जब तक हर टीबी रोगी की सही जांच नहीं होगी तब तक उसे टीबी का प्रभावकारी इलाज कैसे मिलेगा? जब तक उन्हें टीबी का प्रभावकारी इलाज नहीं मिलेगा, तब तक फेफड़े की टीबी फैलती रहेगी और टीबी से पीड़ित लोग भी अनावश्यक पीड़ा झेलते रहेंगे और टीबी मृत्यु का खतरा भी अत्यधिक रहेगा।
इसीलिए यह 100 दिवसीय टीबी अभियान अत्यंत अहम है क्योंकि यह उन लोगों तक टीबी सेवाएं पहुँचाने के लिए केंद्रित है जो प्रायः स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में रहते हैं और जिन्हें टीबी की सही जाँच और उचित इलाज नहीं मिल पाता।
इसीलिए यह 100 दिवसीय टीबी अभियान अत्यंत अहम है क्योंकि यह उन लोगों तक टीबी सेवाएं पहुँचाने के लिए केंद्रित है जो प्रायः स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में रहते हैं और जिन्हें टीबी की सही जाँच और उचित इलाज नहीं मिल पाता।
टीबी लक्षण हों या न हों पर टीबी जाँच सबकी हो
यह 100 दिवसीय टीबी अभियान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संभवत: पहला राष्ट्र-व्यापी प्रयास है कि सभी लोग जिन्हें टीबी होने का खतरा अधिक है, उनकी टीबी जांच होनी है। टीबी के लक्षण हों या न हों, सभी की एक्स-रे जाँच होगी, यदि इसमें संभावित टीबी निकलेगी तो टीबी की पक्की जाँच (मॉलिक्यूलर टेस्ट) के लिए उनको भेजा जाएगा। जिनको टीबी निकलेगी उनको टीबी के प्रभावकारी इलाज से जोड़ा जाएगा और जिनको टीबी (या संभावित टीबी) नहीं निकलेगी उनको टीबी से बचने वाले इलाज (लेटेंट टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी) दी जाएगी जिससे कि निकट भविष्य में भी उनको टीबी रोग न हो।
इस अभियान के तहत उन लोगों तक पहुँचने का प्रयास किया जा रहा है जो कुपोषित हैं, एचआईवी के साथ जीवित हैं, जिन्हें मधुमेह या डायबिटीज है, जो तंबाकू या शराब का सेवन करते हैं, जिनके किसी करीबी को टीबी रोग है, या अन्य किसी कारण से टीबी का खतरा अधिक है।
टीबी के 4 लक्षण हैं: 3 हफ्तों से अधिक चलने वाली खाँसी, भूख न लगना या बिना करण वजन गिरना, बुखार होना या रात को बेवजह पसीना आना। भारत सरकार के राष्ट्रीय टीबी सर्वेक्षण 2019-2021 के अनुसार, लगभग आधे टीबी रोगियों को कोई लक्षण था ही नहीं - उनके टीबी रोग होने की पुष्टि सिर्फ़ एक्स-रे होने पर हो सकी थी। देश के अनेक क्षेत्रीय टीबी सर्वेक्षण में भी यही निकल कर आया है कि आधे टीबी रोगियों को टीबी का कोई लक्षण था ही नहीं और एक्स-रे जाँच होने पर टीबी रोग की पुष्टि हो सकी - उन्हें जल्दी ही इलाज दिया गया और टीबी के फैलाव पर रोक लग सकी।
100 दिवसीय टीबी अभियान भारत के 33 प्रदेशों के 347 चिन्हित जिलों में चल रहा है (देश में लगभग 800 जिलें हैं)। जिन जिलों में टीबी मृत्यु दर, देश की औसत टीबी मृत्यु दर के बराबर या उससे अधिक थी, या जहाँ टीबी की नए रोगी दर देश के औसत नए टीबी रोगी दर से कम थी, उन 347 जिलों को इस अभियान में शामिल किया गया है। कर्नाटक प्रदेश के सबसे अधिक जिले शामिल हैं (31), उसके बाद महाराष्ट्र (30)।
चिकित्सकीय जाँच लेबोरेटरी लोगों के द्वार पर क्यों न जाये?
