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विकास ही सबसे अच्छा गर्भ-निरोधक है

विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन के अनुसार, क्षय रोग (टीबी) का सबसे बड़ा खतरा कु-पोषण है। ज़ाहिर सी बात है कि यदि टीबी उन्मूलन के सपने को साकार करना है तो कु-पोषण को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते। 2019 में दिल्ली-स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक और वरिष्ठ श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ रणदीप गुलेरिया ने हम लोगों से एक साक्षात्कार में कहा था कि विकसित देशों में टीबी दर सिर्फ जांच-दवा के कारण इतनी कम नहीं हुई है बल्कि इसलिए कम हुई क्योंकि वहां सभी इंसानों के लिए साफ-सफाई, पोषण, स्वास्थ्य सुविधाएँ, व अन्य सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में भी सुधार हुआ। उन्होंने कहा कि यदि सभी लोगों के पोषण, गरीबी उन्मूलन, रहन सहन, स्वच्छता, स्वास्थ्य सेवा, आदि, में सुधार होगा तो टीबी उन्मूलन की दिशा में अधिक प्रगति होगी।

क्या कर रहे हैं करोना काल में भाजपा नेता

जब लखनऊ के कुछ अस्पतालों ने ऑक्सीजन की कमी की सूचना अपनी दीवारों पर चिपकाई तो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री ने 24 अप्रैल 2021 को चेतावनी दी कि जो लोग अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी की अफवाह फैलाएंगे उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्यवाही की जाएगी और उनकी सम्पत्ति जब्त की जाएगी। इससे पहले प्रदेश के विधि मंत्री बृजेश पाठक ने अतिरिक्त मुख्य सचिव, स्वास्थ्य को एक पत्र लिख कर शिकायत की कि कोविड की जांच आख्या मिलने में 4 से 5 दिन का समय लग रहा है, प्रदेश में पर्याप्त जांच की सुविधा नहीं है और अधिकारी फोन नहीं उठाते। स्वास्थ्य मंत्री से शिकायत करने पर जब फोन उठाते भी हैं तो उनसे जनता को कोई मदद नहीं मिलती। उन्होंने यह भी बताया कि लखनऊ के जाने माने इतिहासकार योगेश प्रवीण के लिए जब उन्होंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी को एम्बुलेंस हेतु फोन किया तो भी एम्बुलेंस आई नहीं और योगेश प्रवीण की मौत हो गई। मोहनलालगंज से भारतीय जनता पार्टी के सांसद कौशल किशोर यह कहते हुए कि चुनाव से ज्यादा जरूरी लोगों की जान बचाना है चुनाव आयोग से उ.प्र. पंचायत चुनाव टालने की अपील कर चुके थे। कौशल किशोर ने यह भी आरोप लगाया कि लखनऊ के प्रतिष्ठित किंग जार्ज चिकित्सीय विश्वविद्यालय के श्वसन चिकित्सा विभाग में 100 के ऊपर ऑक्सीजन के साथ शैय्या व छह शैय्या आई.सी.यू. में खाली पड़ी हैं और मरीज ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पास के ही बलरामपुर अस्पताल में 20 में से सिर्फ 5 वेंटीलेटर काम में लिए जा रहे हैं क्योंकि वहां वेंटीलेटर संचालन हेतु तकनीकी रूप से प्रशिक्षित कर्मचारी ही नहीं हैं। मरीजों को ऑक्सीजन न मिलने की स्थिति में उन्होंने धरना तक देने की चेतावनी दी। कौशल किशोर के बड़े भाई का आखिर में किंग जार्ज चिकित्सीय विश्वविद्यालय में ऑक्सीजन की कमी के कारण ही निधन हो गया। इन दोनों भाजपा नेताओं ने बोलने की हिम्मत दिखाई क्योंकि शायद वे अन्य राजनीतिक दलों जैसे बहुजन समाज पार्टी या भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की पृष्ठभूमि से आते हैं। यदि वे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते तो शायद सरकार की छवि की उन्हें ज्यादा चिंता होती।

