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एचआईवी के नए संक्रमण दर में गिरावट क्यों थमी?

[English] 2023 और 2024 में वैश्विक स्तर पर एचआईवी से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या में और एड्स से मृत होने वाले लोगों की संख्या में कोई अंतर ही नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के साझा एड्स कार्यक्रम की नवीनतम रिपोर्ट (यूएन-एड्स ग्लोबल एड्स अपडेट 2025) के अनुसार, 2023 और 2024 में, हर साल, विश्व में 13 लाख लोग एचआईवी से नए संक्रमित हुए और 6.3 लाख मृत। ज़ाहिर है कि अधिकांश नए एचआईवी संक्रमण और एड्स मृत्यु वैश्विक दक्षिण देशों में हुईं है।

जब इन 3 संक्रमणों से बचाव मुमकिन है तो क्यों बच्चे इनसे संक्रमित जन्में?

[English] जब एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफ़िलिस संक्रमणों से बचाव मुमकिन है तो कोई भी बच्चा क्यों इनसे संक्रमित जन्में? सरकारों ने भी वायदा  किया है कि 2030 तक एक भी बच्चा गर्भावस्था और जन्म के समय इनसे संक्रमित नहीं होगा। इस दिशा में कार्य तो हुआ है परंतु इस संदर्भ में अभी भी स्वास्थ्य सेवा अनेक देशों में असंतोषजनक है।

घटिया और नकली दवाएं दे रहीं हैं जन स्वास्थ्य को बड़ी चुनौती

[English] 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके अनुसार विकासशील देशों में कम-से-कम 10% दवाएं, घटिया या नक़ली थीं। इस रिपोर्ट ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा था कि ये आंकड़े बहुत कम रिपोर्ट हो सके हैं जब कि संभवत: यह समस्या इससे कहीं अधिक बड़ी है।

बिना शोषण और भेदभाव समाप्त किए 2027 तक कुष्ठ रोग उन्मूलन कैसे होगा?

[English] जो बैक्टीरिया कुष्ठ रोग (लेप्रोसी या हैंसेंस रोग) उत्पन्न करता है उसका तो पक्का इलाज है परंतु जो समाज में कुष्ठ रोग संबंधित शोषण और भेदभाव व्याप्त है, वह तो मानव-जनित है - उसका निवारण कैसे होगा? कुष्ठ रोग का सफलतापूर्वक इलाज करवा चुकीं माया रनवाड़े बताती हैं कि यदि कुष्ठ रोग की जल्दी जाँच हो, सही इलाज बिना-विलंब मिले, तो शारीरिक विकृति भी नहीं होती और सही इलाज शुरू होने के 72 घंटे बाद से रोग फैलना भी बंद हो जाता है। फिर शोषण और भेदभाव क्यों?

सह-संक्रमण और रोग के खतरे पलट सकते हैं एड्स नियंत्रण अभियान की प्रगति

विश्व में 86% एचआईवी के साथ जीवित लोगों को अपने एचआईवी पॉजिटिव होने की जानकारी थी, उनमें से 89%लोग जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवाएं ले रहे थे और इनमें से 93% लोगों का वायरल लोड नगण्य था (यानी कि वह स्वस्थ थे और उनसे वायरस फैलने का खतरा भी शून्य था)। पर यदि हम एचआईवी से संबंधित संक्रमण और रोग (या अन्य रोग जो समाज में हैं) पर ध्यान नहीं देंगे तो एड्स नियंत्रण अभियान में प्रगति पलट सकती है, यह कहना है डॉ ईश्वर गिलाडा का, जो एचआईवी चिकित्सकीय और आयुर्विज्ञान से जुड़े भारतीय विशेषज्ञों के सबसे देश व्यापी संगठन, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई), के एमेरिटस अध्यक्ष हैं।

गुजरात में पहली बार हो रहा है एचआईवी चिकित्सकीय विशेषज्ञों का राष्ट्रीय अधिवेशन ASICON 2025

