भरावन, हरदोई में डी.ए.पी. खाद की कमी पर 25 नवम्बर को धरना प्रदर्शन
हाल ही में हमने देखा कि किस तरह गन्ना किसानों ने नई दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन किया। इसनें कोई दो राय नहीं कि उनका मुद्दा एकदम जायज है। नई आर्थिक नीति के दौर में जबकि प्रकृति से मुफ्त में मिलने वाले पानी को बोतल में बंद कर कम्पनियां मनमाने दाम पर बेचती हैं तो किसानों को तो अपनी मेहनत कर मूल्य तय करने का अधिकार होना ही चाहिए।
किन्तु कोई भी इस बात को मानेगा कि गन्ना से महत्वपूर्ण गेहुं है। गन्ना तो बड़े किसान बोते हैं जबकि गेहुं तो हर कोई बोता है जिसमें बड़ी संख्या में गरीब शामिल हैं। इस समय गेहुं की बुवाई के समय प्रयुक्त की जाने वाली डी.ए.पी. खाद की भारी कमी चल रही है। किसान के यहां त्राहि-त्राहि मची है। जैसा किसी भी सीमित मात्रा में उपलब्ध चीज के साथ होता है बड़े व प्रभावशाली लोग जो डी.ए.पी. खाद आई थी उसे ले गए। गरीब किसानों को एक बोरी भी न मिली। यह खाद आयात की जाती है। काण्डला बंदरगाह पर उतार कर रेलगाड़ी के माध्यम से लाई जाती है। खाद की कमी, माल रेल गाड़ियों का समय से उपलब्ध न हो पाना किसानों के लिए परेशानी का कारण बना है। खाद वितरण में अनियमितताओं के अलावा बड़े पैमाने पर कालाबाजारी भी होती है। कुछ खाद तो नेपाल पहुंच जाती है। सब्सिडी के बाद हमारे यहां यह खाद रू. 472 प्रति पचास किलो की बोरी मिलने का प्रावधान है। नेपाल में सब्सिडी न होने के कारण यही बोरी वहां रू. 200-300 अधिक में बिकती है। भारत के अंदर भी काले बाजार में यह बोरी रू. 700 में मिलती है।
25 नवम्बर, 2009, को हरदोई जिले स्थित भरावन विकास खण्ड के खाद वितरण केन्द्र पर किसानों का भारी प्रदर्शन होगा। किसान खाद के अलावा बीज की कमी भी झेल रहे हैं। नहरों में बिना पानी दिए राजस्व विभा्रग के कर्मचारी सिंचाई की जबरदस्ती वसूली करते हैं। इन सभी मुद्दों को लेकर किसान जुटेंगे।
जन आंदोंलनों का राष्ट्रीय समन्वय
लोक राजनीति मंच
सम्पर्कः संदीप पाण्डेय, फोन-0522 2347365. एस.आर. दारापुरी. मो.-9415164845. रामबाबू. मो.-9452144454
संत फ्रांसिस कॉलेज, लखनऊ, के १२५वीं वर्षगाँठ से पहले भूतपूर्व छात्रों के संघ की दिल्ली इकाई स्थापित
संत फ्रांसिस कॉलेज, लखनऊ, के १२५वीं वर्षगाँठ से पहले भूतपूर्व छात्रों के संघ की दिल्ली इकाई स्थापित
संत फ्रांसिस कॉलेज, लखनऊ, के १२५ वीं वर्षगाँठ से पहले भूतपूर्व छात्रों के संघ की दिल्ली इकाई, रविवार, १५ नवम्बर 2009 को दिल्ली में हुई बैठक में, स्थापित की गयी. संत फ्रांसिस कॉलेज के प्रधानाचार्य फादर पिंटो और वरिष्ठ अध्यापक श्री नरेश विग भी इस बैठक में उपस्थित थे. लगभग १०० से अधिक भूतपूर्व छात्रों ने इस दिल्ली इकाई की बैठक में भाग लिया.
