यौनिक हिंसा के मामले में विधि-बदलाव के लिए सुझाव देने हेतु, भारत सरकार द्वारा नियुक्त जस्टिस वर्मा कमेटी के लिए सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) ने लखनऊ में खुली परिचर्चा का आयोजन किया जिसमें अनेक नागरिकों ने भाग लिया। सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ संदीप पाण्डेय, उत्तर प्रदेश राज्य अध्यक्ष गिरीश कुमार पाण्डेय और ओंकार सिंह भी इस परिचर्चा में शामिल रहे। सोशलिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित इस परिचर्चा में आए सुझाव निम्नलिखित हैं:
• पितृसत्तात्मकता के कारण ही महिलाओं को दूसरे दर्जे का इंसान माना जाता है और यह मानकर चला जाता है कि पुरूषों के सामने झुकना, उनके लिए आवश्यक और स्वाभाविक है। भारत में राममंदिर आंदोलन के रास्ते धर्म का राजनीति में प्रवेश हुआ। धर्म की राजनीति ने लैंगिक न्याय और समानता के संघर्ष को पीछे ढ़केल दिया है। सन् 1970 के दशक में मथुरा में पुलिस हिरासत में एक आदिवासी लड़की के साथ बलात्कार की घटना की प्रतिक्रिया में शक्तिशाली महिला आंदोलन उभरा था जिसने महिलाओं के समानता के मुद्दे से जुड़े कई प्रासंगिक प्रश्नों को जोरदार ढंग से उठाया था। पितृसत्त्तात्मक मूल्य, बांटने वाली राजनीति का आवश्यक अंग हैं। हमारा मानना है कि उस साम्प्रदायिक राजनीति को चुनौती मिले जो जातिगत व लैंगिक ऊँच-नीच पर आधारित है।
• हमारा मानना है कि केवल कड़े कानून बनाने और दोषियों को सजा देने से समस्या का समाधान नहीं होगा। ऐसा करके हम केवल समस्या के लक्षणों पर प्रहार करेंगे। बेहतर यह होगा कि इस घटना से उपजे दुःख और आक्रोश को ऐसी दिशा दी जाए जिससे बलात्कार और महिलाओं के हर प्रकार के यौन उत्पीड़न की बढ़ती प्रवृत्ति और ऐसी घटनाओं पर ही अंकुश लग सके। हमें आशा है कि जो जनांदोलन इस मुद्दे पर खड़ा हुआ है वह अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के अतिरिक्त, ऐसी प्रक्रिया को भी जन्म देगा जिससे इस तरह की घटनाओं के असली, गहरे कारणों का विश्लेषण हो और उस साम्प्रदायिक राजनीति को चुनौती मिले जो जातिगत व लैंगिक ऊँच-नीच पर आधारित है।
• महिलाओं के लिए समाज में विभिन्न जाति, धर्म आदि की जन संख्या अनुपात के अनुसार, हर स्तर पर 50% आरक्षण होना चाहिए। राजनीतिक पार्टियां भी महिलाओं को अपने ढांचे में और चुनाव उम्मीदवार सूची में भी 50% आरक्षण दें। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) पूरा प्रयास करेगी कि आगामी चुनाव से उसकी उम्मीदवार सूची में 50% महिलाएं हों।
• क्रिमिनल लॉं (संशोधन) बिल 2012 जो इस समय संसद में है उसके वर्तमान मसौदे को पास नहीं करना चाहिए क्योंकि उसमें कई संशोधन की आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर, बलात्कार की परिभाषा को बदलने की जरूरत है जो वर्तमान में सिर्फ वेधनीय यौन क्रिया तक ही सीमित है। हमारा मानना है कि बलात्कार की परिभाषा में अन्य प्रकार के वीभत्स यौन उत्पीड़न भी शामिल करने चाहिए जिससे कि दोषी को कठोर सज़ा हो सके।
