लखनऊ में अनेक राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि कमीशनखोरी के विरोध में आगे आए। लोक राजनीति मंच के डॉ संदीप पाण्डेय ने बताया कि प्रांतीय प्रशासनिक सेवा के उद्यान एवं खाद्य
प्रसंस्करण विभाग के 40 वर्षीय अधिकारी चंद्र भूषण पाण्डेय ने लगातार आरोप
लगाया है कि उनके उच्च अधिकारी व मंत्री उनसे कमीशन मांगते हैं। इस
व्यवस्था से तंग आकर वे अगस्त 2008 में इस्तीफा भी दे चुके हैं और अगस्त
2011 से वेतन लेना भी बंद कर दिया है। किन्तु उ.प्र. सरकार उनका इस्तीफा
स्वीकार नहीं कर रही। वह बार-बार उनपर नौकरी पर वापस आने का दबाव बनाती है।
चंद्र भूषण पाण्डेय यह गारंटी चाहते हैं कि विभाग के मंत्री और उच्च
अधिकारी उनसे कमीशन नहीं मांगेंगे।
उनका मानना है कि प्रति वर्ष सिर्फ उ.प्र. में कमीशन के रूप में अधिकारी व नेता रु. 10,000 करोड़ डकार जाते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि उ.प्र. की गरीबी और पिछडा़पन ज्यो के त्यों बने हुए हैं। जो पैसा वंचित तबकों के विकास में खर्च होना चाहिए वह मंत्रियों-अधिकारियों को ऐशो-आराम की जिंदगी मुहैया करा रहा है।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि इस किस्म के व्यवस्थागत भ्रष्टाचार से इस देश के बड़े दलों की राजनीति का वित्त पोषण होता है। कहा जाता है कि चुनाव बड़ा खर्चीला हो गया है। असल में बड़े दल इसी व्यवस्थागत भ्रष्टाचार से प्राप्त धन चुनाव में खर्च करते हैं। जहां विधान सभा या संसद चुनाव में चुनाव आयोग द्वारा चुनाव प्रचार में खर्च की सीमा तय की गई है लाखों में तो खर्च किए जाते हैं करोड़ों। विदेशों से काला धन लाने के पहले हमारी अर्थव्यवस्था में यह जो भ्रष्टाचार का पैसा काले धन के रूप में सक्रिय है और तमाम आपराधिक पुष्ठभूमि के या भ्रष्ट पेशेवर किस्म के लोगों को जन प्रतिनिधि बना रहा सबसे पहले तो इस पर रोक लगनी चाहिए।
यह बड़े शर्म की बात है कि अधिकारी और नेता, चाहे किसी विभाग के हों, जनता के विकास के लिए आए धन की बंदरबांट के लिए कमीशनखोरी की व्यवस्था बनाए हुए हैं और अपना तय प्रतिशत कमीशन पाना अपना अधिकार समझते हैं। अपना कमीशन न मिलने पर बौखला कर ईमानदार लोगों के खिलाफ ही कार्यवाही करने लगते हैं।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि यह कमीशनखोरी की व्यवस्था बंद होनी चाहिए। मुख्य मंत्री इस बात की गारंटी दें कि उनके शासन में कमीशनखोरी, दलाली, अवैध वसूली जैसी गैर-कानूनी हरकतें पूर्णतया बंद होंगी। इसके अलावा चंद्र भूषण पाण्डेय ने जिन अधिकारियों व नेताओं का अपने प्रतिवेदनों में उल्लेख किया है उनकी ज्ञात आय के स्रोतों से अधिक सम्पत्ति के मामले में जांच होनी चाहिए, जिनमें सुल्तानपुर के भूतपूर्व जिलाधिकारी विशाल नाथ राय (अब सेवा निवृत), बसपा सरकार के मंत्री नारायण सिंह, सपा सरकार के मंत्री राज किशोर सिंह, वर्तमान निदेशक उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण ओम नारायण सिंह व वित्त नियंत्रक एस.के.गुप्ता शामिल हैं।
चंद्र भूषण पाण्डेय की कमीशनखोरी के खिलाफ जंग का मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), सोशलिस्ट पार्टी, ऑल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट, नैतिक पार्टी, वेल्फेयर पार्टी ऑफ इण्डिया, भरतीय एकता पार्टी (एम), वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल, राष्ट्रीय विक्लांग पार्टी, भारतीय कृषक दल व लोक राजनीति मंच समर्थन करते हैं तथा मुख्य मंत्री से मांग करते हैं कि कमीशनखोरी की व्यवस्था तत्काल बंद कर चंद्र भूषण पाण्डेय जैसे अफसरों के लिए काम करना आसान बनाएं।
आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण व योगेन्द्र यादव ने भी चंद्र भूषण पाण्डेय के व्यवस्थागत भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष को अपने समर्थन का ऐलान किया है।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
जून 2013
उनका मानना है कि प्रति वर्ष सिर्फ उ.प्र. में कमीशन के रूप में अधिकारी व नेता रु. 10,000 करोड़ डकार जाते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि उ.प्र. की गरीबी और पिछडा़पन ज्यो के त्यों बने हुए हैं। जो पैसा वंचित तबकों के विकास में खर्च होना चाहिए वह मंत्रियों-अधिकारियों को ऐशो-आराम की जिंदगी मुहैया करा रहा है।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि इस किस्म के व्यवस्थागत भ्रष्टाचार से इस देश के बड़े दलों की राजनीति का वित्त पोषण होता है। कहा जाता है कि चुनाव बड़ा खर्चीला हो गया है। असल में बड़े दल इसी व्यवस्थागत भ्रष्टाचार से प्राप्त धन चुनाव में खर्च करते हैं। जहां विधान सभा या संसद चुनाव में चुनाव आयोग द्वारा चुनाव प्रचार में खर्च की सीमा तय की गई है लाखों में तो खर्च किए जाते हैं करोड़ों। विदेशों से काला धन लाने के पहले हमारी अर्थव्यवस्था में यह जो भ्रष्टाचार का पैसा काले धन के रूप में सक्रिय है और तमाम आपराधिक पुष्ठभूमि के या भ्रष्ट पेशेवर किस्म के लोगों को जन प्रतिनिधि बना रहा सबसे पहले तो इस पर रोक लगनी चाहिए।
यह बड़े शर्म की बात है कि अधिकारी और नेता, चाहे किसी विभाग के हों, जनता के विकास के लिए आए धन की बंदरबांट के लिए कमीशनखोरी की व्यवस्था बनाए हुए हैं और अपना तय प्रतिशत कमीशन पाना अपना अधिकार समझते हैं। अपना कमीशन न मिलने पर बौखला कर ईमानदार लोगों के खिलाफ ही कार्यवाही करने लगते हैं।
डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि यह कमीशनखोरी की व्यवस्था बंद होनी चाहिए। मुख्य मंत्री इस बात की गारंटी दें कि उनके शासन में कमीशनखोरी, दलाली, अवैध वसूली जैसी गैर-कानूनी हरकतें पूर्णतया बंद होंगी। इसके अलावा चंद्र भूषण पाण्डेय ने जिन अधिकारियों व नेताओं का अपने प्रतिवेदनों में उल्लेख किया है उनकी ज्ञात आय के स्रोतों से अधिक सम्पत्ति के मामले में जांच होनी चाहिए, जिनमें सुल्तानपुर के भूतपूर्व जिलाधिकारी विशाल नाथ राय (अब सेवा निवृत), बसपा सरकार के मंत्री नारायण सिंह, सपा सरकार के मंत्री राज किशोर सिंह, वर्तमान निदेशक उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण ओम नारायण सिंह व वित्त नियंत्रक एस.के.गुप्ता शामिल हैं।
चंद्र भूषण पाण्डेय की कमीशनखोरी के खिलाफ जंग का मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), सोशलिस्ट पार्टी, ऑल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट, नैतिक पार्टी, वेल्फेयर पार्टी ऑफ इण्डिया, भरतीय एकता पार्टी (एम), वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल, राष्ट्रीय विक्लांग पार्टी, भारतीय कृषक दल व लोक राजनीति मंच समर्थन करते हैं तथा मुख्य मंत्री से मांग करते हैं कि कमीशनखोरी की व्यवस्था तत्काल बंद कर चंद्र भूषण पाण्डेय जैसे अफसरों के लिए काम करना आसान बनाएं।
आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण व योगेन्द्र यादव ने भी चंद्र भूषण पाण्डेय के व्यवस्थागत भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष को अपने समर्थन का ऐलान किया है।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस – सीएनएस
जून 2013