संत फ्रांसिस कॉलेज लखनऊ, विश्व-विख्यात शैक्षिक प्रतिष्ठान है, जिसमें ३००० से अधिक छात्र वर्त्तमान में हर वर्ष पढ़ते हैं. भारतीय स्कूल सर्टीफिकेट परीक्षा सांसद से संत फ्रांसिस कॉलेज सम्बंधित है.
१९६२ में संत फ्रांसिस कॉलेज से पढ़े हुए और अब दिल्ली में स्थापित उद्योगपति श्री बिमल चड्ढा ने कहा "संत फ्रांसिस कॉलेज भूतपूर्व छात्रों के संघ की दिल्ली इकाई की स्थापना बैठक, विद्यालय के १२५ वें साल के समारोह की एक प्रारंभिक कड़ी है. हमें बहुत संतुष्टि है कि इतने सारे भूतपूर्व छात्र आज दिल्ली में एकत्रित हुए और हमें उम्मीद है कि अगले साल लखनऊ में १२५वीं सालगिरह में भूतपूर्व छात्र भारी मात्रा में शामिल होंगे"।
संत फ्रांसिस कॉलेज के प्रधानाचार्य फादर पिंटो ने कहा "मैं संत फ्रांसिस कॉलेज के भूतपूर्व छात्रों के संघ की दिल्ली इकाई की बैठक में शामिल हो कर अत्यन्त गौरवान्वित हुआ हूँ"। फादर पिंटो ने कहा "मुझे आशा है कि दुनिया में अन्य शहरों में भी संत फ्रांसिस कॉलेज के भूतपूर्व छात्रों के संघ की इकाई मजबूती से बनेगी"।
हाल ही में संत फ्रांसिस कॉलेज के ही प्रांगड़ में १ नवम्बर 2009 को सफल बैठक हुई थी जिसमें भारी मात्रा में भूतपूर्व छात्रों ने भाग लिए था.
संत फ्रांसिस कॉलेज, अपने १२५ साल २०१० में पूरा कर रहा है. ऐसी सम्भावना है कि दुनियाभर से संत फ्रांसिस कॉलेज के भूतपूर्व छात्र इस अवसर पर लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
श्री बिमल चड्ढा (दिल्ली)
फ़ोन: ९९९९ ०० ७७७ १
संत फ्रांसिस कॉलेज, लखनऊ, के १२५ वीं वर्षगाँठ से पहले भूतपूर्व छात्रों के संघ की दिल्ली इकाई, रविवार, १५ नवम्बर 2009 को दिल्ली में हुई बैठक में, स्थापित की गयी. संत फ्रांसिस कॉलेज के प्रधानाचार्य फादर पिंटो और वरिष्ठ अध्यापक श्री नरेश विग भी इस बैठक में उपस्थित थे. लगभग १०० से अधिक भूतपूर्व छात्रों ने इस दिल्ली इकाई की बैठक में भाग लिया.
संत फ्रांसिस कॉलेज लखनऊ, विश्व-विख्यात शैक्षिक प्रतिष्ठान है, जिसमें ३००० से अधिक छात्र वर्त्तमान में हर वर्ष पढ़ते हैं. भारतीय स्कूल सर्टीफिकेट परीक्षा सांसद से संत फ्रांसिस कॉलेज सम्बंधित है.