• वर्तमान क्रिमिनल लॉं बिल में ‘संस्तुति’ की परिभाषा भी आपत्तीजनक है – जिसके अनुसार यदि इस बात का प्रमाण नहीं है (जैसे कि शारीरिक चोट आदि) कि महिला ने यौन क्रिया से मना किया था तब उसको उसकी संस्तुति मान ली जाएगी। यह समझना जरूरी है कि हर यौन हिंसा में यह जरूरी नहीं है कि महिला को शारीरिक चोट पहुंचे)। यह भी समझना होगा कि संस्तुति तो बराबर वालों में बीच होती है। हमारा मानना है कि संस्तुति की परिभाषा को हटाना होगा।
• क्रिमिनल लॉं बिल का वर्तमान मसौदा विभिन्न स्तर की यौन हिंसा के परिप्रेक्ष्य में नहीं है।
• क्रिमिनल लॉं बिल का वर्तमान मसौदा सैन्य सुरक्षाकर्मियों द्वारा की गयी यौन हिंसा पर लागू नहीं होता है। हमारा मानना है कि सैन्य सुरक्षाकर्मियों द्वारा की गयी यौन हिंसा के मामलों को भी इसी कानून के तहत लाना होगा जिससे कि न्याय हो सके। यौन हिंसा के मामलों में सैन्य सुरक्षाकर्मी वर्तमान में अपने कोर्ट मार्शल आदि के तहत आते हैं न कि सेक्शन 376 (2) के तहत। छत्तीसगढ़, जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्यों में अनेक ऐसे मामले हैं जहां सैन्य सुरक्षाकर्मियों ने जन प्रतिरोध को दबाने के लिए यौन हिंसा का इस्तेमाल किया है।
• जैसे-जैसे दुनिया में मानवाधिकार के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है वैसे-वैसे मुल्कों ने मौत की सजा पर प्रतिबंध लगाना शुरू किया है। इस समय दुनिया के लगभग आधे देशों में मौत की सजा पर प्रतिबंध लगा हुआ है। ऐसी जघन्य यौन हिंसा की घटनाओं में दोषियों को निश्चित रूप से कठोर सजा होनी चाहिए किन्तु मौत की सजा से अपराध नहीं रुकते यह हमें समझना चाहिए। कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित व्यक्ति तो अपनी जान की बाजी लगाने का दुस्साहस करता ही है। जब तक पुरुष महिलाओं को बराबरी का सम्मान देना नहीं सीख लेते तब तक महिलाओं के साथ हिंसा की घटनाएं होती ही रहेंगी। समाज में ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो पुरुषों को मानसिक रूप से परिपक्व बनाए ताकि वे गल्तियां न करें। यह सही शिक्षा व मूल्यों के ग्रहण से होगा। नियम-कानून जरूर ऐसे होने चाहिए जो सामाजिक डर के कारण पुरुषों को राह भटकने से रोकें किन्तु अपराध को खत्म करने में उनकी सीमित भूमिका ही है। सभ्य समाज में तरीके मानवीय होने चाहिए। मौत की सजा की मांग पाश्विक है।
• क्रिमिनल लॉं बिल का वर्तमान मसौदा सिर्फ पुरुषों द्वारा महिलाओं पर हो रही यौन हिंसा के परिप्रेक्ष्य में है और ‘कोथी’, हिजरे, आदि पर हो रही यौनिक हिंसा पर लागू नहीं होता है।
• जब बच्चों या अव्यसकों पर विभिन्न स्तर की यौनिक हिंसा होती है तब यह कानून नहीं लगते और इसीलिए दोषी कम सज़ा में छूट सकता है।
