[English] जब तक रोग नियंत्रण और स्वास्थ्य-संबंधित अन्य जानकारियां सांकेतिक भाषा और ब्रेल लिपि में नहीं होगी तब तक हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि जो लोग सामान्य रूप से देख-सुन नहीं सकते, वह भी जागरूक हों, रोग से बचें और ज़रूरत पड़ने पर आवश्यक स्वास्थ्य सेवा से लाभान्वित हो सकें। जो लोग चलने में असमर्थ हैं उनके लिए पहियेदार कुर्सी (व्हीलचेयर) ज़रूरी है, स्वास्थ्य व्यवस्था में चढ़ने के लिए जीने की जगह (या जीने के साथ) रैंप या ढलान बनाना ज़रूरी है जिसपर पहिएदार कुर्सी सरलता और सुरक्षा के साथ आवागमन कर सके।
नेपाल में विकलांग लोगों के अधिकारों के लिए समर्पित युवा निशांत कुमार ने कहा कि जब हर स्तर पर स्वास्थ्यकर्मियों को सांकेतिक भाषा और ब्रेल लिपि नहीं आएगी या अनुवाद-सहयोग नहीं मिलेगा तो देखने-सुनने में असमर्थ लोग कैसे सेवा से लाभान्वित होंगे, और कैसे स्वास्थ्य संदेश उनतक पहुँचेंगे?
चढ़ने के लिए जीने के साथ यदि रैंप या ढलान है भी तो अक्सर वह इतनी खड़ी होती है कि ज़रूरतमंद व्यक्ति को पहियादार कुर्सी से उससे ऊपर जाना दुर्लभ है – और नीचे जाने में गति बढ़ने से चोट लग सकती है।
अक्सर पकड़ने के लिए दीवार में हैंडल-नुमा डंडा या ग्रिल (होल्डिंग बार) नहीं होता। इसके कारण अनेक लोगों को शौचालय से ले कर अनेक स्थानों पर बहुत समस्या आती है और चोटिल होने का जोखिम उठाना पड़ता है। बैठने की व्यवस्था भी अक्सर बहुत नीची होती है (सोफा-नुमा) जो अनेक रोगियों और विकलांग लोगों के लिए समस्या बनती है। अक्सर स्वास्थ्य सेवा केंद्रों पर पर्याप्त बैठने के जगह ही नहीं होती जिसके कारण बहुत देर तक खड़े रहने में असमर्थ लोग कष्ट में आते हैं।
विकलांग लोगों के जरूरतों को विकास मॉडल में मुख्यधारा बनायें
हाल ही में लोकप्रिय फ़िल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने मीडिया से साझा किया था कि बढ़ती उम्र के साथ होल्डिंग-बार (पकड़ने के लिए दीवार में लगे हैंडल-नुमा डंडे या ग्रिल) कितनी ज़रूरी है जिससे कि संतुलन खोने से कोई चोटिल न हो। उम्र के अलावा भी अन्य लोग जिन्हें ऐसी होल्डिंग-बार चाहिए वह सुरक्षा और सहूलियत की दृष्टि से स्वास्थ्य सेवा केंद्रों पर लगे होने चाहिए।
निशांत का कहना सही है कि जब संक्रमण नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य संदेश ब्रेल लिपि या सांकेतिक भाषा में उन लोगों तक नहीं पहुचेंगे जिन्हें देखने-सुनने की मुश्किल है तो संक्रमण का खतरा विकलांग लोगों को अधिक रहेगा – क्योंकि उन तक जानकारी और सेवा ही नहीं पहुँच पा रही है।
एक ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र में जहां सीढ़ियों के साथ-साथ रैंप या ढलान तो बनी हुई थी, पर वह इतनी खड़ी थी कि उसपर पहियादार कुर्सी चला कर व्यक्ति कैसे ऊपर जाएगा या नीचे आयेगा? समस्या और भी दुर्लभ हो गई थी क्योंकि दीवार में हाथ से पकड़ने वाले हैंडल-नुमा डंडे या ग्रिल नहीं लगे हुए थे।
