माया ने कहा कि कुष्ठ रोग किसी ‘पिछले जन्म के पाप’ के कारण नहीं होता है बल्कि संक्रामक बैक्टीरिया के कारण होता है, और किसी अन्य संक्रमण की तरह यह रोग किसी को भी हो सकता है। ज़रूरत है कि सभी कुष्ठ रोगियों को बिना विलंब सही जांच मिले, सही उपचार मिले, सामाजिक सुरक्षा और सहायता मिले जिससे कि वह स्वस्थ रहें और अपनी ज़िंदगी सामान्य रूप से बिना किसी भेदभाव या शोषण के बिताएँ।
माया का जन्म महाराष्ट्र की एक लेप्रोसी कॉलोनी में हुआ था। उनकी माताजी को भी कुष्ठ रोग था जो उनके जन्म से पूर्व से ही इस कॉलोनी में रह रही थीं। जब माया छह वर्ष की थीं तो उनको कुष्ठ रोग हो गया था पर जल्दी जाँच और सही इलाज से वह पूर्णत: ठीक हो गईं। जिस लेप्रोसी कॉलोनी में वह रहती थीं वहाँ स्वास्थ्य कार्यकर्ता अक्सर आते थे और कुष्ठ रोग के लक्षण को चिह्नित करते थे। इसी प्रयास में उनको, माया के सफेद धब्बे दिखे, और उन्होंने माया को बिना विलंब जांच-इलाज दिलवाया, और वह पुन: स्वास्थ्य हो गईं। उनके पति को भी कुष्ठ रोग हो गया था जो अब पूर्णत: ठीक हैं। उनकी दोनों बेटियों का विवाह हो चुका है और माया की एक पोती भी है।
जन्म से ही कुष्ठ रोग संबंधित शोषण झेला
चूँकि माया का जन्म ही लेप्रोसी कॉलोनी में हुआ था तो आरम्भ से ही उन्होंने कुष्ठ रोग संबंधित शोषण और भेदभाव झेला। बरसों पहले कुष्ठ रोग होने पर अक्सर रोग-ग्रस्त लोगों को परिवार बेघर कर देते थे और वह लेप्रोसी कॉलोनी में शरण लेने को मजबूर थे। पिछले कुछ सालों से एक भी नई लेप्रोसी कॉलोनी नहीं बनी है जो थोड़ी तस्सली की बात है।
कुष्ठ रोग होने के बाद माया का अपना जिया हुआ अनुभव और प्रगाढ़ हो गया और इरादा बुलंद - कि इस शोषण और भेदभाव को समाप्त करना ज़रूरी है जिससे कि लोग सम्मान और अधिकार के साथ, शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य सेवा आदि का लाभ उठा सकें और सामान्य जीवनयापन कर सकें।
यही बात, विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा कुष्ठ रोग उन्मूलन के लिए नियुक्त सद्भावना राजदूत योहेई सासाकावा ने कही। उन्होंने 2006 में वैश्विक अपील की शुरुआत दिल्ली से की थी कि कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों के खिलाफ शोषण और भेदभाव को खत्म किया जाये।
एपीएएल राष्ट्रीय संगठन की पहली महिला नेत्री
हाल ही में माया रनवाड़े, भारतीय कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के संगठन (एपीएएल – एसोसिएशन ऑफ़ पर्सन्स अफेक्टेड बाई लेप्रोसी) की पहली महिला राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित हुई हैं। संगठन के सर्वे के अनुसार भारत में 800 लेप्रोसी कॉलोनी हैं जिनमें से लगभग सभी इस संगठन से जुड़ी हुई हैं। यह संगठन भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 18 प्रदेशों में सक्रिय है। ओडिशा प्रदेश में 86 लेप्रोसी कॉलोनी हैं। माया, राज्य मानवाधिकार आयोग के संयोजक मंडल और जिला कुष्ठ रोग समन्वयन समिति में भी शामिल रही हैं। माया 7वीं कक्षा तक पढ़ीं हैं। कुष्ठ रोग से प्रभावित समुदायों को जोड़ने के लिए और कुष्ठ रोग उन्मूलन के प्रयासों को सशक्त करने के लिए वह 14 से अधिक देशों के दौरे कर चुकीं हैं।
