बच्चों में निमोनिया के खतरे को बढ़ाने में घर के भीतर का प्रदूषण जैसे धूम्रपान,घर में लकड़ी जलाकर या गाय के गोबर को गरम करके खाना पकाना आदि अहम भूमिका निभाते है. एक अध्ययन के अनुसार प्रतिवर्ष ८७१५०० बच्चे घर के अन्दर के प्रदूषण से होने वाले निमोनिया के कारण मरते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार “वातावरण सम्बन्धी प्रदूषण, जैसे कि लकड़ी व गोबर के कंडे पर खाना पकाना, अथवा अन्य जैविक ईंधन का प्रयोग करना, घर में धूम्रपान करना और भीड़ भरे स्थान पर रहना भी बच्चों में निमोनिया के खतरे को बढ़ाता है”. अतः बच्चों को साफ़-सुथरे और अच्छे वातावरण में रखना चाहिए ताकि उनमें निमोनिया तथा अन्य बीमारियाँ होने का जोखिम कम से कम हो.
बहराइच जिला अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. के. के. वर्मा के अनुसार "घर के भीतर का प्रदूषण, जैसे बीड़ी पीना, चूल्हे पर खाना पकाना आदि, बाल निमोनिया के खतरे को बढ़ा देता है. ग्रामीण क्षेत्र में संक्रमण फैलने के और भी बहुत से कारण हैं, जैसे गाँव में मलखाना घर के अन्दर ही कच्ची दीवारों का बना होता है जिसके कारण संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. अतः मलखाना घर के बाहर बनना चाहिए और पक्की दीवारों का बनना चाहिए. भारत सरकार द्वारा मलखाना बनाने का जो कार्यक्रम चलाया गया है उसे लोगों को अपनाना चाहिए. ग्रामीण घरों के बच्चे प्रायः जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए. घर की लिपाई-पुताई होनी चाहिए. घर पक्के ईंट का बना होना चाहिए. जो शहरी क्षेत्र के लोग हैं उनमें संक्रमण फैलने का खतरा कम होता है क्योंकि उन्हें शुद्ध पानी मिलता है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं होता जिसके कारण उनमें संक्रमण फैलने का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है".
लखनऊ में अपना निजी क्लीनिक चलाने वाली बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कुमुद अनूप प्रदूषण के लिए धूम्रपान को दोषी मानती हैं. उनका कहना है कि "शहरी परिपेक्ष में धूम्रपान घर के भीतर के प्रदूषण का एक बड़ा कारण है. बच्चे जो परोक्ष रूप से धूम्रपान के शिकार हो जाते हैं वह उनके लिए बहुत ही हानिकारक होता है और उनमें निमोनिया होने का खतरा बढ़ जाता है. धूम्रपान न केवल निमोनिया बल्कि अस्थमा तथा अन्य कई प्रकार के संक्रमणों को दावत देता है. अतः बच्चों को परोक्ष धूम्रपान के कुप्रभावों से बचाने के लिए घर के भीतर धूम्रपान वर्चित होना चाहिए. तभी हम बच्चों में निमोनिया तथा अन्य स्वास्थ सम्बन्धी बीमारियों के खतरे को कम कर पायेंगे".
डॉक्टर में भी घर के भीतर होने वाले प्रदूषण से जन्मे संक्रमण के बारे में जानकारी का अभाव है. जिसका अन्दाजा हम इस बात से ही लगा सकते हैं कि बहराइच जिला अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पी. के मिश्र घर के भीतर के प्रदूषण को निमोनिया का कारण नहीं मानते हैं. उनके अनुसार "धूम्रपान, तम्बाकू के प्रयोग से या फिर घर में खाना पकाने के लिए अंगीठी के उपयोग से सीधे तौर पर निमोनिया के होने का खतरा नहीं होता है. पर बच्चे को धुएं में रखने से घुटन हो सकती है पर इससे सीधे तौर पर कोई बीमारी होने का खतरा नहीं होता है".
धूम्रपान से निमोनिया के होने का खतरा बढ़ जाता है. जिसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि बहराइच जिला अस्पताल में दिखाने आयी निमोनिया से पीड़ित ढाई साल के एक बच्चे की माता ने बताया कि उसके घर में कई लोग धूम्रपान और तम्बाकू का सेवन करते हैं और घर में खाना भी चूल्हे पर पकाया जाता है. एक और माता, जिसका तीन दिनों का बच्चा जो निमोनिया से पीड़ित था, ने बताया कि उसके घर में भी चूल्हे पर खाना पकाया जाता है और बच्चे के पिता बीड़ी, सिगरेट और गुटके का सेवन करते हैं .
बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, उचित पोषण और पर्यावरण में सुधार स्वतंत्र कारक हैं जो बाल निमोनिया के घटनाओं को कम कर सकते हैं. अतः समाज में लोगों के जीवन स्तर में परिवर्तन लाने के लिए इन कारकों की भूमिका प्रमुख है. सरकार को भी इन कारकों को ध्यान में रख कर ही स्वास्थ्य कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना चाहिए. जब लोगों का जीवन स्तर बेहतर होगा तथा लोग अच्छे जीवन स्तर की विधि अपनायेंगें तभी निमोनिया तथा अन्य संक्रमणों से बचाव सम्भव हो पायेगा.