• यदि कोई बच्चा, अव्यसक, महिला, हिजरा या अन्य कोई भी व्यक्ति यौनिक हिंसा की शिकायत करता है तब उसको संजीदगी से लेना चाहिए, रपट लिखनी चाहिए और पूरी जांच करनी चाहिए जिससे कि दोषियों को सज़ा हो सके। बच्चों और अव्यसकों के मामलों में बाल कल्याण अधिकारियों को भी शामिल करना चाहिए।
• पुलिस को यौनिक हिंसा से संबन्धित मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाना चाहिए। कितने उदाहरण है जब पुलिसकर्मियों ने ही उन महिलाओं या हिजरों का यौन उत्पीड़न किया जो शिकायत दर्ज़ करने गए थे। हमारा मानना है कि पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे लगे हों, और जो पुलिसकर्मी शिकायत दर्ज़ कराने आए व्यक्ति से दुर्व्यवहार करे उसके खिलाफ सख्त कारवाई हो।
• न्यायिक व्यवस्था को भी लिंग-संबन्धित और यौनिक हिंसा के मामलों में संवेदनशील बनाना होगा। यौनिक हिंसा के मामलों में समय से न्याय मिले और कठोर सज़ा हो इसके लिए संवेदनशील वकील और जज दोनों का होना आवश्यक है।
• यौनिक हिंसा के मामलों में चिकित्सकीय जांच सरकारी चिकित्सक ही करते हैं। यह जांच सिर्फ महिला चिकित्सक द्वारा ही होनी चाहिए। अधिकांश यह देखा गया है कि चिकित्सक वर्ग भी यौनिक हिंसा के मामलों में असंवेदनशील हैं। उदाहरण के तौर पर चिकित्सक यह खोजते हैं कि चोट कहाँ लगी है परंतु यह समझने की जरूरत है कि हर यौनिक हिंसा के मामलों में शारीरिक चोट नहीं लगती।
• यौनिक हिंसा के मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट बनाए जाएँ और 6 माह की निश्चित समय अवधि के भीतर ही इन केसों को फैसला हो। पूरी कोर्ट प्रक्रिया को कैमरे में रेकॉर्ड किया जाये।
• यदि आईपीसी सेक्शन को बढ़ाने की जरूरत हो तो इसका प्रावधान हो और यदि वाजिब है तो यह सरलता से संभव हो।
• जिस व्यक्ति के ऊपर यौनिक हिंसा हुई है उसकी रक्षा करना सरकार की मूल ज़िम्मेदारी है। उस व्यक्ति को सम्मानजनक ढंग से पुनर्स्थापित करना भी सरकार की ज़िम्मेदारी है जिसमें रोजगार आदि शामिल है।
• हमारा मानना है कि लोकतन्त्र में अति-विशिष्ठ व्यक्तियों की सुरक्षा का भी मूल्यांकन करना जरूरी है क्योंकि चंद व्यक्तियों की अत्यधिक सुरक्षा और अधिकांश समाज असुरक्षित – यह लोकतन्त्र में नहीं होना चाहिए।
• हर प्रदेश में महिलाओं में लिए प्रभावकारी हेल्प-लाइन सक्रिय हो।
• विशाखा केस में सुप्रीम कोर्ट निर्देश के अनुसार हर कार्यस्थल पर यौनिक हिंसा के खिलाफ विशेष कमेटी बनी होनी चाहिए।
• जन-परिवहन व्यवस्था महिलाओं के लिए विशेषकर दिन-रात के हर समय के अनुरूप सुरक्षित और सुविधाजनक होनी चाहिए। परिवहन गाड़ियों में जीपीआरएस लगा हो जिससे कि उनपर नज़र रखी जा सके, और बस-स्टाप, सड़कों आदि पर पर्याप्त उजाला हो।
• जिस व्यक्ति पर यौनिक हिंसा का मामला सिद्ध हो जाये उसको चुनाव आदि में प्रतिनिधि बनने पर रोक लगनी चाहिए।
• शराब-बंदी अत्यंत आवश्यक है। हमारे समाज में सरकार को शराब-बंदी के प्रति अत्यधिक सजग और सक्रिय होना चाहिए। शराब-सेवन न केवल सेवन करने वाले को नुकसान देता है बल्कि समाज में भी जघन्य यौन हिंसा को रूप देता है।
