भारत की केन्द्रीकृत राजनीतिक व्यवस्था हमारे यहां भ्रष्टाचार एवं अपराधीकरण के लिए दोषी है. संविधान में 73वें व 74वें संषोधन के उपरांत स्थानीय स्वशासन का जो स्वरूप सामने आना चाहिए था, जिसके अंतर्गत जनता की निर्णय प्रक्रिया में सीधी भागीदारी हो सकती थी, उसे हमारे मुख्य धारा के दल और नौकरशाही, जिनका अब केन्द्रीकृत व्यवस्था में निहित स्वार्थ है, साकार नहीं होने दे रहे. स्वामी अग्निवेश के जंतर मंत्र स्थित कार्यालय में सम्पन्न हुई बैठक में इस पर चर्चा हुई जिसमें देश के अनेक प्रगतिशील और सर्वजन-हितैषी व्यक्तियों और दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
मगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और लोक राजनीति मंच एवं सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) से जुड़े डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के सशक्तिकरण की बात तो दूर की है, देश के विकास सम्बंधी महत्वपूर्ण निर्णय अब हमारी संसद और विधानसभाएं भी नहीं ले रहीं हैं। ये निर्णय योजना आयोग के विषेशज्ञ, देशी-विदेशी कम्पनियां, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं या कई बार सीधे विकसित देशों के दबाव में लिए जा रहे हैं. योजना आयोग जैसी संस्था भी संविधानेत्तर (extraconstitutional) है और इसने संविधान में जनता के निर्णय लेने के अधिकार को हड़प लिया है. इसीलिए इसके द्वारा लिए गए निर्णय भी जनहित में न होकर पूंजीपतियों के हितों का पोशण करते हैं. हम देख रहे हैं कि जैसे नवउदारवादी नीतियों के तहत अर्थव्यवस्था को देशी-विदेशी पूंजी के लिए खोला गया तो भ्रष्टाचार में कई गुणा की बढ़ोतरी ही नहीं हुई बल्कि उसका स:स्थानीकरण भी हो गया. अब यह माना जाने लगा है कि इस भ्रष्टाचार के बिना हमारी राजनीतिक व्यवस्था का पोशण ही संभव नहीं है और इसलिए भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिये प्रभावी कानून और मज़बूत संकल्प की आवश्यकता है.
इस जन विरोधी व्यवस्था से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है कि जनता की राजनीतिक निर्णय की प्रक्रिया में सीधे भागीदारी हो जिसका प्रावधान संविधान में है ही. अनुच्छेद 243 जी व डब्लू के तहत ग्रामीण व शहरी स्थानीय निकायों को अपने आर्थिक विकास के नियोजन तथा सामाजिक न्याय के कार्यक्रम तय करने का अधिकार प्राप्त है तथा 11वीं व 12वीं अनुसूची में दिए गए विषयों से सम्बंधित कार्यक्रमों के क्रियान्वयन का अधिकार प्राप्त है. संविधान के अनुच्छेद 39बी और 243 जेड डी में समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार निर्धारित होना है कि वह सामूहिक हित में हो. यानि प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय समुदाय का अधिकार ही सर्वोपरि है. इस सिद्धांत की भी प्रायः खुलेआम सरकारें अवहेलना करती है.
संविधान में प्रदत्त जनता के अधिकारों को साकार करने हेतु राजनीतिक बदलाव की आवश्यकता है. लोक राजनीति मंच ऐसे राजनीतिक दलों का मंच है जो इस वैकल्पिक राजनीति को खड़ा करने का प्रयास कर रहा है, हम जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को साकार करने हेतु संकल्पबद्ध है.
