सरपंच के ब्यौरे से लेकर प्रधानमन्त्री की कार्यवाई तक का खुलासा

मुझे याद है जब मैं पहली बार १९९९ में अपनी ग्राम पंचायत मल्हनी देवरिया के विकास सम्बन्धी खर्चों की जानकारी प्राप्त करने के लिए तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी श्री मुकेश मेंश्राम जी को आवेदन किया था, तब के .प्र. में सूचना के अधिकार का कानून नहीं था लेकिन पंचायतराज कानून के तहत हमने जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया था लेकिन मुझे बार-बार चक्कर लगाने के बाद भी जानकारियाँ नहीं उपलब्ध कराई गई, पर संघर्ष जारी रहा, यह जान कर काफी ख़ुशी हुई कि देश में जगह जगह इस तरह के संघर्ष चल रहे हैं जिसमें तमाम जाने - माने नागरिक अपनी भूमिका में लगे रहे हैं। समय बीतता गया संघर्ष अपनी मजबूती की तरफ बढ़ता रहा, जनता ने अपने हक को जानने के लिए नये - नये तरीके ईजाद कर एक जन अभियान का शक्ल देने लगी, इस पूरे जन अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर संगठित करने में श्रीमती अरुणाराय उनके साथी मजदूर किसान शक्ति संगठन के वैनर तले राजस्थान से शुरू कर पूरे देश में फैलाते रहे, राष्ट्रिय स्तर पर एक मंच एन. सी.आर.आर.आई. भी कार्य करने लगा, २००२ के बाद यह जन अभियान जैसे दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल .प्र. डॉ. संदीप पाण्डेय महाराष्ट में श्री अन्ना हजारे जी एवं तमाम अन्य व्यक्ति, संगठन इस जन अभियान को जनता के साथ मिलकर बढाने लगे, जगह - जगह सूचना पाने के लिए लड़ाईयां तेज होने लगी तथा लोग कहाँ क्या हो रहा है जानने के लिए संघर्ष करने लगे।

संघर्ष का ही परिणाम रहा कि २००५ में उपरोक्त अधिनियम को इस देश की संसद ने जन दबाव में जनता के लिए जनता के सामने कानून के रूप में रखा एवं उसकों कानूनी शक्ल दिया। यह वो समय था जब पहली बार लगा कि देश में आजादी का भी एक मतलब होता है वही दूसरी तरफ वषों से जनता का खून चूस रहे था शहीदों को अप्रत्यक्ष गाली देने वाले नौकरशाह इससे बचने के लिये नये - नये तरीके ढूढने लगे, जनता - नौकरशाह के इस खेल की कुछ वानगी पर आईए गौर करते हैं - पहला ग्राम औराखोर वि० ख० - फालिका नगर जिला कुशीनगर निवासी कन्हैया पाण्डेय ने अपने गाँव के विकास कार्यों की जानकारी के लिए अधिनियम के तहत आवेदन किया।

सूचना नहीं मिली तो विकास खंड मुख्यालय पर ग्रामीण धरने पर बैठ गये पाँच दिन के धरने के बाद पूरा समूह जिलाधिकारी कार्यालय पर आकर धरना शुरू किया, आश्वासन मिलने के बाद धरना तो ख़त्म हो गया लेकिन सारी जानकारियाँ उपलब्ध नहीं कराई गयी तथा प्रधान और उसके गुंडों के द्वारा उनको बेरहमी से मारा पिटा गया फर्जी मुकदमों में फंसाकर उनको जेल में डाल दिया गया, ऐसे बुजर्गो तक पर मुकदमा डाला गया जो ७० वर्षो के ऊपर में थे, सब जमानत पर छुट कर बाहर है।

और आज भी उसी दिल्लगी से संघर्ष के तूफानों में लगे है। दूसरी तरफ नजर दौड़ाते है तो मिलता है कि देश में तमाम कार्यकर्ताओं की ह्त्या तक करा दी गयी है। जो आवेदन लगातें हैं या सूचनायें निकालकर पर्दाफाश करते है पर एक बात स्पष्ट है कि एक आम आदमी आज डी.एम. से उसके सभी सरकारी कार्यों का हिसाब मांगता है, प्रधानमन्त्री कार्यालय, राष्ट्रपति कार्यालय के संवाद तक भी प्रतियाँ निकाली जा रही है तथा आज पूरा देश इन सब चीजों कों देखता परखता है आजादी के एक लम्बे अंतराल के बाद मिला यह अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार हैं।

हजारों लोगों के रुके हुए पासपोर्ट बने, हजारों के राशन कार्ड बने, पेंशन मिली, बहुत सारी चीजें खुली जिसका कि हम सपना देखते थे, अभी सबसे बड़ी जरूरत है जन भागीदारी कों बढ़ाना ज्यादा से ज्यादा आवेदन लगाना, जब तक आम जनता आगे नही आएगी तब तक इस अधिनियम का सपना साकार नही हो सकता है आज एक द्वन्द सा बना हुआ है जनता एवं अफसर शाही में और इसमें नेताओं की तीसरी भूमिका भी बड़ी ही संदेहास्पद है इस द्वन्द कों जनता ही तोड़ेगी, जब यह टुटेगा वह दिन गाँधी के सपनों का दिन होगा आइये हम सब मिलकर इस दिशा में जनसहभागिता कों मजबूत करने का प्रयास करें जिससे कि इस लोकतंत्र में आम आदमी की भूमिका सुनिश्चित हो सकें

-केशव चन्द वैरागी