• आईएएस, आईपीएस, न्यायिक और विधि प्रशिक्षण, आदि में लिंग-संबन्धित और यौनिक हिंसा संबन्धित संवेदनशील पाठ्यक्रम शामिल होने चाहिए।
• यदि यौनिक हिंसा महिला के साथ हुई है तो ‘161 बयान’ महिला पुलिसकर्मी को ही लेना चाहिए, और महिला को पुलिस-थाने बुलाने के बजाय महिला पुलिसकर्मी, अपनी-वर्दी में न वरन सादे कपड़ों में, महिला के घर जाकर यह बयान ले। यह 161 बयान की ध्वनि और विडियो दोनों रिकॉर्डिंग हो और पुलिसकर्मी की भाषा और रवैया महिला के प्रति संवेदनशील हो।
• 164 बयान महिला मजिस्ट्रेट द्वारा ही लिया जाये। यदि महिला मजिस्ट्रेट उपलब्ध न हो तो अन्य कोर्ट से अस्थायी व्यवस्था कर के बुलाया जाये। इस बयान को भी ध्वनि और विडियो दोनों में रेकॉर्ड करना चाहिए।
• ऐसी गालियां, जिसमें महिलाओं या उनके यौन-अंगों की ओर इशारा हो, उनपर कानून प्रतिबंध लगना चाहिए और यदि यह फिल्म, प्रकाशन, या असल ज़िंदगी में इस्तेमाल हों, तो इसपर ठोस कानूनी कारवाई हो। यदि ऐसी भाषा फिल्म आदि में प्रयोग होती है तो सेंसर-बोर्ड प्रमुख के खिलाफ भी कारवाई हो।
• 6 बजे शाम के बाद पुलिस गश्त बढ़े और महिला-बस जो महिला चालक और कंडक्टर द्वारा चल रही हो उनकी संख्या बढ़े।
• स्कूल आदि में पढ़ रही हर बालिका के लिए आत्मरक्षा प्रशिक्षण आवश्यक होना चाहिए। सरकार को इसके लिए आर्थिक अनुदान भी देना चाहिए।
• सभी ग्रामीण और शहरी पुलिस स्टेशन को ऑनलाइन करना चाहिए जिससे कि हर शिकायत करने वाले को एक विशेष नंबर प्राप्त हो जिसको डीजीपी कार्यालय या जिला मुख्यालय आदि से ट्रैक किया जा सके।
• यौन कर्मियों को पहचान पत्र जारी किया जाये, उनपर श्रम कानून लगे, और अन्य सुविधाएं भी मिले।
बाबी रमाकांत, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
जनवरी 2013
• पितृसत्तात्मकता के कारण ही महिलाओं को दूसरे दर्जे का इंसान माना जाता है और यह मानकर चला जाता है कि पुरूषों के सामने झुकना, उनके लिए आवश्यक और स्वाभाविक है। भारत में राममंदिर आंदोलन के रास्ते धर्म का राजनीति में प्रवेश हुआ। धर्म की राजनीति ने लैंगिक न्याय और समानता के संघर्ष को पीछे ढ़केल दिया है। सन् 1970 के दशक में मथुरा में पुलिस हिरासत में एक आदिवासी लड़की के साथ बलात्कार की घटना की प्रतिक्रिया में शक्तिशाली महिला आंदोलन उभरा था जिसने महिलाओं के समानता के मुद्दे से जुड़े कई प्रासंगिक प्रश्नों को जोरदार ढंग से उठाया था। पितृसत्त्तात्मक मूल्य, बांटने वाली राजनीति का आवश्यक अंग हैं। हमारा मानना है कि उस साम्प्रदायिक राजनीति को चुनौती मिले जो जातिगत व लैंगिक ऊँच-नीच पर आधारित है।
