माहवारी से किशोरी मन क्यों घबराये

बृहस्पति कुमार पांडेय, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस
[सर्व-प्रथम मुक्ता पत्रिका में प्रकाशित]
किशोरावस्था यानी बचपन से बडे होने की अवस्था। यह अवस्था लडकियों के जीवन का ऐसा समय होता है जिसमें उन्हें तमाम तरह के शारीरिक बदलाव से गुजरना पडता है। इस दौरान किशोरियां अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों के बारे में अंजान होती है। जिसकी वजह से उन्हें तमाम तरह की समस्याओ से गुजरना पडता है जिसमें उलझन, चिन्ता, और बेचैनी के साथ-साथ हर चीज के बारे में जान लेने की उत्सुंकता जन्म लेती है। किशोरियों को उनके परिवार के सदस्यों द्वारा न ही उन्हें बच्चा समझा जाता है और न ही बडा। ऐसे में उनके प्रति केाई भी लापरवाही किशोरियों के लिए घातक हो सकती है।

लडकियों में किशोरावस्था की शुरूआत उम्र के 9वें वर्ष में हो जाती है। जो 19 वर्ष तक होती है। जब लडकी किशोरावस्था में प्रवेश करती है तो उसके प्रजनन अंगो से सम्बन्धित तमाम परिवर्तन बडी तेजी से होते है। इसी दौरान किशोरियों में माहवारी की शुरूआत होती है जो किशोरियों के प्रजनन तंत्र के स्वस्थ होने का संकेत देती है। किशोरावस्था की शुरूआत में परिवार की जिम्मेदारी बनती है कि वह किशोरी की उचित देखभाल करने के साथ उन्हें अच्छे भले का परामर्श देते रहें क्योंकि यह एक ऐसी उम्र होती है जिसमें किशोरी सपनों की दुनिया बुनने की शुरूआत करती है ऐसे में किशोरी लडकियों को उचित देखभाल परामर्श न मिलने से वह गलत कदम भी उठा सकती हैं। एक किशोरी के अभिभावक के रूप में माता पिता को चाहिए कि वह किशोरियों में आने वाले तमाम शारीरिक परिवर्तनों के बारे में उसे पहले से अवगत करायें जिससे वह अपने शारीरिक बदलाव का मुकाबला करने में सक्षम हो पायें । किशोरी अवस्था में लडकियों के प्रजनन अंगों से अचानक खून का आना उसे मानसिक रूप से विचलित कर सकता है इसलिए यह जरूरी है कि इसके बारे में किशोरियों को पहले से ही जानकारी हो। जिससे माहवारी अस्वच्छता से होने वाली बीमारियों व संक्रमण से उसका बचाव किया जा सके।

क्या है माहवारी

महिला रोग विशेषज्ञ डा0 प्रीती मिश्रा के अनुसार लडकियों में मुख्यतः दो अण्डाशय, गर्भाशय व उसको जोड़ने वाली दो नलियां जिसे फेलोपियन्स ट्यूब कहा जाता है होती हैं। यही आगे चलकर उसे स्वस्थ बच्चा जनने में सहायक होती हैं । लडकी जब बड़ी होती है तो उसके अण्डाशय से हर महीने एक अण्डा फूटकर बाहर आने लगता है जो बच्चेदानी की भीतरी दीवार में हर माह जमने वाले खून की परत से जाकर चिपक जाता है अगर इस दौरान लडकी के अण्डे से पुरूष शुक्राणु नहीं  मिलते हैं  तो बच्चेदानी के अन्दर जमी खून की परत टूट जाती है और यह अण्डे शरीर से बाहर निकलने लगतें है जिसे हम माहवारी के रूप में जानते हैं। माहवारी के पहले दिन से लेकर दो सप्ताह के बाद तक अण्डाशय में नया अंडा फूटने के लिए तैयार होने लगता है और गर्भाशय में पुनः खून की नई परत जमने लगती है। इस प्रकार हर माह यही चक्र चलता रहता है। महिलाओं में माह का 28वां दिन माहवारी के आने का समय होता है, अगर इसके पहले औरत और पुरूष का शुक्राणु मिल पा जाये तो गर्भ ठहर सकता है जिससे माहवारी बन्द हो जाती है। माहवारी के दौरान आमतौर पर एक महिला के योनि से 35-50 मिली खून निकलता है जो कभी-कभी इस मात्रा से अधिक भी हो सकता है। ऐसी अवस्था में कभी भी किशोरी को घबराना नहीं चाहिए, आमतौर पर माहवारी का चक्र 2-7 दिनों तक चलता है जिसके शुरूआती दिनों में खून का बहाव तेज होता है और बाद में धीरे-धीरे कम व समाप्त हो जाता है। अगर माहवारी के दौरान अधिक खून आ रहा है तो खून की कमी की समस्या हो सकती है ऐसे में किसी अच्छे डाक्टर से सलाह लेना नहीं भूलना चाहिए।

