बच्चे को निमोनिया से बचाने में सबसे कारगर "माँ का दूध"

उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्वास्थ्य चिकित्सकों का मानना है कि शिशु के जीवन के पहले छः महीने तक केवल माँ का दूध अति आवश्यक है. यह शिशु को न केवल निमोनिया बल्कि अन्य बहुत सारे शारीरिक संक्रमण जैसे अतिसार दस्त, कुपोषण आदि से भी बचाता है. और बच्चे को स्वस्थ रखने में सबसे कारगर है. बच्चे को, जीवन के शुरुआती छ: महीने में, ऊपर से किसी भी प्रकार का दूध 'सप्लीमेंट' या फिर बोतल का दूध नहीं देना चाहिए. एक अध्ययन के अनुसार जीवन के शुरुआती छः महीने तक केवल माँ का दूध पीने वाले बच्चों की तुलना में बच्चे, जो अपने जीवन के पहले छः महीने तक केवल माँ का दूध नहीं पीते हैं, उनमें निमोनिया से मरने का ५ गुना अधिक खतरा होता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बताया है कि शिशु जीवन के पहले छः माह तक केवल स्तनपान ही उसके आहार का एकमात्र स्रोत है. एक माह से कम आयु के बच्चों में, श्वास सम्बन्धी बीमारियों से होने वाली कुल मौत में से, ४४% मौतें कम स्तनपान के कारण होती हैं. बहराइच जिला अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.  के. के. वर्मा  के अनुसार "माँ के दूध में विटामिन तथा कोलेस्ट्रम (नवदुग्ध) होता है. जो बच्चे को स्वस्थ रखने में और निमोनिया तथा अन्य शारीरिक संक्रमण से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अतः यह बहुत आवश्यक होता है कि हर माता शिशु के जीवन के पहले छः माह तक बच्चे को केवल अपना ही दूध पिलाये. बच्चे को ऊपर से बोतल का दूध नहीं देना चाहिए क्योकिं जो गुण माँ के दूध में है वह और किसी भी चीज़ में नहीं है".
     
बहराइच जिला अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पी. के मिश्र का भी मानना है कि  "माँ का दूध बहुत सारी बीमारियों और संक्रमणों से बचाता है. इसीलिए माँ का दूध बच्चे के लिए सबसे अच्छा पोषण है. और इससे अच्छा पोषण और कुछ  नहीं हो सकता है. अतः जो भी गर्भवती महिलाएं यहाँ पर आती हैं. हम उन्हें अच्छी तरह से बताते हैं कि वे शिशु के जीवन के पहले छः महीने तक उसे केवल माँ का दूध पिलायें और ऊपर से कोई भी अन्य दूध या फिर बोतल का दूध न पिलायें".

लखनऊ शहर के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ कुमुद अनूप के अनुसार "माँ का दूध सबसे सर्वोतम है. यह न केवल  बच्चे को संक्रमित बीमारी जैसे दस्त और गैस्ट्रोएन्टराइटिस (आँत या पेट में जलन) से बचाता है वरन बच्चे के शारीरिक विकास में भी सहायक होता है, तथा उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर उसे अन्य बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है. अतः माँ का दूध बच्चे के जीवन के पहले छः महीने तक के लिए अपने आप में एक सम्पूर्ण पोषण है. इसके अतिरिक्त बच्चे को ऊपर से कोई अन्य दूध सप्लीमेंट देने की आवश्यकता नहीं होती है".

बहराइच जिला अस्पताल के डॉ. मिश्र तथा डॉ.वर्मा का मानना है कि उनके अस्पताल में आने वाली महिलाओं में से लगभग ९० प्रतिशत महिलाएं बच्चों को स्तनपान कराती हैं.  और डॉ. मिश्र का यह भी कहना है कि "शहरी महिलाएं बच्चों को स्तनपान कम करा पाती हैं जिसके कई कारण हैं. कुछ महिलायें हैं जो कहीं पर कार्यरत हैं उनके लिए बच्चे को समय से स्तनपान करा पाना बहुत कठिन हो जाता है. कुछ महिलाएं बच्चों को या तो कम स्तनपान कराती हैं या फिर स्तनपान कराना ही नहीं चाहती हैं. अतः इस विषय पर जन साधारण को शिक्षा और जागरूकता की आवश्यकता है. प्रायः देखा गया है कि जब डॉक्टर गर्भवती महिलायें को उचित परामर्श देते हैं तो वे अपने बच्चे को अपना स्तनपान कराती हैं".

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नवजात शिशुओं के लिये सर्वश्रेस्थ माँ-का-दूध, परन्तु समाज में व्याप्त मान्यताओं के कारण जन्म के पश्चात् उन्हें मिलता है बकरी का दूध, शहद, पानी आदि
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जहाँ एक तरफ सरकारी जिला अस्पताल के डाक्टरों का यह मानना है कि अधिकतर महिलाएं बच्चों को स्तनपान कराती है वहीं दूसरी तरफ समाज में कुछ ऐसी मान्यताएं हैं जिनके अनुसार नवजात शिशु के जन्म के पश्चात् बकरी का दूध, शहद, पानी या फिर अन्य कोई चीज माँ के दूध से पहले पिलाई जाती है. जिसका आंकलन इससे लगाया जा सकता है कि बहराइच जिला अस्पताल में निमोनिया से पीड़ित अपने तीन दिनों के बच्चे को दिखाने आयीं माता का कहना है कि "हम बच्चे को बकरी का दूध पिला रहें है क्योकिं यह हमारे घर कि पुरानी परंपरा है कि नवजात शिशु को सबसे पहले बकरी का दूध पिलाया जाता है". निमोनिया से ही पीड़ित एक और ढाई साल के बच्चे की माता जी का कहना है कि वह भी बच्चे को अपना दूध नहीं पिला पायी थीं क्योकिं उस वक्त उनका दूध नहीं आ रहा था.
 
समाज में फैले इस प्रकार के प्रचलन न केवल बच्चों के विकास में बाधक है बल्कि समाज में एक अभिशाप के रूप में व्याप्त हैं जिसको इन चिकित्सकों को भी समझना होगा और माताओं को  ऐसा न करने का परामर्श देना होगा. क्योंकि अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब चिकित्सक गर्भवती महिलायों को पूरी तरीके से समझाते हैं तो वें उनकी बातों का अनुसरण करती हैं और अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं. समाज में जागरूकता की कमी है अतः महिलायों को जानकार और जागरूक बनाना आवश्यक है तभी समाज में पूर्ण रूप से बदलाव आयेगा"

राहुल कुमार द्विवेदी - सी.एन.एस.
(लेखक, ऑनलाइन पोर्टल सी.एन.एस. www.citizen-news.org के लिये लिखते हैं)