विश्व के अनेक देशों (जो टीबी से अधिक प्रभावित हैं) में चिकित्सकीय जाँच लेबोरेटरी सेवाओं को जनता के क़रीब ले जाने के अनेक सफल प्रयास किए गए हैं। तिमोर-लेसते देश में पिछले 3 सालों से एक छोटी-बस नुमा गाड़ी में एक्स-रे मशीन और भारत-निर्मित ट्रूनेट मॉलिक्यूलर टेस्ट, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित है, दूर-दराज इलाकों में जा कर लोगों की टीबी जाँच कर रही है और उन्हें टीबी सेवाओं से जोड़ रही है। उसी तरह बांग्लादेश में भी अनेक बस-नुमा विशेष-परिवर्तित गाड़ियों में भारत-निर्मित एक्स-रे (प्रोरेड/प्रोग्नॉसिस) सालों से दूर-दराज इलाकों में लोगों तक संभावित टीबी की जाँच पहुँचा रहा है।
यदि टीबी जाँच को जनता के पास ले जाना है तो यह आवश्यक है कि जाँच मशीन को चलाने के लिए लेबोरेटरी-नुमा व्यवस्था न लगे।ट्रूनेट मॉलिक्यूलर टेस्ट और अल्ट्रा पोर्टेबल एक्स-रे मशीन दोनों ही बैटरी पर भी घंटों चलती हैं, दोनों का उपयोग बिना लेबोरेटरी-नुमा व्यवस्था के भी किया जा सकता है, और एक छोटे बैग में ले के जाया जा सकता है। एक्स-रे मशीन कुछ-कुछ 'डीएसएलआर' कैमरे जैसी दिखती है। यह एक्स-रे मशीन विशेष इसलिए भी है क्योंकि यह आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस युक्त है और कंप्यूटर-द्वारा संभावित टीबी की जाँच करती है। ट्रूनेट मॉलिक्यूलर टेस्ट मशीन टीबी रोग की पक्की जाँच करती है (और टीबी के अलावा 40 से अधिक अन्य रोगों की भी पक्की जाँच कर सकती है जैसे कि हेपेटाइटिस, एचआईवी, मलेरिया, चिकनगुन्या, यौन संक्रमण, कोविड, आदि)।
दिल्ली और हरियाणा में मेदांता अस्पताल के टीबी-मुक्त भारत अभियान ने एक छोटी-बस नुमा गाड़ी को दूर-दराज इलाकों में भेज कर, पिछले 10 वर्षों में 10 लाख से अधिक लोगों को एक्स-रे जाँच उपलब्ध करवायी और जिनको टीबी निकली उनकी सरकारी टीबी कार्यक्रम से जुड़ने में सहायता की। मेदांता अभियान में बस के अलावा एक मोटरसाइकिल पर स्वास्थ्यकर्मी भी एक पिट्ठू बैग (बैकपैक) में ट्रूनेट मशीन और प्रोरेड (प्रोग्नॉसिस) एक्स-रे को ले कर उन दूर-दराज इलाकों तक जाता है जहाँ चार-पहिया गाड़ी नहीं जा सकती।
भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा ने पिछले माह ही बताया था कि भारत सरकार टीबी सेवाओं के विकेंद्रीकरण के लिए समर्पित है। टीबी जाँच लेबोरेटरी की संख्या 2014 में 120 थी जो 2024 में बढ़ कर 8,293 हो गई है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने हाल ही में एक लेख में लिखा था कि भारत में 7,700 मॉलिक्यूलर टेस्ट मशीन हैं। डॉ गुलेरिया ने लिखा कि ट्रूनेट भारत में निर्मित मॉलिक्यूलर टेस्ट है जिसके कारण टीबी जाँच की क़ीमत काफ़ी कम हुई है और टीबी जाँच में जो समय लगता था वह भी घट कर एक घंटा रह गया है। उन्होंने कहा कि ऐसी ट्रूनेट जाँच जिले और ब्लॉक स्तर पर सक्रिय हैं। टीबी की पक्की जाँच के विकेंद्रीकरण में ट्रूनेट ने एक अहम भूमिका निभायी है।
निक्षय वाहन