इन बातों का होना आम बात

किशोरियों में माहवारी का शुरूआती कुछ माह बेहद संवदेनशील होता है क्योंकि माहवारी के दौरान कई तरह की परेशानियां सामने आती है जिससे किशोरियां मानसिक रूप से परेशान हो सकती है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि उन्हें माहवारी के दौरान आने वाली परेशानियों के बारे में पूरी जानकारी हो जिससे वह इन चीजों का जमकर मुकाबला कर पायें। माहवारी के दौरान अक्सर थकान होने के साथ ही शरीर ढीला हो जाता है और सिर दर्द, चिड़चिड़ापन एवं स्तनों में कसाव की समस्या देखने को मिलती है। इस दौरान किशोरियों में कब्ज की शिकायत व काम में मन न लगने जैसी समस्या होना आम बात है। इसके अलावा कमर व पेडू में दर्द की समस्या से भी दो चार होना पड़ता है, जो कैल्सियम व आयरन की कमी से हो सकता है इस कमी को दूर करने के लिए किशोरियों केा नियमित व्यायाम करते रहना चाहिए, जिससे उन्हें राहत महसूस होती है। कभी कभार माहवारी आने का अन्तराल तीन महीने का भी हो जाता है जो किशोरियों में दबाव या चिन्ता के कारण भी होता है। यह कारण किसी अपने से बिछड़ने को लेकर भी हो सकता है। जिन किशोरियेां में माहवारी की शुरूआत जल्द हुई हो उनमें एक दो साल तक माहवारी चक्र अनियमित होने की शिकायत पाई जाती है। ऐसे में अगर किसी किशोरी में माहवारी चक्र 21-45 दिनों का है तो यह सामान्य बात हो सकती है, अगर माहवारी चक्र में अन्तराल दो महीने या तीन महीने का हो और यह लगातार चला आ रहा हो तो ऐसी अवस्था में किसी महिला डाक्टर से सलाह लेना जरूरी हो जाता है। डा0 प्रीती मिश्रा के अनुंसार अगर किशोरियों में एक महीने में ही दो बार माहवारी कि समस्या है तो ऐसी अवस्था में डाक्टर की सलाह जरूरी हो जाती है लेकिन कभी कभी बहुत ज्यादा खुशी, चिन्ता, दुख, या डर के वजह से भी माहवारी जल्दी आ सकती है।

इन बातों का रखें ख्याल

माहवारी के दौरान साफ सफाई व स्वच्छता का विशेष ख्याल रखना चाहिए, इस दौरान किशोरी द्वारा की गयी कोई भी लापरवाही उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। डाक्टर प्रीती मिश्र के अनुसार माहवारी के दौरान इस्तेमाल किये जाने वाले पैड की स्वच्छता का विशेष ख्याल रखना चाहिए। आमतौर पर गवई लडकियां माहवारी के दौर ानखून को सोखने के लिए पुराने कपडो से बने पैड का इस्तेमाल करती है जो उनके प्रजनन तंत्र के संक्रमण का कारण बन सकता है। ऐसी अवस्था में यह जरूरी हो जाता है कि किशोरी सिर्फ सेनेटरी पैड का ही इस्तेमाल करे जो आजकल बेहद सस्ते दर पर बाजार में उपलब्ध है। माहवारी के समय प्रतिदिन स्नान करना भी जरूरी होता है। नहाते समय अपने भीतरी कपडों को अच्छी तरह से साबुन और साफ पानी से धुलकर खुली धूप में सुखाना चाहिए और माहवारी के दौरान प्रयोग किये जाने वाले सेनेटरी पैड को दिन में कम से कम दो से तीन बार जरूर बदलते रहना चाहिए। सेनेटरी पैड बदलने से पहले और बाद में साबुन से हाथो को धुलना न भूले। डा0 प्रीती मिश्र के अनुसार माहवारी के दौरान निकलने वाले खून को सोखने के लिए जिस सेनेटरी पैड का इस्तेमाल किया जाता है वह अलग-अलग ब्राण्डो में उपलब्ध है ऐसी अवस्था में कम पैसे में भी इसकी खरीददारी की जा सकती है। यह न केवल आरामदेह होता है बल्कि इससे संक्रमक बीमारियों से बचाव भी किया जा सकता है। यह सेनेटरी पैड मेडिकल स्टोर, जनरल स्टोर, या डिपार्टमेन्टल स्टोर पर आसानी से उपलब्ध होते है।

