आंध्र प्रदेश के टीबी नियंत्रण में सुधार की मांग

अनेक संगठनों ने आज आंध्र प्रदेश में टीबी नियंत्रण से संबन्धित समस्याओं को चिन्हित किया और अधिकारियों को ज्ञापन दिया गया जिससे कि प्रदेश में टीबी नियंत्रण में व्यापक सुधार हो सकें। पार्टनर्शिप फॉर टीबी केअर एंड कंट्रोल इन इंडिया, लेपरा सोसाइटी, कैथॉलिक हेल्थ असोसियशन ऑफ इंडिया, सीबीसीआई-सीएआरडी, डैमियन फ़ाउंडेशन, डेविड एंड लोइस रीस अस्पताल, शिवानंद पुनर्वास केंद्र, टीबी अलर्ट इंडिया, वासव्य महिला मंडली, वर्ल्ड विज़न इंडिया, सीएएमपी, और रायलसीमा ग्रामीण विकास सोसाइटी आदि संस्थाओं ने अधिकारियों को ज्ञापन दिया।

दवाओं और अन्य सप्लाई की कमी 
टीबी नियंत्रण के लिए यह बेहद आवश्यक है कि दवा और अन्य सामाग्री की कमी से न केवल रोगी का नुकसान है वरन जन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह अत्यंत खेदपूर्ण है। संगठनों ने आंध्र प्रदेश में स्ट्रेपटोमाइसिन सुई, बाल टीबी और दवा-प्रतिरोधक टीबी की दवाओं की कमी, टीबी की जांच के लिए स्पूटम कप और अन्य सामाग्री की कमी, और टीबी जांच केन्द्रों में सभी माइक्रोस्कोप का नहीं चलने जैसी समस्याओं का उल्लेख किया।

टीबी कार्यक्रम में रिक्त पड़े पद
आंध्र प्रदेश के टीबी कार्यक्रम में पद रिक्त पड़े हैं। संगठनों की अपील थी कि इन रिक्त पदों पर अविलंब नियुक्ति हो और नियुक्त कर्मी समय से कार्यस्थल पर कार्यरत भी करें। संगठनों ने मांग की कि भारत का 'पुनरीक्षित राष्ट्रीय टूबेर्कुलोसिस नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी)' आंध्र प्रदेश में एक पूर्ण-कालिक सहायक नियुक्त करे जिसे कि प्रदेश में टीबी सेवाएँ रोगियों की दृष्टि से सुविधाजनक और संवेदनशील बने। आंध्र में कुछ रिक्त पद इस प्रकार हैं: जिला टीबी नियंत्रण अधिकारी, चिकित्सा अधिकारी, लैब-टेकनीशियन, आदि। 'डाट्स' प्रदानकर्ता को भी मानदेय नहीं मिला है जो टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के लिए भी अवांछनीय है।

टीबी नोटिफ़िकेशन और टीबी सीरोलॉजिकल टेस्ट पर प्रतिबंध
पिछले साल  आरएनटीसीपी ने दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए: टीबी को सूचनीय रोग घोषित किया जिसका सीधा तात्पर्य यह है कि निजी या सरकारी किसी भी स्वास्थ्य सेवा में टीबी रोगी हो उसकी सूचना सरकार को देनी आवश्यक है। टीबी को सूचनीय रोग घोषित करने के लिए आरएनटीसीपी सराहना का पात्र है। सभी निजी डाक्टरों, स्वास्थ्य प्रबन्धकों, प्रयोगशालाओं एवं अन्य देखभाल करने वालों को प्रत्येक टीबी केस की सूचना सरकार को देनी होगी, जिससे देश में टीबी रोग की स्थिति का वास्तविक विश्लेषण हो सकेगा कि देश में टीबी रोगियों की संख्या कितनी है, उनमें से कितने सरकारी उपचार सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं, और कितने निजी क्षेत्र के डाक्टरों से उपचार ले रहे हैं। इस प्रकार की अन्य जानकारी प्राप्त होने से जन स्वास्थ्य संबंधी सकारात्मक नतीजे निकाल सकते हैं। भारत सरकार ने 7 जून 2012 के बाद से टीबी सीरोलोजिकल टेस्ट के इस्तेमाल, बिक्री, आयात, या निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि यह टेस्ट टीबी परीक्षण के लिए उपयोगी नहीं हैं और रोगी का पैसा बेफजूल ही खर्च होता है। आरएनटीसीपी ने कभी भी इन टीबी सीरोलोजिकल टेस्ट को समर्थन नहीं दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी जुलाई 2011 को इन टीबी सीरोलोजिकल टेस्ट के उपयोग के विरोध में भूमिका ली। संगठनों की मांग थी कि इन दोनों सरकारी आदेशों का कड़ाई से पालन हो - टीबी के हर रोगी की सूचना सरकार को मिले और टीबी सीरोलॉजिकल टेस्ट पर प्रतिबंध सख्ती से लागू हो।

