मानवाधिकारों से अलग नहीं हैं सुरक्षित गर्भपात

[English] सुरक्षित गर्भपात एक मानव अधिकार है। अनेक ऐसे वैश्विक समझौते या संधि हैं (जैसे कि CEDAW 1979, जो कानूनी रूप से बाध्य संधि है), जहाँ हमारी सरकारों ने गर्भपात अधिकार को सम्मान देते हुए प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य के अनेक वायदे किए हैं। परंतु, पितृसत्ता के चलते अनेक महिलाएं, सुरक्षित गर्भपात सेवाओं से वंचित रह जाती हैं। कुछ देशों में जहाँ गर्भपात ग़ैर-कानूनी है वहाँ  महिलाएं कानूनी उत्पीड़न का खतरा उठा कर असुरक्षित गर्भपात की ओर बढ़ने को मजबूर होती हैं।

गर्भपात, वैश्विक स्तर पर प्रजनन स्वास्थ्य का एक सामान्य और सुरक्षित हिस्सा है, परंतु समाज में व्याप्त गर्भपात के प्रति कलंक के कारण दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इसे एक स्वास्थ्य सेवा के रूप में नहीं देखा जाता है। गर्भपात-संबंधित सेवाएं लेने में महिलाओं को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है जिनके कारण उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। गर्भपात संबंधित भेदभाव और शोषण के कारण ही वे अपने प्रजनन अधिकारों से लाभान्वित होने से वंचित रह जाती हैं।

भारत सरकार ने सराहनीय कदम उठाये हैं जिससे कि जरूरतमंद और पात्र महिलाएं, कानून के अनुरूप गर्भपात सेवाओं का लाभ उठा सकें। हालांकि समस्या तब तक जटिल ही मानी जाएगी यदि एक भी गर्भपात की इच्छुक पात्र महिला इस सेवा से वंचित रह जाए या असुरक्षित विकल्प की ओर जाने के लिए विवश हो। आखिरकर, इन वैश्विक समझौतों और कानूनी-रूप से बाध्य संधिओं का क्या औचित्य है यदि एक भी महिला, गर्भपात, या किसी अन्य प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य सेवा से वंचित रह जाये?

गर्भपात का अधिकार हमारी सरकारों द्वारा बीजिंग घोषणापत्र 1995 और कानूनी रूप से बाध्य "सीईडीएडबल्यू" (कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ़ ऑल फ़ॉर्म्स ऑफ़ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वोमेन) तथा अन्य समझौतों और घोषणाओं में निहित वायदों का हिस्सा है, तथा लैंगिक और यौनिक समानता और मानव अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य-5 को प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण है, फिर भी इस पर वैश्विक प्रगति संतोषजनक नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य अधिकार की विशेष राजदूत डॉ. ट्लालेंग मोफोकेंग ने कहा, "हम स्वास्थ्य और जेंडर समानता के अधिकार को सबके लिए हकीकत बनाने में असफल रहे हैं। सतत विकास लक्ष्यों  के लिए एक साझा दृष्टिकोण और कार्य योजना के साथ प्रतिबद्ध होने के बावजूद, हम संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के वायदों को पूरा करने में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं।"

महिलाओं और लड़कियों को शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार है - अर्थात बिना किसी दबाव या हिंसा के अपने शरीर के बारे में पूरी जानकारी और समझ के साथ स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार है। हम शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन तब देखते हैं जब विकल्प और निर्णय लेने की कमी के कारण अनियोजित गर्भावस्था होती है, या असुरक्षित गर्भपात होता है जो मातृ-मृत्यु और रुग्णता का एक प्रमुख (लेकिन पूरी तरह से रोकथाम योग्य) कारण है।

वैश्विक स्तर पर, 10 में से 6 अनियोजित गर्भधारण, गर्भपात में समाप्त होते हैं, और इनमें से लगभग 45% गर्भपात असुरक्षित होते हैं।

