[English] अखिल भारतीय विद्युत् अभियंता संघ के महासचिव श्री शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि १२ लाख से अधिक उनके कार्यकर्ता, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय और नर्मदा बचाओ आन्दोलन के साथ, आन्दोलन करेंगे यदि भारत सरकार ने लोकतान्त्रिक तरीके से उर्जा के मुद्दे पर खुली बहस न होने दी. आज (१० मार्च २०१२) को लखनऊ में आयोजित प्रेस वार्ता में यह ज्ञापन जारी किया गया:
गैर लोकतान्त्रिक ढंग से परमाणु ऊर्जा थोपने के प्रयास का विरोध
हम भारत सरकार के गैर लोकतान्त्रिक ढंग से परमाणु ऊर्जा थोपने के प्रयास का विरोध करते हैं। अमरीका और यूरोप में जब भारी संख्या में आम लोग सड़क पर उतार आए तब उनकी सरकारों को परमाणु ऊर्जा त्यागनी पड़ी परंतु भारत में जब आम लोग परमाणु ऊर्जा पर सवाल उठा रहे हैं तो उनकी आवाज़ दबाने का प्रयास किया जा रहा है। कुडनकुलम, तमिल नाडु के डॉ उदयकुमार के नेतृत्व में परमाणु ऊर्जा के विरोध में जन अभियान को भारत सरकार ने भ्रामक आरोपों आदि द्वारा दबाने का पूरा प्रयास किया है। जब कि डॉ उदयकुमार ने अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया है और उनके पास ‘एफ.सी.आर.ए.’ ही नहीं है जिससे ‘विदेशी पैसा’ लिया जा सके। यह भी साफ ज़ाहिर है कि भारत सरकार स्वयं ‘विदेशी’ ताकतों (जैसे कि अमरीका, रूस, आदि) के साथ मिलजुल कर सैन्यीकरण और परमाणु कार्यक्रम बढ़ा रही है।
भारत सरकार ने एक जर्मन नागरिक को जिसने शांतिपूर्वक कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा विरोधी अभियान में भाग लिया था, उसको पकड़ कर वापिस जर्मनी भेज दिया। 8 मार्च 2012 को भारत सरकार ने एक जापानी नागरिक का वीसा भी रद्द कर दिया। ‘ग्रीनपीस’ के निमंत्रण पर फुकुशिमा,जापान में 11 मार्च 2011 को हुई परमाणु दुर्घटना झेले हुए माया कोबायाशी को भारत सरकार ने 15 फरवरी 2012 को ‘बिजनेस’ वीसा दिया था जिससे कि वो भारत में एक सप्ताह आ कर जगह-जगह आयोजित कार्यक्रमों में परमाणु विकिरण आदि खतरों के बारे में बता सकें। परंतु 8 मार्च 2012 को भारत ने उनका वीसा ही रद्द कर दिया।
अब विकसित दुनिया यह मानने लगी है कि निम्न चार कारणों से नाभिकीय ऊर्जा का कोई भविष्य नहीं हैः (1) इसका अत्याधिक खर्चीला होना, (2) मनुष्य स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक, (3) नाभिकीय शस्त्र के प्रसार में इसकी भूमिका से जुड़े खतरे, व (4) रेडियोधर्मी कचरे के दीर्घकालिक निपटारे की चुनौती।
भारत को नाभिकीय ऊर्जा का विकल्प ढूँढना चाहिए जो इतने खर्चीले व खतरनाक न हों। पुनर्प्राप्य ऊर्जा के संसाधन, जैसे सौर, पवन, बायोमास, बायोगैस, आदि, ही समाधान प्रदान कर सकते हैं यह मान कर यूरोप व जापान तो इस क्षेत्र में गम्भीर शोध कर रहे हैं। भारत को भी चाहिए कि इन विकसित देशों के अनुभव से सीखते हुए नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में अमरीका व यूरोप की कम्पनियों का बाजार बनने के बजाए हम भी पुनर्प्राप्य ऊर्जा संसाधनों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करें। भारत को ऐसी ऊर्जा नीति अपनानी चाहिए जिसमें कार्बन उत्सर्जन न हो और परमाणु विकिरण के खतरे भी न हो।
शैलेंद्र दुबे (महासचिव, अखिल भारतीय विद्युत अभियंता संघ), आलोक अग्रवाल (नर्मदा बचाओ आंदोलन), डॉ संदीप पांडे (जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय), अरुंधती धुरु (नर्मदा बचाओ आंदोलन/ जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय), बाबी रमाकांत, शोभा शुक्ल, राहुल कुमार द्विवेदी, आशा परिवार, परमाणु निशस्त्रिकरण एवं शांति के लिए गठबंधन, शांति एवं विकास के लिए चिकित्सकों का गठबंधन, सोशलिस्ट पार्टी
- सी.एन.एस.