वर मरे चाहे कन्या,पंडित को दान से मतलब

वर मरे चाहे कन्या,पंडित को दान से मतलब

यह कहावत कभी-कभी बुजुर्ग लोग कहा करते थे, लेकिन मेरी समझ में कभी नहीं आई थी जो अब आई है | खैर आ ही गयी यही क्या कम है ?

शायद आप लोगों की भी समझ में आई हो लेकिन कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहें हो, चाहे वो किसी मंत्री, दादा, सरकार, व्यापारी, या किसी डर के मारे या फिर जुल्म सहने की आदत पड़ गयी हो, या फिर एक सुन्दर समाज, परिवार की कल्पना ही मर गयी हो, या फिर सोंचते होंगे कि चलो जो हो रहा है वो होने दो, मेरे से क्या मतलब, यानी कुल मिलाकर हराम की खाने की आदत हो गयी हो | आप सोंच रहे होंगे कि अगर मैं ही यह सब करने लगूंगा तो शायद मेरा धंधा बंद हो जायेगा |

चलों मैं ही बता देता हूँ और सवाल भी उठा रहा हूँ - अरे भाई-बहनों!आप लोग जानते हुए भी इस मुशीबत का सामना नहीं कर रहे हैं जो आज दूसरे पर पड़ी समझ के छोड़ दे रहे हैं, कल यह मुशीबत ऐसी हो जायेगी कि आप इससे बचने की लाख कोशिश करेंगे तो भी नहीं बच पाएंगे यदि आप इस धरती पर रहेंगे तो ? आप लोग सोंच रहे होंगे कि ऐसी कौन सी मुसीबत है, जो आदमी इससे बचना भी चाहेगा तो भी नहीं बच सकता है, तो लो सुनो- कौन सी समस्या है और कौन मरेगा वर, किस पंडित को चाहिए दान |

वह समस्या है- धूम्रपान, वह वर है- जनता, और वह पंडित है- सरकार | आई बात समझ में ! क्यों चौक गए न ? हाँ साथियों मैं सही बता रहा हूँ | कभी मैं भी सोंचता था कि जो लोग बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, शराब, स्मैक, चरस, गांजा, तम्बाकू आदि खाते हैं वो सब अमीर और जिनके पास पैसा है | इससे बड़ी शान बढती है | लेकिन अब पता चला कि यह सब क्यों और किसके लिए किया जा रहा है | जनता और डॉक्टर कहते हैं कि इससे समाज को खतरा के साथ-साथ कई बीमारियाँ होती हैं जो जानलेवा हैं , लेकिन सरकार कहती है कि इससे राजस्व को कई गुना लाभ है |

मेरी समझ के परे है कि जनता को बचाना जरुरी है, कि राजस्व को | मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि जिस देश में, दूध, दही, आम का पना, सरबत, सत्तू का सरबत लोगों के लिए फायदे मंद है वो सब चीजें सरकार ने बंद करवा दिया या फिर उनके लिए बाजार ही नहीं रखा कि कहीं उनकी पहुँच जनता तक न हो जाए और उनकी जगह पर शराब, बियर, धूम्रपान कर दिया है | अभी कोई गरीब किसान, मजदूर कहीं ठेले पर लस्सी या दूध की कोई सामान लगा कर बेंचे तो नगर निगम, पुलिस, ठेकेदार उस पर तमाम तरह की बुराइयाँ लाद देंगे जैसे- आप का लाइसेंस नहीं है, लाइसेंस किसी और चीज का है बेंच आप लस्सी रहे हैं | रोड गन्दी करते हो, नाली गंदगी से पाट देते हो | पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है |

पुलिस आयेगी कहेगी- अरे रात में चोरी हुई थी, तू तो यहीं ठेला लगाता है-बता चोरी किसने की ? यदि आप यहाँ ठेला लगाना चाहते हो तो प्रतिदिन तीन गिलास दूध पैक कर दिया करना ! जनता- तीन गिलास क्यों साहब ? पुलिस- जुबान लडाता है- समझता नहीं एक मेरे लिए, एक मेरी बीबी के लिए, और एक मेरे बच्चे के लिए | यह सारी समस्याएं एक आम नागरिक, गरीब जनता रोज झेलती है | क्या किसी की हिम्मत है कि जो काम सरकार कर रही है उसके सामने कोई अपनी जुबान खोले ? वो क्या - वो यह है कि सरकारें जगह-जगह शराब, पान मसाला, गुटखा, भांग की दुकान खुलवा कर अपनी झोली भर रही हैं | क्या सरकार को यह नहीं मालूम है कि शराब से प्रतिदिन पीकर कितने लोग मरते हैं, शराब झगडे की जड़ है, महिला अत्याचार में शराब की सबसे बड़ी भूमिका है |

