मानवाधिकारों से अलग नहीं हैं सुरक्षित गर्भपात

[English] सुरक्षित गर्भपात एक मानव अधिकार है। अनेक ऐसे वैश्विक समझौते या संधि हैं (जैसे कि CEDAW 1979, जो कानूनी रूप से बाध्य संधि है), जहाँ हमारी सरकारों ने गर्भपात अधिकार को सम्मान देते हुए प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य के अनेक वायदे किए हैं। परंतु, पितृसत्ता के चलते अनेक महिलाएं, सुरक्षित गर्भपात सेवाओं से वंचित रह जाती हैं। कुछ देशों में जहाँ गर्भपात ग़ैर-कानूनी है वहाँ  महिलाएं कानूनी उत्पीड़न का खतरा उठा कर असुरक्षित गर्भपात की ओर बढ़ने को मजबूर होती हैं।

घटिया और नकली दवाएं दे रहीं हैं जन स्वास्थ्य को बड़ी चुनौती

[English] 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके अनुसार विकासशील देशों में कम-से-कम 10% दवाएं, घटिया या नक़ली थीं। इस रिपोर्ट ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा था कि ये आंकड़े बहुत कम रिपोर्ट हो सके हैं जब कि संभवत: यह समस्या इससे कहीं अधिक बड़ी है।

क्या सरकारें बीजिंग+30 बैठक में जेंडर समानता पर ठोस कदम उठायेंगी?

[English] जेंडर समानता और मानवाधिकारों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि और कई अन्य घोषणाओं, समझौतों और वायदों के बावजूद, सरकारें अपने वायदे पूरे करने में विफल रही हैं। जेंडर असमानता प्राकृतिक आपदाओं के कारण नहीं बल्कि गहरी पैठ वाली पितृसत्ता के कारण होती है, जिसका पूंजीवाद, निजीकरण, धार्मिक कट्टरवाद और सैन्यीकरण के साथ भयावह संबंध है।

बिना शोषण और भेदभाव समाप्त किए 2027 तक कुष्ठ रोग उन्मूलन कैसे होगा?

[English] जो बैक्टीरिया कुष्ठ रोग (लेप्रोसी या हैंसेंस रोग) उत्पन्न करता है उसका तो पक्का इलाज है परंतु जो समाज में कुष्ठ रोग संबंधित शोषण और भेदभाव व्याप्त है, वह तो मानव-जनित है - उसका निवारण कैसे होगा? कुष्ठ रोग का सफलतापूर्वक इलाज करवा चुकीं माया रनवाड़े बताती हैं कि यदि कुष्ठ रोग की जल्दी जाँच हो, सही इलाज बिना-विलंब मिले, तो शारीरिक विकृति भी नहीं होती और सही इलाज शुरू होने के 72 घंटे बाद से रोग फैलना भी बंद हो जाता है। फिर शोषण और भेदभाव क्यों?