बसंत

बसंत


बस अंत हुआ

सर्दीली रातों का
होठों से निकलते ही
धुआं हुई बातों का

पतझड़ के पत्तों से
बिखरते हुए सपनों का
मुह फेर कर जो चल दिए
ऐसे बेगाने अपनों का
बस अंत हुआ

तब ही तो बसंत हुआ


वसंत पंचमी की शुभकामनाओं सहित

शोभा शुक्ला
संपादिका
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस