भारत ने फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टुबैको कंट्रोल (एफ़.सी.टी.सी.) को २००४ में अंगीकार किया था. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रथम अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संधि है. इस संधि के अनुसार भारत को २७ फरवरी, २००८ तक फोटो चेतावनी को कार्यान्वित कर देना चाहिए था. परन्तु किसी भी प्रकार की पहली चित्रमय चेतावनी मई २००९ में ही लागू करी गयी. और यह अपने आप में बहुत ही कमज़ोर साबित हुई. इसी एफ़सीटीसी का आर्टिकल 5.3 भारत सरकार समेत सभी पारित करने वाली सरकारों को शक्ति देता है कि जन स्वास्थ्य नीति में तंबाकू उद्योग के हस्तक्षेप को रोकें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तम्बाकू पैक पर बड़ी और प्रभावकारी फोटो चेतावनियाँ, राष्ट्रीय स्तर पर तम्बाकू नियंत्रण में बहुत कारगर सिद्ध होती हैं. विश्व में किये गए अनेक शोध यह दर्शाते हैं कि बड़ी और डरावनी चित्र चेतवानी का असर भी बड़ा प्रभावी होता है, तथा तम्बाकू उपभोक्ताओं को तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रेरित करता है-- विशेषकर बच्चों और युवाओं को.
इसके अलावा, इसमें सरकार को धन भी व्यय नहीं करना पड़ता, क्योंकि यह दायित्व तम्बाकू कम्पनी का हो जाता है. बाज़ार में बिकने वाली विदेशी सिगरेटों के पैक पर भी ये चेतावनियाँ अंकित होनी चाहिए, वर्ना ऐसी विदेशी सिगरेटों को जब्त करना चाहिए.
हमारी अपील है कि सरकार न केवल गुटखे पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करेगी बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगी कि सभी तंबाकू उत्पादनों पर नयी चित्रमय चेतावनी भी लगी हों।
उपरोक्त कथन डॉ संदीप पाण्डेय, प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त, शोभा शुक्ला, राहुल द्विवेदी, मुक्ता श्रीवास्तव, रितेश आर्य और बाबी रमाकांत ने स्वास्थ्य को वोट अभियान, आशा परिवार, सीएनएस, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय की ओर से दिया।
सिटीज़न न्यूज़ सर्विस