आतंकवाद, भ्रष्टाचार का सफाया सिर्फ अहिंसा-सत्य के द्वारा होगा

आज दुनियां हिंसा आतंकवाद की चपेट में आ चुका है। और मनुष्य का अस्तित्व खतरे में है। कई दशक पहले पू0 विनोवा भावे ने कहा था कि अगर हिंसा का रास्ता लोगों ने अपनाया तो सर्वनाश होगा और अगर अहिंसा सत्य का रास्ता अपनाया तो सर्वोदय होगा। अब सवाल उठता हैं कि आखिर हिंसा की यह दुनिया को तबाही में डालने वाली आग पर कैसे काबू किया जायें ?

यह बात सभी समझदार लोग स्वीकार करते है कि हिंसा-आतंकवाद की जड़ें शोषण व अन्यायकारी नीति-रीतियों में छिपी होती है। इसलिये आतंकवाद की पैदा करने वाली-कुरीनियों, भ्रष्टाचार को जन्म देने वाली नीतियों को मिटानें पर सबसे पहले जोरदार पहल करनी चाहिये। जिसे कारगर बनाने के लिये देश के ऊँचे पदों पर विराजे माननीय लोग ही ज्यादा परिणामकारी भूमिका निभा सकते हैं। इस संदर्भ में लोक नारायण का मार्मिक वक्तव्य ज्यादा ध्यान देने लायक है। उनका साफ कहना था कि हमारे राजनेता व लोक सेवकों (सरकारी कर्मचारियों) को सिर्फ ईमानदार होना ही नहीं चाहिये बल्कि दिखना भी चाहिये। इस पवित्र उद्देश्य को सिद्ध करने के लिये अहिंसा सत्य की सर्वोदयी-व्यवस्था को सारे समाज की राजनैतिक व प्रशासनिक व्यवस्था में किस तरह व्यवहारिक बनाया जा सकता है ? इसका सुन्दर उपाय गांधीजी के प्रिय साथी प्रकाण्ड विद्वान श्री किशोर भाई मसरूवाला ने बड़ी सुस्पष्टता से निम्न- शब्दों में बतलाया था।

‘‘इज्जत-प्रतिष्ठा कई कारणों से हो सकती है और दी जा सकती है। इसे मान्य करने के लिये दूसरे चाहे जितने तरीके हो सकते हैं। लेकिन, पैसों के इनाम के जरिये वह नहीं दी जानी चाहिये। बुजुर्ग-व्यक्ति को उसकी दराज उम्र के लिये, स्त्री को उसकी निर्दोषता और मधुरता के लिये, ज्ञानी को उसके ज्ञान के लिये, सिपाही को उसकी बहादुरी के के लिये, नेताओं को उसके नेतृत्वता के लिये और उनकी कर्ण शक्ति के लिये, संत को उसके श्रेष्ठ चरित्र के लिये और अधिकारी को व्यवस्था बनाये रखने के लिये अगर इज्जत सम्मान मिले तो उसमें कोई दोष नहीं है। लेकिन इस इज्जत-सम्मान की कदर पैसे देकर नहीं की जानी चाहिये। आप उन्हें इज्जत-सम्मान दीजिये। ऊँजी जगह (आसन) दीजिये। जैसे ठीक लगे उन्हें नमस्कार या प्रणाम कीजिये। फूल-माला और सिर पेंच, सरोपा दीजिये। मगर उसके लिये उन्हें ज्यादा मेहेनताना देने या सोना-चाँदी की कीमती चीजें या दौलत इक्ठ्ठी करने की सुविधा देने की जरूरत नहीं है। अगर, अलग-अलग मेहेनताना देना ही हो। तो सबसे ज्यादा मेहेनताना अनाज की खेती करने वाले या पानी की खेती करनेवाले को (लेखक की दृष्टि से बदबूदार मैला कचरा साफ करने वाले मेहतर को) मिलना चाहिये। राजा (आज के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री) का भी एक दिन का मेहेनताना खेती के मजदूर संघ मंत्री की अपेक्षा कम होना चाहिये। भले ही उसके लिये उसे देश की परिस्थिति के अनुसार पर्याप्त सुविधायें दी जायें।’’