पोषण और टीबी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार टीबी और कुपोषण का सीधा संबंध है। कुपोषण से न केवल हमारी टीबी रोग होने की संभावना बढ़ती है बल्कि टीबी रोगी अक्सर कुपोषित होते हैं और अन्य समस्याओं से जूझते हैं। संगठनों का मानना था कि आरएनटीसीपी और अन्य सरकारी खाद्य योजनाओं को मिलकर सक्रिय होना चाहिए जैसे कि अंतोदय योजना में गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली से नि:शुल्क अन्न प्राप्त होता है, मिड-डे मील योजना में सरकारी विद्यालयों में भोजन मिलता है, आदि।

टीबी नियंत्रण, सरकार और आम लोग
हालांकि आरएनटीसीपी ने टीबी संगठनों और अन्य लोगों को टीबी नियंत्रण कार्यक्रम में शामिल करने का सरहनीय प्रयास किया है परंतु आंध्र प्रदेश में अभी भी आवश्यकता है कि प्रदेश अधिकारी संगठनों और अन्य लोगों के साथ बराबरी से मिलकर कार्य करें। आंध्र प्रदेश में जो धनराशि संगठनों के लिए अनुदान रूप प्रदेश में आरएनटीसीपी से आई थी उसको 2 साल से व्यय नहीं किया गया है। जिले के स्तर पर, आरएनटीसीपी द्वारा संगठनों के लिए योजनाओं का लाभ भी संगठन नहीं उठा पाये जबकि उन्होने अपने प्रोजेक्ट प्रक्रियानुसार जमा किए थे। संगठनों की यह भी मांग थी कि साल में 4 बार होने वाली जिले-स्तर की मूल्यांकन बैठक में भी संगठनों के शामिल किया जाये।

ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण समिति
 राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के अंतर्गत कुछ धनराशि 'ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण समिति' की बैठकों के लिए निर्धारित की गयी है। संगठनों का मानना था कि एनआरएचएम को गाइडलाइंस जारी करनी चाहिए जिससे कि यह 'ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण समिति' के लिए आई धनराशि को टीबी रोगियों की आर्थिक सहायता करने में उपयोग किया जा सके - जैसे कि टीबी जांच या इलाज केंद्र तक जाने में आने वाले व्यय, आदि को इस धनराशि से संभवत: दिया जा सकता हो।

ज्ञापन
संगठनों ने उपरोक्त मुद्दों के साथ अधिकारियों को ज्ञापन दिया जिनमें कमिश्नर और मुख्य-सचिव (स्वास्थ्य) आंध्र प्रदेश सरकार, शामिल थे। सभी संगठन आंध्र सरकार के साथ मिलकुल कर टीबी नियंत्रण कार्यक्रम में अपना योगदान देना चाहते हैं, आशा है आंध्र सरकार भी आगे बढ़ कर इन मुद्दों का निवारण करेगी और संगठनों के साथ सक्रियता से टीबी नियंत्रण कार्यक्रम में सुधार लाएगी।

बाबी रमाकांत, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
फरवरी 2013