यदि अन्य स्वास्थ्य मुद्दों से तुलना की जाये तो यह सही है कि एचआईवी/एड्स कार्यक्रम ने पिछले अनेक सालों में अद्वितीय सफलता हासिल की है. एचआईवी रोकधाम के लिए बेमिसाल अभियान चले, नि:शुल्क जांच और विश्व में लगभग 2 करोड़ लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा मिली, वैज्ञानिक शोध के जरिये बेहतर दवाएं मिली, मानवाधिकार के अनेक जटिल मुद्दे उठे (जैसे कि, लिंग-जनित और यौनिक समानता), आदि. सबसे महत्वपूर्ण है कि आज यदि मानक के अनुसार जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवा और अन्य देखभाल मिले, तो एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति का वायरल लोड नगण्य रहेगा, वह एक सामान्य ज़िन्दगी जी सकता है, और उससे किसी को भी एचआईवी संक्रमण नहीं फैलेगा. परन्तु नए एचआईवी संक्रमण दर अभी भी अत्याधिक चिंताजनक है. एक ओर एचआईवी के साथ जीवित लोगों को स्वस्थ रखने की दिशा में सराहनीय प्रयास हुए, वहीं दूसरी ओर, विराट चुनौतियाँ अभी भी हैं.
बिक्री-दुकान पर भी नहीं तम्बाकू उत्पाद प्रदर्शित कर सकते: बोगोर की जनता ने जीता कोर्ट केस
जैसे-जैसे दुनिया भर से वैज्ञानिक शोध पर आधारित प्रमाण आते गए कि तम्बाकू सेवन जानलेवा है, सरकारों ने तम्बाकू-उद्योग के तमाम हथकंडों के बावजूद, तम्बाकू नियंत्रण के प्रयास भी किये. उदाहरण के तौर पर, तम्बाकू उत्पाद के विज्ञापन पर प्रतिबन्ध लगने लगा परन्तु तम्बाकू उद्योग ने, बिक्री-दुकान पर, विज्ञापन और उत्पाद-प्रदर्शित करना नहीं छोड़ा. इंडोनेशिया के बोगोर शहर की जनता ने कोर्ट में केस जीता कि तम्बाकू बिक्री-दुकान पर भी तम्बाकू उत्पादन का प्रदर्शन नहीं हो सकता. जनता की यह पहल अत्यंत सराहनीय है, विशेषकर इसलिए कि न सिर्फ इससे तम्बाकू नियंत्रण सशक्त होता है बल्कि अन्य शहर-देश की जनता को भी उम्मीद मिलती है कि तम्बाकू उद्योग को हराना और ज़िन्दगी को जिताना भी संभव है.
महिला समानता के बिना कैसे होगा सबका विकास?
8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला समानता केन्द्रीय बिंदु रहा. आज भी हमारे समाज में, यदि महिलाओं को बराबरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हो तो यह विकास के ढाँचे पर भी सवाल उठाता है क्योंकि आर्थिक विकास का तात्पर्य यह नहीं है कि समाज में व्याप्त असमानताएं समाप्त हो जाएँगी. बल्कि विकास के ढाँचे बुनियादी रूप से ऐसे हैं कि अनेक प्रकार की असमानताएं और अधिक विषाक्त हो जाती हैं.
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