प्रेरित गर्भपात (इंड्यूस्ड एबॉर्शन) वास्तव में बहुत आम है - अनुमानतः दुनिया भर में हर साल 7.3 करोड़ प्रेरित गर्भपात होते हैं। लगभग 61% (या 6 में से 1) अनियोजित गर्भधारण, प्रेरित गर्भपात में समाप्त होते हैं - इसलिए ये ऐसे गर्भधारण हैं जिनकी योजना नहीं बनाई गई थी - और वैश्विक स्तर पर सभी गर्भधारण का 29% (या 10 में से 3) गर्भपात में समाप्त होता है। इस प्रकार विश्व भर में अनियोजित और इच्छित गर्भधारण दोनों की काफी महत्वपूर्ण संख्या गर्भपात में समाप्त होती है।

सुप्रसिद्ध महिला अधिकार कार्यकर्ता और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ सुचित्रा दहलवी ने कहा था कि यह भी तो संभव है कि गर्भधारण के समय भले ही दंपति गर्भावस्था के इच्छुक रहे हों परंतु बाद में महिला इच्छुक न रहे। यदि किसी महिला की इच्छा हो तो सुरक्षित गर्भपात का विकल्प हर पात्र महिला के पास हमेशा होना चाहिए।

लेकिन सबसे अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि 45% प्रेरित गर्भपात असुरक्षित हैं। अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 29,000 गर्भवती महिलाएँ असुरक्षित गर्भपात के कारण मर जाती हैं और 70 लाख असुरक्षित गर्भपात के कारण घायल या विकलांग हो जाती हैं।

आधे से अधिक असुरक्षित गर्भपात एशियाई देशों में होते हैं, जिनमें से ज़्यादातर दक्षिण और मध्य एशिया में होते हैं। दक्षिण और केंद्रीय अमेरिका और अफ़्रीका के देशों में, लगभग हर 4 में से 3 (75%) गर्भपात असुरक्षित होते हैं। अफ़्रीका में, लगभग 50% गर्भपात सबसे कम सुरक्षित परिस्थितियों में हुए।

असुरक्षित गर्भपात के कारण होने वाली मौतों को पूरी तरह से रोका जा सकता है। सुरक्षित, समय पर, किफ़ायती और सम्मानजनक गर्भपात-देखभाल तक पहुँच की कमी के कारण ही ये रोके जा सकने वाली मातृ-मृत्युएँ होती हैं।

लैंगिक समानता और स्वास्थ्य का अधिकार मौलिक मानवाधिकार है

संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य अधिकार की विशेष राजदूत डॉ ट्लालेंग का मानना है कि “मानवाधिकारों का उल्लंघन एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है। हमें स्वास्थ्य के अधिकार पर प्रगति करने के लिए, जातिवाद-विरोधी और उपनिवेशवाद-विरोधी विचारधारा का भी उपयोग करना होगा। मानवाधिकार हम सभी को जोड़ते हैं, न कि हमें तोड़ते या विभाजित करते हैं। हमें इस गलत-धारणा का विरोध करना चाहिए (और उसे और अधिक मजबूती से दबाना चाहिए) कि 'मानवाधिकार विभाजनकारी' हैं।"