वरिष्ठ अधिवक्ता रवि किरण जैन, कुलदीप नैयर, (सेवा निवृत्त) न्यायमूर्ति राजिन्दर सच्चर, स्वामी अग्निवेश, रघु ठाकुर (लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी), डॉ प्रेम सिंह और डॉ संदीप पाण्डेय (सोशलिस्ट पार्टी), आईडी खजूरिया (इण्टरनेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी), सैय्यद मोईद अहमद (भारतीय एकता पार्टी एम), मंजू मोहन (सोशलिस्ट जनता पार्टी), एवं केके दीक्षित (राष्ट्रीय विकलांग पार्टी) ने इस बैठक में सक्रिय भाग लिया।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
जून 2013
मगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और लोक राजनीति मंच एवं सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) से जुड़े डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के सशक्तिकरण की बात तो दूर की है, देश के विकास सम्बंधी महत्वपूर्ण निर्णय अब हमारी संसद और विधानसभाएं भी नहीं ले रहीं हैं। ये निर्णय योजना आयोग के विषेशज्ञ, देशी-विदेशी कम्पनियां, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं या कई बार सीधे विकसित देशों के दबाव में लिए जा रहे हैं. योजना आयोग जैसी संस्था भी संविधानेत्तर (extraconstitutional) है और इसने संविधान में जनता के निर्णय लेने के अधिकार को हड़प लिया है. इसीलिए इसके द्वारा लिए गए निर्णय भी जनहित में न होकर पूंजीपतियों के हितों का पोशण करते हैं. हम देख रहे हैं कि जैसे नवउदारवादी नीतियों के तहत अर्थव्यवस्था को देशी-विदेशी पूंजी के लिए खोला गया तो भ्रष्टाचार में कई गुणा की बढ़ोतरी ही नहीं हुई बल्कि उसका स:स्थानीकरण भी हो गया. अब यह माना जाने लगा है कि इस भ्रष्टाचार के बिना हमारी राजनीतिक व्यवस्था का पोशण ही संभव नहीं है और इसलिए भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिये प्रभावी कानून और मज़बूत संकल्प की आवश्यकता है.
इस जन विरोधी व्यवस्था से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है कि जनता की राजनीतिक निर्णय की प्रक्रिया में सीधे भागीदारी हो जिसका प्रावधान संविधान में है ही. अनुच्छेद 243 जी व डब्लू के तहत ग्रामीण व शहरी स्थानीय निकायों को अपने आर्थिक विकास के नियोजन तथा सामाजिक न्याय के कार्यक्रम तय करने का अधिकार प्राप्त है तथा 11वीं व 12वीं अनुसूची में दिए गए विषयों से सम्बंधित कार्यक्रमों के क्रियान्वयन का अधिकार प्राप्त है. संविधान के अनुच्छेद 39बी और 243 जेड डी में समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार निर्धारित होना है कि वह सामूहिक हित में हो. यानि प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय समुदाय का अधिकार ही सर्वोपरि है. इस सिद्धांत की भी प्रायः खुलेआम सरकारें अवहेलना करती है.
संविधान में प्रदत्त जनता के अधिकारों को साकार करने हेतु राजनीतिक बदलाव की आवश्यकता है. लोक राजनीति मंच ऐसे राजनीतिक दलों का मंच है जो इस वैकल्पिक राजनीति को खड़ा करने का प्रयास कर रहा है, हम जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को साकार करने हेतु संकल्पबद्ध है.
वरिष्ठ अधिवक्ता रवि किरण जैन, कुलदीप नैयर, (सेवा निवृत्त) न्यायमूर्ति राजिन्दर सच्चर, स्वामी अग्निवेश, रघु ठाकुर (लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी), डॉ प्रेम सिंह और डॉ संदीप पाण्डेय (सोशलिस्ट पार्टी), आईडी खजूरिया (इण्टरनेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी), सैय्यद मोईद अहमद (भारतीय एकता पार्टी एम), मंजू मोहन (सोशलिस्ट जनता पार्टी), एवं केके दीक्षित (राष्ट्रीय विकलांग पार्टी) ने इस बैठक में सक्रिय भाग लिया।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
जून 2013