आज गली-गली में नव जवानों के लिए बियर बार खुल गए हैं आखिर क्यों इससे कोई शरीर बनता है, या यह स्वस्थ्य के लिए लाभदायक है ? गुटखा खाने से क्या फायदा है ? इस फायदों के विषय में डॉक्टर और इस रोग से ग्रसित परिवार ज्यादा बता पाएंगे, जो दिन रात यही सोंच में डूबे रहते हैं कि कब इस रोग से मुक्ति मिलेगी, कैंसर रोग से मुक्ति पाने के लिए क्या-क्या शोध किया करते हैं ? ३१ मई को कानून पारित हो गया था सभी धूम्रपान के पाकेटों पर कैंसर का चित्र बन कर आयेगा , लेकिन कुछ धूम्रपानो पर अब भी यह नहीं छापा गया है जैसे- तम्बाकू ५५५, श्रीराम तम्बाकू, राधा तम्बाकू आदि |

अब इनको न कोई सरकार बंद कर रही है न कोई पुलिस, न ही नगर निगम | जब सरकार को यह भी मालूम है कि यह सब चीजें स्वास्थ्य, समाज, देश, परिवार, राष्ट्र के लिए प्राणघातक हैं तो इनको क्यों नहीं बंद किया जाता है ? क्या इस तरह के धंधे शुरू करवाने से ही सरकार की आमदनी बढती है, क्या इससे कभी समाज का विकाश हो सकता है ? क्या इससे आने वाली पीढी स्वास्थ्य और निरोगी होगी ? गर्भ में पल रहे बच्चे को कैंसर मुक्त समाज मिल पायेगा, जिसके कंधे पर समाज, देश, राष्ट्र का भार होगा | क्या इस शराब, गुटखा, बियर का वास्तविक जीवन में कोई प्रयोग है ? बिलकुल नहीं |

क्या इसके बिना कोई नहीं जी सकता है ? इसके बिना सब जी सकते हैं, केवल सरकार नहीं ! इसलिए कहते हैं कि जनता मरे तो मरे सरकार को इससे क्या मतलब है ? अरे जो सरकार मौत जैसी चीजों को धड़ल्ले से खुलवा रही हो, जिसे खोलने के लिए कोई दौड़ भाग की जरुरत नहीं होती है, सरकारी कर्मचारी से लेकर, मंत्री तक सब के सब इस गलत धंधें को खुलवाने के लिए माफियाओं के पैर पड़ते रहते हैं | क्या ऐसी सरकारों का कोई मतलब है ? भाई मैं तो समझता हूँ- नहीं | जबकि सरकार यह नहीं जानती कि उसका अस्तित्व जनता के ऊपर निर्भर है | धूम्रपान निषेध कानून को लागू करवाने में पता नहीं कितने डॉक्टर,समाजसेवियों, जनता को दिन रात एक करना पड़ा, जिसे बंद करवाने के लिए जनता की कोई जरुरत ही नहीं थी बल्कि सरकार का काम था कि ऐसी चीजों को प्रतिबंधित करे जिससे समाज को नुकसान हो | जगह-जगह शराब की दुकानों को बंद करवाने के लिए महिलाओं,बच्चों तक को बाहर रोड पर निकलना पड़ा | गाली, मार तक खाना पड़ा, ठेकेदारों द्वारा दी गयी धमकी को सहना पड़ा |

एक तरफ जनता शराब, बियर की दुकानों को बंद कराने के लिए चिल्ला रही है और दूसरी ओर सरकार मंत्री, सरकारी कर्मचारी, पुलिस (जनता के रक्षक, जो आज रक्षक के नाम पर अपवाद हैं) ठेकेदार दुकान खुलवाने को लेकर जनता के ऊपर लाठियाँ भांज रहे हैं | इन सब बातों से यही लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब बच्चा इस दुनिया में आने से पहले ही कैंसर का शिकार हो जायेगा | जनता भूंख से मर ही रही है और अब कैंसर से जबरदस्त तरीके से मरेगी | सरकारों को हर हाल में पैसा चाहिए अपने को समृद्ध बनाने के लिए | जनता मरे या रहे | इसलिए कहते हैं कि अब भी वक्त है जहाँ कहीं शराब,गुटखा,बियरबार, की दुकाने खुली हैं उन्हें बंद करवाने और जनता को इनसे होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करें | यह हम सबका कर्तब्य है, अगर हम लोग एक रोग मुक्त समाज देखना चाहते हैं, साथ में खाना चाहते हैं, घृणा की दृष्टि से बचना चाहते हैं | तो आएये हम सब एक हों, नशा विरोधी बने, नशे को त्यागें, और आने वाले दिनों में एक ऐसी सरकार बनायें जो शराब, बियर, भांग,गांजा,गुटखा,और धूम्रपान की समस्त चीजों को बंद करवाए | जनता का बल, सर्वोत्तम बल |
चुन्नीलाल

(लेखक, लखनऊ स्थित आशा परिवार से जुड़े हुए सामाजिक कार्यकरता हैं और सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सी.एन.एस) के समुदाय पत्रकार भी)