100 दिवसीय टीबी अभियान के तहत, एक छोटी-बस नुमा गाड़ी जिसे निक्षय वाहन कहते हैं, इन जिलों में उन लोगों तक टीबी सेवाएं पहुंचा रही है जिन्हें टीबी का खतरा अधिक है। इस गाड़ी में एक्स-रे मशीन है जो बैटरी से भी चलती है और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस युक्त कंप्यूटर की मदद से संभावित टीबी की जाँच करती है। जिन लोगों को संभावित टीबी निकलती है उनको टीबी की पक्की मॉलिक्यूलर टेस्ट जाँच उपलब्ध करवायी जाती है (या बलगम सैंपल इकट्ठा कर के निकटतम लेबोरेटरी में भेजा जाता है)। भारत-निर्मित प्रोरेड (प्रोग्नॉसिस) एक्स-रे भी इन एक्स-रे मशीनों में से एक है।
वांछित परिवर्तन की लहर
100 दिवसीय टीबी अभियान के तहत, असम के बारपेटा जिले से सरकारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने एक तस्वीर साझा की है। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पारित और भारत में निर्मित ट्रूनेट मॉलिक्यूलर टेस्ट मशीन को एक छोटी सी लकड़ी की बेंच पर खुले में रखे हुए देखा जा सकता है जो जनता को टीबी की पक्की जाँच मुहैया करवा रही है। ट्रूनेट से न केवल एक घंटे में टीबी की पक्की जाँच होती है वरन् यह भी पता चल जाता है कि दवा प्रतिरोधक टीबी है कि नहीं। इस तस्वीर में निक्षय वाहन को भी देखा जा सकता है।
100 दिवसीय टीबी अभियान के तहत उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने एएनआई को बताया कि भारत को टीबी मुक्त करने के लिए पिछले चंद सालों में उत्तर प्रदेश में टीबी जांच 4 गुना अधिक बढ़ी है। ट्रूनेट मॉलिक्यूलर टेस्ट मशीन और एक्स-रे मशीन की संख्या में भी वृद्धि हुई है।
हिमाचल प्रदेश में भी निक्षय वाहन दूर-दराज इलाकों तक टीबी सेवाएं लोगों के निकट ले जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, बैजनाथ के निकट देओल गांव में एक दिन में जिस समुदाय के लोगों को टीबी खतरा अधिक है उनके 89 लोगों के एक्स-रे किए गए। यह एक्स-रे मशीनें सरकारी पॉवर ग्रिड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा प्रदान की गई हैं। कांगड़ा जिले में 2 जनवरी 2025 तक, इस अभियान के तहत हज़ारों लोगों के एक्स-रे हुए, 2000 की टीबी जाँच हुई और 35 लोगों में टीबी रोग पाया गया - जिनको उचित उपचार उपलब्ध करवाया गया।
हिमाचल प्रदेश में भी निक्षय वाहन दूर-दराज इलाकों तक टीबी सेवाएं लोगों के निकट ले जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, बैजनाथ के निकट देओल गांव में एक दिन में जिस समुदाय के लोगों को टीबी खतरा अधिक है उनके 89 लोगों के एक्स-रे किए गए। यह एक्स-रे मशीनें सरकारी पॉवर ग्रिड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा प्रदान की गई हैं। कांगड़ा जिले में 2 जनवरी 2025 तक, इस अभियान के तहत हज़ारों लोगों के एक्स-रे हुए, 2000 की टीबी जाँच हुई और 35 लोगों में टीबी रोग पाया गया - जिनको उचित उपचार उपलब्ध करवाया गया।
