्रमण हो तो अकसर चिकित्सक उसे गलती से ‘प्राइमरी कॉम्प्लेक्स’ समझ कर टीबी का इलाज आरंभ कर देते हैं। यह बेहद चिंता का विषय है क्योंकि ऐसे केस में न केवल रोग की गलत पहचान हो जाती है बल्कि दवा का भी दुरुपयोग हो जाता है”।
अस्थमा का इलाज मुमकिन नहीं है परंतु इसका नियंत्रण सहजता से संभव है। इसीलिए अस्थमा के साथ जीवित लोगों की जागरूकता आवश्यक है जिससे कि वें स्वस्थ और सामान्य ज़िंदगी जी सकें। डॉ बी.पी.सिंह का कहना है कि “समस्या यह है कि आम लोगों में अस्थमा संबन्धित जागरूकता पर्याप्त नहीं है और अधिकांश अस्थमा रोगी ऐसे उपयुक्त अस्पताल जहां अस्थमा संबन्धित चिकित्सकीय सेवा सही से मिल पाये, तक नहीं पहुँच पाते। मुंबई में हुए शोध के अनुसार अनेक चिकित्सकों तक को अस्थमा का चिकित्सकीय इलाज/ नियंत्रण संबन्धित पर्याप्त ज्ञान नहीं था”।
‘इन्हेलर’: अस्थमा नियंत्रण का सही तरीका ‘इन्हेलर’ के जरिये है। कोर्टिको-स्टीरोइड को ‘इन्हेलर’ द्वारा श्वास में अंदर लेने से अस्थमा नियंत्रित रहता है, और यह ‘इन्हेलर’ का उपयोग नशा नहीं होता और कोई अन्य विपरीत लक्षण (साइड इफैक्ट) भी नहीं होता। द यूनियन के फेफड़े-रोग विभाग के निदेशक डॉ चियांग चेन युआन के अनुसार “‘इन्हेलर’ के जरिये कोर्टिको-स्टीरोइड को श्वास द्वारा अंदर लेने से अधिकांश अस्थमा रोगी अस्थमा नियंत्रित कर सकते हैं। दुर्भाग्य की बात है कि अधिकांश अस्थमा रोगी कोर्टिको-स्टीरोइड को ‘इन्हेलर’ द्वारा नहीं ले पाते। शोध के अनुसार 20% से कम अस्थमा रोगी कोर्टिको-स्टीरोइड को ‘इन्हेलर’ द्वारा ले पाते हैं”।
भारत में 70% से अधिक अस्थमा रोगी ओरल या मुख से दवा लेते है (और न कि ‘इन्हेलर’ से)। डॉ बी.पी.सिंह के अनुसार “भारत में अस्थमा रोगी अकसर कोर्टिको-स्टीरोइड को ‘इन्हेलर’ द्वारा श्वास में नहीं ले पाते हैं क्योंकि चिकित्सकीय परामर्श का अभाव है, लोग दवा नियमित नहीं लेते, या इस दवा से संबन्धित अनेक भ्रांतियाँ है जैसे कि इससे विपरीत लक्षण या साइड इफैक्ट होंगे आदि”।
अस्थमा देखभाल और नियंत्रण मुमकिन है: छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर (डॉ0) सूर्य कान्त के अनुसार “‘इन्हेलर’ द्वारा दी गयी दवा की कीमत रुपया 4-5 प्रति दिन आती है और अस्थमा इलाज इसीलिए सबसे सस्ते इलाजों में से एक है। ‘इन्हेलर’ चश्मे की तरह हैं, जैसे कि जिस व्यक्ति की आँख कमजोर हो वो चश्मा लगाता है उसी तरह जिस व्यक्ति की ‘ब्रोंकीयल नली’ कमजोर है वो ‘इन्हेलर’ का उपयोग करता है। जिस तरह हम लोग रोजाना दंत मंजन करते हैं उसी तरह अस्थमा रोगी को सुबह और शाम ‘इन्हेलर’ से दवा लेनी चाहिए। इससे अस्थमा नियंत्रण प्रभावकारी ढंग से हो पाएगा। जल-नेति करने से भी ऐलर्जी पैदा करने वाले तत्व साफ हो जाते हैं। अस्थमा रोगी को अन्य ऐसे कारण जिनसे अस्थमा तीव्र हो सकता है जैसे कि तंबाकू धुआँ, मानसिक तनाव, आदि से भी बचना चाहिए”।
हमारा मानना है कि यदि अस्थमा नियंत्रण प्रभावकारी और व्यवस्थित ढंग से बिना विलंब नहीं किया गया तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। न केवल अस्थमा रोगी को स्वस्थ और सामान्य जीवन-यापन करने का अधिकार है बल्कि अस्थमा नियंत्रण सरल भी है बशर्ते कार्यक्रम समुचित ढंग से लागू किया जाये।
बाबी रमाकांत - सी.एन.एस.