• हमारा मानना है कि केवल कड़े कानून बनाने और दोषियों को सजा देने से समस्या का समाधान नहीं होगा। ऐसा करके हम केवल समस्या के लक्षणों पर प्रहार करेंगे। बेहतर यह होगा कि इस घटना से उपजे दुःख और आक्रोश को ऐसी दिशा दी जाए जिससे बलात्कार और महिलाओं के हर प्रकार के यौन उत्पीड़न की बढ़ती प्रवृत्ति और ऐसी घटनाओं पर ही अंकुश लग सके। हमें आशा है कि जो जनांदोलन इस मुद्दे पर खड़ा हुआ है वह अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के अतिरिक्त, ऐसी प्रक्रिया को भी जन्म देगा जिससे इस तरह की घटनाओं के असली, गहरे कारणों का विश्लेषण हो और उस साम्प्रदायिक राजनीति को चुनौती मिले जो जातिगत व लैंगिक ऊँच-नीच पर आधारित है।
• महिलाओं के लिए समाज में विभिन्न जाति, धर्म आदि की जन संख्या अनुपात के अनुसार, हर स्तर पर 50% आरक्षण होना चाहिए। राजनीतिक पार्टियां भी महिलाओं को अपने ढांचे में और चुनाव उम्मीदवार सूची में भी 50% आरक्षण दें। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) पूरा प्रयास करेगी कि आगामी चुनाव से उसकी उम्मीदवार सूची में 50% महिलाएं हों।
• क्रिमिनल लॉं (संशोधन) बिल 2012 जो इस समय संसद में है उसके वर्तमान मसौदे को पास नहीं करना चाहिए क्योंकि उसमें कई संशोधन की आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर, बलात्कार की परिभाषा को बदलने की जरूरत है जो वर्तमान में सिर्फ वेधनीय यौन क्रिया तक ही सीमित है। हमारा मानना है कि बलात्कार की परिभाषा में अन्य प्रकार के वीभत्स यौन उत्पीड़न भी शामिल करने चाहिए जिससे कि दोषी को कठोर सज़ा हो सके।
• वर्तमान क्रिमिनल लॉं बिल में ‘संस्तुति’ की परिभाषा भी आपत्तीजनक है – जिसके अनुसार यदि इस बात का प्रमाण नहीं है (जैसे कि शारीरिक चोट आदि) कि महिला ने यौन क्रिया से मना किया था तब उसको उसकी संस्तुति मान ली जाएगी। यह समझना जरूरी है कि हर यौन हिंसा में यह जरूरी नहीं है कि महिला को शारीरिक चोट पहुंचे)। यह भी समझना होगा कि संस्तुति तो बराबर वालों में बीच होती है। हमारा मानना है कि संस्तुति की परिभाषा को हटाना होगा।
• क्रिमिनल लॉं बिल का वर्तमान मसौदा विभिन्न स्तर की यौन हिंसा के परिप्रेक्ष्य में नहीं है।
• क्रिमिनल लॉं बिल का वर्तमान मसौदा सैन्य सुरक्षाकर्मियों द्वारा की गयी यौन हिंसा पर लागू नहीं होता है। हमारा मानना है कि सैन्य सुरक्षाकर्मियों द्वारा की गयी यौन हिंसा के मामलों को भी इसी कानून के तहत लाना होगा जिससे कि न्याय हो सके। यौन हिंसा के मामलों में सैन्य सुरक्षाकर्मी वर्तमान में अपने कोर्ट मार्शल आदि के तहत आते हैं न कि सेक्शन 376 (2) के तहत। छत्तीसगढ़, जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्यों में अनेक ऐसे मामले हैं जहां सैन्य सुरक्षाकर्मियों ने जन प्रतिरोध को दबाने के लिए यौन हिंसा का इस्तेमाल किया है।
• जैसे-जैसे दुनिया में मानवाधिकार के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है वैसे-वैसे मुल्कों ने मौत की सजा पर प्रतिबंध लगाना शुरू किया है। इस समय दुनिया के लगभग आधे देशों में मौत की सजा पर प्रतिबंध लगा हुआ है। ऐसी जघन्य यौन हिंसा की घटनाओं में दोषियों को निश्चित रूप से कठोर सजा होनी चाहिए किन्तु मौत की सजा से अपराध नहीं रुकते यह हमें समझना