[English] टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज, मुंबई में पढ़ाई कर रहे शैलेन्द्र कुमार और आशा परिवार के साथ जुड़े कार्यकर्ता मुदित शुक्ला ने सूचना का अधिकार अधिनियम, २००५ की धारा ४ (१)(बी) के उत्तर प्रदेश में अनुपालन की स्थिति और प्रदेश में जनता सूचना केन्द्रों के बारे में लोहिया मजदूर भवन, नरही में एक व्याख्यान दिया और प्रेस वार्ता संबोधित की।
मुदित शुक्ला ने बताया कि जनता सूचना केंद्र वर्तमान में अमेठी, संडीला, बाराबंकी, उन्नाव, कानपुर, वाराणसी, पटना और लखनऊ के ग्रामीण हिस्सों में स्थित हैं, और आम जनता को सूचना का अधिकार का प्रयोग कर अपनी समस्याओं का निवारण करने एवं सरकारी प्रक्रियाओं में और अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। इन केन्द्रों में कंप्यूटर एवं इन्टरनेट की सुविधा है और इनको अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता चला रहे हैं। यह कार्यकर्ता इन केन्द्रों के माध्यम से सरकारी सुविधाओं और योजनाओं का लाभ उठाने में आ रही दिक्कतों के सम्बन्ध में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दाखिल करने में लोगों की मदद करते हैं, और ज़रुरत पड़ने पर सरकारी अधिकारियों के सामने स्वयं इन मुद्दों को उठाते हैं। साथ में, वह सूचना का अधिकार तथा अन्य कानूनों एवं मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) जैसी सरकारी योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करने और जानकारी देने का भी काम करते हैं। आज तक कुल २४ भारतीय और विदेशी छात्र इन केन्द्रों से जुड़ चुके हैं। उन्नाव के केंद्र में कई मजदूरों को मनारेगा के तहत बेरोज़गारी भत्ता प्राप्त करने में मदद की गयी। संडीला में फोटोकॉपी और छपाई जैसी सुविधाएं कम दाम में लोगों को दे के वह केंद्र आत्म-निर्भर हो गया है। कानपुर में आरटीआई के जागरूकता शिविरों का आयोजन नियमित रूप से किया जाता है।
शैलेन्द्र कुमार के अनुसार भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम सरकार की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाने, एवं नागरिकों के प्रति सरकारी जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से लाया गया था। अधिनियम की धारा ४(१)(बी) सभी लोक प्राधिकरणों को सक्रिय रूप से अपने संगठन के बारे में कुछ जानकारी जनता को उपलब्ध करवाने का आदेश देती है। इस में उस संस्था की जिम्मेदारियाँ एवं कर्तव्य, आय-व्यय, नियम एवं विनियम और अपने द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों की प्रणाली एवं वर्तमान स्थिति की जानकारी शामिल है।
सर्वेक्षण के दौरान अपने अनुभवों का व्याख्यान करते हुए शैलेन्द्र ने निराशा जताई। उन्होंने पाया कि अधिकतर लोक प्राधिकरणों में अधिनियम की धारा ४ (१) (बी) के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। कुछ विभागों में तो जन सूचना अधिकारी इस धारा के बारे में जानते ही नहीं थे। गैर-जिम्मेदारी, नकारात्मक तेवर और असंतोशजनक व्यवहार लगभग सभी लोक प्राधिकरणों में देखा गया। कुछ अधिकारियों ने सूचना का अधिकार अधिनियम को बेकार बताते हुए कहा कि उसका बहुत दुरूपयोग हो रहा है। कुछ कार्यालयों में सूचना अधिकारी का कुछ अता-पता ही नहीं था। इन विभागों की वेबसाइट देखने पर पाया गया की वहां उपलब्ध जानकारी पुरानी है, या फिर है ही नहीं। कहीं कहीं तो 'आरटीआई' का लिंक ही काम नहीं कर रहा है।
सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
मुदित शुक्ला ने बताया कि जनता सूचना केंद्र वर्तमान में अमेठी, संडीला, बाराबंकी, उन्नाव, कानपुर, वाराणसी, पटना और लखनऊ के ग्रामीण हिस्सों में स्थित हैं, और आम जनता को सूचना का अधिकार का प्रयोग कर अपनी समस्याओं का निवारण करने एवं सरकारी प्रक्रियाओं में और अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। इन केन्द्रों में कंप्यूटर एवं इन्टरनेट की सुविधा है और इनको अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता चला रहे हैं। यह कार्यकर्ता इन केन्द्रों के माध्यम से सरकारी सुविधाओं और योजनाओं का लाभ उठाने में आ रही दिक्कतों के सम्बन्ध में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दाखिल करने में लोगों की मदद करते हैं, और ज़रुरत पड़ने पर सरकारी अधिकारियों के सामने स्वयं इन मुद्दों को उठाते हैं। साथ में, वह सूचना का अधिकार तथा अन्य कानूनों एवं मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) जैसी सरकारी योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करने और जानकारी देने का भी काम करते हैं। आज तक कुल २४ भारतीय और विदेशी छात्र इन केन्द्रों से जुड़ चुके हैं। उन्नाव के केंद्र में कई मजदूरों को मनारेगा के तहत बेरोज़गारी भत्ता प्राप्त करने में मदद की गयी। संडीला में फोटोकॉपी और छपाई जैसी सुविधाएं कम दाम में लोगों को दे के वह केंद्र आत्म-निर्भर हो गया है। कानपुर में आरटीआई के जागरूकता शिविरों का आयोजन नियमित रूप से किया जाता है।
शैलेन्द्र कुमार के अनुसार भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम सरकार की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाने, एवं नागरिकों के प्रति सरकारी जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से लाया गया था। अधिनियम की धारा ४(१)(बी) सभी लोक प्राधिकरणों को सक्रिय रूप से अपने संगठन के बारे में कुछ जानकारी जनता को उपलब्ध करवाने का आदेश देती है। इस में उस संस्था की जिम्मेदारियाँ एवं कर्तव्य, आय-व्यय, नियम एवं विनियम और अपने द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों की प्रणाली एवं वर्तमान स्थिति की जानकारी शामिल है।
सर्वेक्षण के दौरान अपने अनुभवों का व्याख्यान करते हुए शैलेन्द्र ने निराशा जताई। उन्होंने पाया कि अधिकतर लोक प्राधिकरणों में अधिनियम की धारा ४ (१) (बी) के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। कुछ विभागों में तो जन सूचना अधिकारी इस धारा के बारे में जानते ही नहीं थे। गैर-जिम्मेदारी, नकारात्मक तेवर और असंतोशजनक व्यवहार लगभग सभी लोक प्राधिकरणों में देखा गया। कुछ अधिकारियों ने सूचना का अधिकार अधिनियम को बेकार बताते हुए कहा कि उसका बहुत दुरूपयोग हो रहा है। कुछ कार्यालयों में सूचना अधिकारी का कुछ अता-पता ही नहीं था। इन विभागों की वेबसाइट देखने पर पाया गया की वहां उपलब्ध जानकारी पुरानी है, या फिर है ही नहीं। कहीं कहीं तो 'आरटीआई' का लिंक ही काम नहीं कर रहा है।
सिटीज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस