निमोनिया वायरस, बैक्टिरिया, फॅंगस और पैरासाइट से फेफड़ों में होने वाला एक संक्रामक रोग है। लेकिन इसका उपचार समय रहते एंटीबायोटिक के उपयोग के साथ आसानी से किया जा सकता है और जिसमें खर्च 55 रुपये अथवा $1 से भी कम होता है, फिर भी पूरे विश्व में प्रतिवर्ष पाँच साल से कम उम्र के 14 लाख बच्चे निमोनिया के कारण मृत होते हैं जो कि एड्स, मलेरिया और टीबी से होने वाले कुल मौतों से भी अधिक है। परंतु यदि सही विधि से नवजात शिशुओं को जन्म के पहले छः माह तक सिर्फ स्तनपान और उसके बाद उचित पोषण दें तो निमोनिया से होने वाले इन मौतों को कम किया जा सकता है।
आँकड़ो और तथ्यों से यह बात स्पष्ट होती है कि इनमें से लगभग 99% मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती है जिसका एक प्रमुख कारण यह है कि निमोनिया से पीढ़ित बच्चों को उचित समय पर एंटीबायोटिक दवाएं तथा अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवायें नहीं मिल पाती हैं। निमोनिया से अधिक प्रभावित 68 देशों में किये गये एक अध्ययन के अनुसार निमोनिया से पीड़ित केवल 30% बच्चों को ही समय पर एंटीबायोटिक दवाएं प्राप्त हो पाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पर्याप्त रोकथाम और उपचार कार्यक्रमों की सहायता से हर साल एक लाख बच्चों की जान बाचयी जा सकती है। इन्टर्नैशनल यूनियन अगेन्स्ट ट्युबरक्लोसिस एंड लंग डिज़ीज़ (द यूनियन) के डॉ पेन्नी इनार्सन का कहना है कि “बच्चों को निमोनिया तथा अन्य किसी भी संक्रमण से बचाने के लिए सर्वप्रथम स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को नियमित टीकाकरण करने के लिए घर जाना आवश्यक है तथा परिवार के सदस्यों को इन बातों की जानकारी देना कि -(1) बच्चे को जन्म के पहले छः महीने तक सिर्फ स्तनपान करायें क्योंकि शुरुवाती छः माह तक निमोनिया के होने का ज्यादा खतरा होता है, और माँ के दूध में ऐन्टीआक्सिडन्ट, हॉर्मोन और ऐन्टीबाडीज़ होते हैं जो बच्चों के विकास के लिए बहुत ही आवश्यक होते हैं। (2) बच्चे को घर के भीतर के प्रदूषण जैसे कूक स्मोक और परोक्ष रूप से धूम्रपान आदि से बचाना क्योंकि इससे बच्चों में स्वांस सम्बन्धी संक्रमण, अस्थमा तथा अन्य कई प्रकार के संक्रमणों के होने का खतरा होता है”
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सुझाया है कि बच्चों को निमोनिया से बचाने में पर्याप्त मात्रा में पोषण बहुत ही अहम भूमिका निभाता है. बच्चों को आरम्भ के छः महीने तक समुचित मात्रा में पोषण देने के लिए माँ का दूध पर्याप्त है. यह बच्चों के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा है जो कि बच्चों को न केवल पूर्ण पोषण प्रदान करता है बल्कि उनमे रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास भी करता है.
डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल के वरिष्ठ चेस्ट परामर्शकर्ता डॉ. त्रिभवन कुमार अग्रवाल, बच्चों को निमोनिया से बचाने तथा इसके इलाज के संदर्भ में कहते है कि “पाँच साल या उससे कम उम्र के बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता उतना अधिक नहीं होता है जितना आम आदमी में होता है। शरीर में ऐसे बैक्टीरिया रहते है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने पर निमोनिया पैदा करते है। निमोनिया से बाचव के लिए निमोकोकल टीका बाजार में उपलब्ध है जो बच्चों को लगायी जा सकती पर हिंदुस्तान में यह टीका उतना प्रजालित और प्रभावी नहीं है जितना और देशों में है। अतः बचाव के लिए नवजात शिशुओं को शुरुवाती महीनो में माँ का दूध देना चाहिए जिससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है साथ ही सही खान-पान आवश्यक है यही बाचव के तरीके है जो निमोकोकल टीका के स्थान पर हम लोग इस्तेमाल कर सकते है। निमोनिया से पीड़ित बच्चों को इलाज के लिए वही एंटीबायोटिक देना चाहिये जो बैक्टीरिया के प्रति संवेदनशील हो परन्तु यह आम अवधारणा कि ब्राडर एंटीबायोटिक देते हैं पर ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें पहले कल्चर करा कर दवा प्रतिरोधकता के बारे में पता कर लेना चाहिए फिर उसी के हिसाब से एंटीबायोटिक दवा देनी चाहिए”।
बच्चे जो कुपोषित या अल्पपोषित और जन्म से शुरूआती छः माह तक सिर्फ माँ का दूध नहीं पीते हैं, उनमें रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है जिससे कारण उनमें निमोनिया के होने का खतरा बढ़ जाता है. अतः बच्चों को निमोनिया से बचाने में उचित पोषण और माँ के दूध का महत्वपूर्ण योगदान निभाता है. सम्पूर्ण विश्व में बच्चों में निमोनिया से होने वाली कुल मौतों में से ४४% मौतें कुपोषण के कारण होती हैं.
राहुल कुमार द्विवेदी