१९६२ में संत फ्रांसिस कॉलेज से पढ़े हुए और अब दिल्ली में स्थापित उद्योगपति श्री बिमल चड्ढा ने कहा "संत फ्रांसिस कॉलेज भूतपूर्व छात्रों के संघ की दिल्ली इकाई की स्थापना बैठक, विद्यालय के १२५ वें साल के समारोह की एक प्रारंभिक कड़ी है. हमें बहुत संतुष्टि है कि इतने सारे भूतपूर्व छात्र आज दिल्ली में एकत्रित हुए और हमें उम्मीद है कि अगले साल लखनऊ में १२५वीं सालगिरह में भूतपूर्व छात्र भारी मात्रा में शामिल होंगे"।
संत फ्रांसिस कॉलेज के प्रधानाचार्य फादर पिंटो ने कहा "मैं संत फ्रांसिस कॉलेज के भूतपूर्व छात्रों के संघ की दिल्ली इकाई की बैठक में शामिल हो कर अत्यन्त गौरवान्वित हुआ हूँ"। फादर पिंटो ने कहा "मुझे आशा है कि दुनिया में अन्य शहरों में भी संत फ्रांसिस कॉलेज के भूतपूर्व छात्रों के संघ की इकाई मजबूती से बनेगी"।
हाल ही में संत फ्रांसिस कॉलेज के ही प्रांगड़ में १ नवम्बर 2009 को सफल बैठक हुई थी जिसमें भारी मात्रा में भूतपूर्व छात्रों ने भाग लिए था.
संत फ्रांसिस कॉलेज, अपने १२५ साल २०१० में पूरा कर रहा है. ऐसी सम्भावना है कि दुनियाभर से संत फ्रांसिस कॉलेज के भूतपूर्व छात्र इस अवसर पर लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे.
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श्री बिमल चड्ढा (दिल्ली)
फ़ोन: ९९९९ ०० ७७७ १
भारतीय शल्य-चिकित्सकों के संगठन के प्रोफ़ेसर डॉ रमा कान्त अब राज्य अध्यक्ष
भारतीय शल्य-चिकित्सकों के संगठन के प्रोफ़ेसर डॉ रमा कान्त अब राज्य अध्यक्ष
लखनऊ के प्रतिष्ठित शल्य-चिकित्सक एवं छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर डॉ रमा कान्त ने अब भारतीय शल्य-चिकित्सकों के संगठन के राज्य अध्यक्ष का कार्य भार संभाल लिया है। असोसिएशन ऑफ़ सर्जन्स ऑफ़ इंडिया की उ०प्र० इकाई के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ राजीव सिन्हा ने प्रोफ़ेसर डॉ रमा कान्त को अध्यक्ष पद का कार्यभार सौंपा।
प्रो० डॉ रमा कान्त कई सालों से लखनऊ कॉलेज ऑफ़ सर्जन्स के अध्यक्ष रहे हैं और अब प्रदेश के सर्जनों का भी नेतृत्व करेंगे। प्रो० डॉ रमा कान्त से पहले लखनऊ से कई अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सर्जन इस पद को सम्मानित कर चुके हैं जिनमें विश्व-विख्यात प्रो० पी०सी० दुबे, प्रो० एन०सी० मिश्रा प्रमुख हैं। प्रो० रमा कान्त १९९० के दशक में भारतीय सर्जनों के संगठन की एंडोकराइन सर्जनों के समूह के राष्ट्रीय सह-सचिव रह चुके हैं।
प्रो० रमा कान्त को अध्यक्ष पद, ३५वें भारतीय सर्जनों के संगठन की उ०प्र० इकाई के वार्षिक अधिवेशन के समापन समारोह में सौंपा गया.
