बालश्रमिक और 'पीतल नगरी' मुरादाबाद के स्लम

एक स्लम है शिवनगर, आत्मसंतुष्टि के लिए निवासी जिसे मोहल्ला कहते हैं!
’अंकल, अंकल....सर’ की आवाज।
’सर...सर’ एक और आवाज।
मुड़कर देखा तो गीता, दीपाली अपनी 2-3 सहेलियों के साथ लगभग दौड़ते हुए आ रही थी और रुकने का इशारा कर रहीं थी। मैं रुका। पास आकर उन्होंने कहा-'सर, हैप्पी दीवाली, अंकल दीवाली की बधाई।’ मैं अवाक-गद्गद हो गया। तुरन्त उन्हें भी बधाई, शुभकामनाएं दीं व ढेरों आशीर्वाद कहा। कुछ भावुक भी हो उठा इन बच्चों के उत्साह से!
स्थान-शिवनगर मलिन बस्ती (स्लम) 
वार्ड-शिवनगर वार्ड
जनपद-मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 
तिथि-18 अक्टूबर 2011 
विश्वप्रसिद्ध 'पीतल नगरी’ के कारीगरों के कौशल ने न केवल मुरादाबाद को गौरवपूर्ण नाम दिया है बल्कि वित्तीय लाभ से भी नवाजा है जिसमें विदेशी मुद्रा अर्जन शामिल है। इन कारीगरों की वजह से अनेक व्यवसायी करोड़पति बन चुके हैं और भारत सरकार को भी विशाल विदेशी मुद्रा लाभ मिलता है परन्तु इन कुशल कारीगरों व उनके परिवाजनों को क्या मिला? स्थिति वही बदहाली की है आज भी। परिवार  जैसे-तैसे रोटी-कपड़ा की व्यवस्था कर पाता है। मकान? मलिन बस्तियों में जैसे मकान हो सकते हैं उसी तरह के यहां भी हैं। संकरी गलियों में दोनों ओर मकान बने हैं जिनमें परिवार के रहने का स्थान कम और धातुकर्म के लिए फैक्ट्री की जगह ज्यादा है। लगभग पूरा परिवार अथक परिश्रम करके पीतल को वर्तन या आकर्षक सजावटी वस्तुओं का रूप देने में जुटा रहता है। स्वाभाविक है इसमें ऐसे बच्चें भी शामिल होते हैं जिन्हें ’बालश्रमिक’ की संज्ञा दी जाती है। यानि, 06-14 आयुवर्ग के लड़के-लड़कियां।

सन् 2011 की जनगणना के अनुसार मुरादाबाद जनपद की जनसंख्या पौने अड़तालीस लाख (4.78 मिलियन) है। शिवनगर सौ में शहर स्थित एक स्लम है जिसे राज्य सरकार द्वारा अधिकृत माना गया है। यहां के निवासी इसे स्लम नहीं ’मोहल्ला’ कहकर आत्मसंतुष्टि पाते हैं। इसकी कुल आवादी 3532 है जिसमें 1900 पुरूष तथा 1632 महिलाएं शामिल हैं। 06-14 आयु के बच्चों की संख्या 729 है जिनमें 163 बालश्रमिक की श्रेणी में आते हैं। ये बच्चे स्कूल नहीं जाते और घरों में चल रही ’धातुकर्म फैक्ट्री’ में भट्टी को यंत्र द्वारा हवा देना, पानी-मिट्टी की व्यवस्था करना ताकि मोल्ड बनाये जा सकें जैसे कामों को अंजाम देते हैं। पहले अनेक बच्चे विधिवत चलने वाली फैक्ट्रियों में काम करते थे। कुछ सरकारी व गैर सरकारी प्रयासों के फलस्वरूप वहां से हटाये गये परन्तु कुटीर उद्योग के रूप में चलने वाली घरेलू फैक्ट्रियों में अभी भी कार्यरत है। जाहिर है कि ये सभी अवैध रूप से चल रही हैं परन्तु श्रम विभाग शायद अनजान है।

शिवनगर की ऐसी ही एक ’फैक्ट्री’ में मुहम्मद सुहेल भी काम करता है। बड़ी चतुरायी से अपनी उम्र 14 वर्ष बताता है परन्तु काम क्या करता है नहीं बताता है। स्कूल क्यों नहीं गये पूछने पर कहता है अभी समय नहीं हुआ है। शायद उसे यही कहने को कहा गया होगा! मोहल्ले में सरकारी स्कूल होता तो शायद जाता। ऐसी ही स्थिति अन्य बाल श्रमिकों की भी है। प्राइवेट स्कूल 12 हैं परन्तु 0-6 आयुवर्ग के 103 में 98 बच्चों के पास जन्म प्रमाण-पत्र नहीं हैं जिससे स्कूलों में दाखिला मिलना भी मुश्किल होगा।