डॉ ट्लालेंग का मानना है कि मानवाधिकार हमें एक आधार देते हैं कि हम कैसे इंसानों के रूप में संगठित हो कर, सबके भले के लिए एक-साथ कैसे आगे बढ़ें। स्वास्थ्य अधिकार की रक्षा के लिए, शक्ति के निरंतर विश्लेषण की आवश्यकता होती है। हममें से कोई भी व्यक्ति, शक्ति का निरंतर विश्लेषण करने की प्रतिबद्धता के बिना, सतत विकास के भविष्य की कल्पना नहीं कर सकता है। शक्ति, जो इंसानों के बीच भेद पैदा करती हैं, कैसे शक्ति आने या जाने से व्यक्तिगत या सांगठनिक रूप से प्रभाव पड़ता है, और बहुपक्षीय साझे मंचों पर प्रभाव पड़ता है - इसका हमें निरंतर मूल्यांकन करना ज़रूरी है। स्वास्थ्य के अधिकार (जिसमें सुरक्षित गर्भपात का अधिकार भी शामिल है) को अन्य मानवाधिकारों से अलग करना असंभव है। यह याद रखना भी आवश्यक है कि जब हम स्वास्थ्य के अधिकार पर प्रभावकारी कार्य करते हैं, तो हम कई अन्य मानवाधिकारों को भी सक्षम बनाते हैं। स्वास्थ्य के मानवाधिकार पर कार्य करने से हम जेंडर समानता की ओर भी कदम बढ़ाते हैं।"

परिवार नियोजन और मातृत्व स्वास्थ्य पर डॉलर 1 के व्यय से डॉलर 8.40 का लाभ!

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष सलाहकार डॉन मिनोट ने कहा कि "30 साल पहले ज़ारी किए गए जनसंख्या और विकास पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीपीडी) 1994 के और बीजिंग घोषणापत्र 1995 इसलिए उल्लेखनीय हैं क्योंकि दोनों ने जेंडर समानता और महिला सशक्तिकरण को विकास के केंद्र में रखा था। इन दोनों ने स्थापित किया था कि एक महिला का अपनी प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण उसके सभी अधिकारों की मूल आधारशिला है। यही आधार, सतत विकास लक्ष्यों में भी केंद्रीय रहा है।"

डॉन मिनोट का मानना है कि, "यौन और प्रजनन स्वास्थ्य तक पहुँच, महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाती है, जिससे उनके स्वास्थ्य में सुधार होता है तथा आर्थिक अवसर और जेंडर समानता के लिए अनिवार्य बदलाव के लिए अहम कड़ी बनने की संभावना सशक्त होती है। संयुक्त राष्ट्र (यूएनएफपीए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों में यदि परिवार नियोजन और मातृत्व स्वास्थ्य पर अमरीकी डॉलर 1 का निवेश हो तो अमरीकी डॉलर 8.40 का लाभ वापस मिलता है।

डॉन मिनोट ने सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही कि "मुझे लगता है कि सबसे महत्वपूर्ण प्रगति हमने सतत विकास लक्ष्य संकेतक 5.6.1 पर की है, जो एक महिला की अपने यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में खुद निर्णय लेने की क्षमता को मापता है। प्रारंभिक विश्लेषण से पता चलता है कि आधी से अधिक (56%) विवाहित महिलाएँ अब यह निर्णय लेने में सक्षम हैं। हालाँकि इसका मतलब यह है भी है कि 44% विवाहित महिलाएँ अभी भी अपने स्वास्थ्य (जिसमें प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य शामिल हैं), और गर्भ निरोधक के उपयोग संबंधी आवश्यक निर्णय नहीं ले सकती हैं, जो अत्यंत चिंता का विषय है।"

इस चौराहे पर क्या सरकारें सबके-अधिकारों वाला मार्ग अपनायेंगी?

वैश्विक स्वास्थ्य अधिकार के सर्वोच्च स्तंभों में से एक हैं डॉ हैलियसस गेटाहुन। अनेक वर्षों तक विश्व स्वास्थ्य संगठन मुख्यालय में टीबी और एचआईवी पर सेवारत रहने के बाद उन्होंने पिछले दशक में 4 वैश्विक संस्थानों को रोगाणुरोधी प्रतिरोध (दवा प्रतिरोधकता) पर एकजुट किया - विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, और वैश्विक पशु स्वास्थ्य संगठन।

वर्तमान में डॉ गेटाहुन, हेडपैक के अध्यक्ष हैं जो स्वास्थ्य और विकास पर वैश्विक दक्षिण के देशों में साझेदारी को मजबूत करने का कार्यरत है। डॉ  गेटाहुन, ग्लोबल सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी एंड इंक्लूजन के भी संस्थापक हैं।

