किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने पर सोशलिस्ट पार्टी का अनशन समाप्त हुआ

सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के उन्नाव जिलाध्यक्ष अनिल मिश्रा के नेतृत्व में 8 जनवरी 2015 से हो रहे अनिश्चितकालीन अनशन 9 जनवरी 2015 को समाप्त हुआ जब उन्नाव के कुछ अन्न-क्रय केन्द्रों से खरीद आरंभ हो गयी। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के कार्यकर्ताओं ने किसान-विरोधी भू-अधिग्रहण अध्यादेश की प्रतियाँ गांधी प्रतिमा, हजरतगंज, लखनऊ पर 9 जनवरी को जलाईं।

सोशलिस्ट पार्टी के अनशन शुरू होते ही उन्नाव के कुछ क्रय केन्द्रों से अन्न-खरीद चालू तो हो गयी पर सभी क्रय केन्द्रों से खरीद नहीं हो रही है, ऐसी रिपोर्ट आ रही है।

उत्तर प्रदेश में इस समय किसान को धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य रुपये 1360 प्रति क्विंटल 'ब' ग्रेड और 1400 रुपये प्रति क्विंटल 'आ' ग्रेड सब जगह नहीं मिल रहा है। ज़्यादातर क्रय केंद्र बंद पड़े हैं। गुजरात और अन्य प्रदेशों से भी रिपोर्ट आ रही है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है।

सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के उन्नाव जिला-अध्यक्ष अनिल मिश्रा 24 नवंबर 2014 तथा 15 दिसम्बर 2014 को जब जिला मुख्यालय पर बैठे तो 10 केंद्र खोले गए, किन्तु खरीद कहीं भी शुरू नहीं हुई। अत: अनिल मिश्रा ने राज्य की राजधानी में गांधी प्रतिमा हजरतगंज में 8 जनवरी 2015 से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठने का निर्णय लिया, जिसके फलस्वरूप जिला अधिकारी उन्नाव ने अनाज खरीद आरंभ करने के आदेश दिये। परंतु सिर्फ रुपये 1332 प्रति क्विंटल की दर से भुगतान हुआ है।

यह अत्यंत शर्म की बात है कि जिस देश में पिछले 20 वर्षों में ढाई लाख किसानों की आत्महत्या हो चुकी है और किसान बदहाल है वहाँ उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं मिल रही है। रुपये 1360, रुपये 1400 की घोषणा कर सिर्फ रुपये 1332 की दर से सरकार भुगतान के लिए तैयार हुई है।

यह किसान को और कर्ज़ तथा गरीबी की तरफ धकेलने की साजिश है। दूसरी तरफ सार्वजनिक वितरण प्रणाली को भी खत्म करने की साजिश है। यदि सरकार किसान से अनाज नहीं खरेदगी तो लोगों को राशन व्यवस्था में अन्न क्या देगी? हम केंद्र और राज्य सरकार की मिली-जुली साजिश का कड़ा विरोध करते हैं। हम अधिकारियों से पूछना चाहेंगे कि यदि उन्हे निर्धारित वेतन से कम वेतन दिया जाएगा तो क्या वे स्वीकार करेंगे? या अकार्यकुशलता के कारण उनके वेतन की कटौती होगी तो क्या वे स्वीकार करेंगे? किसानों से कहा जा रहा है कि उनके उत्पादन की गुणवकता ठीक न होने के कारण अनाज की मात्रा कम कर भुगतान में कटौती की जा रही है।

उधर केंद्र सरकार ने भू-अधिग्रहण कानून को एक अध्यादेश जारी कर कमजोर कर दिया है। अब किसानों की जमीन अधिगृहीत करने से पहले 70% भू-स्वामियों की सहमति जरूरी नहीं है। न ही जन-सुनवाई की आवश्यकता है। इस तरह भू-अधिग्रहण की वजह से उत्पन्न होने वाले सामाजिक प्रभाव का अध्यन्न जरूरी नहीं रह गया है।

यह सारे किसान-विरोधी कदम हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की मिलीभगत से बदहाल किसान की स्थिति और बदतर होगी। हम दोनों सरकारों की नीतियों का विरोध करते हैं, और चेतावनी देते हैं कि वें अपना किसान-विरोधी रवैया छोड़ें। जो सबको खिला कर जिंदा रहता है यदि उसी की स्थिति बदहाल रहेगी तो समाज कैसे खुशहाल रहेगा?

सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
14 जनवरी 2015