"मेरे अध्यक्ष काल में उ०प्र० के सर्जनों को जन-स्वास्थ्य के लाभ के लिए संघठित करने का पूरा प्रयास रहेगा जिसमें प्रदेश भर में सर्जनों के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों आदि के जरिये आधुनिक, सरल एवं प्रभावकारी शल्य-क्रिया को बढ़ावा मिलेगा। अलग-अलग विशेषताओं के सर्जनों द्वारा यह प्रशिक्षण प्रदान किए जायेंगे" कहना है प्रो० रमा कान्त का।
प्रो० रमा कान्त ने भारतीय सर्जनों के संगठन के राज्य सचिव डॉ एस.के मिश्रा में विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि "सबके भरसक प्रयासों एवं सहयोग की वजह से ही भारतीय सर्जनों के संगठन की उ०प्र० इकाई को सर्वश्रेष्ठ इकाई का पुरुस्कार इस वर्षा मिला है"।
प्रो० रमा कान्त, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महा-निदेशक द्वारा पुरुस्कृत (२००५) हैं और हाल ही में लखनऊ में संपन्न हुई ३५वें भारतीय सर्जनों के संगठन की उ०प्र० इकाई के वार्षिक अधिवेशन के वें अध्यक्ष भी थे।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: ९४१५००७२९९
लखनऊ के प्रतिष्ठित शल्य-चिकित्सक एवं छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर डॉ रमा कान्त ने अब भारतीय शल्य-चिकित्सकों के संगठन के राज्य अध्यक्ष का कार्य भार संभाल लिया है। असोसिएशन ऑफ़ सर्जन्स ऑफ़ इंडिया की उ०प्र० इकाई के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ राजीव सिन्हा ने प्रोफ़ेसर डॉ रमा कान्त को अध्यक्ष पद का कार्यभार सौंपा।
प्रो० डॉ रमा कान्त कई सालों से लखनऊ कॉलेज ऑफ़ सर्जन्स के अध्यक्ष रहे हैं और अब प्रदेश के सर्जनों का भी नेतृत्व करेंगे। प्रो० डॉ रमा कान्त से पहले लखनऊ से कई अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सर्जन इस पद को सम्मानित कर चुके हैं जिनमें विश्व-विख्यात प्रो० पी०सी० दुबे, प्रो० एन०सी० मिश्रा प्रमुख हैं। प्रो० रमा कान्त १९९० के दशक में भारतीय सर्जनों के संगठन की एंडोकराइन सर्जनों के समूह के राष्ट्रीय सह-सचिव रह चुके हैं।
प्रो० रमा कान्त को अध्यक्ष पद, ३५वें भारतीय सर्जनों के संगठन की उ०प्र० इकाई के वार्षिक अधिवेशन के समापन समारोह में सौंपा गया.
"मेरे अध्यक्ष काल में उ०प्र० के सर्जनों को जन-स्वास्थ्य के लाभ के लिए संघठित करने का पूरा प्रयास रहेगा जिसमें प्रदेश भर में सर्जनों के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों आदि के जरिये आधुनिक, सरल एवं प्रभावकारी शल्य-क्रिया को बढ़ावा मिलेगा। अलग-अलग विशेषताओं के सर्जनों द्वारा यह प्रशिक्षण प्रदान किए जायेंगे" कहना है प्रो० रमा कान्त का।
प्रो० रमा कान्त ने भारतीय सर्जनों के संगठन के राज्य सचिव डॉ एस.के मिश्रा में विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि "सबके भरसक प्रयासों एवं सहयोग की वजह से ही भारतीय सर्जनों के संगठन की उ०प्र० इकाई को सर्वश्रेष्ठ इकाई का पुरुस्कार इस वर्षा मिला है"।
प्रो० रमा कान्त, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महा-निदेशक द्वारा पुरुस्कृत (२००५) हैं और हाल ही में लखनऊ में संपन्न हुई ३५वें भारतीय सर्जनों के संगठन की उ०प्र० इकाई के वार्षिक अधिवेशन के वें अध्यक्ष भी थे।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: ९४१५००७२९९
यू.पी.ऐसिकोन २००९: शल्य-चिकित्सकों ने बड़े ऑपरेशन छोटे या बिना चीरा लगा कर किए
यू.पी.ऐसिकोन २००९: शल्य-चिकित्सकों ने बड़े ऑपरेशन छोटे या बिना चीरा लगा कर किए
ए.एस.आई. की यू.पी. इकाई की तीन दिवसीय ३५ वीं वार्षिक संगोष्टी, (यू.पी.ऐसिकोन २००९) आज लखनऊ में आरम्भ हुई। इस वर्ष इस संगोष्टी का आयोजन, लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के शल्य चिकित्सा विभाग, और सेल्सी, यू.पी.इकाई के संयुक्त तत्वाधान में, डा. रमा कान्त की अध्यक्षता में और डा पाहवा तथा डॉ. सुरेश कुमार के प्रबंधन में किया जा रहा है।
कांफ्रेंस के प्रथम दिन शल्यक्रिया कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें सिंगल पोर्ट सर्जरी (एक चीरे से की जाने वाली शल्य क्रिया), एवं नोट्स ( मुख, मूत्र मार्ग अथवा गुदा के मार्ग से की जाने वाली शल्य क्रिया) के माध्यम से गर्भाशय, पित्त- थैली एवं हर्निया के ऑपरेशन किए गए.
