देश के तमाम गैर-सरकारी संगठन आम लोगों के बीच हर तरह के मुद्दों पर काम कर रही हैं और उनके काम-काज का सीधा वास्ता आम जन से है। कुछ संगठन ऐसे भी हैं जो सूचना के अधिकार जैसे कानून पर काम कर रहे हैं। यहां एक अहम सवाल उठता है कि आम लोगों के बीच और आम लोगों के लिए काम करने वाले संगठनों के पारदर्शिता व जवाबदेही तय किया जाना चाहिए। मैंने इस दिशा में एक शुरूआती प्रयास करते हुए दिल्ली व देश के अन्य हिस्सों में सूचना के अधिकार के अधिकार कानून पर काम कर रहे संगठनों से उनके आय-व्यय का ब्यौरा तथा काम-काज से संबंधित जानकारी मांगी ताकि जो सूचना के अधिकार कानून पर काम करने वाले संगठन हैं, उनके काम-काज को समाज के सामने लाया जा सके, जिससे लोगों को बताया जा सके कि हम न सिर्फ पारदर्शिता की वकालत करते हैं, बल्कि अपनी निजी जीवन और काम-काज के मामलों में भी पारदर्शी हैं। सर्वप्रथम सूचना के अधिकार कानून पर काम करने वालों को अवार्ड देने वाली संस्था पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दिया। 30 दिन के तय सीमा के बाद भी जब सूचना प्राप्त नहीं हुई तो प्रथम अपील किया। प्रथम अपील के बाद जो सूचना प्राप्त हुई उसमें पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन ने आधी-अधूरी सूचना देते हुए बताया कि हमारी संस्था सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आती हैं।
इसके बाद हमने सूचना के अधिकार कानून पर काम कर रहे अन्य संगठनों से उनके आय-व्यय का ब्यौरा तथा काम-काज से संबंधित जानकारी मांगी।
सर्वप्रथम जोश नामक संस्था ने आय-व्यय का ब्यौरा उपलब्ध कराते हुए वर्ष 2008 और वर्ष 2009 का बैलेंस सीट और सूचना के अधिकार कानून के धारा-4 के तहत 17 बिन्दुओं पर सूचना उपलब्ध कराई। उसके बाद नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल्स राईट टू इन्फोर्मेशन ने भी सम्पूर्ण सूचना उपलब्ध कराई।
उसके बाद राजस्थान का मजदूर किसान शक्ति संगठन ने समस्त सूचनाएं उपलब्ध कराते हुए बताया कि हमारी सूचनाएं बिना आवेदन के भी सबके लिए खुली है। दिल्ली की पारदर्शिता ने दस रूपये का पोस्टल ऑर्डर लौटाते हुए बताया कि हम पब्लिक ओथिरिती नहीं हैं। लेकिन हम सूचना के अधिकार पर कार्य कर रहे हैं और पारदर्शिता की वकालत करते हैं। इस प्रकार इन्होंने भी समस्त सूचनाएं उपलब्ध कराई, पर कुछ जानकारी आधी-अधूरी रही। प्रिया नामक संस्था ने बताया कि हम पब्लिक ओथिरिती नहीं है, क्योंकि राज्य केंद्र सरकार से फंड नहीं लेते। इसलिए आपको सूचना देने सक्षम नहीं हैं। आगे उन्होंने अपनी आय-व्यय का ब्यौरा देखने हेतु वार्षिक रिपोर्ट भेजने की बात कही, पर अब तक कोई रिपोर्ट उन्होंने नहीं भेजी है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राईट्स इनीशिएटिव ने बताया कि हम स्वतंत्र, अलाभकारी गैर सरकारी संगठन हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के तहत हम पब्लिक ओथिरीटी नहीं हैं। हमारे काम और हमारे पब्लिकेशन में दिलचस्पी दिखाने के लिए शुक्रिया। इसके अलावा इन्होंने सूचना के अधिकार पर अपनी पब्लिकेशन की कई पुस्तकें भी भेजी।
कबीर नामक संस्था ने बताया कि कबीर की पूरी टीम पारदर्शिता में विश्वास रखती है और हमारा ये मानना है कि पारदर्शिता किसी कानून के प्रावधानों से ऊपर है। इस प्रकार उन्होंने अपने लगभग डेढ़ करोड़ रूपये आय का ब्यौरा तो दे दिया, पर खर्च का ब्यौरा उपलब्ध न करा सके। बाकी प्रश्नों का जवाब देना भी इन्होंने मुनासिब नहीं समझा।
सतर्क नागरिक संगठन का कहना है कि सतर्क नागरिक संगठन एक गैर सरकारी संगठन है, जो सूचना के अधिकार की धारा-2 (ज) के तहत ‘लोक प्राधिकारी’ नहीं माना जाएगा, क्योंकि यह संगठन सरकार द्वारा वित्तपोषित नहीं है। लेकिन इसके बावजूद इस संस्था ने समस्त सूचनाएं उपलब्ध कराईं। बस धारा-4 पर सूचना उपलब्ध नहीं करा सके। इस पर इनका कहना है कि हम पर धारा-4 लागू नहीं होता।
आवेदन देने के लगभग 60 दिनों के बाद सबसे आखिर में परिवर्तन ने अपनी सूचना उपलब्ध कराई। इनका कहना था कि सूचना का अधिकार हम पर लागू नहीं होता। परिवर्तन एक जन आन्दोलन है जो कि एक रजिस्टर्ड एन.जी.ओ. भी नहीं है। परिवर्तन को कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलता है। इसके बाद आधी-अधूरी सूचना उपलब्ध कराकर अपनी पारदर्शिता दिखा दी।
इस प्रकार जहां कुछ संगठनों ने आधी-अधूरी जानकारी दी है, वहीं कुछ संगठनों ने सूचना देने से एकदम से इंकार कर दिया है और कुछ ने अपनी पूरी पारदर्शिता भी दिखाई है। आज सूचना के अधिकार कानून को नाफिज हुए पांच साल मुकम्मल हो चुके हैं। इस अवसर पर भारत सरकार से अनुरोध है कि कृपा करके इन गैर-सरकारी संगठनों को भी सूचना के अधिकार कानून के दायरे में लाया जाए और सूचना का अधिकार पर कार्य करने वाले गैर-सरकारी संगठनों से भी अनुरोध है कि वो स्वयं को सूचना के अधिकार के दायरे माने ताकि सूचना का अधिकार कानून और व्यापक व प्रभावशाली बन सके।
अफरोज आलम ‘साहिल’