लापरवाही बन सकती है संक्रमण का कारण

माहवारी के दौरान की गयी कोई भी लापरवाही किशोरी के लिए संक्रमण का कारण बन सकती है। क्योंकि जानकारी के अभाव में अक्सर किशोरियों द्वारा माहवारी के दौरान गन्दे कपडे का उपयोग कर लिया जाता है। जिससे इनके प्रजनन अंगो में विभिन्न तरह के संक्रमण देखने केा मिलते है। यह क्रमण यौनांगो में किसी प्रकार के घाव होने, बदबूदार पानी निकलने, दर्द, दाने, या खुजली होने जैसे हो सकते है। जिसकी वजह से असामान्य रूप से स्त्राव होने लगता है।। जो कमर व पेडू में दर्द का कारण भी बन जाता है। कभी कभार यौनांगो में अधिक संक्रमण की वजह से बदबूदार सफेद पानी भी आने लगता है जिसकी वजह से भी इनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पडता है।

माहवारी से जुडे अंधविश्वास से बचे

सौन्दर्य विशेषज्ञ व सामाजिक कार्यकत्री सुप्रिया सिंह राठौर का कहना है कि किशोर मन किसी तरह के बन्धन में बंधकर नही रहना चाहता ऐसे में उनके ऊपर विभिन्न रूढिवादिता व परम्पराओं का थोपना किशोरी के लिए घातक हो सकता है। अक्सर परिवार के सदस्यों में माहवारी को लेकर तमाम तरह की भ्रान्तियां या अंधविश्वास देखने को मिलते है जो किशोरियों पर भी थोपने की कोशिश की जाती है। यह अंधविश्वास और भ्रान्तियां किशोरियों में आगे चलकर उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकती है।। सुप्रिया सिंह का कहना है कि अक्सर लोगो का यह सोचना होता है कि माहवारी के दौरान निकलने वाला खून गन्दा होता है जबकि यह खून हमारे शरीर में उपलब्ध खून की तरह ही होता है वहीं माहवारी के दौरान योनि मार्ग से बाहर निकलता है। यदि योनि अंगो की साफ सफाई का ध्यान रखा जाये तो माहवारी के दौरान निकलने वाले खून से किसी प्रकार संक्रमण नही होता है। सुप्रिया सिंह के अनुसार माहवारी को लेकर सदियो से यह अंधविश्वास बना हुआ है कि माहवारी के दौरान किशोरी या महिला को खाना नही बनाना चाहिए न ही खाने पीने की वस्तुओं, कुओ, तालाबो नदियों आदि के पास जाना चाहिए। ऐसा करने से यह सब अशुद्ध हो जाता है जबकि माहवारी के दौरान इन सब चीजों के छूने से किसी तरह की हानि नही हेाती है यह मात्र अंधविश्वास और भ्रान्ति के कारण होता है। हां यह जरूर है कि माहवारी के दौरान अगर खाना बनाने या परोशने का काम किया जा रहा है कि तो हाथो केा साबुन से भली प्रकार से धोना चाहिए जिससे किसी तरह के संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। माहवारी के दौरान खान पान को लेकर भी तमाम तरह की भ्रान्ति बनी हुई है जिसकी वजह से किशोरियो के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पडता है। लोगो का मानना है कि माहवारी के दौरान खट्टा पदार्थ खाने से अधिक खून निकलता है जबकि माहवारी में खट्टी चीजे खाना किसी तरह का नुकसान नही पहुचाता है। इसके अलावा दूध दही, एवं पनीर के भी खाने पर रोक लगायी जाती है जबकि माहवारी के दौरान इन पदार्थो के खाने से शरीर को पोषण प्राप्त होता है।

अच्छा खान पान है जरूरी
माहवारी के दौरान किशोरियों के खान पान पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है क्योंकि किशोरावस्था के दौरान उनके शरीर का विकास तेजी से होता है ऐसे में माहवारी के दौरान कभी कभी अधिक रक्तस्राव उनमें लौह तत्वो की कमी का कारण बन सकता है। इसलिए किशोरियों केा हरी पत्तेदार सब्जियां मौसमी फल, दाले, गुड, के साथ पौष्टिक पदार्थो के खाने पर विशेष जोर देना चाहिए और अपने स्वास्थ केन्द्र से उन्हें आयरन की गोलियां भी दिलाना नही भूलना चाहिए। कोई भी किशोरी माहवारी की जटिलताओ से बचने के लिए अपने अभिभावको से अपनी समस्याओं को साझा करने से न हिचकें क्योंकि यह आगे चलकर उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। किशोरियों को अपने स्वास्थ के प्रति सचेत रहने के लिए माहवारी के दौरान अपनी साफ सफाई का विशेष ध्यान देना चाहिए साथ ही खाने पीने की वस्तुओं के छूने के पहले व बाद में साबुन से धुलना नहीं भूलना चाहिए। तभी माहवारी के खौफ से छुटकारा पाया जा सकता है।      

बृहस्पति कुमार पांडेय, सिटीजन न्यूज सर्विस - सीएनएस 
२८ जुलाई, २०१६