उन्होंने कहा कि "जब जेंडर समानता और स्वास्थ्य अधिकार की बात आती है तो हम वर्तमान में एक चौराहे पर खड़े हैं। स्वास्थ्य के अधिकार (जिसमें गर्भपात अधिकार भी शामिल है) पर हमला पहले से कहीं अधिक है। यह एक ऐसा समय है जब हमें एकजुट होने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि प्रत्येक व्यक्ति को - चाहे उनका लिंग, लैंगिकता या जेंडर या जन्म स्थान कोई भी हो - स्वास्थ्य का अधिकार बराबरी और सम्मान से मिले। यही कारण है कि वैश्विक स्वास्थ्य वार्ता में वैश्विक दक्षिण की आवाज उठाने के लिए ग्लोबल सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी एंड इंक्लूजन की स्थापना की गई थी।" 

बहुपक्षीयवाद और जन स्वास्थ्य संस्थाओं पर हमला

अमरीकी ट्रम्प सरकार ने अनेक जन स्वास्थ्य संस्थाओं पर हमला बोल दिया है। संयुक्त राष्ट्र की विश्व स्वास्थ्य संगठन हो या अमरीकी सरकार की सीडीसी (रोग नियंत्रण संस्था), आयुर्विज्ञान अनुसंधान हो या विकासशील देशों में अमरीकी पैसे से पोषित स्वास्थ्य या विकास कार्यक्रम - सब खंडित हैं या उन पर खंडित होने का ख़तरा मंडरा रहा है। कम-से-कम अमरीकी डॉलर का अनुदान मिलने की संभावना तो नगण्य ही है।

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन सीएसओ आयोग की एक ऑनलाइन बैठक में मैं शामिल रही। उसमें मेरे सवाल के जवाब में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रोस अधनोम घेब्रेयसस ने कहा कि अमरीका को यदि अपना अनुदान बंद करना है तो वह उसका स्वायत्त अधिकार है। हर देश, विश्व स्वास्थ्य संगठन को पूर्व-आंकलित अनुदान देता है जो अमरीका भी देता था - और वह इसके अतिरिक्त भी अनुदान देता आया था। यदि उसको इससे अतिरिक्त अनुदान नहीं देना है तो वह अमरीका का निर्णय है। उन्होंने कहा कि वे स्वयं भी  2017 से प्रयास कर रहे हैं कि अमरीकी डॉलर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की निर्भरता कम हो।

फॉस फ़ेमिनिस्टा की नारीवादी कार्यकर्ता और मुख्य पैरवी अधिकारी फ़ेडेकेमी अकिनफैडरिन ने आश्चर्य जताया कि "मौलिक मानवाधिकार खतरे में हैं - विशेष रूप से स्वास्थ्य, प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य अधिकार और न्याय। बहुपक्षीयवाद और जन स्वास्थ्य संस्थाओं पर हमला आज हमारे सामने आने वाली मुख्य चुनौतियों में से एक है - स्वास्थ्य और जेंडर एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले तकनीकी निकायों की फंडिंग में कटौती और राजनीतिक हस्तक्षेप से लेकर उन ढाँचों पर हमला करना जिनपर हम वर्षों से काम कर रहे हैं। ये हमले उन ठोस समझौतों को कमज़ोर करते हैं, जिन्होंने हमें आबादी और सतत विकास के लिए एक मानवाधिकार दृष्टिकोण दिया था। ये समझौते, महिलाओं की जीवट वास्तविकताओं को गहराई से दर्शाते हैं कि महिलाओं और लड़कियों को स्वास्थ्य अधिकार मिलना अनिवार्य है, जिनमें उनके प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य अधिकार शामिल हैं। अभी मार्च 2025 में, सभी सरकारों ने 69वें संयुक्त राष्ट्र सीएसडब्लू के एक राजनीतिक घोषणा की थी, लेकिन प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य अधिकार और न्याय के बिना राजनीतिक घोषणा के क्या अर्थ हैं, क्या औचित्य है?"