ASICON 2025 का उद्घाटन गुजरात के मुख्य मंत्री ने किया


गुजरात के मुख्य मंत्री भूपेंद्रभाई पटेल ने आज, देश के एचआईवी चिकित्सकीय विशेषज्ञों के 16वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन (ASICON 2025) का उद्घाटन किया। ASICON 2025 अधिवेशन इस साल अहमदाबाद, गुजरात, में 21-23 फ़रवरी के दौरान आयोजित हो रहा है। यह पहली बार है कि यह प्रतिष्ठित अधिवेशन गुजरात में आयोजित हो रहा है। एचआईवी चिकित्सकीय और आयुर्विज्ञान से जुड़े भारतीय विशेषज्ञों का सबसे प्रमुख चिकित्सकीय संगठन, एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (एएसआई) इस अधिवेशन को आयोजित कर रहा है।

2030 तक एड्स उन्मूलन के लिए सभी लोगों तक एचआईवी सेवाओं का पहुंचना है ज़रूरी


[English] एचआईवी संक्रमण से बचाव के अनेक प्रमाणित साधन उपलब्ध हैं और एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए जीवनरक्षक दवाएं सरकारी सेवाओं में उपलब्ध हैं। यदि सभी एचआईवी के साथ जीवित लोगों को यह दवाएं मिलें, और उनका वायरल लोड नगण्य रहे, तो न केवल वह पूर्णत: स्वस्थ रहेंगे बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एचआईवी संक्रमण फैलना का खतरा भी शून्य रहेगा ("जीरो रिस्क")। तो फिर क्यों विश्व में 2023 में 6.3 लाख नए लोग एचआईवी से संक्रमित पाये गए और 13 लाख लोग एड्स-संबंधित कारणों से मृत हुए?

100 दिवसीय टीबी अभियान को टीबी उन्मूलन होने तक सक्रिय रखना होगा

[English] भारत सरकार का 100 दिवसीय टीबी अभियान (7 दिसंबर 2024 से 24 मार्च 2025 तक) टीबी उन्मूलन की दिशा में एक सराहनीय कदम है। यह सरकार की ओर से एक देश व्यापी पहल है कि जिन लोगों को टीबी का खतरा सर्वाधिक है या जो लोग अक्सर टीबी या स्वास्थ्य सेवा से वंचित रह जाते हैं, उन तक टीबी की सर्वश्रेष्ठ सेवाएं पहुँचें।

टीबी से निपटने में बाधक सदियों से चली आ रही असमानताएं और अन्याय


[English] प्रख्यात अमेरिकन लेखक जॉन ग्रीन ने पिछले साल संयक्त राष्ट्र महासभा के एक सत्र में कहा था कि टीबी से मृत्यु के लिए हम मनुष्य ही ज़िम्मेदार हैं क्योंकि यह मानव-निर्मित प्रणालियों का नतीजा है। इसका एक ही अर्थ निकलता है कि हर मानव जीवन को हम एक-समान बहुमूल्य नहीं मानते।

बिना दवाओं के दुरुपयोग को बंद किए कैसे होगी स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा?

"रोगाणुरोधी प्रतिरोध तो अदृश्य हो सकता है, पर मैं अदृश्य नहीं हूँ" कहना है फ़ेलिक्स का जिन्होंने इसके कारण अपने 3 माह के बेटे को खो दिया। रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस) का मूल कारण है दवाओं का दुरुपयोग। दवाओं का दुरुपयोग सिर्फ मानव स्वास्थ्य तक ही सीमित नहीं है बल्कि पशुपालन और पशु स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण तक में है।

दवा प्रतिरोधकता रोकने के लिए पारित राजनीतिक घोषणापत्र क्या जमीनी हकीकत बनेगा?

इस सप्ताह स्वास्थ्य-संबंधी बड़ा समाचार यह है कि ७९वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में दुनिया के सभी देशों ने, बढ़ती दवा प्रतिरोधकता को रोकने के आशय से, सर्व-सम्मति से एक मजबूत राजनीतिक घोषणापत्र जारी किया। देखना यह है कि क्या सरकारें इस राजनीतिक घोषणापत्र को जमीनी हकीकत में परिवर्तित करेंगी? आख़िर दवाओं का दुरुपयोग तो बंद होना ही चाहिए पर फ़िलहाल हकीकत ठीक इसके विपरीत है। वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा पर मंडराती दस सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है दवा प्रतिरोधकता।

तम्बाकू उद्योग को ज़िम्मेदार ठहरा कर हरजाना वसूलने का निर्णय ले सकती हैं सरकारें

पेरू में हो रही वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि की अंतर-देशीय बैठक में, तम्बाकू उद्योग को मानव जीवन, मानव स्वास्थ्य, और पर्यावरण को क्षति पहुँचाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराने और हरजाना वसूलने का महत्वपूर्ण मुद्दा केंद्र में है। हर साल, तम्बाकू के कारण 80 लाख से अधिक लोग मृत और लाखों लोग जानलेवा बीमारियों से ग्रसित होते हैं। हृदय रोग, कैंसर, दीर्घकालिक श्वास संबंधी रोग, मधुमेह, टीबी, आदि अनेक ऐसे रोग हैं जिनका ख़तरा तम्बाकू सेवन के कारण अत्यधिक बढ़ता है। तम्बाकू उद्योग द्वारा पर्यावरण को क्षति पहुँचाने के लिए भी ज़िम्मेदार ठहराने की माँग, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अनेक देश की सरकारें कर रही हैं।

2023 ने दी टीबी उन्मूलन को एक कतरा उम्मीद पर चुनौती अनेक

[English] विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2023 (जो पिछले महीने ही जारी हुई है) के अनुसार, एक साल में अब तक के सबसे अधिक नये टीबी रोगियों की पुष्टि पिछले साल ही हुई है। 2022 में 75 लाख से अधिक लोगों को टीबी से ग्रसित पाया गया - जो पिछले सालों की तुलना में अब तक की सबसे अधिक संख्या है। हालाँकि दुनिया में कुल अनुमानित टीबी रोगियों की संख्या पिछले साल 1.06 करोड़ थी - साफ़ ज़ाहिर है कि अधिक रोगियों तक टीबी सेवाएँ पहुँचाने के बावजूद 30% टीबी रोगी सेवाओं से वंचित रहे।

दवाओं के दुरुपयोग से साधारण संक्रमण हो रहे लाइलाज

जो दवाएँ हमें रोग या पीड़ा से बचाती हैं और अक्सर जीवनरक्षक होती हैं, यदि हम उनका दुरुपयोग करेंगे तो वह रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु पर असर नहीं करेंगी और रोग लाइलाज तक हो सकता है। यदि दवाएँ बेअसर हो जायेंगी तो ऐसे में, रोग के उपचार के लिए नयी दवा चाहिए होगी, और यदि नई दवा नहीं है तो रोग लाइलाज हो सकता है। अनेक ऐसे गंभीर और साधारण संक्रमण हैं जिनका इलाज मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि दवाओं का दुरुपयोग हो रहा है।

मेघालय में अनेक रोग का "जिस दिन जाँच, उसी दिन इलाज" शुरू होना हुआ संभव

जब तक, सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवा आम-जनमानस तक नहीं पहुँचेगी, तक तब सबका स्वास्थ्य सबका विकास कैसे मुमकिन होगा? अक्सर, जहां सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध है, वहाँ तक अधिकांश ज़रूरतमंद नहीं पहुँच पाते। मेघालय के पश्चिम जान्तिया हिल्स ज़िले के थडलसकींस ब्लॉक में, अनेक सरकारी कार्यक्रमों की साझेदारी से आयोजित अनोखे स्वास्थ्य मेले में एकत्रित स्वास्थ्य सेवा संभव हो सकी।

जब तक हर संभावित टीबी-रोगी को पक्की जाँच नहीं मिलेगी तब तक टीबी उन्मूलन कैसे होगा?

