भारतीय समाज में तपेदिक अथवा टीबी आज भी एक गंभीर बीमारी के रूप में विद्यमान है और प्रति वर्ष 300000 लोग टीबी से मरते है। एमडीआर अथवा औषधि प्रतिरोधक टीबी, जो कि सामान्य टीबी के कुप्रबंधन द्वारा ही जन्मी समस्या है, से हर साल पूरे विश्व में 150000 लोग मरते है और लगभग 440000 एमडीआर के नए संक्रमण विकसित होते हैं जबकि टीबी का इलाज सम्भव है और हमारे देश के पुनरीक्षित राष्ट्रीय तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम के तहत डोट्स सेवा द्वारा इसकी दवाएं मुफ्त में उपलब्ध होती है। एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति में सक्रिय टीबी विकसित होने का और टीबी रोग से मरने का खतरा ज्यादा होता है क्योंकि एचआईवी वाइरस शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है।
एमडीआर-टीबी टीबी का ही एक रूप है जो कि आइसोनियाजिड और रिफैम्पिसिन जैसी शक्तिशाली दवाओं के लिए प्रतिरोधी होती है और साधारण टीबी के इलाज के लिए उपलब्ध छह महीने के उपचार से ठीक नहीं होती है. अतः एमडीआर टीबी के ठीक होने में दो साल से अधिक का समय लग सकता है, और जिन दवाओं से इसका इलाज किया जाता है वे दवाएँ साधारण टीबी इलाज के लिए उपलब्ध दवाओं की तुलना में अधिक विषाक्त और महंगी होती हैं। एमडीआर-टीबी दवाओं के प्रबंधन में गड़बड़ी से अन्य दवाओं के प्रति भी प्रतिरोधकता बढ़ जाती है। एचआईवी से साथ जीवनयापन करने वाले लोगों के लिए यह और भी खतरे की बात है क्योंकि ऐसे लोगों में टीबी होने के बावजूद परीक्षण पॉज़िटिव नहीं आता है साथ ही टीबी और एचआईवी दोनों के एक साथ इलाज में भी मुश्किलें आती हैं।
इन्टर्नैशनल यूनियन अगेन्स्ट ट्युबरक्लोसिस एंड लंग डिज़ीज़ (द यूनियन) के विशेषज्ञ डॉ जोस कमीनेरो का मानना है कि “एमडीआर टीबी रोग को नियंत्रित करने के लिए साधारण टीबी रोग के इलाज का सही तरीके से प्रबन्धन बहुत ही आवश्यक है। यदि हम साधारण टीबी का इलाज़ करने में सफल रहेंगे तो एमडीआर टीबी अपने आप ही खत्म हो जाएगी। बहुत से देशों में राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम सही ढंग से काम नहीं कर रहे हैं जिसके फलस्वरूप एमडीआर टीबी के रोगी बढ़ रहे हैं। भारत जैसे देश में जहाँ पर बहुत सारे गैरसरकारी डॉक्टर टीबी का इलाज़ अपने तरीके से करते है भी एमडीआर टीबी के फैलने का एक प्रमुख कारण है।”
एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के लिए टीबी कितनी खतरनाक है इसका आंकलन हम इसी से लगा सकते हैं कि हर चार एचआईवी संक्रमित व्यक्ति में से एक की मृत्यु टीबी से होती है जबकि टीबी का इलाज संभव है। ज़ाहिर है कि हमे स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ और व्यवस्थित करने के अलावा विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के एक साथ संकलित रूप से क्रियान्यवन की जरूरत है।
द यूनियन के विशेषज्ञ डॉ ईगनासीओ मोनेडेरो का कहना है कि “एमडीआर-टीबी माईकोबैक्टीरियम टीबी के द्वारा फैलती है जो आइसोनियाजिड और रिफैम्पिसिन जैसी सबसे असरदार टीबी विरोधी दवा की प्रतिरोधी होती है। एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों में न केवल सक्रिय टीबी विकसित होने का ज्यादा खतरा होता है बल्कि इससे मरने का भी खतरा होता है। साधारण टीबी मरीजों का और एमडीआर-टीबी मरीजों का समय पर सही ढंग से इलाज ही एमडीआर-टीबी संक्रमण को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है। एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों को एमडीआर-टीबी से बचने के लिए अतिरिक्त देखभाल के साथ-साथ टीबी से पीड़ित व्यक्तियों के संपर्क में आने से बचना चाहिए तथा एंटीरेट्रोवाइरल दवा (जो शरीर में एचआईवी वाइरस को फैलने से रोकता है) का पालन बयाने रखना चाहिए जिससे कि रोग प्रतिरक्षा प्रणाली उच्च बनी रहे क्योंकि यह व्यापक रूप से जाना जाता है कि जब सीडी-4 काउंट 350 से नीचे आ जाता है तब सक्रिय टीबी विकसित होने का खतरा काफी बढ़ जाता है”।
टीबी विशेषज्ञ डॉ बी पी सिंह का भी मानना है कि “यह बहुत महत्वपूर्ण है कि टीबी रोगी का बहुत प्रभावी ढंग से इलाज होना चाहिए साथ ही उपचार की बारीकी से निगरानी होनी चाहिए. सभी टीबी रोगीयों को सही संयोजन में उचित दवा दिया जाना चाहिए. एमडीआर टीबी की रोकथाम का यही एक सबसे अच्छा उपाय है”। स्पष्ट है कि एमडीआर-टीबी के प्रकोप से बचने के लिए साधारण टीबी रोगियों और एमआरडी टीबी रोगियों के सही ढंग से इलाज को सुनिश्चित करना बहुत ही आवश्यक है। साथ ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों का सही रूप से क्रियान्यवन के साथ-साथ टीबी रोग से बचाव के अन्य साधनों जैसे इसोनियाजीड प्रिवेंटिव थेरेपी (आईपीटी) को भी अपनाना चाहिए तभी एमडीआर टीबी से बचाव में पूर्ण सफलता प्राप्त होगी।
डबल्यूएचओ एमआरडी-टीबी के दिशा निर्देशों के अनुसार “सभी एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों को एमडीआर-टीबी का दवा शुरू करने के 8 सप्ताह के भीतर ही जल्दी से जल्दी एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी शुरू कर देनी चाहिए बावजूद इसके की उनमे सीडी-4 सेल की गिनती कितनी है”।
राहुल द्विवेदी-सी.एन.एस