टीबी का पक्का इलाज सरकारी टीबी कार्यक्रम में नि:शुल्क उपलब्ध है पर
यदि दवा प्रतिरोधक टीबी हो जाए, तो इलाज न केवल मुश्किल बल्कि अत्यंत महंगा
भी हो सकता है. सरकारी टीबी कार्यक्रम के तहत दवा प्रतिरोधक टीबी का भी
इलाज नि:शुल्क उपलब्ध है - पर नवीनतम जीवनरक्षक दवाओं की उपलब्धता गंभीर
रूप से असंतोषजनक है.
दवा प्रतिरोधक टीबी का तात्पर्य यह है कि सबसे प्रभावकारी टीबी दवाएं असर नहीं करतीं. जैसे-जैसे एक-एक कर के दवाओं के प्रति दवा-प्रतिरोधकता होगी वैसे-वैसे जिन दवाओं से उपचार हो सकता है उनकी संख्या भी कम होती जाती है. जाहिर है कि दवा प्रतिरोधक टीबी के रोगियों के इलाज के लिए जीवनरक्षक दवाएं सीमित हैं - इसीलिए यह अत्यंत गंभीर मामला है कि नवीनतम दवाएं इन जरूरतमंद लोगों को बिना विलम्ब उपलब्ध हों जिससे कि इनका सफल इलाज हो सके और जीवन बच सके.
स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं ने पत्र में क्या लिखा?
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को अनेक स्वास्थ्य अधिकार संगठनों ने पत्र लिख कर मांग की कि सरकारी टीबी कार्यक्रम में बिना-विलम्ब नवीनतम टीबी दवाएं शामिल की जाएँ और जरूरतमंद लोगों को यह जीवनरक्षक दवाएं इलाज के लिए उपलब्ध करवाई जाएँ. इस नयी टीबी दवा का नाम है: दिलामानिद (Delamanid).
दिलामानिद दवा पर एक जापानी कंपनी का एकाधिपत्य स्थापित है. इस कंपनी का नाम है: ओत्सुका फार्मास्युटिकल्स कंपनी लिमिटेड (ओत्सुका). इस कंपनी ने इस दवा को, जो दवा-प्रतिरोधक टीबी के रोगियों के लिए जीवनरक्षक हो सकती है, अभी तक भारत में पंजीकृत भी नहीं करवाया है. इसीलिए इस पत्र के जरिये स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं ने अपील की है कि सरकार ओत्सुका को निर्देशित करे कि वो बिना विलम्ब इस दवा दिलामानिद को भारत में पंजीकृत करे और सरकारी टीबी कार्यक्रम के तहत इसको उपलब्ध करवाया जाए. [सरकारी टीबी कार्यक्रम का औपचारिक नाम है "पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम या Revised National TB Control Programme/ RNTCP"].
एचआईवी पोसिटिव लोगों के दिल्ली नेटवर्क से जुड़े पॉल ल्हुंगडिम ने कहा कि दवा प्रतिरोधक टीबी के साथ जीवित लोग अक्सर प्रभावकारी दवाएं न मिलने के कारण मृत होते हैं. हमारी भारत सरकार से मांग है कि टीबी की नयी दवा दिलामानिद को सरकारी टीबी कार्यक्रम के तहत जरूरतमंद लोगों के इलाज के लिए तुरंत उपलब्ध करवाए. इसके लिए जरुरी है कि यह दवा भारत में पंजीकृत हो और इसके बाद ही सरकारी कार्यक्रम के तहत उपलब्ध करवाई जा सके. यदि ओत्सुका यह दवा भारत के सरकारी टीबी कार्यक्रम में उपलब्ध करवाने में असमर्थ है तब स्वास्थ्य मंत्रालय को जेनेरिक दवा निर्माता ढूंढना चाहिए जिससे कि इन जीवनरक्षक दवाओं का उपयोग सरकारी टीबी कार्यक्रम के तहत हो सके. ऐसा करने से हजारों जीवन बच सकते हैं.
