[English] पानी-अधिकार संस्थाओं ने विश्व बैंक से आह्वान किया कि वे विकास की आड़ में पानी निजीकरण करना बंद करे. इंटरनेशनल फ़ाइनेंस कार्पोरेशन (आईएफ़सी) के जरिये विश्व बैंक विकासशील देशों में पानी निजीकरण के प्रोजेक्ट को समर्थन देता आ रहा है। हालांकि अधिकांश ऐसे प्रोजेक्ट या तो संघर्ष कर रहे हैं या असफल हो गए हैं परंतु विश्व बैंक इनको ‘सफल’ प्रोजेक्ट की तरह ही मानता आ रहा है।
चूंकि विश्व बैंक इन प्रोजेक्ट्स में एक दाता संस्था और सरकारों के सलाहकार के रूप में जुड़ा है यह एक विरोधाभास है, खास कर इसलिए क्योंकि अधिकांश ऐसे प्रोजेक्ट्स की वजह से पानी स्थानीय लोगों की पहुँच से बाहर हो रहा है और गरीबी भी बढ़ी है। यह विरोधाभास खासकर वहाँ पर सत्य और अधिक गंभीर हैं जहां आईएफ़सी का समान हिस्सा (इक्विटि स्टेक) है, जैसे कि भारत।
कॉर्पोरेट अकौंटबिलिटी इंटरनेशनल की पानी अधिकार विशेषज्ञ शायदा नफीसी के अनुसार: “विश्व के अनेक देशों में आईएफ़सी के सैद्धांतिक रूप से पानी निजीकरण को बढ़ावा देने से उतना लाभ नहीं हुआ है जितना कि नुकसान हुआ है। विश्व बैंक को पानी से जुड़े मुद्दे पर आ रही धनराशि को और उसके निवेश के निर्णय को सीधे सरकार और उन लोगों के हाथों में दे देना चाहिए जिनके प्रति वो जवाबदेह है, और विश्व बैंक को ऐसे उद्योग जैसे कि वेओलिया को सीधे रूप से समर्थन देना बंद करना चाहिए जिनका उद्देश्य अपने शेयर-होल्डर के लिए मुनाफा कमाना है”।
भारत स्थित नागपुर में ऑरेंज सिटि वॉटर को पानी वितरण का ठेका मिला जो वेओलिया कंपनी का संयुक्त वैंचर है, और जिसमें आईएफ़सी का 13.9% हिस्सेदारी है। इस प्रोजेक्ट में सभी स्थानों पर पानी न पहुँचना, पानी वितरण में व्यवधान आना, भ्रष्टाचार के आरोप, और गैर कानूनी गतिविधियों के आरोप लग चुके हैं जिनके कारणवश धरना-प्रदर्शन, प्रशासनिक जांच और कानूनी कारवाई तक हुई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि विश्व बैंक ने इस प्रोजेक्ट को ‘सफल’ घोषित किया और ‘मोडल’ के रूप में अन्य जगह लागू करने का प्रस्ताव रखा।
चूंकि नागपुर प्रोजेक्ट को आईएफ़सी सफल बता कर अत्यधिक प्रचार कर रहा था जबकि जमीनी हकीकत इसको असफल बता रही थी, फ़्रांस की कंपनी वेओलिया को फ़्रांस की ही तीन गैर-सरकारी संगठनों ने “पीनोच्चिओ अवार्ड” दिया जो वेओलिया द्वारा स्थानीय लोगों के पानी अधिकार को दरकिनार कर मुनाफे को प्राथमिकता देने के लिए है।
नागपुर म्यूनिसिपल कार्पोरेशन कर्मचारी संघ के जम्मू आनंद का कहना है कि “यह अत्यधिक आपत्तीजनक है कि विश्व बैंक नागपुर प्रोजेक्ट को ‘सफल मॉडल’ कहता है। हकीकत यह है कि यह प्रोजेक्ट हर तरह से असफल रहा है। पिछले 3 वर्षों में इस प्रोजेक्ट को सक्रिय रूप में चलाने के लिए और सिस्टम की देखरेख का व्यय बहुत बढ़ गया है जिसके कारणवश पानी की कीमत भी अनेक गुना बढ़ गयी है। कर्मचारियों को कम वेतन दे कर उनका शोषण भी हो रहा है”। नागपुर म्यूनिसिपल कार्पोरेशन कर्मचारी संघ आईएफ़सी-द्वारा समर्थित पानी निजीकरण के खिलाफ संघर्षरत है।
आईएफ़सी भारत में अन्य जगह भी पानी निजीकरण के प्रोजेक्ट्स को समर्थन दे रहा है। खंडवा में आईएफ़सी ने विश्व इन्फ्रा को पानी वितरण प्रोजेक्ट के लिए ऋण दिया है। मध्य प्रदेश स्थित मंथन अध्ययन केंद्र ने इस प्रोजेक्ट का आंकलन किया और पाया कि इसकी वजह से पानी की दरों में बढ़ोतरी होती है, स्थानीय पानी पर प्रतिबंध लगता है और पानी वितरण पर निजी नियंत्रण बढ़ता है। इस आंकलन के बाद एक स्थानीय अभियान ने प्रदेश प्रशासन पर ज़ोर बनाया कि इसकी जांच हो। इस जांच रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रोजेक्ट में अनियमिततायेँ पायी गईं और इसको रद्द करने को कहा गया। इसके बावजूद विश्व बैंक इस प्रोजेक्ट को सफल बताता आ रहा है।
