इसीलिए पिछले अनेक सालों से यह समझ विकसित हुई है कि मात्र रोग नियंत्रण से रोग नियंत्रित नहीं होगा। उदाहरण के तौर पर, टुबर्क्युलोसिस या टीबी का ख़तरा अनेक कारणों से बढ़ता है जैसे कि कुपोषण। जब तक कुपोषण और टीबी का ख़तरा बढ़ाने वाले सभी कारण नहीं मिटेंगे, और रोग की जाँच, इलाज और देखभाल सब तक नहीं पहुँचेगी तब तक टीबी उन्मूलन कैसे होगा? टीबी नियंत्रण के समक्ष, दवा प्रतिरोधकता भी एक भीषण चुनौती बनी हुई है। अन्य रोग जैसे कि मधुमेह, एचआईवी संक्रमण, आदि जो टीबी का ख़तरा बढ़ाते हैं, उनको टीबी नियंत्रण में नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। टीबी पशुओं को भी हो जाती है। लोग अस्पताल जा सकें, बिना विलम्ब अपना इलाज करवा सकें, आदि, के लिए एकीकृत स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा अत्यंत अहम है।
कोरोना वाइरस मूल रूप से एक प्रकार के चमगादड़ से आया है पर यह नहीं ज्ञात है कि मनुष्य को संक्रमण कहाँ से आया है। वर्ल्ड ऑर्गनिज़ेशन फ़ोर ऐनिमल हेल्थ (पशु स्वास्थ्य की वैश्विक संस्था) के डॉ रोनेलो अबिला ने कहा कि मनुष्य में होने वाली 60% संक्रामक रोग मूल रूप से पशुओं से आए हैं (और इनमें से 72% जंगली जीव जंतु से आए हैं)। मनुष्य और पशुओं के मध्य सम्पर्क रहा है और अक्सर एक दूसरे पर निर्भर हैं, इसीलिए यह ज़रूरी है कि मानव स्वास्थ्य सुरक्षा में पशु स्वास्थ्य के पहलू पर ध्यान दिया जाए। चूँकि पर्यावरण से पशु और मानव दोनों जुड़ें हैं इसलिए इस दृष्टिकोण को भी नज़रंदाज़ न किया जाए।
यदि भविष्य में होने वाली महामारियों का ख़तरा कम करना है और ऐसी चुनौती के लिए बेहतर तैयार रहना है तो स्वास्थ्य सुरक्षा को विकास और सामाजिक सुरक्षा और पर्यावरण से जोड़ कर समझना होगा। सबके लिए एकीकृत स्वास्थ्य और विकास सुरक्षा के सपने को सच करना होगा।
यदि मनुष्य जल-जंगल-ज़मीन पर विध्वंसकारी गतिविधियाँ जारी रखेगा, जलवायु परिवर्तन को और बढ़ाएगा या दवाओं का लापरवाही से दुरुपयोग करेगा तो मानव स्वास्थ्य सुरक्षा कैसे मिलेगी?
मानव स्वास्थ्य सुरक्षा चाहिए तो प्रदूषण, वनों की कटाई, पशु पालन में अनुचित और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना दवाओं का उपयोग, और हम कैसे भोजन उगाते, बाँटते और ग्रहण करते हैं, पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि हम सबका स्वास्थ्य इन पर भी निर्भर है।
वादे हुए हैं वैश्विक स्तर पर, पूरे होंगे ज़मीनी स्तर पर
ज़मीनी या स्थानीय स्तर पर कार्य करने से ही तो सतत विकास के वैश्विक लक्ष्य पूरे होंगे। यदि दुनिया को टीबी मुक्त करना है तो एक-एक इंसान को टीबी मुक्त करना होगा। यदि कोई भी गरीब सेवाओं से वंचित रह गया तो दुनिया असफल हो जाएगी टीबी मुक्त होने से।
इसीलिए यह ज़रूरी है कि सबका एकीकृत स्वास्थ्य और विकास कैसे हो यह स्थानीय स्तर पर हल किया जाए। स्वास्थ्य और सामाजिक विकास सुरक्षा कैसे सब तक पहुँचे, कोई गरीब या ग्रामीण या अन्य दूर-दराज क्षेत्र में रहने वाला इंसान छूट न जाए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है।
इसीलिए एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के 12 देशों के लगभग 80 शहरों के स्थानीय नेतृत्व देने वाले लोग, जिनमें महापौर और सांसद भी शामिल थे, 6वें अधिवेशन में मिले और एकीकृत स्वास्थ्य और विकास सुरक्षा की ओर कदम बढ़ाने का वादा किया। इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट टुबर्क्युलोसिस एंड लंग डिजीस के एशिया पैसिफ़िक निदेशक डॉ तारा सिंह बाम ने कहा कि 6वें एपीकैट समिट के द्वारा पारित घोषणापत्र में भी यह बिंदु शामिल है।
कोरोना वाइरस, मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य
कोविड महामारी ने एक सीख तो पुनः दी है कि पशुओं में होने वाले रोग भविष्य में भी इंसानों में फैल सकते हैं। कोविड, जीका, ईबोला, आदि रोगों के बाद यदि अब भी सरकारों ने एकीकृत स्वास्थ्य पर कार्य नहीं किया तो यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रहेगा। मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पशु स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण के साथ तालमेल में कार्यसाधकता के साथ कार्य करना होगा।
इंडोनेशिया के स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व निदेशक और विश्व स्वास्थ्य संगठन के पूर्व अधिकारी डॉ तीजाँदरा योगा आदितमा ने कहा कि 29 देशों में 400 से अधिक विभिन्न प्रकार के पशु कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। इनमें बिल्ली, कुत्ते, शेर, बब्बर शेर, गोरिल्ला, हिरन, मिंक, आदि शामिल हैं। संभवतः इन पशुओं को कोरोना संक्रमण, संक्रमित मनुष्य से हुआ होगा जो इनके सम्पर्क में आया हो या इनकी देखरेख में रहा हो, परंतु यह अभी नहीं पता है कि इन कोरोना संक्रमित पशुओं से क्या इंसान संक्रमित हो सकते हैं?
