शोध से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि डायबिटीज का सम्बंध टीबी रोग से है। शोध के अनुसार डायबिटीज होने पर टीबी रोग के होने का खतरा 3 गुना बढ़ जाता है, और यदि व्यक्ति तंबाकू सेवन या धूम्रपान करता हो, तो टीबी रोग होने का खतरा 5 गुना तक बढ़ जाता है। डायबिटीज एक ऐसी भयंकर रोग है जिसमें रक्त में शर्करा की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, क्योंकि या तो शरीर में रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने वाले इंसुलिन नामक हार्मोन का निर्माण बंद हो जाता है या इंसुलिन हार्मोन अपने कार्य को ठीक से नहीं कर पाता है। सम्पूर्ण विश्व में लगभग 3660 लाख लोग डायबिटीज के साथ जीवन यापन कर रहे हैं, जिसमें से 90% वयस्क द्वितीय प्रकार की डायबिटीज से ग्रस्त है। वर्ष 2011 में पूरे विश्व में लगभग 46 लाख लोग डाइबेटीज़ जनित रोगों के कारण मृत्यु का शिकार हुए, जिनमे से 80% लोग निम्न व मध्यम आय वाले देशों से थे, और 2030 तक यह संख्या दुगुनी हो सकती है।
डायबिटीज के कारण सक्रिय टीबी होने की संभावनाएं बढ़ जाती है और टीबी के इलाज की प्रक्रिया भी गड़बड़ हो सकती है। इसी प्रकार टीबी के कारण डायबिटीज के साथ जीवन यापन करने वाले लोगों में शर्करा का नियंत्रण भी प्रभावित हो सकता है। अतः इन दोहरी बीमारियों से लड़ने के लिए उचित रणनीतियों और बेहतर कार्ययोजना की आवश्यकता है।
इन्टर्नैशनल यूनियन अगेन्स्ट ट्युबरक्लोसिस एंड लंग डिज़ीज़ (द यूनियन) के दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्रीय कार्यालय के शोध फ़ेलो डॉ एस श्रीनाथ का कहना है कि “विश्व स्वास्थ्य संगठन और द यूनियन ने संयुक्त रूप से ‘डायबिटीज-टीबी नियंत्रण फ्रेमवर्क’ प्रकाशित किया है जिसमे इन दोनों बीमारियों के सह-संक्रमण से निपटने के लिए गतिविधियों के बारे में बताया गया है। इस फ्रेमवर्क के एक अंश का प्रयोग भारत के विभिन्न राज्यों में 13 अलग-अलग केन्द्रों पर किया जा रहा है जिसके अंतर्गत जो टीबी के मरीज हैं उनका डायबिटीज का परीक्षण तथा जो डायबिटीज के मरीज हैं उनका टीबी के लिए परीक्षण होना है। इसका मूल्यांकन नवम्बर माह के पहले सप्ताह में होना है। चेन्नई में किये गये एक अध्ययन के अनुसार 30 साल से अधिक आयु वाले टीबी मरीजों में 25% मरीजों को डायबिटीज है। इसी प्रकार केरल में किये गये एक शोध के अनुसार 40% से 45% तक टीबी मरीजों को डायबिटीज है”।
भारत में लगभग 6.13 करोड़ लोग डायबिटीज के साथ जीवित हैं और करीब 10 लाख लोग डायबिटीज के कारण प्रति वर्ष मौत को गले लगते हैं। भारत में प्रति वर्ष 19.8 लाख लोगों को टीबी रोग ग्रसित करता है और उनमें से 3 लाख लोग मृत होते हैं। अतः भारत सरकार के लिए यह नितांत आवश्यक है कि इन दोनों बीमारियों के सह-संक्रमण को गंभीरता से आँकते हुए, सरकार द्वारा चलाये जाने वाले विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बीच समन्वय बढ़ाये। डॉ श्रीनाथ कहते हैं कि “भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय गैर-संक्रामक रोग नियंत्रण यूनिट बनाये गये हैं जिनके तहत स्वास्थ्य केन्द्रों पर आने वाले 30 साल से अधिक आयु के प्रत्येक व्यक्ति का डायबिटीज परीक्षण होना चाहिए। इसी प्रकार टीबी के इलाज के लिए आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का डायबिटीज परीक्षण होना चाहिए और यदि वें डायबेटिक पाये जाते हैं तो उन्हे डायबिटीज केयर यूनिट में भेजना चाहिए। टीबी की दवाएँ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र स्तर पर उपलब्ध हैं और अगर कोई मरीज डायबेटिक है तो उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर भेजा जाता है मगर ऐसा केवल टीबी के मरीजों के साथ हो रहा है। डायबिटीज के मरीजों के लिए ऐसा तभी मुमकिन है जब किसी बाहरी गैर-सरकारी डायबिटीज केयर चिकित्सालय के साथ भी काम किया जाय जहां बड़ी संख्या में डायबिटीज के इलाज के लिए लोग आते हैं”।
आवश्यक बात यह है कि सरकार को जनहित में जागरूकता फैलाने के साथ-साथ गैरसरकारी संस्थाओं के साथ समन्वय रखने की जरूरत है ताकि सामान्य तौर पर सभी सरकारी और गैरसरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों पर आने वाले डायबिटीज के मरीजों का टीबी के लिए परीक्षण और टीबी के मरीजों का डायबिटीज के लिए परीक्षण किया जा सके और उसी के अनुरूप मरीजों का इलाज हो तभी इन दोनों दोहरे सह-संक्रमण से लोगों का बचाव मुमकिन हो सकता है।
राहुल कुमार द्विवेदी- सी.एन.एस