पर क्या आप जानते हैं कि मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ, दवा प्रतिरोधकता का सम्बन्ध, पशुपालन, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण से भी है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के दवा प्रतिरोधकता कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे डॉ हेलिसस गेटाहुन ने कहा कि इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संस्थान, वैश्विक पशु स्वास्थ्य संस्थान, और संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक पर्यावरण कार्यक्रम के साथ साझेदारी की कि संयुक्त अभियान के ज़रिए दवा प्रतिरोधकता के ख़िलाफ़ लोग जागरुक हों और चेतें और प्रतिरोधकता को रोकें।
रोगाणुरोध प्रतिरोध या दवा प्रतिरोधकता न सिर्फ़ मानव स्वास्थ्य के लिए एक गम्भीर चुनौती बन गयी है वरण पशु स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण के समक्ष भी एक जटिल समस्या है। क्योंकि इन सभी प्रकार की दवा प्रतिरोधकता को फैलाने में मनुष्य की केंद्रीय भूमिका है इसलिए संयुक्त रूप के अभियान से ही इसपर लगाम और अंतत: विराम लग सकता है। इसीलिए डॉ हेलिसस गेटाहुन ने खाद्य, पशुपालन, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर कार्य कर रही संस्थाओं को एकजुट करने का भरसक प्रयास किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के थोमस जोसेफ ने सही कहा है कि एक शताब्दी में हुए चिकित्सकीय अनुसंधानों को हम, दवा प्रतिरोधकता के कारण, पलटाने पर उतारू हैं। जो संक्रमण पहले दवाओं से ठीक होते थे अब वह लाइलाज होने की ओर फिसल रहे हैं। सर्जरी या शल्यचिकित्सा में ख़तरा पैदा हो रहा है क्योंकि दवा प्रतिरोधकता बढ़ोतरी पर है।
भारतीय चिकित्सकीय अनुसंधान परिषद की वरिष्ठ वैज्ञानिक शोधकर्ता डॉ कामिनी वालिया ने कहा कि असंतोषजनक संक्रमण नियंत्रण के कारण, अक्सर दवाओं का अनुचित और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना उपयोग किया जाता है जो सर्वदा अवांछित है। इसके कारण न केवल दवा प्रतिरोधक संक्रमण एक चुनौती बन रहे हैं बल्कि अस्पताल या स्वास्थ्य व्यवस्था, जहां रोगी इलाज के लिए आते हैं, वहाँ से वह और उनके अभिभावक, एवं स्वास्थ्य कर्मी, दवा प्रतिरोधक रोगों से संक्रमित हो सकते हैं। भारत में इस आँकड़े को मापना ज़रूरी है कि अस्पताल या स्वास्थ्य व्यवस्था में दवा प्रतिरोधक संक्रमण कितनी बड़ी चुनौती है।
इसीलिए डॉ कामिनी वालिया भारत सरकार के भारतीय चिकित्सकीय अनुसंधान परिषद के ज़रिए, देश भर में दवा प्रतिरोधकता मापने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। यदि वैज्ञानिक ढंग से देश भर में निगरानी रखी जाएगी तो पनपती दवा प्रतिरोधकता का समय-रहते सही अनुमान लगेगा, नयी विकसित होती प्रतिरोधकता शीघ्र पता चलेगी, और उपयुक्त कारवायी हो सकेगी जिससे कि दवा प्रतिरोधकता पर विराम लग सके।
डॉ कामिनी वालिया ने कहा कि हमें सिर्फ़ अस्पताल या स्वास्थ्य सेवा से दवा प्रतिरोधकता का पूरा अंदाज़ा नहीं लगेगा क्योंकि सामुदायिक स्तर पर भी ऐसे शोध की ज़रूरत है कि वहाँ दवा प्रतिरोधकता का स्तर क्या है।
भारतीय चिकित्सकीय अनुसंधान परिषद ने 2013 से विशेष अभियान शुरू किया कि देश भर में दवा प्रतिरोधकता पर निगरानी रखने के लिए विशेष जाँच तंत्र बने जिसमें अनेक बड़े सरकारी अस्पताल, कुछ निजी अस्पताल और चिकित्सकीय जाँच सेवाएँ आदि शामिल हुईं।