यदि संवेदनशील महिला नेतृत्व नहीं होगा तो महिला संबंधित मुद्दे सहजता से निकल के नहीं आयेंगे। माया के संगठन नेत्री बनने के बाद, उनका कहना है कि अक्सर देश के विभिन्न क्षेत्रों की लेप्रोसी कॉलोनी से उनके पास महिलाओं के फ़ोन आते रहते हैं कि घर, समाज, कार्यस्थल, शैक्षिक संस्थान, स्वास्थ्य सेवा केंद्रों आदि में उनको किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है - या शोषण और भेदभाव से जूझना पड़ता है। माया मिलजुल कर समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करती हैं।
भू-अधिकार, कुष्ठ रोग और भिक्षावृत्ति
लेप्रोसी कॉलोनियों में कुछ लोग 60-70 साल से रह रहे हैं पर भू-अधिकार उनको आज तक नहीं मिला है जिसके कारण उनको अनेक समस्या आती हैं। लेप्रोसी कॉलोनी अक्सर रेलवे पटरी के किनारे, या जंगल के निकट जैसी जगहों पर स्थापित हैं परंतु उनका नियमितीकरण नहीं किया गया है। इसलिए अक्सर कुष्ठ रोग से प्रभावित समुदाय को ‘अवैध क़ब्ज़ाधारी’ के दोषारोपण से भी जूझना पड़ता है।
सीएनएस ने भुबनेश्वर के एक कुष्ठ रोग प्रभावित व्यक्ति से बात की जो खुर्दा की एक लेप्रोसी कॉलोनी के निवासी हैं। उन्होंने बताया कि वह तो मेहनत और लगन से अपनी आजीविका कमाना चाहते हैं, परंतु कुष्ठ रोग संबंधित शोषण और भेदभाव उनके आड़े आता है – और रोज़गार मिलना एक परस्पर चुनौती है। रोज़गार मिल भी जाये तो कुष्ठ रोग संबंधित शोषण के चलते जल्दी ही वह विकल्प भी उनके लिए बंद हो जाता है। अंतत: अक्सर उन्हें देहाड़ी न मिलने पर भिक्षावृत्ति के रास्ते जाना ही पड़ता है। जब तक कुष्ठ रोग संबंधित हर प्रकार का शोषण और भेदभाव समाप्त नहीं होगा, उनके परिवार के लोग पर्याप्त शिक्षा और रोज़गार नहीं पाएंगे, भू-अधिकार नहीं पाएंगे, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा नहीं प्राप्त करेंगे, तब तक हम कुष्ठ रोग को कैसे समाप्त करेंगे? और भिक्षावृत्ति कैसे समाप्त होगी?
माया एक अरसे से कुष्ठ रोग से प्रभावित समुदाय के लिए आर्थिक पेंशन की माँग उठा रही हैं। मानवाधिकार आयोग की इससे संबंधित एक समीक्षा में उन्होंने एक अहम भूमिका अदा की और 3000 से अधिक कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों को उनके नगर निगम से विशेष अनुरक्षण भत्ता मिला। सासाकावा इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन और सहयोगियों के आजीविका प्रोजेक्ट से भी वह जुड़ी हुई हैं।
उनके अथक प्रयासों के बावजूद पेंशन राशि हर राज्य में सामान्य नहीं है। महंगाई को देखते हुए पेंशन बढ़ाने की मांग भी कुष्ठ रोग से प्रभावित समाज से उठ रही है।
ओडिशा में अभी तक हर महीने रू 1000 मिलते थे जो अब राज्य सरकार ने रू 3500 कर दिया है परंतु यह सिर्फ़ उसके लिए है जिसको कुष्ठ रोग संबंधित 80% या अधिक शारीरिक विकृति है (और चिकित्सकीय रूप से सत्यापित है)। कुछ प्रदेशों में जैसे कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कुष्ठ रोग प्रभावित लोगों को रू 5000 की पेंशन मिल रही है। माया कहती हैं कि वाजिब पेंशन के अभाव में, और शोषण और भेदभाव मुक्त शिक्षा-रोज़गार के बिना, कुष्ठ रोग से प्रभावित लोग कैसे जीवनयापन करेंगे? भिक्षावृत्ति समाप्त कैसे होगी?