भय व प्रलोभन की राजनीति

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया, जो भारत की दो में से एक कोविड के टीके बनाने वाली कम्पनी है, के मालिक अडार पूनावाला ने एक ट्वीट कर कहा है कि राज्य सरकारों को टीके बेचने की दर रु. 400 प्रति टीके से घटा कर रु. 300 कर वे सरकार के हजारों करोड़ रुपए बचा रहे हैं और अनगिनत लोगों की जानें। सीरम इंस्टीट्यूट को ऑक्सफ़ोर्ड-एसट्राजेनेका द्वारा शोध कर यह टीका बनाने के लिए दिया गया था। ऑक्सफ़ोर्ड-एसट्राजेनेका ने कह दिया था कि वह इस जीवनरक्षक टीके पर कोई मुनाफा नहीं कमाएंगे क्योंकि इस शोध में 97 प्रतिशत पैसा जनता का लगा था। अडार पूनावाला पहले इसे रु. 1000 प्रति टीका बेचना चाहते थे। सरकार ने रु. 250 की ऊपरी सीमा तय की तो सीरम इसे रु. 210 प्रति टीका बेचने को तैयार हुआ। बाद में इसका दाम घटा कर रु. 150 कर दिया। अडार पूनावाला ने माना है कि इस दर पर भी वे मुनाफे में हैं। फिर उन्होंने घोषणा कर दी कि 1 मई 2021 से, जब यह टीका 18 से 44 वर्ष आयु वालों को भी लगने लगेगा, वह केन्द्र सरकार को तो उसी दर पर देंगे लेकिन राज्य सरकारों को रु. 400 पर व निजी अस्पतालों को रु. 600 में। निर्यात की दरें अलग होंगी लेकिन मुख्य बात यह है कि पूरी दुनिया में यह टीेका भारत में ही सबसे महंगा होगा। काफी हंगामा होने के बाद अब उन्होंने राज्य सरकारों के लिए दर घटाई है।

राम राज्य में राम भरोसे

जबकि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का सारा घ्यान पश्चिम बंगाल, असम व उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में लगा हुआ था अचानक देश कोरोना वायरस के दूसरे प्रकोप का शिकार हो गया। बताते हैं कि यह पिछले साल वाले प्रकोप के वायरस का एक बदला हुआ संस्करण है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि पहले वाले से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि इसमें संक्रमित लोगों की एवं मरने वालों की तादाद पिछले साल से कहीं ज्यादा नजर आ रही है। लोग तो जैसे तैसे निपट रहे हैं लेकिन राजनीतिक नेतृत्व ने तय किया है कि जनता की जान को जोखिम में डालकर भी वह चुनाव तो स्थगित नहीं करेगी जबकि नरेन्द्र मोदी ने खुद हरिद्वार में कुम्भ स्थगित करने का सुझाव दिया। ऐसा सुझाव उन्होंने चुनाव आयोग को क्यों नहीं दिया?

सरकार को वायु प्रदूषण, रोके जाने वाले रोगों और असमय होने वाली मौतों के लिए बड़े प्रदूषकों को ज़िम्मेदार ठहराना होगा

 

संदीप पांडे, शोभा शुक्ला, और बॉबी रमाकांत द्वारा लिखित

भारत में 2019 में 16 लाख से अधिक लोग मारे गए वायु प्रदुषणद लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ के अनुसार देश में होने वाली कुल मौतों में से 17 · eight प्रतिशत के लिए लेखांकन। वैश्विक स्तर पर समय से पहले मौत के लिए वायु प्रदूषण चौथा प्रमुख जोखिम कारक था, 2019 में अकेले 6.67 मिलियन से अधिक के साथ सभी मौतों का लगभग 12 प्रतिशत का लेखा-जोखा, ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2020 की स्थिति को दर्शाता है। इन मौतों में से प्रत्येक को रोका जा सकता था: और वायु प्रदूषण से होने वाली हर बीमारी को रोका जा सकता था।