आल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क से जुड़े डॉ गोपाल डबाडे का कहना है कि हाल ही में हुए दिल्ली हाई कोर्ट केस से जाहिर है कि दवा-प्रतिरोधक टीबी के साथ जीवित लोगों के लिए जीवनरक्षक दवाएं कितनी बड़ी जन-स्वास्थ्य एवं मानवाधिकार प्राथमिकता है. ओत्सुका और सम्बंधित सरकारी अधिकारियों को एकजुट हो कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर जरूरतमंद व्यक्ति तक यह जीवनरक्षक दवा पहुँच रही हो और इसके साथ ही दवा-प्रतिरोधकता पर भी प्रभावकारी अंकुश लगे. दवाओं के सही इस्तेमाल न होने पर दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न हो सकती है इसलिए डॉ डाबाडे की दवाओं के जिम्मेदारी से सही इस्तेमाल की मांग अत्यंत गंभीर है.
देश के जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ता और लॉयरस कलेक्टिव से जुड़े आनंद ग्रोवर ने कहा कि ओत्सुका फार्मास्युटिकल्स ने अबतक भारतीय बाज़ार में इस दवा को उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया भी आरंभ नहीं की है. दिलामानिद दवा के भारत में उपलब्ध न होने से जो लोग दवा प्रतिरोधक टीबी (MDR/ XDR TB) से जूझ रहे हैं उनको अवांछनीय परिणाम झेलने पड़ रहे हैं. सरकार को अब हस्तक्षेप कर ओत्सुका को दवा सरकारी टीबी कार्यक्रम (RNTCP) के तहत उपलब्ध करवाने का निर्देश देना चाहिए.
एम-एस-ऍफ़ (सीमा-रहित चिकित्सकों का समूह) के एक्सेस अभियान से जुड़ी वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता लीना मेंघाने ने कहा कि पेटेंट इसलिए नहीं दिए जाते जिससे कि कंपनी का एकाधिपत्य स्थापित रहे बल्कि इसलिए पेटेंट दिए जाते हैं जिससे कि दवाएं देश में उपलब्ध हो सके. दिलामानिद को 8 साल पहले इंडिया में पहला पेटेंट मिला था पर इतने वर्ष बाद भी दवा जरूरतमंद लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है. जो लोग दवा प्रतिरोधक टीबी से जूझ रहे हैं उनके इलाज के लिए दवाएं सीमित ही हैं और अक्सर उनके लिए दिलामानिद दवा जीवनरक्षक हो सकती है. जीवनरक्षक दवाएं होने के बावजूद जरूरतमंद लोग बिना-इलाज हताश हैं - यह स्थिति अस्वीकारणीय है.
बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
29 जनवरी 2017
प्रकाशित
दवा प्रतिरोधक टीबी का तात्पर्य यह है कि सबसे प्रभावकारी टीबी दवाएं असर नहीं करतीं. जैसे-जैसे एक-एक कर के दवाओं के प्रति दवा-प्रतिरोधकता होगी वैसे-वैसे जिन दवाओं से उपचार हो सकता है उनकी संख्या भी कम होती जाती है. जाहिर है कि दवा प्रतिरोधक टीबी के रोगियों के इलाज के लिए जीवनरक्षक दवाएं सीमित हैं - इसीलिए यह अत्यंत गंभीर मामला है कि नवीनतम दवाएं इन जरूरतमंद लोगों को बिना विलम्ब उपलब्ध हों जिससे कि इनका सफल इलाज हो सके और जीवन बच सके.
स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं ने पत्र में क्या लिखा?
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को अनेक स्वास्थ्य अधिकार संगठनों ने पत्र लिख कर मांग की कि सरकारी टीबी कार्यक्रम में बिना-विलम्ब नवीनतम टीबी दवाएं शामिल की जाएँ और जरूरतमंद लोगों को यह जीवनरक्षक दवाएं इलाज के लिए उपलब्ध करवाई जाएँ. इस नयी टीबी दवा का नाम है: दिलामानिद (Delamanid).
दिलामानिद दवा पर एक जापानी कंपनी का एकाधिपत्य स्थापित है. इस कंपनी का नाम है: ओत्सुका फार्मास्युटिकल्स कंपनी लिमिटेड (ओत्सुका). इस कंपनी ने इस दवा को, जो दवा-प्रतिरोधक टीबी के रोगियों के लिए जीवनरक्षक हो सकती है, अभी तक भारत में पंजीकृत भी नहीं करवाया है. इसीलिए इस पत्र के जरिये स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं ने अपील की है कि सरकार ओत्सुका को निर्देशित करे कि वो बिना विलम्ब इस दवा दिलामानिद को भारत में पंजीकृत करे और सरकारी टीबी कार्यक्रम के तहत इसको उपलब्ध करवाया जाए. [सरकारी टीबी कार्यक्रम का औपचारिक नाम है "पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम या Revised National TB Control Programme/ RNTCP"].
एचआईवी पोसिटिव लोगों के दिल्ली नेटवर्क से जुड़े पॉल ल्हुंगडिम ने कहा कि दवा प्रतिरोधक टीबी के साथ जीवित लोग अक्सर प्रभावकारी दवाएं न मिलने के कारण मृत होते हैं. हमारी भारत सरकार से मांग है कि टीबी की नयी दवा दिलामानिद को सरकारी टीबी कार्यक्रम के तहत जरूरतमंद लोगों के इलाज के लिए तुरंत उपलब्ध करवाए. इसके लिए जरुरी है कि यह दवा भारत में पंजीकृत हो और इसके बाद ही सरकारी कार्यक्रम के तहत उपलब्ध करवाई जा सके. यदि ओत्सुका यह दवा भारत के सरकारी टीबी कार्यक्रम में उपलब्ध करवाने में असमर्थ है तब स्वास्थ्य मंत्रालय को जेनेरिक दवा निर्माता ढूंढना चाहिए जिससे कि इन जीवनरक्षक दवाओं का उपयोग सरकारी टीबी कार्यक्रम के तहत हो सके. ऐसा करने से हजारों जीवन बच सकते हैं.
आल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क से जुड़े डॉ गोपाल डबाडे का कहना है कि हाल ही में हुए दिल्ली हाई कोर्ट केस से जाहिर है कि दवा-प्रतिरोधक टीबी के साथ जीवित लोगों के लिए जीवनरक्षक दवाएं कितनी बड़ी जन-स्वास्थ्य एवं मानवाधिकार प्राथमिकता है. ओत्सुका और सम्बंधित सरकारी अधिकारियों को एकजुट हो कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर जरूरतमंद व्यक्ति तक यह जीवनरक्षक दवा पहुँच रही हो और इसके साथ ही दवा-प्रतिरोधकता पर भी प्रभावकारी अंकुश लगे. दवाओं के सही इस्तेमाल न होने पर दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न हो सकती है इसलिए डॉ डाबाडे की दवाओं के जिम्मेदारी से सही इस्तेमाल की मांग अत्यंत गंभीर है.
देश के जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ता और लॉयरस कलेक्टिव से जुड़े आनंद ग्रोवर ने कहा कि ओत्सुका फार्मास्युटिकल्स ने अबतक भारतीय बाज़ार में इस दवा को उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया भी आरंभ नहीं की है. दिलामानिद दवा के भारत में उपलब्ध न होने से जो लोग दवा प्रतिरोधक टीबी (MDR/ XDR TB) से जूझ रहे हैं उनको अवांछनीय परिणाम झेलने पड़ रहे हैं. सरकार को अब हस्तक्षेप कर ओत्सुका को दवा सरकारी टीबी कार्यक्रम (RNTCP) के तहत उपलब्ध करवाने का निर्देश देना चाहिए.
एम-एस-ऍफ़ (सीमा-रहित चिकित्सकों का समूह) के एक्सेस अभियान से जुड़ी वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता लीना मेंघाने ने कहा कि पेटेंट इसलिए नहीं दिए जाते जिससे कि कंपनी का एकाधिपत्य स्थापित रहे बल्कि इसलिए पेटेंट दिए जाते हैं जिससे कि दवाएं देश में उपलब्ध हो सके. दिलामानिद को 8 साल पहले इंडिया में पहला पेटेंट मिला था पर इतने वर्ष बाद भी दवा जरूरतमंद लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है. जो लोग दवा प्रतिरोधक टीबी से जूझ रहे हैं उनके इलाज के लिए दवाएं सीमित ही हैं और अक्सर उनके लिए दिलामानिद दवा जीवनरक्षक हो सकती है. जीवनरक्षक दवाएं होने के बावजूद जरूरतमंद लोग बिना-इलाज हताश हैं - यह स्थिति अस्वीकारणीय है.
बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
29 जनवरी 2017
प्रकाशित
- सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
- आर्याव्रत समाचार
- ऊर्जांचल टाईगर