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'एमवीए85ए' टीबी वैक्सीन शोध के नतीजे ने नि:संदेह निराश किया है क्योंकि बच्चों को यह टीबी से बचाने में लगभग निष्फल रही है। सुकून इस बात का है कि शोध में किसी भी बच्चे को कोई अवांछनीय प्रभाव नहीं पड़ा और किसी भी शोध-प्रतिभागी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। टीबी की प्रभावकारी वैक्सीन की कामना करने वाले लोगों को बड़ी निराशा होनी लाज़मी है क्योंकि अब नयी टीबी वैक्सीन तक पहुँचने का रास्ता अत्याधिक लंबा हो गया है।
एक बात एकदम साफ है - यदि हमें प्रभावकारी टीबी वैक्सीन चाहिए तो सरकारों को टीबी शोध में निवेश अनेक गुना बढ़ाना होगा। जिस रफ्तार से टीबी शोध हो रहा है उस गति से तो अनेक साल लगने वाले हैं। ऐसा क्यों है कि टीबी की दवाएं 40 साल पुरानी हैं, सबसे प्रचलित टीबी जांच 100 साल से अधिक पुरानी है (माइक्रोस्कोपी), और टीबी वैक्सीन बीसीजी भी लगभग 100 साल पुरानी है?
एमवीए85ए टीबी वैक्सीन शोध:
यह टीबी वैक्सीन शोध दक्षिण अफ्रीका के बच्चों के ऊपर हो रहा था। हर बच्चे को बीसीजी वैक्सीन भी दी गयी थी। किसी भी शोध-प्रतिभागी को कोई अवांछनीय प्रभाव नहीं पड़ा परंतु आंकड़ें यह भी बताते हैं कि यह शोधरत वैक्सीन बच्चों को टीबी से बचाने में प्रभावी नहीं रही। जिन बच्चों को शोध में बीसीजी और एमवीए85ए टीबी वैक्सीन मिली उनमें 32 को टीबी हो गयी और जिन बच्चों को सिर्फ बीसीजी मिली उनमें से 39 को टीबी हो गयी। इसीलिए शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह शोध-रत वैक्सीन टीबी से बचाव के लिए कोई खास प्रभावी नहीं है।
इस वैक्सीन शोध को 'ऐरास' (Aeras), वैल्कम ट्रस्ट (Wellcome Trust) और ओईटीसी के आर्थिक अनुदान से किया गया था।
टीबी एक संक्रामक रोग है जो यदि सही इलाज न किया जाये तो घातक भी हो सकता है। क्योंकि टीबी किटाणु (बैक्टीरिया) वायु से फैलता है इसीलिए गरीब-अमीर किसी को भी टीबी हो सकता है। टीबी से बचाव के लिए और टीबी उन्मूलन के लिए एक प्रभावकारी टीबी वैक्सीन अति-आवश्यक है - जिसके लिए साफ जरूरत है कि सरकार टीबी शोध में निवेश बढ़ाए जिससे कि जल्द-से-जल्द प्रभावकारी टीबी वैक्सीन हमें मिल पाये। जब तक टीबी वैक्सीन पर शोध हो रहा है टीबी नियंत्रण को पूरी ईमानदारी से करना अति-आवश्यक है।
बाबी रमाकांत, सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
फरवरी 2013