चाहिए। कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित व्यक्ति तो अपनी जान की बाजी लगाने का दुस्साहस करता ही है। जब तक पुरुष महिलाओं को बराबरी का सम्मान देना नहीं सीख लेते तब तक महिलाओं के साथ हिंसा की घटनाएं होती ही रहेंगी। समाज में ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो पुरुषों को मानसिक रूप से परिपक्व बनाए ताकि वे गल्तियां न करें। यह सही शिक्षा व मूल्यों के ग्रहण से होगा। नियम-कानून जरूर ऐसे होने चाहिए जो सामाजिक डर के कारण पुरुषों को राह भटकने से रोकें किन्तु अपराध को खत्म करने में उनकी सीमित भूमिका ही है। सभ्य समाज में तरीके मानवीय होने चाहिए। मौत की सजा की मांग पाश्विक है।
• क्रिमिनल लॉं बिल का वर्तमान मसौदा सिर्फ पुरुषों द्वारा महिलाओं पर हो रही यौन हिंसा के परिप्रेक्ष्य में है और ‘कोथी’, हिजरे, आदि पर हो रही यौनिक हिंसा पर लागू नहीं होता है।
• जब बच्चों या अव्यसकों पर विभिन्न स्तर की यौनिक हिंसा होती है तब यह कानून नहीं लगते और इसीलिए दोषी कम सज़ा में छूट सकता है।
• यदि कोई बच्चा, अव्यसक, महिला, हिजरा या अन्य कोई भी व्यक्ति यौनिक हिंसा की शिकायत करता है तब उसको संजीदगी से लेना चाहिए, रपट लिखनी चाहिए और पूरी जांच करनी चाहिए जिससे कि दोषियों को सज़ा हो सके। बच्चों और अव्यसकों के मामलों में बाल कल्याण अधिकारियों को भी शामिल करना चाहिए।
• पुलिस को यौनिक हिंसा से संबन्धित मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाना चाहिए। कितने उदाहरण है जब पुलिसकर्मियों ने ही उन महिलाओं या हिजरों का यौन उत्पीड़न किया जो शिकायत दर्ज़ करने गए थे। हमारा मानना है कि पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे लगे हों, और जो पुलिसकर्मी शिकायत दर्ज़ कराने आए व्यक्ति से दुर्व्यवहार करे उसके खिलाफ सख्त कारवाई हो।
• न्यायिक व्यवस्था को भी लिंग-संबन्धित और यौनिक हिंसा के मामलों में संवेदनशील बनाना होगा। यौनिक हिंसा के मामलों में समय से न्याय मिले और कठोर सज़ा हो इसके लिए संवेदनशील वकील और जज दोनों का होना आवश्यक है।
• यौनिक हिंसा के मामलों में चिकित्सकीय जांच सरकारी चिकित्सक ही करते हैं। यह जांच सिर्फ महिला चिकित्सक द्वारा ही होनी चाहिए। अधिकांश यह देखा गया है कि चिकित्सक वर्ग भी यौनिक हिंसा के मामलों में असंवेदनशील हैं। उदाहरण के तौर पर चिकित्सक यह खोजते हैं कि चोट कहाँ लगी है परंतु यह समझने की जरूरत है कि हर यौनिक हिंसा के मामलों में शारीरिक चोट नहीं लगती।
• यौनिक हिंसा के मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट बनाए जाएँ और 6 माह की निश्चित समय अवधि के भीतर ही इन केसों को फैसला हो। पूरी कोर्ट प्रक्रिया को कैमरे में रेकॉर्ड किया जाये।
• यदि आईपीसी सेक्शन को बढ़ाने की जरूरत हो तो इसका प्रावधान हो और यदि वाजिब है तो यह सरलता से संभव हो।
• जिस व्यक्ति के ऊपर यौनिक हिंसा हुई है उसकी रक्षा करना सरकार की मूल ज़िम्मेदारी है। उस व्यक्ति को सम्मानजनक ढंग से पुनर्स्थापित करना भी सरकार की ज़िम्मेदारी है जिसमें रोजगार आदि शामिल है।
• हमारा मानना है कि लोकतन्त्र में अति-विशिष्ठ व्यक्तियों की सुरक्षा का भी मूल्यांकन करना जरूरी है क्योंकि चंद व्यक्तियों की अत्यधिक सुरक्षा और अधिकांश समाज असुरक्षित – यह लोकतन्त्र में नहीं होना चाहिए।
• हर प्रदेश में महिलाओं में लिए प्रभावकारी हेल्प-लाइन सक्रिय हो।
• विशाखा केस में सुप्रीम कोर्ट निर्देश के अनुसार हर कार्यस्थल पर यौनिक हिंसा के खिलाफ विशेष कमेटी बनी होनी चाहिए।
• जन-परिवहन व्यवस्था महिलाओं के लिए विशेषकर दिन-रात के हर समय के अनुरूप सुरक्षित और सुविधाजनक होनी चाहिए। परिवहन गाड़ियों में जीपीआरएस लगा हो जिससे कि उनपर नज़र रखी जा सके, और बस-स्टाप, सड़कों आदि पर पर्याप्त उजाला हो।
• जिस व्यक्ति पर यौनिक हिंसा का मामला सिद्ध हो जाये उसको चुनाव आदि में प्रतिनिधि बनने पर रोक लगनी चाहिए।
• शराब-बंदी अत्यंत आवश्यक है। हमारे समाज में सरकार को शराब-बंदी के प्रति अत्यधिक सजग और सक्रिय होना चाहिए। शराब-सेवन न केवल सेवन करने वाले को नुकसान देता है बल्कि समाज में भी जघन्य यौन हिंसा को रूप देता है।
• आईएएस, आईपीएस, न्यायिक और विधि प्रशिक्षण, आदि में लिंग-संबन्धित और यौनिक हिंसा संबन्धित संवेदनशील पाठ्यक्रम शामिल होने चाहिए।
• यदि यौनिक हिंसा महिला के साथ हुई है तो ‘161 बयान’ महिला पुलिसकर्मी को ही लेना चाहिए, और महिला को पुलिस-थाने बुलाने के बजाय महिला पुलिसकर्मी, अपनी-वर्दी में न वरन सादे कपड़ों में, महिला के घर जाकर यह बयान ले। यह 161 बयान की ध्वनि और विडियो दोनों रिकॉर्डिंग हो और पुलिसकर्मी की भाषा और रवैया महिला के प्रति संवेदनशील हो।
• 164 बयान महिला मजिस्ट्रेट द्वारा ही लिया जाये। यदि महिला मजिस्ट्रेट उपलब्ध न हो तो अन्य कोर्ट से अस्थायी व्यवस्था कर के बुलाया जाये। इस बयान को भी ध्वनि और विडियो दोनों में रेकॉर्ड करना चाहिए।
• ऐसी गालियां, जिसमें महिलाओं या उनके यौन-अंगों की ओर इशारा हो, उनपर कानून प्रतिबंध लगना चाहिए और यदि यह फिल्म, प्रकाशन, या असल ज़िंदगी में इस्तेमाल हों, तो इसपर ठोस कानूनी कारवाई हो। यदि ऐसी भाषा फिल्म आदि में प्रयोग होती है तो सेंसर-बोर्ड प्रमुख के खिलाफ भी कारवाई हो।
• 6 बजे शाम के बाद पुलिस गश्त बढ़े और महिला-बस जो महिला चालक और कंडक्टर द्वारा चल रही हो उनकी संख्या बढ़े।
• स्कूल आदि में पढ़ रही हर बालिका के लिए आत्मरक्षा प्रशिक्षण आवश्यक होना चाहिए। सरकार को इसके लिए आर्थिक अनुदान भी देना चाहिए।
• सभी ग्रामीण और शहरी पुलिस स्टेशन को ऑनलाइन करना चाहिए जिससे कि हर शिकायत करने वाले को एक विशेष नंबर प्राप्त हो जिसको डीजीपी कार्यालय या जिला मुख्यालय आदि से ट्रैक किया जा सके।
• यौन कर्मियों को पहचान पत्र जारी किया जाये, उनपर श्रम कानून लगे, और अन्य सुविधाएं भी मिले।
बाबी रमाकांत, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
जनवरी 2013