उपरोक्त-विचारों की रोशनी में हमारे देश के शुभ चिन्तकों से गुजारिश है। कि देश की गरीबी व कर्ज तथा भूख से बिलबिलाती जनता के दर्द को समझते हुए तथा निर्दयता पूर्ण-विषमता से क्षुब्ध अपराधों की अंधेरी राह में जा रहे नौजवानों को सद-मार्ग-अच्छे रास्ते पर लाने के लिये सभी माननीय जन-प्रतिनिधि व सरकारी अधिकारी-कर्मचारी गण स्वेच्छा से अपनी-अपनी तनख्खाहें, व पेंशनें, मेहनतें कश किसानों व मेहतरों कें बराबर ही सुनिश्चित कराने हेतु आगे आयें। जैसा कि गांधी जी भी यहीं चाहतें थे। अगर, उपरोक्त महानुभाव खुद ही पहल करके अपनी जरूरत के मुताबिक सम्पत्ति के मालिक के बजाय ट्रस्टी बनकर (क्योंकि धार्मिक सिद्धान्त के अनुसार भी सब सम्पत्ति रघुनाथ की कही गयी है और ऐसा मानने में ही सबकी भलाई हैं।) आम जनता के समतुल्य स्वेच्छा से संयमपूर्वक, नम्रतापूर्वक सादगी से जिन्दगी जीते हुए, फालतू विलासिता वैभव के दिखावा की बरबादी से ईष्र्या-द्वेष पैदा करने वाली सम्पत्ति बचाकर, उस सम्पत्ति को देश की गरीब शोषित जनता भलाई में खर्च करकें सच्ची राष्ट्रभक्ति का परिचय दे सके तो कुंठा निराश व आक्रोश में भटकते आतंकवाद की राह में जा रहें नौजवानों को सुधारने का और खुद को यश कमाने का बड़ा ही अच्छा और कारगर कदम होगा।

पिछले विगत ‘‘स्वतंत्रता-दिवस’’ पर महामहिम राष्ट्र प्रमुख श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी द्वारा राष्ट्र के नाम संदेश में ‘‘आतंकवाद को मिटाने के लिये आतंकवाद में हिस्सा लेने वाले नौजवानों के दिलों से नफरत के भाव मिटाने की दिशा में काम करना चाहिये।’’ तथा महामहिम की दल को चीन यात्रा में भारतीय जनता की तरफ से बुद्ध भगवान की मूर्ति को भेंट में देने से उनकी व्यवहारिक सोच में उच्च-मानवतावादी कदम साफ महसूस होता है, और उनका वक्तव्य व कत्र्तव्य यह साबित करता है कि हमारे देश का शीर्ष-नेतृत्व वर्ग ने भी आतंकवादियों को लाइलाज न समझकर गौतम-गांधी की सुदीर्घ व नेक दृष्टि से अच्छे नतीजे हासिल करने की श्रद्धा के जरिये समाधान निकालना नि’िचत समझ लिया है। यह एक बहुत ही शुभ लक्षण है। हमारे धर्म -प्रधान देश की जनता महावीर गौतम व गाँधी के आदर्शों को सम्मान देने वाली होने के नाते भारत के संविधान से मृत्युदण्ड समाप्त करके, भ्रष्टाचार मुक्त, शोषण मुक्त अहिंसक समाज रचना की मजबूती देने वाले नियम कानूनों को कारगर रूप देना चाहिये। इसी आशय का वक्तव्य परम पावन दलाई लामा ने गतवर्ष पुणे में आयोजित सर्वोदय-सम्मेलन के मुख्य अतिथि के रूप में भारत की जनता को सम्बोधित करते हुए कही थी। यहीं वक्त की आवाज है। इससे देश की निराशा-असंतोष में जी रही गरीब जनता को मानवीय मूल्यों की प्राण वायु मिलने लगेगी और अविश्वाश घृणा निराशा से उबर कर शान्ति भाईचारे का मानस तैयार होगा। आशा ही नहीं विश्वाश है कि इस आत्मघाती दौर में गौतम-गाँधी का जीवन दर्शन हमारे अग्रणी कर्णधारों कों प्रेरणा देकर आचरण की दिशा में सार्थक पहल कराएगा।

विनीत-सुरेश भाई सर्वोदीय