सूचना अधिकार अधिनियम को कमजोर करने के विरोध में जनहित याचिका की सुनवाई:
कोर्ट ने प्रदेश सरकार को २ हफ्ते में जवाब देने को कहा
आज कोर्ट में जनहित याचिका की सुनवाई में प्रदेश सरकार को २ हफ्तों में जवाब देने का निर्देश दिया गया कि क्यों पांच विषयों को सूचना अधिकार अधिनियम, २००५, के दायरे से बाहर किया गया है.
यह जनहित याचिका, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय की ओर से मग्सय्सय पुरुस्कार प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता डॉ संदीप पाण्डेय एवं सूचना अधिकार कार्यकर्ता नवीन तिवारी ने दाखिल की थी.
"उत्तर प्रदेश सरकार ने सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे से पाँच विषयों को ७ जून २००९ को बाहर किया था जो इस प्रकार हैं: राज्यपाल की नियुक्ति, उच्च न्यायालय के न्यायाधीषों की नियुक्ति, मंत्रियों की नियुक्ति, मंत्रियों की आचरण संहिता तथा राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को लिखे पत्र। पिछले वर्ष २५ मार्च २००८ को नागरिक उड्डयन विभाग के दो यूनिटों को भी सूचना के अधिकार अधिनियम, २००५, से प्रदेश सरकार ने बाहर किया था। उ.प्र.सरकार द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम को कमजोर करने का हम विरोध करते हैं, कहना है डॉ संदीप पाण्डेय का जो जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय संयोजक हैं.
सूचना अधिकार कार्यकर्ता नवीन तिवारी ने कहा कि "सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005, की धारा 24 की उप-धारा 4 के तहत राज्य सरकार सिर्फ सुरक्षा एवं अभिसूचना से सम्बन्धित विभागों को ही इस कानून के दायरे बाहर कर सकती है। हमारा मानना है कि उपर्युक्त विषयों में से कोई भी या नागरिक उड्डयन विभाग सुरक्षा एवं अभिसूचना की श्रेणी में नहीं आते"।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीस, उ.प्र के उपाध्यक्ष एस.आर.दारापुरी ने कहा कि "संविधान के अनुच्छेद 256 के अंतर्गत राज्य सरकार को केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुपालन की व्यवस्था सुनिश्चित करनी है। वह किसी कानून को कमजोर नहीं कर सकती"।
राज्य सरकार का कदम कानून विरोधी तथा संविधान विरोधी भी है। राज्य सरकार से हमारी अपील है कि सूचना के अधिकार अधिनियम में लाए गए परिवर्तनों को वापस ले। हम चाहते हैं कि सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005, अपने मौलिक स्वरूप में बना रहे।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय