आखिर क्यों सरकारें तम्बाकू महामारी पर अंकुश लगाने में हैं विफल?

[English] तम्बाकू के कारण 70 लाख से अधिक लोग हर साल मृत और अमरीकी डालर 1004 अरब का आर्थिक नुक्सान होने के बावजूद भी, सरकारें क्यों इस महामारी पर अंकुश नहीं लगा पा रही हैं? भारत सरकार समेत 193 सरकारों ने 2030 तक सतत विकास लक्ष्य पूरे करने का वादा तो किया है पर विशेषज्ञों के अनुसार, बिना तम्बाकू महामारी पर विराम लगाए सतत विकास मुमकिन नहीं है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तम्बाकू नियंत्रण नीतियों को लागू करने में सबसे बड़ा रोड़ा है: जन स्वास्थ्य नीति में तम्बाकू उद्योग का हस्तक्षेप. ज़ाहिर है कि जब तक तम्बाकू उद्योग को लाखों-करोड़ों मृत्यु, जानलेवा बीमारियों, अरबों रूपये के आर्थिक नुक्सान, पर्यावरण को क्षति और सतत विकास को खंडित करने के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार न ठहराया जायेगा तब तक सफल तम्बाकू नियंत्रण और सतत विकास कैसे हो सकता है?

भारत समेत 181 देशों की सरकारों ने वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि बैठक में निर्णय लिया कि तम्बाकू उद्योग इन जन स्वास्थ्य बैठकों में किसी भी तरह से हस्तक्षेप न कर पाए. वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि के 8वें सत्र में, सरकारों ने मजबूत नीतियों को पारित किया जिससे कि तम्बाकू उद्योग जन-स्वास्थ्य नीतियों में हस्तक्षेप न कर सके.

स्वास्थ्य को वोट अभियान के निदेशक राहुल द्विवेदी ने बताया कि "इस वैश्विक बैठक में तम्बाकू उद्योग ने अनेक प्रकार से हस्तक्षेप करने की असफल कोशिश की: अन्य संगठनों की आड़ में भ्रमित करने का प्रयास किया, 'मीडिया' के रूप में अधिकृत प्रेस वार्ता में घुसने का प्रयास किया, आदि. तम्बाकू उद्योग के अनेक असफल प्रयास के बावजूद भी सरकारों ने इतने मज़बूत निर्णय लिए हैं जो सराहनीय हैं".

अनेक सालों से तम्बाकू उद्योग ने 'पारदर्शिता' की आड़ में तम्बाकू नियंत्रण को विफल करने का प्रयास किया है. इस बैठक में सरकारों ने हमेशा के लिए तम्बाकू उद्योग को जन स्वास्थ्य संधि से बाहर निकाला है.

कॉर्पोरेट एकाउंटेबिलिटी दल के अध्यक्ष मिचेल लीजेंद्रे ने बताया कि "तम्बाकू नियंत्रण नीतियों को लागू करने में सबसे बड़ी अड़चन तम्बाकू उद्योग है. इस बैठक में भी यही हाल रहा. हम भारत सरकार और अन्य सरकारों के आभारी हैं जिन्होंने जन-स्वास्थ्य के पक्ष्य में निर्णय लिए जिसके कारणवश लाखों लोगों की जान बचेगी. वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि में उद्योग के घुसने का आखरी रास्ता था "पब्लिक" बैज की आड़ में हस्तक्षेप करना. इस जिनेवा बैठक में सरकारों ने उद्योग के हस्तक्षेप के आखरी रास्ते पर भी अंकुश लगा दिया, जिसके कारण तम्बाकू नियंत्रण अधिक प्रभावकारी बनेगा. सरकारों ने सख्त कदम उठाये जिससे कि तम्बाकू उद्योग के धूर्त प्रयासों को विफल किया जा सके जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी सिगरेट कंपनी फिलिप मोरिस की नयी फाउंडेशन शामिल है. सरकारों ने नीति पारित की जिससे कि कोई भी संस्था, तम्बाकू उद्योग के इन भ्रामक धूर्त जाल में न फंसे."

यूगांडा की वरिष्ठ विधि सलाहकार हेलेन नीमा ने कहा कि जीवन रक्षक जन स्वास्थ्य नीतियों को असफल करने के लिये तम्बाकू उद्योग भान्ति प्रकार के हथकण्डे अपना रहा है। आर्थिक और जन स्वास्थ्य को भीषण रूप से क्षतिग्रस्त करने के लिये तम्बाकू उद्योग को कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराने के लिये वैश्विक तम्बाकू नियन्त्रण संधि आर्टिकल 19 पर सरकारों को कार्य आगे बढ़ाना होगा।

तम्बाकू से हर साल 70 लाख मृत्यु होती हैं और ₹ 1004 अरब का आर्थिक नुक्सान होता है। वैश्विक तम्बाकू नियन्त्रण संधि के आर्टिकल 19 को लागू करके सरकारें हर्जाना उसूल सकती हैं और तम्बाकू महामारी पर अंकुश लगा सकती हैं। स्वास्थ्य को वोट अभियान के निदेशक राहुल द्विवेदी ने कहा कि बिना तम्बाकू महामारी अन्त किए सतत विकास लक्ष्य और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के लक्ष्य पूरे हो ही नहीं सकते।

ईरान सरकार के प्रतिनिधि बेह्ज़द वालीज़देह ने कहा कि 'नयी शुरुआत' के बहाने तम्बाकू उद्योग भ्रमित कर रहा है, और इस झूठ में हम नहीं फंसेगें। ईरान ने फिलिप मोरिस के नये तम्बाकू उत्पाद जैसे कि आईक़ुओएस को प्रतिबंधित कर दिया है जिससे कि तम्बाकू उद्योग के भ्रामक प्रचार में उनके लोग न पड़ें और तम्बाकू नियन्त्रण में जो प्रगति हुई है वह न पलट जाये।

मालदीव्स सरकार के प्रतिनिधि हसन मुहमद ने कहा कि हमने इस बैठक में इतिहास बना दिया है और जन स्वास्थ्य संधि के द्वार उद्योग के लिये बन्द कर दिये हैं।

बिना किसी ठोस वैज्ञानिक प्रमाण के ई-सिग्रेट आदि जैसे तम्बाकू उत्पाद बाज़ार में लाकर उद्योग ने जन स्वास्थ्य कानूनों को दरकिनार किया है और अपना मुनाफा बढ़ाया है। तम्बाकू नियन्त्रण कानून जैसे कि सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम 2003 और वैश्विक तम्बाकू नियन्त्रण संधि जिसे भारत ने पारित किया है, सभी तम्बाकू उत्पाद पर सख्ती से लागू होता है।

बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
17 अक्टूबर 2018

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