निशांत कुमार, शी एंड राइट्स सत्र को संबोधित कर रहे थे जो ग्लोबल सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी एंड इंक्लूज़न और सीएनएस ने अनेक संगठनों के साथ आयोजित किया था। उन्होंने कहा कि जब तक सभी सरकारी और निजी विकास के मॉडल में हम विकलांग लोगों की ज़रूरतों को मुख्यधारा नहीं बनायेंगे तब तक हम अनेक प्रकार की विकलांगता के साथ जी रहे लोगों को हम भाँति-भाँति प्रकार की सेवाओं से वंचित रखेंगे।
मानसिक स्वास्थ्य मंडलियाँ
निशांत वाई-पीयर नेपाल संस्था से जुड़े हुए हैं जिसने विकलांग लोगों के लिए अनेक मानसिक स्वास्थ्य मंडलियाँ बनवायी हैं। इन मंडलियों में विकलांग लोग एक सुरक्षित और संवेदनशील वातावरण पाते हैं जिससे कि वह खुलकर अपनी बात साझा कर सकें और संवेदना के साथ सभी लोग एक दूसरे की सहायता कर सकें।
इन मंडलियों में, विकलांग युवाओं को शोषण, भेदभाव, अनेक प्रकार की जेंडर हिंसा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं को प्राप्त करने में आ रही दिक्कतों आदि को साझा करने में सहायता मिलती है और समाधान खोजने की भी संभावनाएं बढ़ती हैं। प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे अक्सर उठते रहते हैं।
इन मंडलियों में, विकलांग युवाओं को शोषण, भेदभाव, अनेक प्रकार की जेंडर हिंसा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं को प्राप्त करने में आ रही दिक्कतों आदि को साझा करने में सहायता मिलती है और समाधान खोजने की भी संभावनाएं बढ़ती हैं। प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे अक्सर उठते रहते हैं।
जब तक मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, विकलांग युवा समावेशी नहीं होंगी तब तक अघात झेल रहे विकलांग युवाओं को हम सहयोग और सेवा कैसे प्रदान कर पाएंगे?
निशांत ने कहा कि महिला हिंसा और अन्य प्रकार की जेंडर हिंसा झेल रही महिलाओं और अन्य विभिन्न जेंडर के लोगों को हिंसा के उपरांत जब सहायता चाहिए होती है, तो महिला हॉटलाइन, हेल्पलाइन, शेल्टर या आश्रय ग्रह, कानूनी सहायता, आदि में, अक्सर, न तो ब्रेल लिपि या सांकेतिक भाषा किसी को आती है, न ही रैंप या ढलान वहाँ मिलता है।
सुप्रिया राय जो एशिया इंडिजेनस यूथ पैक्ट से जुड़ी हैं, उन्होंने कहा कि मासिक धर्म स्वास्थ्य में सुधार एक बड़ा मुद्दा है। हालांकि मासिक धर्म पर चुप्पी टूटी है पर अभी भी अत्यंत कम चर्चा और संवाद होता है – और अनेक प्रकार की भ्रांतियां हम सब को ग्रसित करे हुए हैं।
एचआईवी के साथ जीवित लोगों के राष्ट्रीय समूह (एनसीपीआई प्लस) की सचिव पूजा मिश्रा ने कहा कि संगठन में बड़ी शक्ति है। उनके बीते सालों का अनुभव इस बात की पुष्टि करता है कि यदि संगठित और संवेदनशील समुदाय आपको समर्थन दे, तो सब मुमकिन है। अनेक सालों पहले वह एक ग्रामीण परिवेश में रहती थी और आज वह राष्ट्रीय मंच का संचालन कर रही हैं। यह आत्म-सशक्तिकरण सहजता से हो सकता है जब संगठित और संवेदनशील समुदाय आपके साथ खड़ा रहे।
जब एचआईवी और सिफ़िलिस संक्रमणों से बचाव मुमकिन है तो कोई भी बच्चा क्यों इनसे संक्रमित जन्में?
