बढ़ रही है बाल दमा रोगीयों की संख्या

दमा रोग ब्रोन्कियल ट्यूबों (वायुमार्ग) की बीमारी है जिसमे आमतौर पर साँस लेने के दौरान घरघराहट या सीटी बजने की ध्वनि सुनाई देती है,  खासकर जब साँस बाहर निकालते है. बच्चों में यह विशेषकर सांस की तकलीफ या खाँसी को जन्म देती है जिसके कई कारण हो सकते हैं। वास्तव में इसका कोई प्रमाणित कारण नहीं है कि क्यों अधिक से अधिक बच्चों में दमा रोग विकसित हो रहा है पर कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि एलर्जी कारक जैसे धूल, वायु प्रदूषण, और परोक्ष धूम्रपान इसके प्रमुख कारण हैं। भारत में दमा रोग से 2.4 करोड़ लोग पीड़ित हैं। 

प्रोफेसर नादिया जो इन्टर्नैशनल यूनियन अगेन्स्ट ट्युबरक्लोसिस एंड लंग डिज़ीज़ (द यूनियन) में अस्थमा पर सलहकार और ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट 2011 की सहलेखिका भी है का कहना है कि “अस्थमा का कारण अज्ञात है. केवल कुछ संभावित कारक ही हैं जो अस्थमा के विकास के लिए जिम्मेदार हैं: जेनटिक और एलर्जी। कुछ अन्य कारक अस्थमा के विकास में योगदान देते है जैसे   घर के अंदर का प्रदूषण, बाहर का प्रदूषण, व्यायाम, मौसम में बदलाव, कुछ मामलों में विशिष्ट खाद्य और गैर-स्टेरायडल ऐंटी इन्फ्लैमटॉरी दवाएं”। 
  
ज्यादातर लोग बच्चों में दमा के लक्षणों को जैसे खाँसी, घरघराहट, और सांस की तकलीफ की अनदेखी करते है जो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है, पर यदि उचित ध्यान रखा जाये तो 70 प्रतिशत दमा रोगी बच्चों में लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है, और 12 साल की उम्र तक हो सकता है कि लक्षण गायब हो जाये। दमा रोग के नियंत्रण का सही उपाय इन्हेलर है जिसका कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं होता है। द यूनियन के फेफड़े-रोग विभाग के निदेशक डॉ चियांग चेन युआन के अनुसार “इन्हेलर के द्वारा कार्टिको-स्टीरोइड को श्वास द्वारा अंदर लेने से अधिकांश दमा रोगी दमे को नियंत्रित कर सकते है। पर यह दुर्भाग्य की बात है कि अधिकांस दमा रोगी कार्टिको-स्टीरोइड को इन्हेलर के द्वारा नहीं ले पाते हैं। एक शोध के अनुसार केवल 20% से कम दमा रोगी कार्टिको-स्टीरोइड इन्हेलर के द्वारा ले पाते हैं”। चूंकि दमा रोग को ठीक नहीं किया जा सकता है, इसके लक्षणों को नियंत्रित करना ही एक मात्र  उचित उपाय है अतः बच्चों में जल्दी से जल्दी इस रोग के लक्षणों की पहचान और उसका परीक्षण दमा से बचाव के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। दमा रोग के कारण प्रतिदिन लाखों बच्चे स्कूल, पढाई और खेलकूद आदि जैसे तमाम चीजों को छोडते हैं। 

डॉ करेन बीस्सेल्ल जो अस्थमा ड्रग्स फेसिलिटी की डिप्टी डाइरेक्टर है, का कहना है कि “विशेष रूप से कम आय वाले देशों में अस्थमा पर पर्याप्त डेटा नहीं है, लेकिन हाल ही में जो डेटा कम आय वाले देशों से एकत्र किया गया है से पता चलता है कि समय के साथ वहाँ बच्चों में विशेष रूप से दमा रोग के प्रसार में वृद्धि हुई है. पर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसका कारण शहरीकरण है, जैसा कि पिछले दो दशकों में शहरीकरण की प्रक्रिया में तेजी से विकास हुआ है जिसके फलस्वरूप वातावरण प्रदूषण बढ़ा है”। हालांकि बच्चों में यह समान रूप से लड़कियों और लड़कों को प्रभावित करता है, लेकिन लड़कियों की तुलना में थोड़ा अधिक लड़कों को प्रभावित करता है. प्रोफेसर नादिया का कहना है कि “बच्चों में दमा रोग की घटना वयस्कों की तुलना में अधिक है. बच्चों में दमा रोग लड़कियों की तुलना में लड़कों में अधिक और वयस्कों में महिलाओं में अधिक होता है”।

छत्रपति शाहुजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के विभागाअध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त का कहना है कि दमे की शुरुआत मूल रूप से बचपन में होती है. वास्तव में तीन चौथाई से अधिक मामलों में बचपन से शुरू होती है, चूंकि यह एक आजीवन बीमारी है जो वयस्कता में भी जारी रहती है. प्रायः 50% दमा रोगी बच्चे या वें बच्चे जो, घरघराहट, नाक रुकावट, सीने में जकड़न, सांस लेने में तकलीफ़ आदि लक्षणों की शिकायत करते हैं, आमतौर पर 12 साल की उम्र से राहत पाने लगते हैं. अतः प्राथमिक रोकथाम की शुरुआत जब बच्चा गर्भ में हो तभी से कर देनी चाहिए है. यदि माँ को दमा है, तो एक तिहाई ऐसे मामलों में गर्भावस्था के दौरान रोग बढ़ाने की संभावना होती है. तो ऐसी स्थिति में माँ को और अधिक सतर्क हो जाना चाहिए, और डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए और नियमित तौर पर इनहेलर का प्रयोग करना चाहिए. अगर उसके फेफड़ों का कार्य बिगड़ा और उसके शरीर में ऑक्सीजन की कमी आयी तो शिशु में भी ऑक्सीजन की कमी होगी. ऐसी माँओ को फास्ट फूड से बचना चाहिए क्योंकि यह दमा रोग को बढ़ता है। फास्ट फूड भी बच्चों में दमा रोग वृद्धि का एक प्रमुख कारण है. हाल ही में दिल्ली में किये गये अध्ययन के अनुसार वहाँ 16% स्कूल जाने वाले बच्चे दमा रोग से पीड़ित हैं जबकि हम मानते है की भारत में  3-5% लोगों को दमा है. इस सब की वजह फास्ट फूड बर्गर, कोल्ड ड्रिंक, पेस्ट्री, चाउ मीन, पिज्जा, और डिब्बा बंद भोजन/ जूस आदि हैं.

हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार सामान्य रूप पैदा हुए बच्चों की तुलना में सीज़ेरियन विधि से पैदा हुए बच्चों में दमा होने की संभावना अधिक होती है, चाहे माँ को दमा हो या न हो. यह कहा जाता है कि योनि का तरल पदार्थ शिशु के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है और उसे दमा सहित अन्य रोगों से बचाता है. ठंडा-गरम और ए.सी कार/कमरे में रहने के बाद गरम धूप में निकलना या गरम धूप से ए.सी कार/कमरे में जाना आदि भी अस्थमा रोग को बढ़ते हैं। अतः यदि किसी को नाक की एलर्जी है तो उसका सही तरीके से इलाज कराना चाहिये क्योंकि बाद में यह अस्थमा का रूप धारण कर सकता हैं 

राहुल कुमार द्विवेदी 
लेखक ऑनलाइन पोर्टल www.hindi.citizen-news.org के लिए लिखता है