दवा प्रतिरोधकता रोकने के लिए पारित राजनीतिक घोषणापत्र क्या जमीनी हकीकत बनेगा?

इस सप्ताह स्वास्थ्य-संबंधी बड़ा समाचार यह है कि ७९वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में दुनिया के सभी देशों ने, बढ़ती दवा प्रतिरोधकता को रोकने के आशय से, सर्व-सम्मति से एक मजबूत राजनीतिक घोषणापत्र जारी किया। देखना यह है कि क्या सरकारें इस राजनीतिक घोषणापत्र को जमीनी हकीकत में परिवर्तित करेंगी? आख़िर दवाओं का दुरुपयोग तो बंद होना ही चाहिए पर फ़िलहाल हकीकत ठीक इसके विपरीत है। वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा पर मंडराती दस सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है दवा प्रतिरोधकता।

दवाओं के दुरुपयोग के कारणवश, रोग-उत्पन्न करने वाले कीटाणु दवा प्रतिरोधक हो रहे हैं और उन पर यह दवाएं कारगर नहीं रहती। जब दवा प्रतिरोधक कीटाणु से इंसान, पशु या पौध संक्रमित होते हैं तो इलाज के लिए सामान्य दवाएं बेअसर हो जाती हैं। नई दवाओं के विकल्प कम हैं और यदि हैं तो वह अत्यंत महंगे हैं। यदि आयुर्विज्ञान शोध को देखेंगे तो ज्ञात होगा कि निकट भविष्य में नए इलाज आने की संभावना संकीर्ण है।

दवा प्रतिरोधकता के कारण, न केवल (मानव और पशु) स्वास्थ्य सुरक्षा ख़तरे में है बल्कि खाद्य सुरक्षा और सतत विकास लक्ष्यों पर भी ख़तरा मंडरा रहा है।

इसीलिए 26 सितंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसी मुद्दे पर आयोजित उच्च स्तरीय बैठक में देशों ने राजनीतिक घोषणापत्र पारित किया।

2024 से पहले दवा प्रतिरोधकता के मुद्दे पर 2016 में भी सभी देश एकजुट हुए थे

कोविड महामारी से चार साल पहले, दुनिया के सभी देश के प्रमुख, संयुक्त राष्ट्र में 2016 उच्च स्तरीय बैठक में मिले - और - तेज़ी से बढ़ती दवा प्रतिरोधकता की चुनौती से निबटने के लिए पहला राजनीतिक घोषणापत्र जारी किया।

2016 उच्च स्तरीय बैठक के बाद अनेक अहम कार्य हुए जिससे कि वैश्विक, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर दवा प्रतिरोधकता को नियंत्रित करने की दिशा में अंतर-वर्गीय कार्य हुआ। पहली बार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (जो मानवीय स्वास्थ पर कार्यरत है), अंतरराष्ट्रीय पशु स्वास्थ्य संस्था, संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि संस्था, और संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम, दवा प्रतिरोधकता के मुद्दे पर एकजुट हुए और इसकी रोकथाम के लिए अंतर-वर्गीय सामंजस्य को बढ़ाया।

अन्तर-वर्गीय सामंजस्य और साझा कार्यक्रम ज़रूरी है क्योंकि दवाओं के दुरुपयोग न सिर्फ़ मानव स्वास्थ्य में बल्कि पशु स्वास्थ्य और पशु पालन, कृषि और पर्यावरण तक में व्याप्त है!

दवा प्रतिरोधकता क्यों 10 सबसे बड़ी वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है?

कृपया कर के याद कीजिए कि जब सामान्य रोगों का इलाज नहीं था तो क्या हाल होता था रोग-ग्रस्त लोगों का। यदि दवाएं कारगर नहीं रहेंगी तो हम उसी युग में फिसल रहे हैं जहाँ सामान्य रोग लाइलाज थे।

सबसे अहम सवाल यह है कि वैज्ञानिक बरसों नई दवाओं की खोज और शोध में ऊर्जा लगाते हैं, रोग ग्रस्त लोग शोध में सहभागिता कर के अपना सहयोग देते हैं जिससे कि वैज्ञानिक शोध हो सके, परंतु दवाओं के दुरुपयोग के कारणवश, यह दवाएं बेकार हो जाती हैं क्योंकि रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु दवा प्रतिरोधक हो जाते हैं। जिन रोगों का पहले इलाज आसानी से संभव था, दवा प्रतिरोधकता के पश्चात उनका इलाज अत्यधिक जटिल हो जाता है - या रोग लाइलाज तक हो सकता है।

इसके कारण इलाज के लिए नई दवाओं की ज़रूरत होती है या पुन: नई दवा के लिए शोध करने की मजबूरी खड़ी होती है।

जब सरकारें दवाओं के शोध को हर मुमकिन सतर्कता के साथ नियंत्रित करती हैं तो दवाओं के उपयोग को क्यों नहीं? दवाओं का दुरुपयोग आख़िरकार शासकीय असफलता है।

रोगों की पक्की जांच सबको क्यों नहीं है मुहैया?