अकिनफैडरिन ने कहा कि, "जो भी प्रगति हमने जेंडर समानता और मानवाधिकारों के लिए कड़ी मेहनत से हासिल की है, वह सब पलटने को है क्योंकि जेंडर विरोधी आंदोलन जड़ पकड़ रहा है। सबसे भयभीत करने वाली बात यह है कि जेंडर विरोधी आंदोलन उन्हीं तर्कों और भाषा की आड़ में पितृसत्ता का जहर फैला रहा है जो जेंडर अधिकार कार्यकर्ता सदियों से उपयोग करते आए हैं। उदाहरण के लिए, जेंडर विरोधी लोगों ने 'जिनेवा कंसेंसस डिक्लेरेशन' नामक  जेंडेर-विरोधी षड्यंत्र रचा और 'जिनेवा' शब्द का उपयोग किया जिससे कि लगे कि यह 'न्याय' और 'अधिकार' संबंधित है। पर असल में यह अधिकार-विरोधी, जेंडर-विरोधी और प्रतिगामी है। न तो यह अंतर-सरकारी समझौता है, न ही क़ानूनी रूप से बाध्य है, पर ऐसा धोखा देता है जिससे कि सरकारों को गुमराह कर सके, जेंडर समानता को पीछे धकेल सके और पितृसत्तात्मकता की जड़ मज़बूत कर सके।"

मानवाधिकार के लिए चिकित्सक समूह (फिजिशियन फॉर ह्यूमन राइट्स) में कानून, शोध और पैरवी निदेशक डॉ पायल शाह इस बात से सहमत हैं: "मैं वैश्विक हित-धारकों से जेंडर समानता और स्वास्थ्य सेवाओं के पक्ष में त्वरित करवाई करने का आह्वान करती हूँ जिससे कि अमरीका द्वारा वित्तीय-सहायता की बंदी और स्वास्थ्य सेवा के अपराधिकरण (जैसे कि कुछ देशों में गर्भपात ग़ैर कानूनी है) के कुप्रभाव को पलटा जा सके। हमें "प्रजनन हिंसा" को भी उजागर करना होगा, जिसमें प्रजनन स्वायत्तता की विनाशकारी, व्यवस्थित वंचना पर ध्यान केंद्रित हो सके।"

यदि यही हाल रहा तो यह तय है कि हम सतत विकास लक्ष्य-5 (जेंडर समानता) और लक्ष्य-3 (स्वास्थ्य अधिकार) को पूरा नहीं कर सकेंगे। इन लक्ष्य और 1995 की बीजिंग घोषणा की दिशा में जो भी थोड़ी-बहुत प्रगति हुई है, वह आज अधिकार-विरोधी दबाव के चलते खतरे में है। प्रतिगामी 'जिनेवा सर्वसम्मति घोषणा' (जेंडर-विरोधी जिनेवा कंसेंस डिक्लेरेशन) , मैड्रिड प्रतिबद्धता (जेंडर-विरोधी मैड्रिड कमिटमेंट), और गैग नियम (या गैग रूल जो अमरीकी सरकार का जेंडर विरोधी पुराना हथियार है), महिलाओं और जेंडर विविधता वाले लोगों के अधिकारों और शारीरिक स्वायत्तता के हिंसक कटौती के चंद उदाहरण हैं। 

शारीरिक स्वायत्तता की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि जेंडर असमानता हमारी पीढ़ी के साथ समाप्त हो, हमारी सरकारों को तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है। सर्वविदित है कि अभी एक लंबा सफ़र बाक़ी है।

शोभा शुक्ला - सीएनएस
(सिटीज़न न्यूज़ सर्विस)
29 मार्च 2025

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