उनके अथक प्रयासों के बावजूद पेंशन राशि हर राज्य में सामान्य नहीं है। महंगाई को देखते हुए पेंशन बढ़ाने की मांग भी कुष्ठ रोग से प्रभावित समाज से उठ रही है।
ओडिशा में अभी तक हर महीने रू 1000 मिलते थे जो अब राज्य सरकार ने रू 3500 कर दिया है परंतु यह सिर्फ़ उसके लिए है जिसको कुष्ठ रोग संबंधित 80% या अधिक शारीरिक विकृति है (और चिकित्सकीय रूप से सत्यापित है)। कुछ प्रदेशों में जैसे कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कुष्ठ रोग प्रभावित लोगों को रू 5000 की पेंशन मिल रही है। माया कहती हैं कि वाजिब पेंशन के अभाव में, और शोषण और भेदभाव मुक्त शिक्षा-रोज़गार के बिना, कुष्ठ रोग से प्रभावित लोग कैसे जीवनयापन करेंगे? भिक्षावृत्ति समाप्त कैसे होगी?
अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009
अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 में कुष्ठ रोग से प्रभावित परिवारों के योग्य पात्र बच्चों को भी शामिल किया गया है। परंतु जमीनी हकीकत निराशाजनक है।
माया ने अनेक ऐसे कानून और नीति बतायीं जहाँ आज भी कुष्ठ रोग संबंधी सदियों पुराने शोषणात्मक बिंदु शामिल हैं। कानूनों और नीतियों को लोगों के अधिकार के समर्थन में होना चाहिए। आयुर्विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र में भी अद्भुत प्रगति हुई है जिसके कारण कुष्ठ रोग की जल्दी पक्की जांच और पक्का इलाज नि:शुल्क उपलब्ध है। इलाज आरम्भ होने के शीघ्र बाद ही व्यक्ति संक्रामक भी नहीं रहता तो फिर कैसा शोषण और भेदभाव? जो पुरानी शोषणात्मक नीतियाँ हैं उनमें बदलाव ज़रूरी है।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
भारत सरकार का दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016, एक उदाहरण है जहाँ माया और उनके जैसे अनेक लोगों की पैरवी रंग लाई है – इसमें कुष्ठ रोग से प्रभावित योग्य पात्र लोग अब शामिल हैं। परंतु सामुदायिक स्तर पर जागरूकता कम है और सभी योग्य पात्र लोगों को लाभ मिल भी नहीं पा रहा है।
माया का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य और पर्याप्त परामर्श की बहुत आवश्यकता है जिससे कि कुष्ठ रोग से प्रभावित सभी लोगों की मदद की जा सके।
माया रनवाड़े ने अनेक लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। कुष्ठ रोग से संबंधित शोषण और भेदभाव को कम करने के उनके अथक प्रयासों को अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले हैं जिनमें सासाकावा इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन का राइजिंग टू डिग्निटी अवार्ड, आरके मेहता ट्रस्ट का सोशल सर्विस अवार्ड आदि शामिल हैं। 2014 में बनी एक वृत्तचित्र फ़िल्म उनकी जीवनी पर आधारित है जिसका शीर्षक है "द अनसंग हीरो - मीट माया।"
शोभा शुक्ला, बॉबी रमाकांत - सीएनएस
(सिटीज़न न्यूज़ सर्विस)
2 मार्च 2025
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दैनिक स्वतंत्र प्रभात, लखनऊ, उत्तर प्रदेश (संपादकीय पृष्ठ, 3 मार्च 2025) |
- सीएनएस
- दैनिक स्वतंत्र प्रभात, लखनऊ, उत्तर प्रदेश (संपादकीय पृष्ठ, 3 मार्च 2025)
- दैनिक डीजी न्यूज़, भोपाल, मध्य प्रदेश
- जन चौक, दिल्ली
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- हस्तक्षेप समाचार, दिल्ली