इस देश भर में फैले शोध तंत्र के ज़रिए, वैज्ञानिक तरीक़े से 6 कीटाणु पर निगरानी रखी जाती है। इन 6 कीटाणु से सबसे अधिक दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न होती है।
डॉ कामिनी वालिया ने कहा कि हमें सिर्फ़ अस्पताल या स्वास्थ्य सेवा से दवा प्रतिरोधकता का पूरा अंदाज़ा नहीं लगेगा क्योंकि सामुदायिक स्तर पर भी ऐसे शोध की ज़रूरत है कि वहाँ दवा प्रतिरोधकता का स्तर क्या है।
भारतीय चिकित्सकीय अनुसंधान परिषद ने 2013 से विशेष अभियान शुरू किया कि देश भर में दवा प्रतिरोधकता पर निगरानी रखने के लिए विशेष जाँच तंत्र बने जिसमें अनेक बड़े सरकारी अस्पताल, कुछ निजी अस्पताल और चिकित्सकीय जाँच सेवाएँ आदि शामिल हुईं।
इस देश भर में फैले शोध तंत्र के ज़रिए, वैज्ञानिक तरीक़े से 6 कीटाणु पर निगरानी रखी जाती है। इन 6 कीटाणु से सबसे अधिक दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न होती है।
भारतीय चिकित्सकीय अनुसंधान परिषद सिर्फ़ वैज्ञानिक तरीक़े से दवा प्रतिरोधकता पर निगरानी ही नहीं रख रहा बल्कि अस्पताल एवं अन्य स्वास्थ्य सेवा में स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण भी दे रहा है कि कैसे दवा प्रतिरोधकता रोकी जाए और बेहतर सशक्त और प्रभावकारी संक्रमण नियंत्रण किया जाए।
डॉ कामिनी वालिया ने बताया कि 2020 में हुए भारतीय चिकित्सकीय अनुसंधान परिषद के शोध के अनुसार भारत में “ग्राम-निगेटिव” दवा प्रतिरोधक संक्रमण का अनुपात अत्याधिक है। उदाहरण के तौर पर ई-कोलाई से होने वाले संक्रमण 70% तक दवा प्रतिरोधक हैं और ए-बाउमेनाई संक्रमण (जो अस्पताल में अक्सर हो सकता है) से होने वाले संक्रमण में 70% तक दवा प्रतिरोधकता है जिसके कारण कार्बापीनम दवा जो उपचार के लिए अंतिम चरण में उपयोग होती है वह कारगर नहीं रहती।
एस-टाइफ़ी कीटाणु, फ़्लोरोकेनोलोन से अक्सर प्रतिरोधक पाए गए पर ऐम्पिसिलिन, क्लोरमफेनिकोल, कोत्रिमेकसाजोल और सेफिजाईम दवाएँ इस पर 100% कारगर पायी गई। गौर करने की बात यह है कि एस-टाइफ़ी इन दवाओं से 1990 के दशक में प्रतिरोधक पाया गया था। क्योंकि यह दवाएँ इस पर कारगर नहीं रहीं इसीलिए इन दवाओं का उपयोग तब से कम हो गया जिसके कारण एस-टाइफ़ी पर फिर से यह दवाएँ 100% कारगर हो गयी हैं। डॉ वालिया ने कहा कि यह अत्यंत ज़रूरी है कि दवाओं का जिम्मेदारी और उचित उपयोग ही हो।
भारतीय चिकित्सकीय अनुसंधान परिषद के शोध में चिंताजनक बात भी हैं। श्वास सम्बन्धी रोगों और अन्य रोगों के उपचार में उपयोग होने वाली दवा, फ़ैरोपीनम, से प्रतिरोधकता 6 साल (2009-2015) में 3% से बढ़ कर 40% हो गयी है क्योंकि इसका इतना अत्याधिक उपयोग होने लगा था।
कोविड और दवा प्रतिरोधकता
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ हेलिसस गेटाहुन ने कहा कि प्रभावकारी संक्रमण नियंत्रण के ज़रिए दवा प्रतिरोधकता पर लगाम लग सकती है।यदि स्वास्थ्य सेवा, पशुपालन केंद्र आदि, एवं खाद्य से जुड़े स्थान पर, स्वच्छता पर्याप्त और संतोषजनक रहेगी, और संक्रमण नियंत्रण सभी मापकों पर उच्चतम रहेगा, तो दवा प्रतिरोधकता पर भी अंकुश लगेगा। स्वच्छता रहेगी और संक्रमण नियंत्रण उच्चतम रहेगा तो संक्रमण कम फैलेंगे और इसीलिए दवा का उपयोग काम होगा और दवा प्रतिरोधकता भी कम होगी।
शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
प्रकाशित:
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