इस अधिवेशन में भाग लेने के लिए आए लगभग ५०० चिकित्सकों को मिनिमल एक्सेस सर्जरी ( सूक्ष चीरे के द्वारा होने वाली शल्यक्रिया) की नवीनतम विधाओं से परिचित होने का सुअवसर मिला। इस कार्यशाला का लाभ उन मध्यम वर्गीय मरीजों को भी मिला जिनका ऑपरेशन, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त दिग्गजों ने किया।
इस कार्यशाला में प्रसिद्ध शल्य चिकित्सकों का हस्त कौशल देखने को मिला, जिन्होनें ‘बड़े ऑपरेशन छोटे या बिना चीरा लगा कर किए’।
मुंबई से आए डा. प्रकाश राव, (जिन्हें भारत में सिंगल पोर्ट सर्जरी का जनक कहा जाता है) ने बिना चीरा लगाए, पित्त की थैली का ऑपरेशन किया।
पुणे के डा शैलेश ने सिंगल पोर्ट के द्वारा एक ३५ वर्षीय महिला के गर्भाशय की शल्यक्रिया करी।
उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध लेप्रोस्कोपिक सर्जन डा मौर्या ने एक नयी विधा ‘एन.डी.वी.एच.’ के द्वारा गर्भाशय का ऑपरेशन किया।
दूरबीन विधि से हर्निया के ऑपरेशन दिल्ली के आयुर्विज्ञान संस्थान से आए डा मिश्रा ने किए।
बगैर चीरा लगाए, एक अत्याधुनिक विधि के द्वारा बवासीर का इलाज करने में सिद्धहस्त, डा रमा कान्त ने भी अपने कौशल का परिचय इस कार्यशाला में दिया। इस विधि में रोगी कुछ ही घंटे अस्पताल में रह कर, दूसरे दिन से ही सामान्य रूप से कार्य कर सकता है।
इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य है कि शल्यक्रिया की ये असाधारण विधाएं, सादारण जनता तक पहुँच सकें। जब अधिक से अधिक संख्या में शल्य चिकित्सक, इन नयी विधाओं को अपना कर जन साधारण को इनसे होने वाले लाभ के बारे अवगत करायेंगे, तब शल्य चिकित्सा की ये नवीनतम उपलब्धियों का लाभ गरीब रोगियों तक पहुँच पायेगा।
हालांकि, सूक्ष्म चीरे वाली शल्यक्रिया, परम्परागत शल्यक्रिया के मुकाबले महंगी मानी जाती है, परन्तु इसके अनेक लाभ हैं। डा पाहवा के अनुसार, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से की गयी शल्यक्रिया में ऊतकों का क्षय कम होता है , ऑपरेशन के उपरांत पीड़ा भी कम होती है, अस्पताल में रोगी को कम समय के लिए रहना पड़ता है और वो अपनी दिनचर्या पर जल्द से जल्द वापस लौट सकता है। इस प्रकार यह प्रक्रिया वास्तव में, रोगी के लिए अधिक आराम देह और कम खर्चीली साबित होती है।
सी.एस.एम.एम.यू. जैसे अस्पतालों में आने वाले ६० से ७०% मरीज़, गरीब होते हैं। अत: इस प्रकार की कार्यशाला से शल्य क्रिया की नयी विधाओं को सभी के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है। डा रमा कान्त के शब्दों में ‘ कुछ बड़ा हासिल करने के लिए, बड़ा सोचना भी पड़ता है। यह संगोष्ठी, हम सभी की सोच को एक नयी दिशा देने में सक्षम होगी।'
ए.एस.आई. की यू.पी. इकाई की तीन दिवसीय ३५ वीं वार्षिक संगोष्टी, (यू.पी.ऐसिकोन २००९) आज लखनऊ में आरम्भ हुई। इस वर्ष इस संगोष्टी का आयोजन, लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के शल्य चिकित्सा विभाग, और सेल्सी, यू.पी.इकाई के संयुक्त तत्वाधान में, डा. रमा कान्त की अध्यक्षता में और डा पाहवा तथा डॉ. सुरेश कुमार के प्रबंधन में किया जा रहा है।
कांफ्रेंस के प्रथम दिन शल्यक्रिया कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें सिंगल पोर्ट सर्जरी (एक चीरे से की जाने वाली शल्य क्रिया), एवं नोट्स ( मुख, मूत्र मार्ग अथवा गुदा के मार्ग से की जाने वाली शल्य क्रिया) के माध्यम से गर्भाशय, पित्त- थैली एवं हर्निया के ऑपरेशन किए गए.