राहुल कुमार द्विवेदी - सी.एन.एस.
(लेखक सी.एन.एस. www.citizen-news.org ऑनलाइन पोर्टल के लिये लिखते हैं)
बहराइच जिला अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. के. के. वर्मा के अनुसार "घर के भीतर का प्रदूषण, जैसे बीड़ी पीना, चूल्हे पर खाना पकाना आदि, बाल निमोनिया के खतरे को बढ़ा देता है. ग्रामीण क्षेत्र में संक्रमण फैलने के और भी बहुत से कारण हैं, जैसे गाँव में मलखाना घर के अन्दर ही कच्ची दीवारों का बना होता है जिसके कारण संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. अतः मलखाना घर के बाहर बनना चाहिए और पक्की दीवारों का बनना चाहिए. भारत सरकार द्वारा मलखाना बनाने का जो कार्यक्रम चलाया गया है उसे लोगों को अपनाना चाहिए. ग्रामीण घरों के बच्चे प्रायः जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए. घर की लिपाई-पुताई होनी चाहिए. घर पक्के ईंट का बना होना चाहिए. जो शहरी क्षेत्र के लोग हैं उनमें संक्रमण फैलने का खतरा कम होता है क्योंकि उन्हें शुद्ध पानी मिलता है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं होता जिसके कारण उनमें संक्रमण फैलने का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है".
लखनऊ में अपना निजी क्लीनिक चलाने वाली बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कुमुद अनूप प्रदूषण के लिए धूम्रपान को दोषी मानती हैं. उनका कहना है कि "शहरी परिपेक्ष में धूम्रपान घर के भीतर के प्रदूषण का एक बड़ा कारण है. बच्चे जो परोक्ष रूप से धूम्रपान के शिकार हो जाते हैं वह उनके लिए बहुत ही हानिकारक होता है और उनमें निमोनिया होने का खतरा बढ़ जाता है. धूम्रपान न केवल निमोनिया बल्कि अस्थमा तथा अन्य कई प्रकार के संक्रमणों को दावत देता है. अतः बच्चों को परोक्ष धूम्रपान के कुप्रभावों से बचाने के लिए घर के भीतर धूम्रपान वर्चित होना चाहिए. तभी हम बच्चों में निमोनिया तथा अन्य स्वास्थ सम्बन्धी बीमारियों के खतरे को कम कर पायेंगे".
डॉक्टर में भी घर के भीतर होने वाले प्रदूषण से जन्मे संक्रमण के बारे में जानकारी का अभाव है. जिसका अन्दाजा हम इस बात से ही लगा सकते हैं कि बहराइच जिला अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पी. के मिश्र घर के भीतर के प्रदूषण को निमोनिया का कारण नहीं मानते हैं. उनके अनुसार "धूम्रपान, तम्बाकू के प्रयोग से या फिर घर में खाना पकाने के लिए अंगीठी के उपयोग से सीधे तौर पर निमोनिया के होने का खतरा नहीं होता है. पर बच्चे को धुएं में रखने से घुटन हो सकती है पर इससे सीधे तौर पर कोई बीमारी होने का खतरा नहीं होता है".
धूम्रपान से निमोनिया के होने का खतरा बढ़ जाता है. जिसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि बहराइच जिला अस्पताल में दिखाने आयी निमोनिया से पीड़ित ढाई साल के एक बच्चे की माता ने बताया कि उसके घर में कई लोग धूम्रपान और तम्बाकू का सेवन करते हैं और घर में खाना भी चूल्हे पर पकाया जाता है. एक और माता, जिसका तीन दिनों का बच्चा जो निमोनिया से पीड़ित था, ने बताया कि उसके घर में भी चूल्हे पर खाना पकाया जाता है और बच्चे के पिता बीड़ी, सिगरेट और गुटके का सेवन करते हैं .
बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, उचित पोषण और पर्यावरण में सुधार स्वतंत्र कारक हैं जो बाल निमोनिया के घटनाओं को कम कर सकते हैं. अतः समाज में लोगों के जीवन स्तर में परिवर्तन लाने के लिए इन कारकों की भूमिका प्रमुख है. सरकार को भी इन कारकों को ध्यान में रख कर ही स्वास्थ्य कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना चाहिए. जब लोगों का जीवन स्तर बेहतर होगा तथा लोग अच्छे जीवन स्तर की विधि अपनायेंगें तभी निमोनिया तथा अन्य संक्रमणों से बचाव सम्भव हो पायेगा.
राहुल कुमार द्विवेदी - सी.एन.एस.
(लेखक सी.एन.एस. www.citizen-news.org ऑनलाइन पोर्टल के लिये लिखते हैं)