डॉ रोनेलो अबिला ने कहा कि कोरोना वाइरस मूल रूप से तो एक प्रकार के चमगादड़ से आया पर यह वैज्ञानिक रूप से ज्ञात नहीं है कि मनुष्य को कोरोना संक्रमण किस तरह हुआ और किस जीव से आया। 2003 में एक प्रकार का कोरोना वाइरस जिससे 'सार्स' महामारी हुई थी, वह संक्रमण, सिवेट चमगादड़ से मनुष्य में आया था।
डॉ रोनेलो अबिला के अनुसार, जब 'बर्ड फ़्लू' महामारी फैली थी तो दुनिया की सभी सरकारें चेती कि मानव स्वास्थ्य सुरक्षा का तालमेल पशु पालन और पशु स्वास्थ्य से भी है। इसीलिए "वन हेल्थ" (एकीकृत स्वास्थ्य) सोच के तहत, सभी सरकारें एकजुट हुई कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर कैसे एकीकृत होकर कार्यसाधकता के साथ काम किया जा सकता है। 2008 की उच्च-स्तरीय मंत्रियों की वैश्विक बैठक में "वन हेल्थ" (एकीकृत स्वास्थ्य) को सर्व-सम्मति से पारित किया गया।
यह प्रक्रिया बढ़ती गयी और आख़िरकार, मानव स्वास्थ्य पर केंद्रित संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य संस्था - विश्व स्वास्थ्य संगठन, पशु स्वास्थ्य पर केंद्रित - वर्ल्ड ऑर्गनिज़ेशन फ़ोर ऐनिमल हेल्थ, और खाद्य और कृषि पर केंद्रित संयुक्त राष्ट्र की संस्था - फ़ूड एंड ऐग्रिकल्चर ऑर्गनिज़ेशन, तीनों ने एकीकृत स्वास्थ्य पर कार्य करने के लिए एक साझा मंच बनाया - जिसकी औपचारिकता मई 2018 में और गहराई। नवम्बर 2020 में इस साझा मंच से संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण संस्था - यूनाइटेड नेशंस इन्वायरॉन्मेंट प्रोग्राम - भी जुड़ गयी।
कोविड महामारी के नौ साल पहले, नवम्बर 2011 में, मेक्सिको में सम्पन्न हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में उपरोक्त संस्थाओं के विशेषज्ञों ने निर्णय लिया था कि एकीकृत स्वास्थ्य की अवधारणा को ज़मीन पर उतारने के लिए, तीन मुद्दों पर कार्य किया जाए। यह तीन मुद्दे थे: रेबीज़, दवा प्रतिरोधकता (एंटी-मायक्रोबीयल रेज़िस्टन्स), और बर्ड फ़्लू।
इसके बाद, डॉ रोनेलो और अन्य लोगों ने स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण मंत्रालय के साथ कार्य शुरू किया कि वह एकजुट हो कर एकीकृत स्वास्थ्य (मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण) पर विचार करें और साझा काम शुरू करें जिससे कि रेबीज़, दवा प्रतिरोधकता और बर्ड फ़्लू पर अंकुश लगे।
दवाओं का अनुचित और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना उपयोग सिर्फ़ मानव स्वास्थ्य तक ही नहीं सीमित है बल्कि पशुपालन और कृषि में भी इसका अत्याधिक दुरुपयोग है जिसके कारणवश आज बढ़ती हुई दवा प्रतिरोधकता एक भीषण चुनौती प्रस्तुत कर रही है।यदि दवा प्रतिरोधकता पर अंकुश नहीं लगा तो यह ख़तरा बढ़ता जा रहा है कि हम लोग 1920 के दशक के युग में फिसल जाएँ जब अधिकांश लोग संक्रामक रोगों से मृत होते थे क्योंकि एंटीबाइयोटिक दवाओं थी ही नहीं। दवा प्रतिरोधकता के कारण, आम संक्रमण जिनका पक्का इलाज सम्भव है, वह लाइलाज हो जाते हैं और मृत्यु तक हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक दवा प्रतिरोधकता नियंत्रण विभाग के निदेशक डॉ हेलिसस गेटाहुन ने सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) से कहा कि दवा प्रतिरोधकता एक मानव जनित समस्या है क्योंकि दवाओं का अनुचित और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना उपयोग, मानव ने ही, मानव स्वास्थ्य, पशुपालन और कृषि में किया है। यदि हम दवाओं का उचित और ज़िम्मेदारी से उपयोग करेंगे तो दवा प्रतिरोधकता कम होगी और उससे होने वाले नुक़सान पर भी अंकुश लगेगा।
चीन की एक पुरानी कहावत है कि 'पेड़ लगाने का सबसे सर्वोत्तम समय २० साल पहले था। दूसरा मौक़ा आज है'। सबके एकीकृत स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा को अब नज़रअन्दाज़ करना बहुत महँगा पड़ सकता है और सभी सरकारों को सतत विकास लक्ष्य पर भी असफल करेगा।
शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
दैनिक ग्रूप ५ न्यूज़, लखनऊ, उत्तर प्रदेश (सम्पादकीय पृष्ठ, १ जनवरी २०२२) |
उदय इंडिया (साप्ताहिक समाचार मैगज़ीन), दिल्ली: जनवरी २०२२
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