एचआईवी पाज़िटिव लोगों में मौत का प्रमुख कारण टीबी क्यों ?

इस सच्चाई के बावजूद कि टीबी का इलाज मुमकिन है और एचआईवी का उपचार उपलब्ध है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2010 में 350000 लोगों की मृत्यु इन दो रोगों के सह-संक्रमण से हुई, और एचआईवी से मरने वाले प्रत्येक चार लोगों में एक की मृत्यु का कारण टीबी ही है। पूरे विश्व में 10 लाख से अधिक लोगों को टीबी और एचआईवी के एक साथ इलाज की जरूरत है, अतः यह अत्यंत आवश्यक है कि स्वास्थ्य प्रणाली इन मरीजों को अपने सेवाओं के बेहतर समन्वय के साथ उचित देखभाल प्रदान करे. जब टीबी का इलाज उपलब्ध है तो एचआईवी के साथ जीवनयापन करने वाले लोगों में यह मृत्यु का प्रमुख कारण नहीं होना चाहिए.  
  

भारत में एचआईवी पाज़िटिव लोगों में टीबी रोग एक प्रमुख अवसरवादी संक्रमण के रूप में विद्यमान है, और 23 लाख एचआईवी पाज़िटिव लोगों में से 95 हजार टीबी-एचआईवी के सह-संक्रमण से पीड़ित हैं। टीबी रोग आज भी एचआईवी पाज़िटिव लोगों के जीवन के लिए एक गंभीर समस्या के रूप में विद्यमान है, जबकि हम यह जानते हैं कि टीबी रोग के इलाज के लिए डाट्स प्रोग्राम के तहत इसकी दवाएं मुफ्त में उपलब्ध हैं। 

टीबी रोग माइकोबैक्टीरियम बैक्टीरिया के कारण होता है, और दुनिया की कुल आबादी के एक तिहाई लोग इस बैक्टीरिया से संक्रमित हैं पर उन्हें सक्रिय टीबी नहीं है. स्वस्थ लोगों में सक्रिय टीबी रोग विकसित होने का खतरा बहुत कम होता है, पर एचआईवी से संक्रमित लोगों में सक्रिय टीबी रोग विकसित होने का खतरा काफी ज्यादा है क्योंकि एचआईवी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है.

इन्टर्नैशनल यूनियन अगेन्स्ट ट्युबरक्लोसिस एंड लंग डिज़ीज़ (द यूनियन) के शोध विभाग के निदेशक प्रोफेसर एंथनी हैरिस का कहना है कि “एचआईवी के साथ जीवनयापन करने वाले लोगों को टीबी संक्रमण से बचाने के लिए तीन चीजें आवश्यक हैं। पहला, एचआईवी संक्रमित व्यक्ति का एंटीरिट्रोवाइरल उपचार (एआरटी) शुरू कर देना चाहिए क्योंकि टीबी का संबंध सीडी-4 काउंट से है। जितना कम सीडी-4 काउंट होगा उतना अधिक सक्रिय टीबी होने का खतरा होगा। एआरटी शरीर में सीडी-4 काउंट को बढ़ाता है, फलस्वरूप सक्रिय टीबी होने की संभावना कम हो जाती है। दूसरा, व्यक्ति को आइसोनियाजीड प्रिवेंटिव थेरिपी (आई.पी.टी) लेनी चाहिए क्योंकि यह देखा गया है कि आई.पी.टी लेने से व्यक्ति में सक्रिय टीबी होने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है (आई.पी.टी एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों को सक्रिय टीबी रोग से बचाव में मदद के लिए दिया जाता है)। तीसरा, एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति को टीबी रोगी के संपर्क में आने से बचना चाहिए क्योंकि एचआईवी से संक्रमित व्यक्तियों में टीबी से संक्रमित होने का ज्यादा खतरा होता है”।     

एंटीरिट्रोवाइरल उपचार तीन शक्तिशाली दवाओं का मिश्रण होता है जो शरीर में एचआईवी के विकास को दबाता है। इसका उद्देश्य शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र को बनाये रखना है। यह एचआईवी संक्रमित  व्यक्ति के अस्तित्व को और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है तथा साथ ही उन्हें अवसरवादी संक्रमणों से भी बचाता है. एआरटी के द्वारा गर्भावस्था, प्रसव और स्तनपान के दौरान माताओं द्वारा अपने बच्चों को संक्रमण देने के खतरे को भी कम किया जा सकता है। यह यौन साझेदारों के बीच एचआईवी संक्रमण के जोखिम को भी कम कर देता है.    

द यूनियन के ज़िम्बाबे में टीबी-एचआईवी प्रोग्राम की समन्वक डॉ रीता डोल्डो का कहना है कि “एंटीरिट्रोवाइरल उपचार, एचआईवी के साथ जीवन यापन करने वाले लोगों में सक्रिय टीबी रोग को रोकने के अच्छे तरीकों में से एक है. अध्ययनों से यह पता चला है कि प्रभावी एआरटी टीबी के विकास के जोखिम को 70-90% तक कम कर देता है. एचआईवी संक्रमित लोगों को सक्रिय टीबी संक्रमण से बचाने के लिए आई.पी.टी दिया जा सकता है”।    

समाज के लिए यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि जब टीबी का इलाज और इससे बचाव के तरीके  उपलब्ध हैं फिर भी यह एचआईवी से संक्रमित लोगों में मौत का प्रमुख कारण है जो यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के उचित क्रियान्यवन में कमी है और टीबी निरीक्षण, परीक्षण तथा नए मरीज की खोज में स्पष्ट रूप से अनिमितताये हैं जिसको हमें सुधारना होगा तथा स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर बनाना होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि सीडी-4 काउंट कम होने पर एआरटी लेने के बजाये एचआईवी से संक्रमित लोगों को एआरटी दवाएं लेनी शुरू कर देनी चाहिए जिससे कि उनके शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र सुदृढ़ बना रहे। द यूनियन के प्रोफेसर एंथनी कहते है कि “टीबी-एचआईवी के सह-संक्रमण से पीड़ित लोगों को टीबी कि उपयुक्त दवा शुरू करने के एक माह के भीतर ही एआरटी दवाएं लेनी भी शुरू कर देनी चाहिए”  

स्पष्ट है एआरटी, एचआईवी के साथ जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए एक रामबाण की तरह है, साथ ही आई.पी.टी लेने से उनमे सक्रिय टीबी होने की संभावनाओं को काफी कम किया जा सकता है परंतु यह दुर्भाग्य की बात है कि आई.पी.टी राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों का भाग नहीं है और इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है।

राहुल द्विवेदी-सी.एन.एस