बिना सही इलाज और देखभाल के, एचआईवी पॉजिटिव महिला से बच्चे को एचआईवी संक्रमित होने का खतरा 45% रहता है जिसके कारण स्वास्थ्य और विकास पर कुपरिणाम और असामयिक मृत्यु का खतरा भी बना रहता है।
गर्भावस्था के दौरान सिफ़िलिस के कारण जन्मजात विसंगतियां हो सकती हैं, बच्चा मृत हो सकता है, समय से पहले जन्म ले सकता है, जन्म के समय बच्चे का वजन कम हो सकता है और जन्म के बाद भी असामयिक मृत्यु का खतरा बना रहता है।
2030 तक यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक भी बच्चा एचआईवी और सिफ़िलिस से संक्रमित न जन्में, अब लगभग 5 साल समय शेष है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि:
- महिला और उसके पुरुष साथी की एचआईवी, सिफ़िलिस और हेपेटाइटिस-बी की प्रसवपूर्व जांच हो
- महिला और उसके पुरुष साथी को एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफ़िलिस संबंधित सही इलाज और देखभाल मिले
- सुरक्षित स्वस्थ मातृत्व, गर्भावस्था और प्रसूति और बच्चे को सही पोषण मिले
- हेपेटाइटिस-बी टीकाकरण हो, इम्यूनो-ग्लोबुलिन और एचआईवी से बचाव के लिए दवाएं मिले।
संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में 14 लाख बच्चे एचआईवी के साथ जीवित हैं। इनमें से 9% (1.2 लाख) एशिया पसिफ़िक देशों में हैं।
एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में सबसे अधिक एचआईवी पॉजिटिव बच्चे इंडोनेशिया में हैं (26%) और उसके बाद भारत में हैं (23%).
एचआईवी के साथ जीवित युवाओं के वैश्विक संगठन (वाई प्लस ग्लोबल) की फेथ एबेरे अनूह ने कहा कि दुनिया के सिर्फ़ 21 देशों ने यह सुनिश्चित किया है कि उनके देश में कोई भी नवजात शिशु, एचआईवी और सिफिलिस से न संक्रमित जन्में।
फेथ ने कहा कि उनके देश नाइजीरिया ने यह लक्ष्य अभी हासिल नहीं किया है। नाइजीरिया में अत्यधिक काम होने की ज़रूरत है जिससे कि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी नवजात शिशु एचआईवी और सिफिलिस से संक्रमित न जन्में।
युगांडा राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर फोरम की मोनालिसा अकिंतोले ने कहा कि यदि हम द्विअधारी जेंडर को मापदंड बना के रहेंगे, और इसी आधार पर स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं को बनायेंगे और चलायेंगे, तब ट्रांसजेंडर लोग कहाँ जायेंगे? हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर जेंडर के युवा तक हम पहुँच रहे हों।
मोनालिसा का कहना है कि जब यह प्रमाणित है कि समुदाय द्वारा संचालित कार्यक्रम ट्रांसजेंडर और अन्य समुदाय तक अधिक पहुंचते हैं तो सरकारें इनमें निवेश क्यों नहीं करती?
सितंबर 2025 में 80वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में दुनिया के सभी देशों के अध्यक्ष शामिल होंगे और सतत विकास लक्ष्यों पर हुई प्रगति का मूल्यांकन करेंगे। आशा है कि स्वास्थ्य, जेंडर और मानवाधिकार संबंधित सतत विकास लक्ष्यों के मूल्यांकन में विभिन्न युवाओं द्वारा उठाए हुए ज़रूरी मुद्दे भी शामिल हो सकेंगे।
प्रकाशित:
- सीएनएस
- अपना छत्तीसगढ़, मुंगेली, छत्तीसगढ़
- द लीजेंड न्यूज़, मथुरा, उत्तर प्रदेश