मदर टेरेसा जैसा काम क्यों नहीं करता संघ?

डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस स्तंभकार
सीएनएस फोटो लाइब्ररी/2013
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दुत्व की विचारधारा से जुड़े तमाम लोगों को नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब उन्हें वे बातें खुल कर कहने की छूट मिल गई है जो वे पहले नहीं कह पाते थे। इनमें से कई बातें विवादास्पद हैं। इधर अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थानों पर हमले भी बढ़ गए हैं। हमला करने वाले भी निडर हो गए हैं। स्थिति इतनी चिंताजनक है कि बराक ओबामा, जिन्हें नरेन्द्र मोदी अपना दोस्त बता कर लाए थे, ने भारत को धार्मिक सहिष्णुता की नसीहत दे डाली। वह भी एक बार नई दिल्ली में तो अमरीका वापस पहुंचने पर वाशिंग्टन डी.सी. में दूसरी बार।


ओबामा ने कहा यदि महात्मा गांधी जिंदा होते तो आज उन्हें बहुत धक्का पहुंचता। भारत को इसलिए जाना जाता है कि विश्व के दूसरे हिस्सों से जब लोगों को उनकी धार्मिक निष्ठा के कारण प्रताड़ित किया जाता है तो भारत में उन्हें पनाह मिलती है। धार्मिक सहिष्णुता व विविधता की मिसाल भारत को यदि कोई धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दे तो यह हमारे लिए काफी शर्म की बात होनी चाहिए।

    नरेन्द्र मोदी न जाने कितने संघ और हिन्दुत्व की तरफ से आ रहे इन विवादास्पद बयानों से सहमत हैं किंतु उन्हें भारत में विदेशी पूंजी निवेश हेतु माहौल बिगड़ रहा है इसकी तो चिंता जरूर होनी चाहिए। ओबामा की टिप्पणी के बाद जब नरेन्द्र मोदी ने कहा कि धर्म के नाम पर हिंसा नहीं होनी चाहिए, जो कहने में उनको 15 साल लग गए, ऐसा लगा था कि अब उल्टी-सीधी बयानबाजी पर रोक लगेगी।

    किंतु फिलहाल नरेन्द्र मोदी विवादास्पद बयान देने वालों पर लगाम लगाने में सफल नहीं हुए हैं। अब ताजा हमले का निशाना बनीं हैं मदर टेरेसा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि मदर टेरेसा कोई सामाजिक कार्य नहीं कर रही थीं बल्कि लोगों का धर्म परिवर्तन कराने के उद्देश्य से काम कर रही थीं।

    मदर टेरेसा सिर्फ एक महान व्यक्ति ही नहीं बल्कि संत की पदवी के करीब पहुंचने वाली व्यक्ति हैं। ऐसे कितने लोग संघ के पास हैं?

    मदर टेरेसा ने जो काम किया है उसमें बहुत बहादुरी की जरूरत होती है। उस किस्म की बहादुरी नहीं जिसकी जरूरत किसी पर हमला करने के लिए पड़ती है। बल्कि हमला तो पागलपन में किया जाता है। किसी अत्यंत असहाय व्यक्ति जो गरीबी या बीमारी में सड़क पर पड़ा हुआ है को देख कर लोग अनदेखा करने की कोशिश करते हैं। कई बार वे ऐसी दयनीय स्थिति में होते हैं कि उनको देखने के लिए दिल को बहुत मजबूत करना पड़ता है। ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम कि ऐसे लोगों के साथ क्या किया जाए? किंतु जो मजबूत दिल वाले समझदार लोग होते हैं वे इन बेघर लोगों के बारे में सोचते हैं। वे सोचते हैं कि इनकी हालत कैसे सुधरे। उनकी संख्या और भी कम होती है जो इन दबे-कुचले लोगों के लिए कुछ करने की कोशिश करते हैं। मदर टेरेसा उनमें से एक थीं। दूसरा नाम जो ध्यान आता है वह है बाबा आम्टे का। बाबा आम्टे, जो कुश्ती में मेडल प्राप्त कर चुके थे, भी पहले एक कुष्ठ रोगी जिसके रोग में कीड़े लग गए थे को देखकर वहां से विचलित होकर तेजी से चले गए थे। फिर उन्होंने अपने आप को धिक्कारा और उस कुष्ठ रोगी को उठा कर लाए और उसकी सेवा शुरू की। आज पूरा आम्टे परिवार समाज के वंचित तबकों की सेवा में लगा है।

    मदर टेरेसा ने अपना जीवन वंचित समाज को समर्पित कर दिया। जिस किस्म के लोगों की उन्होंने सेवा की वे समाज द्वारा तिरस्कृत लोग हैं। भारत से गरीबी न मिटने का एक बड़ा कारण हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था है। ज्यादातर गरीब दलित हैं। जो समाज उनको अछूत मानता है वह उनकी सेवा कैसे करेगा?

    यदि किसी असहाय व्यक्ति को समाज सम्मान के साथ जीने का अवसर नहीं दे रहा है और कोई अन्य धर्म को मानने वाले उसे एक सम्मान के साथ जीने का मौका देते हैं और वह व्यक्ति अपना धर्म छोड़ सेवा करने वालों का धर्म स्वीकार कर लेता है तो इसमें किसी को क्यों आपत्ति होनी चाहिए ? भारतीय संविधान नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है।

    जब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को हिन्दू धर्म के ढांचे में सम्मान के साथ जीने की गुजाइश नहीं दिखी तो उन्हें ऐलान करना पड़ा कि वे पैदा जरूर एक हिन्दू के रूप में हुए हैं किंतु मरेंगे हिंदू के रूप में नहीं। और उन्होंने अपने कई अनुयाइयों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया। हम इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि जब डॉ. अम्बेडकर जैसे विद्वान व्यक्ति को हिन्दू धर्म त्यागने से नहीं रोका जा सका तो ऐसे अनजान लोग जो रोज-रोज अपमान सहते हैं हिन्दू धर्म से मुक्ति का रास्ता किस बेसब्री से देखते होंगे। हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था ने दलितों के साथ अमानवीय व्यवहार किया है और आज भी कर रही है। आखिर क्यों एक दलित ही हमारा गटर साफ करने के लिए उसमें घुसता है या वह सम्पन्न समाज, जिसमें अभी भी सवर्ण का ही वर्चस्व है, का मैला क्यों ढोता है?

    बड़े पैमाने पर धर्मांतरण जबरदस्ती नहीं कराया जा सकता। अन्यथा लोग खुद विरोध करेंगे। उन्हें जीवन जीने की बेहतर सम्भावना दिखती है इसलिए वे धर्म परिवर्तन करते हैं।

    यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गरीब-दलितों-आदिवासियों के धर्मातंरण से दिक्कत है तो वे भी क्यों नहीं मदर टेरेसा द्वारा स्थापित सेवा के उच्च मानदण्डों को छूने की कोशिश कर लोगों को धर्मांतरण से रोकते हैं? संघ ऐसा कर भी रहा है किंतु उसके प्रयास कम पड़ रहे हैं। क्योंकि वह सेवा की भावना से नहीं बल्कि राजनीतिक उद्देश्य से काम कर रहा है।

    यदि मदर टेरेसा का उद्देश्य धर्मांतरण कराना ही होता तो उन्हें इतनी तपस्या करने की क्या जरूरत थी? वे एक सुविधाभोगी जिंदगी जीते हुए भी यह काम कर सकती थीं।

    काश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मदर टेरेसा के उच्च आदर्शों से कुछ सीखने की कोशिश करता।

डॉ संदीप पाण्डेय, सीएनएस स्तंभकार 
7 मार्च 2015
डॉ संदीप पाण्डेय, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और मगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता। वे जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) और आशा परिवार का भी नेतृत्व करते हैं और आईआईटी-बीएचयू में इंजीन्यरिंग पढ़ाते हैं। Email: ashaashram@yahoo.com, Twitter: @sandeep4justice