इस अधिवेशन में भाग लेने के लिए आए लगभग ५०० चिकित्सकों को मिनिमल एक्सेस सर्जरी ( सूक्ष चीरे के द्वारा होने वाली शल्यक्रिया) की नवीनतम विधाओं से परिचित होने का सुअवसर मिला। इस कार्यशाला का लाभ उन मध्यम वर्गीय मरीजों को भी मिला जिनका ऑपरेशन, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त दिग्गजों ने किया।
इस कार्यशाला में प्रसिद्ध शल्य चिकित्सकों का हस्त कौशल देखने को मिला, जिन्होनें ‘बड़े ऑपरेशन छोटे या बिना चीरा लगा कर किए’।
मुंबई से आए डा. प्रकाश राव, (जिन्हें भारत में सिंगल पोर्ट सर्जरी का जनक कहा जाता है) ने बिना चीरा लगाए, पित्त की थैली का ऑपरेशन किया।
पुणे के डा शैलेश ने सिंगल पोर्ट के द्वारा एक ३५ वर्षीय महिला के गर्भाशय की शल्यक्रिया करी।
उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध लेप्रोस्कोपिक सर्जन डा मौर्या ने एक नयी विधा ‘एन.डी.वी.एच.’ के द्वारा गर्भाशय का ऑपरेशन किया।
दूरबीन विधि से हर्निया के ऑपरेशन दिल्ली के आयुर्विज्ञान संस्थान से आए डा मिश्रा ने किए।
बगैर चीरा लगाए, एक अत्याधुनिक विधि के द्वारा बवासीर का इलाज करने में सिद्धहस्त, डा रमा कान्त ने भी अपने कौशल का परिचय इस कार्यशाला में दिया। इस विधि में रोगी कुछ ही घंटे अस्पताल में रह कर, दूसरे दिन से ही सामान्य रूप से कार्य कर सकता है।
इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य है कि शल्यक्रिया की ये असाधारण विधाएं, सादारण जनता तक पहुँच सकें। जब अधिक से अधिक संख्या में शल्य चिकित्सक, इन नयी विधाओं को अपना कर जन साधारण को इनसे होने वाले लाभ के बारे अवगत करायेंगे, तब शल्य चिकित्सा की ये नवीनतम उपलब्धियों का लाभ गरीब रोगियों तक पहुँच पायेगा।
हालांकि, सूक्ष्म चीरे वाली शल्यक्रिया, परम्परागत शल्यक्रिया के मुकाबले महंगी मानी जाती है, परन्तु इसके अनेक लाभ हैं। डा पाहवा के अनुसार, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से की गयी शल्यक्रिया में ऊतकों का क्षय कम होता है , ऑपरेशन के उपरांत पीड़ा भी कम होती है, अस्पताल में रोगी को कम समय के लिए रहना पड़ता है और वो अपनी दिनचर्या पर जल्द से जल्द वापस लौट सकता है। इस प्रकार यह प्रक्रिया वास्तव में, रोगी के लिए अधिक आराम देह और कम खर्चीली साबित होती है।
सी.एस.एम.एम.यू. जैसे अस्पतालों में आने वाले ६० से ७०% मरीज़, गरीब होते हैं। अत: इस प्रकार की कार्यशाला से शल्य क्रिया की नयी विधाओं को सभी के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है। डा रमा कान्त के शब्दों में ‘ कुछ बड़ा हासिल करने के लिए, बड़ा सोचना भी पड़ता है। यह संगोष्ठी, हम सभी की सोच को एक नयी दिशा देने में सक्षम होगी।'
प्रथम विश्व निमोनिया दिवस, २ नवम्बर २००९: निमोनिया जनित मृत्यु दर को घटाने के लिए प्रतिबद्धता जरूरी
