बाल टी.बी./ तपेदिक से बचाव पर सारांश रपट जारी


आज इन्दिरा नगर सी-ब्लॉक चौराहा स्थित प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त केंद्र पर बाल टी.बी./ तपेदिक से बचाव पर सारांश रपट जारी की गयी। यह सारांश रपट आशा परिवार, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, सक्षम फ़ाउंडेशन, अभिनव भारत फ़ाउंडेशन, सी.एन.एस. एवं अन्य 50 सहयोगी संगठनों ने तैयार की है।

विश्व टी.बी./ तपेदिक दिवस, 24 मार्च को है और इस वर्ष का केंद्रीय विचार है: बाल टी.बी./ तपेदिक। यह सारांश रपट अनेक साक्षात्कारों और ऑनलाइन संवादों पर आधारित है जिनमें लखनऊ शहर के अनेक विशेषज्ञों ने भाग लिया जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त, छत्रपति शाहुजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सूर्य कान्त, डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अभिषेक वर्मा, नेल्सन अस्पताल के वरिष्ठ बाल-रोग विशेषज्ञों का मण्डल डॉ अजय मिश्रा, डॉ दिनेश चन्द्र पांडे, एवं डॉ सुधाकर सिंह, आदि भी शामिल हैं। परंतु सबसे महत्वपूर्ण प्रतिभागी रहे हैं टी.बी./ तपेदिक से जूझ रहे बच्चों के माता-पिता और अभिभावक।

इस सारांश रपट के मुख्य मुद्दे:
यदि टी.बी./ तपेदिक का उपचार पूरा किए हुए लोगों को कार्यक्रम को लागू करने में गरिमा के साथ शामिल किया जाये तो टी.बी./ तपेदिक कार्यक्रम की सफलता बढ़ जाएगी। टी.बी./ तपेदिक रोकथाम, उपचार आदि का लाभ उठाने में जो समस्याएँ आती हैं वह सबसे बेहतर वो लोग जानते हैं जो इन सेवाओं को ले चुके हैं। टी.बी./ तपेदिक नियंत्रण सिर्फ चिकित्सकीय इलाज से नहीं बल्कि उन विकास-से-जुड़े कारणों पर कार्य करने से होगा जिनकी वजह से टी.बी./ तपेदिक होने का खतरा कई गुना अधिक बढ़ जाता है। इस रपट ने मांग की है कि “पेशेंट्स चार्टर फॉर टीबी केयर’ लागू किया जाये, जो भारत सरकार की ‘टी.बी./ तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम’ योजना का भाग भी है।

जिन कारणों से बाल टी.बी./ तपेदिक होने का खतरा बढ़ता है उनपर कार्य आवश्यक है। विशेषज्ञों के अनुसार कुपोषण टी.बी./ तपेदिक होने का खतरा बढ़ा देता है। अंत: भोजन सुरक्षा कार्यक्रमों और टी.बी./ तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रमों को आपस में समन्वय से कार्यशील होना चाहिए ताकि किसी भी व्यक्ति या बच्चे को कुपोषण के वजह से टी.बी./ तपेदिक न हो।

बच्चों का तंबाकू धुएँ में सांस लेने से भी (परोक्ष धूम्रपान) टी.बी./ तपेदिक होने का खतरा 2-3 गुना बढ़ जाता है। भारत में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान यूं भी वर्जित है। माता-पिता और अभिभावकों को चाहिए कि तंबाकू सेवन न करें और जो लोग करते हैं वे तंबाकू नशा मुक्त हों। घर में भीड़-भाड़, साफ-सफाई न रखना, जन्म के उपरांत 6 महीने तक नवजात शिशु को सिर्फ माँ का दूध न देना, चूल्हे के धुएँ से, मधुमेह या डाईबीटीस, एच.आई.वी., आदि से भी टी.बी./ तपेदिक होने का खतरा बढ़ जाता है।

अस्पताल और घर आदि में भी संक्रामण नियंत्रण करना चाहिए। अस्पतालों और घरों में खुली हवा और सूरज की रोशनी उपलब्ध होना, खाँसते वक़्त मुंह पर हाथ या कपड़ा रखना, बिना जरूरत बच्चों को अस्पताल न ले जाना, अस्पताल के कचरे को खुला न फेंकना, आदि ऐसे कदम हैं जिनसे संक्रामण फैलने का खतरा कम होता है।

एक महत्वपूर्ण बात इस रपट में आई कि वयस्क लोगों में टी.बी./ तपेदिक नियंत्रण से बाल टी.बी./ तपेदिक नियंत्रण स्वत: हो जाएगा। इसलिए जरूरी है कि टी.बी./ तपेदिक से ग्रसित वयस्क लोगों को शीघ्र ही ‘डाट्स’ उपचार पर रखा जाये और वें अपना टी.बी./ तपेदिक उपचार सफलता पूर्वक समाप्त करके टी.बी./ तपेदिक मुक्त हों। इससे बच्चों और अन्य वयस्क लोगों में भी टी.बी./ तपेदिक फैलने की संभावना कम होगी।

टी.बी./ तपेदिक का टीका (बी.सी.जी.) कुछ घातक टी.बी./ तपेदिक जैसे कि दिमाग की टीबी आदि से तो बचाता है पर बच्चों को सभी प्रकार की टीबी से सुरक्षा नहीं प्रदान करता। जाहिर है कि प्रभावकारी टीबी टीका होना चाहिए जिससे कि सभी प्रकार की टीबी से सुरक्षा मिले।

इस रपट को शोभा शुक्ला, राहुल कुमार द्विवेदी, नदीम सलमानी, रितेश आर्य, जित्तिमा जनतानामालाका, एवं बाबी रमाकांत ने तैयार किया है। पूरी रपट को डाऊनलोड करने के लिए इस वैबसाइट पर जाएँ: www.citizen-news.org  

सी. एन. एस.