फोकस ऑन ग्लोबल साउथ के अफसर जाफरी के अनुसार “देशभर में अनेक स्थानीय जन-समूह पानी के निजीकरण का भीषण विरोध कर रहे हैं। हम लोग, विश्व बैंक – उद्योग – राजनीतिज्ञ - अपराधी आदि के पानी के निजीकरण करने के भ्रष्ट और गैर-पारदर्शी तरीकों का खुलासा करते रहेंगे”।
कॉर्पोरेट अकौंटबिलिटी इंटरनेशनल ने अक्टूबर माह मे हुए वार्षिक मीटिंग मे विश्व बैंक के नाम खुला पत्र जारी किया था जिसपर विश्व भर से 70 से अधिक प्रभावकारी जन स्वास्थ्य, पानी अधिकार विशेषज्ञ, अर्थ और विधि विशेषज्ञ, आदि ने हस्ताक्षर किए थे - इनमें जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, मंथन अध्ययन केंद्र, फोकस ऑन ग्लोबल साउथ आदि भी शामिल थे। इस खुले पत्र में विश्व बैंक से आह्वान किया गया था कि वो पानी निजीकरण को समर्थन देना बंद करे, और इसकी शुरुआत आईएफ़सी से हो जो पानी उद्योग में किए गए निवेश को वापस ले और समर्थन बंद करे।
एक साल बाद कारवाई तो कोई हुई नहीं और सरकारी प्रतिनिधि और विश्व बैंक के निर्णय लेने वाले अधिकारी वैसी ही एक बैठक में फिर मिल रहे हैं। परंतु आईएफ़सी के पानी निजीकरण को अक्सर अप्रत्यक्ष समर्थन के विरोध में जन संगठन एकत्रित हो रहे हैं। इंडियन सोश्ल एक्शन फॉरम (इंसाफ) के विलफ़्रेड डीकोस्टा के अनुसार “हम पानी निजीकरण के विरोध में अपना संघर्ष जारी रखेंगे और सार्वजनिक पानी वितरण प्रणाली की मांग को भी उठाते रहेंगे जो जनता के लिए कार्यरत रहे न कि मुनाफा कमाने के लिए”।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस)
15 अप्रैल 2014
Published in:
Hindi Citizen News Service (CNS), India
PNews, India
चूंकि विश्व बैंक इन प्रोजेक्ट्स में एक दाता संस्था और सरकारों के सलाहकार के रूप में जुड़ा है यह एक विरोधाभास है, खास कर इसलिए क्योंकि अधिकांश ऐसे प्रोजेक्ट्स की वजह से पानी स्थानीय लोगों की पहुँच से बाहर हो रहा है और गरीबी भी बढ़ी है। यह विरोधाभास खासकर वहाँ पर सत्य और अधिक गंभीर हैं जहां आईएफ़सी का समान हिस्सा (इक्विटि स्टेक) है, जैसे कि भारत।
कॉर्पोरेट अकौंटबिलिटी इंटरनेशनल की पानी अधिकार विशेषज्ञ शायदा नफीसी के अनुसार: “विश्व के अनेक देशों में आईएफ़सी के सैद्धांतिक रूप से पानी निजीकरण को बढ़ावा देने से उतना लाभ नहीं हुआ है जितना कि नुकसान हुआ है। विश्व बैंक को पानी से जुड़े मुद्दे पर आ रही धनराशि को और उसके निवेश के निर्णय को सीधे सरकार और उन लोगों के हाथों में दे देना चाहिए जिनके प्रति वो जवाबदेह है, और विश्व बैंक को ऐसे उद्योग जैसे कि वेओलिया को सीधे रूप से समर्थन देना बंद करना चाहिए जिनका उद्देश्य अपने शेयर-होल्डर के लिए मुनाफा कमाना है”।
भारत स्थित नागपुर में ऑरेंज सिटि वॉटर को पानी वितरण का ठेका मिला जो वेओलिया कंपनी का संयुक्त वैंचर है, और जिसमें आईएफ़सी का 13.9% हिस्सेदारी है। इस प्रोजेक्ट में सभी स्थानों पर पानी न पहुँचना, पानी वितरण में व्यवधान आना, भ्रष्टाचार के आरोप, और गैर कानूनी गतिविधियों के आरोप लग चुके हैं जिनके कारणवश धरना-प्रदर्शन, प्रशासनिक जांच और कानूनी कारवाई तक हुई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि विश्व बैंक ने इस प्रोजेक्ट को ‘सफल’ घोषित किया और ‘मोडल’ के रूप में अन्य जगह लागू करने का प्रस्ताव रखा।
चूंकि नागपुर प्रोजेक्ट को आईएफ़सी सफल बता कर अत्यधिक प्रचार कर रहा था जबकि जमीनी हकीकत इसको असफल बता रही थी, फ़्रांस की कंपनी वेओलिया को फ़्रांस की ही तीन गैर-सरकारी संगठनों ने “पीनोच्चिओ अवार्ड” दिया जो वेओलिया द्वारा स्थानीय लोगों के पानी अधिकार को दरकिनार कर मुनाफे को प्राथमिकता देने के लिए है।
नागपुर म्यूनिसिपल कार्पोरेशन कर्मचारी संघ के जम्मू आनंद का कहना है कि “यह अत्यधिक आपत्तीजनक है कि विश्व बैंक नागपुर प्रोजेक्ट को ‘सफल मॉडल’ कहता है। हकीकत यह है कि यह प्रोजेक्ट हर तरह से असफल रहा है। पिछले 3 वर्षों में इस प्रोजेक्ट को सक्रिय रूप में चलाने के लिए और सिस्टम की देखरेख का व्यय बहुत बढ़ गया है जिसके कारणवश पानी की कीमत भी अनेक गुना बढ़ गयी है। कर्मचारियों को कम वेतन दे कर उनका शोषण भी हो रहा है”। नागपुर म्यूनिसिपल कार्पोरेशन कर्मचारी संघ आईएफ़सी-द्वारा समर्थित पानी निजीकरण के खिलाफ संघर्षरत है।
आईएफ़सी भारत में अन्य जगह भी पानी निजीकरण के प्रोजेक्ट्स को समर्थन दे रहा है। खंडवा में आईएफ़सी ने विश्व इन्फ्रा को पानी वितरण प्रोजेक्ट के लिए ऋण दिया है। मध्य प्रदेश स्थित मंथन अध्ययन केंद्र ने इस प्रोजेक्ट का आंकलन किया और पाया कि इसकी वजह से पानी की दरों में बढ़ोतरी होती है, स्थानीय पानी पर प्रतिबंध लगता है और पानी वितरण पर निजी नियंत्रण बढ़ता है। इस आंकलन के बाद एक स्थानीय अभियान ने प्रदेश प्रशासन पर ज़ोर बनाया कि इसकी जांच हो। इस जांच रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रोजेक्ट में अनियमिततायेँ पायी गईं और इसको रद्द करने को कहा गया। इसके बावजूद विश्व बैंक इस प्रोजेक्ट को सफल बताता आ रहा है।
फोकस ऑन ग्लोबल साउथ के अफसर जाफरी के अनुसार “देशभर में अनेक स्थानीय जन-समूह पानी के निजीकरण का भीषण विरोध कर रहे हैं। हम लोग, विश्व बैंक – उद्योग – राजनीतिज्ञ - अपराधी आदि के पानी के निजीकरण करने के भ्रष्ट और गैर-पारदर्शी तरीकों का खुलासा करते रहेंगे”।
कॉर्पोरेट अकौंटबिलिटी इंटरनेशनल ने अक्टूबर माह मे हुए वार्षिक मीटिंग मे विश्व बैंक के नाम खुला पत्र जारी किया था जिसपर विश्व भर से 70 से अधिक प्रभावकारी जन स्वास्थ्य, पानी अधिकार विशेषज्ञ, अर्थ और विधि विशेषज्ञ, आदि ने हस्ताक्षर किए थे - इनमें जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, मंथन अध्ययन केंद्र, फोकस ऑन ग्लोबल साउथ आदि भी शामिल थे। इस खुले पत्र में विश्व बैंक से आह्वान किया गया था कि वो पानी निजीकरण को समर्थन देना बंद करे, और इसकी शुरुआत आईएफ़सी से हो जो पानी उद्योग में किए गए निवेश को वापस ले और समर्थन बंद करे।
एक साल बाद कारवाई तो कोई हुई नहीं और सरकारी प्रतिनिधि और विश्व बैंक के निर्णय लेने वाले अधिकारी वैसी ही एक बैठक में फिर मिल रहे हैं। परंतु आईएफ़सी के पानी निजीकरण को अक्सर अप्रत्यक्ष समर्थन के विरोध में जन संगठन एकत्रित हो रहे हैं। इंडियन सोश्ल एक्शन फॉरम (इंसाफ) के विलफ़्रेड डीकोस्टा के अनुसार “हम पानी निजीकरण के विरोध में अपना संघर्ष जारी रखेंगे और सार्वजनिक पानी वितरण प्रणाली की मांग को भी उठाते रहेंगे जो जनता के लिए कार्यरत रहे न कि मुनाफा कमाने के लिए”।
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस)
15 अप्रैल 2014
Published in:
Hindi Citizen News Service (CNS), India
PNews, India