प्रथम विश्व निमोनिया दिवस, २ नवम्बर २००९
निमोनिया जनित मृत्यु दर को घटाने के लिए प्रतिबद्धता जरूरी
निमोनिया से २० लाख बच्चों (५ साल से कम उम्र) की मौत प्रति वर्ष होती है। जबकि निमोनिया का इलाज सस्ता एवं हर जगह उपलब्ध है - न तो निमोनिया के लिए वैक्सीन शोध चाहिए, न नई दवाएं, न नई जांचे, क्योंकि प्रभावकारी इलाज सस्ता है और उपलब्ध भी। इसके बावजूद भी २० लाख बच्चों की मौत प्रति वर्ष निमोनिया से होती है।
"निमोनिया होने पर फेफड़ों में हवा की थैलियों में संक्रमण या बलगम भर जाता है। गम्भीर निमोनिया घातक भी हो सकती है" कहना है प्रोफ़ेसर (डॉ) रमा कान्त का, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार (२००५) प्राप्त चिकित्सक हैं और लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय में सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।
"निमोनिया के लक्षण हैं: सामान्य से अधिक तेज़ सांस या सांस लेने में परेशानी, सांस लेते या खांसते समय छाती में दर्द, खांसी के साथ पीले, हरे या जंग के रंग का बलगम, बुखार, कंपकंपी या ठंड लगना, पसीना आना, होंठ या नाखून नीले होना आदि" कहना है डॉ रमा कान्त का।
निमोनिया की जांच - "स्पूटम कल्चर" - अधिकांश स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्ध होती है। "इसके बावजूद भी निमोनिया से हर १५ सेकंड में एक बच्चा मर जाता है, जो बेहद खेद की बात है" कहना है प्रोफ़ेसर डॉ० रमा कान्त का।
"आख़िर निमोनिया से बच्चे क्यों मर रहे हैं" यही सवाल जन-स्वास्थ्य पर कार्यरत संस्थाओं को आतंकित करता रहा है जिसके कारणवश इस वर्ष २ नवम्बर २००९ को सर्वप्रथम विश्व निमोनिया दिवस मनाया जा रहा है। तपेदिक (टी.बी.) एवं अन्य फेफड़े के उन्मूलन के लिए समर्पित अंतर्राष्ट्रीय संस्था (इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्टटुबेर्कुलोसिस एंड लंग डिसीस - "द यूनियन") भी निमोनिया की रोकधाम एवं उन्मूलन के लिए समर्पित है।
द यूनियन के एक शोध में पाया गया कि ६८ ऐसे देशों में हुआ जहाँ निमोनिया का मृत्यु दर अधिक है, सिर्फ़ ३२ प्रतिशत ऐसे बच्चों को ही उचित दवा मिल पाती है जिनको निमोनिया होने की सम्भावना होती है। ६८ प्रतिशत बच्चे जिन्हें निमोनिया होनी की शंका होती है, निमोनिया के उपचार की दवा से वंचित रहते हैं। यह अत्यन्त दुःखदाई बात है क्योंकि निमोनिया का उपचार सस्ता है और स्वास्थ्य केन्द्रों में उपलब्ध भी।
यदि विश्व को सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (मिलिनिम डेवेलपमेंट गोल) हासिल करना है कि २०१५ तक बच्चों में मृत्यु दर ५० प्रतिशत कम हो सके, तो निमोनिया नियंत्रण एवं उन्मूलन के लिए कार्यक्रमों को प्रभावकारी ढंग से लागू करना अनिवार्य है।