गोवा के पोंडा क्षेत्र में "हॉल केरी" गाँव में एक दिन में (2 जनवरी 2025) 113 लोगों के एक्स-रे किए गए जिनमें से 37 लोगों में संभावित टीबी निकली - जिनके बलगम सैंपल को मॉलिक्यूलर टेस्ट पक्की जांच के लिए निकटतम स्वास्थ्य केंद्र भेजा गया। गोवा के बबल्याख़ली और नागमशीद बस्ती में भी एक दिन में 89 लोगों की एक्स-रे जाँच हुई। 31 दिसंबर 2024 को "आम कॉटोंबी" में अनेक लोगों की एक्स-रे जाँच हुई और 40 लोगों में संभावित टीबी निकली - जिनके बलगम सैंपल को ट्रूनेट मॉलिक्यूलर टेस्ट पक्की जांच के लिए भेजा गया।
भारत के सभी प्रदेशों में से गोवा सबसे पहला प्रदेश है जिसने टीबी की प्रथम जाँच के रूप में, माइक्रोस्कोपी जाँच को 100% मॉलिक्यूलर टेस्ट जाँच से प्रतिस्थापित किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 7-8 साल पहले सभी देशों से, टीबी की प्रथम जाँच के लिए माइक्रोस्कोपी जाँच को 100% मॉलिक्यूलर टेस्ट से प्रतिस्थापित करने के लिए आह्वान किया था। माइक्रोस्कोपी टीबी की कच्ची जाँच है जिसके द्वारा आधे या उससे भी कम टीबी रोग की पुष्टि होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पारित मॉलिक्यूलर टेस्ट से 1-2 घंटे में यह पक्का पता चलता है कि टीबी है या नहीं, और यदि टीबी रोग है तो रिफ़ैंपिसिन दवा से प्रतिरोधक है या नहीं।
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने हाल ही में बताया था कि निजी (प्राइवेट) स्वास्थ्य केंद्रों से भी टीबी रिपोर्टिंग में 8 गुना वृद्धि हुई है। गौर तलब है कि 2012 में भारत सरकार ने आदेश पारित किया था कि निजी स्वास्थ्य केंद्र भी सरकार को हर टीबी रोगी की पुष्टि करें। सरकार द्वारा हर महीने प्रत्येक टीबी रोगी को रू 500 सीधे बैंक खाते में दिए जाते हैं (पोषण आदि में सहयोग के लिए)। इस राशि को 1 नवंबर 2024 से बढ़ा कर रू 1000 कर दिया गया है। अब तक इस सहायता के तहत, 3000 करोड़ रुपए से अधिक राशि दी जा चुकी है।
पिछले लगभग 10 सालों में (2015-2023) के दौरान भारत की टीबी दर में 17.7% की गिरावट आई है और टीबी मृत्यु दर भी 21.4% कम हुई है। परंतु अभी भी, विश्व के सभी देशों की तुलना में भारत में सबसे अधिक टीबी रोग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम टीबी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 28 लाख लोग को 2023 में टीबी हुई जिनमें से 24 लाख से अधिक को जाँच-इलाज मिला।
सभी लोगों को, टीबी लक्षण हों या न हों, एक्स-रे द्वारा संभावित टीबी की जाँच, और जिनको संभावित टीबी हो उनको मॉलिक्यूलर टेस्ट जाँच मिलनी ज़रूरी है - जिससे कि सभी टीबी रोगियों को बिना-विलंब सही प्रभावकारी इलाज मिल सके।
इस 100 दिवसीय टीबी अभियान को हर दिन सक्रिय रखने की आवश्यकता है जब तक टीबी उन्मूलन का सपना साकार नहीं हो जाता।
शोभा शुक्ला, बॉबी रमाकांत - सीएनएस
(सिटीज़न न्यूज़ सर्विस)
3 जनवरी 2025
- सीएनएस
- डेटलाइन, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश
- द लीजेंड न्यूज़, मथुरा, उत्तर प्रदेश
- डीजी न्यूज़, भोपाल, मध्य प्रदेश
- लाइव आर्यावर्त, जमशेदपुर, झारखंड
- जन चौक, दिल्ली
- वॉइस ऑफ़ एमपी, नीमच, मध्य प्रदेश
- बचपन एक्सप्रेस न्यूज़, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
- समाचार4मीडिया, नोएडा
- एडीएपी (अपना देश अपना प्रदेश) न्यूज़, उत्तर प्रदेश