गंभीर जन स्वास्थ्य चुनौती हैं फेफड़े सम्बंधित रोग

शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
भारत में फेफड़े सम्बंधित रोगों के बढ़ते हुए दर ने जन-स्वास्थ्य के समक्ष एक गंभीर चुनौती उत्पन्न कर दी है. यदि मजबूत, पर्याप्त और समोचित कदम नहीं उठाये गए तो स्वच्छ हवा और स्वस्थ फेफड़े हम लोगों के लिए दुर्लभ हो जायेंगे. 18वें फेफड़े रोगों पर राष्ट्रीय अधिवेशन (नेपकॉन 2016) के आयोजक अध्यक्ष, डायरेक्टर प्रोफेसर (डॉ) केसी मोहंती ने बताया, कि “हाल ही में उत्तर-केन्द्रीय भारत में, ‘स्मोग’ ने आम जन-जीवन कुंठित कर दिया था और उसका अत्याधिक आर्थिक व्यय भी सबको उठाना पड़ा था. यह जन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत जरुरी है कि आकस्मिक ठोस कदम लिए जाएँ जिससे कि सभी जन मानस स्वच्छ हवा में स्वस्थ फेफड़े से सांस ले और पूर्ण रूप से देश निर्माण में सहयोग कर सके.”

नेपकॉन 2016 का आयोजन देश के दो प्रमुख चिकित्सकीय संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है: नेशनल कॉलेज ऑफ़ चेस्ट फिजिशियन्स (इंडिया) और इंडियन चेस्ट सोसाइटी. नेपकॉन 2016 के अनेक विशिष्ठ संगठनों के साथ शिक्षण/ वैज्ञानिक साझेदारी भी है, जिनमें प्रमुख हैं: एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया; टीबी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया, एनवायरनमेंट मेडिकल एसोसिएशन, पीपल्स हेल्थ आर्गेनाईजेशन, जिरियाट्रिक सोसाइटी ऑफ़ इंडिया, भारत सरकार का वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट दिल्ली, आदि. नेपकॉन 2016 मुंबई में २४-२७ नवम्बर २०१६ के दौरान आयोजित होगी.
प्रोफेसर केसी मोहंती ने बताया कि “अब तक नेपकॉन 2016 में 2717 चिकित्सकों ने पंजीकरण कराया है जो अब तक का नेपकॉन इतिहास में सर्वाधिक पंजीकरण है. इनमें विभिन्न चिकित्सा विशेषताओं से विशेषज्ञ शामिल हैं जैसे कि मेडिसिन, टीबी और एचआईवी चिकित्सक, और यूरोप की रेस्पिरेटरी कांग्रेस और अमरीकी कॉलेज ऑफ़ चेस्ट फिजिशियन्स, सार्क और ‘ब्रिक्स’ देशों से 70 अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ. नागालैंड के राज्यपाल महामहिम श्री पीबी आचार्य जी, नेपकॉन 2016 के मुख्य अथिति रहेंगे. महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ़ हेल्थ साइंसेज के कुलपति डॉ दिलीप म्हैसेकर अध्यक्षीय संबोधन करेंगे.”

प्रो0 केसी मोहंती ने कहा कि चिकित्सकीय जर्नल ‘लांसेट’ में प्रकाशित शोध के अनुसार, भारत में टीबी रोगियों की संख्या वर्त्तमान में अनुमानित आंकड़ों से २-3 गुणा अधिक हो सकती है. जितने टीबी रोगी सरकारी स्वास्थ्य सेवा से उपचार पाते हैं उसके दुगने निजी चिकित्सा सेवा से इलाज करवा रहे हैं. 2014 में 63 लाख टीबी रोगी विश्व में रिपोर्ट हुए थे जिनमें से 25% भारत में थे – जो दुनिया में सबसे अधिक रोग-दर था. जाति, लिंग, अमीर-गरीब आदि से परे, टीबी किसी को भी हो सकती है. दवा-प्रतिरोधक टीबी ने जन-स्वास्थ्य चुनौती को अधिक जटिल बना दिया है.”

एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नेपकॉन 2016 के सह-आयोजक प्रमुख डॉ ईश्वर गिलाडा ने बताया कि “फेफड़े सम्बंधित रोगों पर वरिष्ठ विशेषज्ञों द्वारा आधुनिकतम शोधपत्र नेपकॉन 2016 में प्रस्तुत किये जायेंगे. दमा (अस्थमा), क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), इंटर-स्टीशीअल डिजीज, वृद्धों में फेफड़े रोग, बाल फेफड़े रोग, फेफड़े के कैंसर, निद्रावस्था सम्बंधित रोग, टीबी, टीबी और एचआईवी सह-संक्रमण, निमोनिया, नवीनतम जांच और उपचार तकनीकियाँ, आदि नेपकॉन 2016 के प्रमुख विषय-आकर्षण रहेंगे.”

डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि “विश्व में भारत में न केवल सर्वाधिक टीबी रोग-दर है बल्कि एचआईवी और टीबी सह्संक्रमण, दवा-प्रतिरोधक टीबी, अस्थमा (दमा), सीओपीडी, बाल निमोनिया आदि का दर भी भारत में चिंताजनक है. फेफड़े के अनेक रोगों का खतरा बढ़ाने वाले कारण भी अक्सर समान हैं जैसे कि तम्बाकू सेवन या धूम्रपान, घर के भीतर या पर्यावरण में प्रदूषण, चूल्हे का धुआं आदि. टीबी और एचआईवी सहसंक्रमण दुगनी चुनौती दे रहा है क्योंकि दुनिया में, भारत में टीबी दर सर्वाधिक है और एचआईवी दर में भारत तीसरे स्थान पर है. यह अत्यंत आवश्यक है कि न केवल विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रम एकजुट हो कर कार्य करें बल्कि अंतर-विभागीय और हर संभव साझेदारी भी स्थापित हो जिससे कि स्वच्छ हवा और स्वस्थ फेफड़े का लाभ सबको मिले.”

नेपकॉन 2016 के उप-आयोजक अध्यक्ष डॉ सलिल बेंद्रे ने कहा कि “भारत ने अन्य देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र में सतत विकास लक्ष्य २०३० तक पूरे करने का वादा किया है. इन लक्ष्यों में २०३० तक टीबी और एड्स का पूर्ण रूप से उन्मूलन, सबको स्वास्थ्य सेवा मिलना, वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों में भारी गिरावट आना, गैर-संक्रामक रोगों (अस्थमा, कैंसर, सीओपीडी आदि) के मृत्यु-दर में एक-तिहाई कमी आना, शामिल हैं.”

नेपकॉन 2016 के आयोजक सचिव डॉ अघम वोरा ने बताया कि “इन सतत विकास लक्ष्य के वादों के ठीक विपरीत जमीनी हकीकत अलग है. 2016 की विश्व टीबी रिपोर्ट के अनुसार टीबी दर और टीबी मृत्यु दर - कम होने के बजाय - बढ़ गए हैं, अस्थमा (दमा) और सीओपीडी दर तेज़ी से बढ़ रहे हैं और फेफड़े के रोगों से होने वाली मृत्यु का सीओपीडी एक बड़ा कारण बन गया है.” पिछले ५ सालों में फेफड़े की फाइब्रोसिस के दर रफ़्तार के साथ बढ़ गया है. जिस तरह से उत्तर-केन्द्रीय भारत को स्मोग ने ‘गैस चैम्बर’ जैसा बना दिया था उससे ये स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण को रोकने और पर्यावरण संरक्षण का हर संभव प्रयास, प्राथमिकता से बिना विलम्ब होना चाहिये.

यदि भारत को सतत विकास लक्ष्य २०३० तक पूरे करने हैं तो यह आवश्यक है कि सरकार फेफड़े के रोगों पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावकारी ढंग से सक्रीय हो.

नेपकॉन 2016 में जानेमाने फिल्म-अभिनेता अनिल कपूर को सम्मानित किया जायेगा और वे स्वच्छ वायु और स्वस्थ फेफड़े के ‘ब्रांड एम्बेसडर’ के रूप में आह्वान करेंगे.

शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
२३ नवम्बर २०१६

आर्याव्रत