[विडियो] सांप्रदायिक और जातीय आधार पर राजनीति बंद हो | समाज में सांप्रदायिक सद्भावना और शांति रहे

सांप्रदायिक और जातीय आधार पर राजनीति बंद हो | समाज में सांप्रदायिक सद्भावना और शांति रहे


8-दिन-उपवास क्रम का समापन दिवस | हाथरस से डॉ संदीप पाण्डेय का सन्देश
 
अनेक जन-मुद्दों पर,सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) ने लखनऊ में 8 दिन का उपवास क्रम अभियान आयोजित किया था (2-9 अक्टूबर 2020). यह उपवास सुबह से शाम तक रोजाना रहा और हर दिन लोगों से जुड़ें मुद्दे को उठाया गया. आज उपवास के अंतिम दिन, सांप्रदायिक सद्भावना का मुद्दा केंद्र बिंदु में रहा.

चैतरफा पड़ोसियों के साथ संबंध संकट में


प्रधान मंत्री ने अपने शुरुआती दिनों में खूब विदेश यात्राएं की। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे विदेश मंत्री का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाले हुए हैं जबकि वरिष्ठ नेत्री सुषमा स्चराज पूर्णकालिक विदेश मंत्री थीं। नरेन्द्र मोदी के समर्थकों ने कहना शुरु कर दिया कि प्रधान मंत्री की इन यात्राओं से दुनिया में भारत की साख बढ़ गई है। चीन, जापान, अमरीका जैसे बड़े देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ व्यक्तिगत सम्बंध भी उन्होंने प्रगाढ़ करने की कोशिश की। उनकी सबसे पहली विदेश यात्रा नेपाल की थी यह मानकर कि हिंदू बहुल देश को भारत विशेष महत्व देगा।

क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप भारी पड़ रहा है?

[English] भारत सरकार के भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) ने 2 जुलाई 2020 को कहा था कि 15 अगस्त 2020 (स्वतंत्रता दिवस) तक कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) से बचाव के लिए वैक्सीन के शोध को आरंभ और समाप्त कर, उसका "जन स्वास्थ्य उपयोग" आरंभ किया जाए. क्योंकि यह फरमान भारत सरकार के सर्वोच्च चिकित्सा शोध संस्था से आया था, इसलिए यह अत्यंत गंभीर प्रश्न खड़े करता है कि क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप ने ग्रहण लगा दिया है? भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद ने अगले दिन ही स्पष्टीकरण दिया कि उसने यह पत्र इस आशय से लिखा था कि वैक्सीन शोध कार्य में कोई अनावश्यक विलम्ब न हो. परन्तु सबसे बड़े सवाल तो अभी भी जवाब ढूंढ रहे हैं. पिछले सप्ताह एक संसदीय समिति को विशेषज्ञों ने बताया कि वैक्सीन संभवत: 2021 में ही आ सकती है (15 अगस्त 2020 तक नहीं).

निजी अस्पताल में सरकारी पैसे से इलाज की छूट लेकिन निजी परिवहन से यात्रा करने पर सरकारी लाभ से क्यों वंचित?

पिछले तीन माह में यह स्पष्ट हो गया है कि कोरोना वायरस महामारी को रोकने में सरकार लगभग हर मोर्चे पर असफल रही है। न केवल सरकार कोरोना वायरस संक्रमण के तेजी से बढ़ते फैलाव को रोकने में असमर्थ रही है बल्कि उसके ही कारण देश के अधिकाँश लोगों को संभवतः सबसे बड़ी अमानवीय त्रासदी झेलनी पड़ी है। सरकार की असंवेदनशील, अल्प-कालिक और संकीर्ण सोच के कारण करोड़ों लोगों के मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ। सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों ने वैज्ञानिकों और चिकित्सकों से सलाह नहीं ली जिसके कारण उसके अनेक निर्णय, नवीनतम शोध और प्रमाण पर आधारित नहीं रहे।