निमोनिया जनित मृत्यु दर को घटाने के लिए प्रतिबद्धता जरूरी
निमोनिया से २० लाख बच्चों (५ साल से कम उम्र) की मौत प्रति वर्ष होती है। जबकि निमोनिया का इलाज सस्ता एवं हर जगह उपलब्ध है - न तो निमोनिया के लिए वैक्सीन शोध चाहिए, न नई दवाएं, न नई जांचे, क्योंकि प्रभावकारी इलाज सस्ता है और उपलब्ध भी। इसके बावजूद भी २० लाख बच्चों की मौत प्रति वर्ष निमोनिया से होती है।
"निमोनिया होने पर फेफड़ों में हवा की थैलियों में संक्रमण या बलगम भर जाता है। गम्भीर निमोनिया घातक भी हो सकती है" कहना है प्रोफ़ेसर (डॉ) रमा कान्त का, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार (२००५) प्राप्त चिकित्सक हैं और लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय में सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।
"निमोनिया के लक्षण हैं: सामान्य से अधिक तेज़ सांस या सांस लेने में परेशानी, सांस लेते या खांसते समय छाती में दर्द, खांसी के साथ पीले, हरे या जंग के रंग का बलगम, बुखार, कंपकंपी या ठंड लगना, पसीना आना, होंठ या नाखून नीले होना आदि" कहना है डॉ रमा कान्त का।
निमोनिया की जांच - "स्पूटम कल्चर" - अधिकांश स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्ध होती है। "इसके बावजूद भी निमोनिया से हर १५ सेकंड में एक बच्चा मर जाता है, जो बेहद खेद की बात है" कहना है प्रोफ़ेसर डॉ० रमा कान्त का।
"आख़िर निमोनिया से बच्चे क्यों मर रहे हैं" यही सवाल जन-स्वास्थ्य पर कार्यरत संस्थाओं को आतंकित करता रहा है जिसके कारणवश इस वर्ष २ नवम्बर २००९ को सर्वप्रथम विश्व निमोनिया दिवस मनाया जा रहा है। तपेदिक (टी.बी.) एवं अन्य फेफड़े के उन्मूलन के लिए समर्पित अंतर्राष्ट्रीय संस्था (इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्टटुबेर्कुलोसिस एंड लंग डिसीस - "द यूनियन") भी निमोनिया की रोकधाम एवं उन्मूलन के लिए समर्पित है।
द यूनियन के एक शोध में पाया गया कि ६८ ऐसे देशों में हुआ जहाँ निमोनिया का मृत्यु दर अधिक है, सिर्फ़ ३२ प्रतिशत ऐसे बच्चों को ही उचित दवा मिल पाती है जिनको निमोनिया होने की सम्भावना होती है। ६८ प्रतिशत बच्चे जिन्हें निमोनिया होनी की शंका होती है, निमोनिया के उपचार की दवा से वंचित रहते हैं। यह अत्यन्त दुःखदाई बात है क्योंकि निमोनिया का उपचार सस्ता है और स्वास्थ्य केन्द्रों में उपलब्ध भी।
यदि विश्व को सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (मिलिनिम डेवेलपमेंट गोल) हासिल करना है कि २०१५ तक बच्चों में मृत्यु दर ५० प्रतिशत कम हो सके, तो निमोनिया नियंत्रण एवं उन्मूलन के लिए कार्यक्रमों को प्रभावकारी ढंग से लागू करना अनिवार्य है।
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