बच्चों में स्कूल जाने वाले भी हैं जिनमें गीता, दीपाली, रितू, शिखा, नीराज, आसमा तो कक्षा 12 की छात्राएं हैं और मोहल्ले से दूर फूलवती कन्या इन्टर कालेज में जाती हैं। वह भी खुशी-खुशी। छटी में पढ़ने वाली नाजिय, आठवीं की सादिया भी खुश हैं पढ़ाई से। कुछ बनेंगी आगे चलकर ऐसा बताती है। परन्तु गुलक्शा चौथी के आगे नहीं पढ़ सकी है। आर्थिक समस्या उसके सामने रही हैं। दो-तीन साल से स्कूल नहीं जा सकी है। आगे क्या होगा यह भी नहीं बता पा रही है।

एनीमेटर हिना गुप्ता तथा भारती सक्सेना स्कूल न जाने वाली बच्चों की पढ़ाई के लिए  अभिभावकों से सम्पर्क सादे हैं। इनकी लगन काम भी आ रही है तभी तो नटखट शबाब आलम, अनस, सीमा, माहजबीं, आदिल, नाजनीन, आफरीन, सहनूर बालश्रम केन्द्र-71 में पहली कक्षा में भरती हुए हैं और नियमित रूप से स्कूल जा रहे हैं यह पूछने पर कि आज (18 अक्टूबर) क्यों नहीं गये स्कूल सबाब बताता है कि यहां इकठ्ठा होना था ना! स्कूल में उसे मजा आता है। कैसे? नहीं बता पाता।

सीमा के हाथ काले दिखे तो पूछने पर बताती है कि पहले वह चूड़ी बनाने का काम करती थी जिससे ऐसा हुआ। अभी साफ नहीं हो सके हैं बच्ची के हाथ। हिना व भारती बताती हैं कि 7 अक्टबर से 17 अक्टूबर के बीच ही इन बच्चों को स्कूल में भरती कराया गया है और वे रोज जाते हैं। शिक्षा निःशुल्क है।

शिवनगर की कुछ महिलाओं की जागरूकता देख आशा की किरण जागी। उन्होंने ’आशा समूह’ बनाया है जिसमें ’मोहल्ले’ की अनेक महिलाएं (10 से अधिक) शामिल हैं। 15 दिन एक मीटिंग होती है जिसमें काम की समीक्षा और आगे का कार्यक्रम बनता है। इसमें 10-सूत्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत बच्चों व उनकी माताओं के स्वास्थ्य संबंधी विषयों के अलावा शिक्षा, गलियों की सफाई, कूड़े का निस्तारण आदि समस्याओं के निराकरण पर चर्चा होती है। आवश्यकता पढ़ने पर अधिकारियों से मिलकर सफाई आदि करायी जाती है। आरती अग्रवाल अभी 6-7 महीने से ही समूह से जुड़ी हैं परन्तु सक्रिय हैं। बीना भटनागर समूह की सचिव तथा ममता ठाकुर कोषाध्यक्ष हैं। फख्र से बताती हैं कि इने फंड में लगभग दो हजार रुपये हैं जो मात्र 10 महीने के अन्दर ही जमा किए गये हैं। अप्सा का योगदान भी सराहनीय हेै। गली आदि की सफाई में बच्चें भी उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।

मुरादाबाद में जुलाई 2009 से 'धातु उद्योग नगरी मुरादाबाद में बाल अधिकार संरक्षण’ परियोजना कार्यशील है। इस वर्ष जनवरी माह तक 9753 बालश्रमिक यहां चिन्ह्ति किये जा चुके हैं जिन्हें काम से मुक्ति दिलाकर शिक्षा दिलाने के प्रयास जारी हैं। शिक्षित बेरोजगार युवकों को भी संस्थान से  शिक्षण-ज्ञान अर्जन सामग्री देकर समाजोपयोगी बनाने का कार्यक्रम चल रहा हैं

ऐसा लगता है कि यूनीसेफ, राज्य श्रम विभाग और जिला प्रशासन के साथ-साथ गैर सरकार संगठनों के समन्वय से बच्चों-महिलाओं से संबंधित अनेक हितकारी योजनाओं की पूर्ति में सफलता शीघ्र मिलेगी और गीता, दीपाली आदि के साथ अन्य सभी बच्चे, महिलाएं व अन्य नागरकि गरीबी, अज्ञानता के अंधकार को शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, बाल एवं मानवाधिकार आदि के जरिये मिटाकर सुखद दीपावली मनाने का सुअवसर प्राप्त कर सकेंगें

दुर्गेश नारायण शुक्ल