[English] यदि टीबी उन्मूलन का सपना आगामी 28 महीने में साकार करना है तो यह आवश्यक है कि हर संभावित टीबी-रोगी को बिना-विलंब पक्की जाँच मिले, सही प्रभावकारी इलाज मिले, और देखभाल और सहयोग मिले जिससे कि वह सफलतापूर्वक अपना इलाज पूरा कर सके। ऐसा करने से संक्रमण के फैलाव पर भी विराम लगेगा। यदि टीबी से जूझ रहे लोगों को पक्की जाँच नहीं मिलेगी या उसके बाद सही इलाज नहीं मुहैया कराया जाएगा, तो न केवल वह अनावश्यक पीड़ा झेल रहे होंगे और उनकी असामयिक मृत होने का ख़तरा बढ़ेगा, बल्कि  संक्रमण का फैलाव भी बढ़ता रहेगा।

एचआईवी सेल्फ-टेस्ट बिना विलंब एड्स कार्यक्रम में शामिल हो


[English] गर्भावस्था, डायबिटीज, कोविड-19 आदि के सेल्फ़-टेस्ट (आत्म-परीक्षण) भारत में उपलब्ध हैं और जन स्वास्थ्य और विकास के प्रति सकारात्मक योगदान दे रहे हैं। एचआईवी सेल्फ-टेस्ट को भी उपलब्ध करवाना चाहिए जिससे कि जन स्वास्थ्य के लिए अपेक्षित लाभ मिल सके।

कोविड-19 टीकाकरण: प्रशंसा की गूंज में कहीं महत्वपूर्ण सीख न खो जाए

[English] इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि कोविड-19 टीकाकरण ऐतिहासिक रहा है। एक साल से कम समय में टीके के शोध को पूरा कर के, टीकाकरण वैश्विक स्तर पर इस गति से पहले कभी नहीं हुआ था। दुनिया (कुल आबादी 8 अरब) में 13 अरब से अधिक खुराक लग चुकी हैं, भारत में ही 2 अरब से अधिक खुराक लग चुकी हैं पर अधिकांश गरीब देशों में बड़ी आबादी को एक खुराक मुहैया नहीं। वैश्विक टीकाकरण अभियान में अनेक त्रुटियाँ रहीं हैं जिनके कारणवश स्वास्थ्य सुरक्षा ख़तरे में पड़ी। भविष्य में महामारी प्रबंधन और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए ज़रूरी है कि हम कोविड-19 टीकाकरण से सीखें कि क्या सुधार हो सकता था।

कैंसर बढ़ाने वाले कारणों पर बिना विराम लगाये कैसे होगी कैंसर रोकधाम?


भारत समेत दुनिया के सभी देशों ने वादा किया है कि 2025 तक कैंसर दरों में 25% गिरावट आएगी परंतु हर साल विभिन्न प्रकार के कैंसर से ग्रसित होने वाले लोगों की संख्या और कैंसर मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती जा रही है। कैंसर बढ़ेंगे क्यों नहीं जब कैंसर का ख़तरा बढ़ाने वाले कारणों पर विराम नहीं लग रहा है। अनेक कैंसर जनने वाले कारण ऐसे हैं जिनपर रोक के बजाय उनमें बढ़ोतरी हो रही है।

जो दवाएँ रोग से हमें बचाती हैं क्या हम उन्हें बचा पायेंगे?

कोविड-19 महामारी के दौरान यह हम सबको स्पष्ट हो गया है कि ऐसा रोग, जिसका इलाज संभव न हो, उसका स्वास्थ्य, अर्थ-व्यवस्था और विकास पर कितना वीभत्स प्रभाव पड़ सकता है। दवाएँ हमें रोग या पीड़ा से बचाती हैं और अक्सर जीवनरक्षक होती हैं परंतु उनके अनावश्यक और अनुचित दुरुपयोग से, रोग उत्पन्न करने वाला कीटाणु, प्रतिरोधकता विकसित कर लेता है और दवाओं को बेअसर कर देता है। दवा प्रतिरोधकता की स्थिति उत्पन्न होने पर रोग का इलाज अधिक जटिल या असंभव तक हो सकता है। साधारण से रोग जिनका पक्का इलाज मुमकिन है वह तक लाइलाज हो सकते हैं।