जब हम बीमार होते हैं तो क्या हमेशा संभावित रोग की पुष्टि करने के लिए तुरंत पक्की जाँच करवाते हैं? बिना रोग की पुष्टि किए, क्या हम लोग दवा लेते हैं? असर नहीं होता तो किसी अन्य दवा से इलाज करने की कोशिश करते हैं? ज़ाहिर बात है कि दवा प्रतिरोधकता बढ़ेगी ही क्योंकि जब सबके लिए सब जगह सब जांचें उपलब्ध नहीं होंगी तो दवाओं का अनावश्यक, अनुचित या दुरुपयोग कैसे रुकेगा?

जब हमारा पशु अस्वस्थ होता है या कोई पेड़ या पौधे में रोग लगता है तो कितनी बार हम बिना जाँच के इलाज करते हैं? दवा का अनावश्यक, अनुचित या दुरुपयोग पशु स्वास्थ्य, पशु पालन, और खाद्य-कृषि में भी हो रहा है जिसके फलस्वरूप रोग दवा-प्रतिरोधक हो रहे हैं (जिनका सामान्य दवाओं से इलाज मुश्किल या असंभव हो रहा है)।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ जीन पियरे नयमाज़ी का कहना है कि 1940 में जब दुनिया की सबसे पहली एंटीबायोटिक दवा आई थी, तो दवा प्रतिरोधकता भी शीघ्र रिपोर्ट हो गई थी। डॉ नयमाज़ी का कहना है कि दवा प्रतिरोधकता के कारण असामयिक मृत्यु का शिकार न सिर्फ़ इंसान होते हैं बल्कि पशु भी। कृषि पर भी लाइलाज रोगों का खतरा मंडराता है।

डॉ नयमाज़ी का कहना है कि दवा प्रतिरोधकता को रोकने के लिए पक्की जाँच और सही इलाज के साथ संक्रमण नियंत्रण भी ज़रूरी स्तंभ है। सर्वप्रथम कोई भी इंसान, पशु या पौध किसी भी रोग से संक्रमित ही क्यों हो? 

अस्पताल समेत सभी स्वास्थ्य सेवा केंद्रों में, समुदाय स्तर पर और लोगों के निवास में संक्रमण नियंत्रण मज़बूत होना चाहिए। स्वाभाविक है कि जल स्वच्छता और स्वास्थ्य के साथ सुरक्षित आवास और उचित आय और सभी अन्य सतत विकास के मानक पर भी कार्य होना अनिवार्य है।

संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि संस्थान की डॉ जंक्सिया सॉंग ने कहा कि दवा प्रतिरोधकता के कारण 130 करोड़ लोगों के रोज़गार पर खतरा मंडरा रहा है जो पशुपालन पर निर्भर हैं।

2019 में लगभग 50 लाख लोग दवा प्रतिरोधकता के कारण मृत हुए थे जिनमें से 20% बच्चे थे।

टीबी और दवा प्रतिरोधकता

सभी देशों ने 2015 में सतत विकास लक्ष्य को समर्थन दे कर यह वादा किया कि 2030 तक विश्व को टीबी मुक्त बनायेंगे। दुनिया में सबसे अधिक टीबी से रोग-ग्रस्त लोग भारत में हैं। भारत सरकार ने 2025 तक टीबी उन्मूलन करने का वादा किया।

परंतु दवा प्रतिरोधक टीबी के दर में गिरावट नहीं आई - यदि हम पिछले 10-15 सालों की विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक टीबी रिपोर्ट देखें तो पाएंगे कि चार-पांच लाख लोग हर साल दवा प्रतिरोधक टीबी से ग्रसित होते आए हैं और एक-तिहाई को हम जाँच-इलाज मुश्किल से मुहैया करवा पाये हैं। टीबी संक्रमण नियंत्रण भी असंतोषजनक है वरना टीबी संक्रमण के फैलाव पर रोक क्यों नहीं लगी?

जब तक टीबी दवाओं का दुरुपयोग नहीं रुकेगा, हर टीबी रोगी को जल्दी और पक्की जाँच नहीं मिलेगी (विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पारित मॉलिक्यूलर टेस्ट) और सही दवाओं से इलाज नहीं होगा, और संक्रमण नियंत्रण सब जगह संतोषजनक नहीं होगा, तब तक टीबी उन्मूलन का सपना कैसे साकार होगा?

कुछ इसी तरह की जमीनी हकीकत अन्य रोगों की है यदि आप जाँच, इलाज और संक्रमण नियंत्रण के संदर्भ में मूल्यांकन करें।

सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि हर इंसान - विशेषकर कि जो लोग स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रह जाते हैं - सबको विभिन्न रोगों के लिए बिना देरी के पक्की जांच मुहैया हो, सही इलाज मिले, सहयोग मिले जिससे कि वह इलाज पूरा करवा सकें और संक्रमण नियंत्रण - अस्पताल और अन्य स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से लेकर समुदाय और घर तक - प्रभावकारी हो।

(सिटीज़न न्यूज़ सर्विस)
6 अक्टूबर 2024

डीएनए (डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट), लखनऊ, उत्तर प्रदेश (संपादकीय पृष्ठ, 7 अक्टूबर 2024)

प्रकाशित: