किसान-विरोधी नीति के खिलाफ अनिल मिश्रा अनशन पर

सीएनएस फोटो लाइब्ररी/2015
उत्तर प्रदेश में इस समय किसान को धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य रुपये 1360 प्रति क्विंटल 'ब' ग्रेड और 1400 रुपये प्रति क्विंटल 'आ' ग्रेड कहीं नहीं मिल रहा है। ज़्यादातर क्रय केंद्र बंद पड़े हैं। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के उन्नाव जिला-अध्यक्ष अनिल मिश्रा 24 नवंबर 2014 तथा 15 दिसम्बर 2014 को जब जिला मुख्यालय पर बैठे तो 10 केंद्र खोले गए, किन्तु खरीद कहीं भी शुरू नहीं हुई। अत: अनिल मिश्रा ने राज्य की राजधानी में गांधी प्रतिमा हजरतगंज में 8 जनवरी 2015 से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठने का निर्णय लिया है। इनके अनशन की घोषणा के बाद भी जिला अधिकारी उन्नाव के आदेश पर सिर्फ रुपये 1332 प्रति क्विंटल की दर से आज भुगतान हुआ है।

सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के उत्तर प्रदेश राज्य संरक्षक गिरीश कुमार पांडे ने सीएनएस को बताया कि "यह अत्यंत शर्म की बात है कि जिस देश में पिछले 20 वर्षों में ढाई लाख किसानों की आत्महत्या हो चुकी है और किसान बदहाल है वहाँ उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं मिल रही है। रुपये 1360, रुपये 1400 की घोषणा कर सिर्फ रुपये 1332 की दर से सरकार भुगतान के लिए तैयार हुई है।"

उन्होने कहा कि "यह किसान को और कर्ज़ तथा गरीबी की तरफ धकेलने की साजिश है। दूसरी तरफ सार्वजनिक वितरण प्रणाली को भी खत्म करने की साजिश है। यदि सरकार किसान से अनाज नहीं खरेदगी तो लोगों को राशन व्यवस्था में अन्न क्या देगी? हम केंद्र और राज्य सरकार की मिली-जुली साजिश का कड़ा विरोध करते हैं। हम अधिकारियों से पूछना चाहेंगे कि यदि उन्हे निर्धारित वेतन से कम वेतन दिया जाएगा तो क्या वे स्वीकार करेंगे? या अकार्यकुशलता के कारण उनके वेतन की कटौती होगी तो क्या वे स्वीकार करेंगे?"

किसानों से कहा जा रहा है कि उनके उत्पादन की गुणवकता ठीक न होने के कारण अनाज की मात्रा कम कर भुगतान में कटौती की जा रही है। खरीद भी सरकारी केन्द्रों पर करने के बजाय निजी मिलों पर हो रही है।

मगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा: "उधर केंद्र सरकार ने भू-अधिग्रहण कानून को एक अध्यादेश जारी कर कमजोर कर दिया है। अब किसानों की जमीन अधिगृहीत करने से पहले 70% भू-स्वामियों की सहमति जरूरी नहीं है। न ही जन-सुनवाई की आवश्यकता है। इस तरह भू-अधिग्रहण की वजह से उत्पन्न होने वाले सामाजिक प्रभाव का अध्यन्न जरूरी नहीं रह गया है।"

डॉ पाण्डेय ने कहा कि "यह सारे किसान-विरोधी कदम हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की मिलीभगत से बदहाल किसान की स्थिति और बदतर होगी। हम दोनों सरकारों की नीतियों का विरोध करते हैं, और चेतावनी देते हैं कि वें अपना किसान-विरोधी रवैया छोड़ें। जो सबको खिला कर जिंदा रहता है यदि उसी की स्थिति बदहाल रहेगी तो समाज कैसे खुशहाल रहेगा?"

सिटिज़न न्यूज़ सर्विस - सीएनएस
8 जनवरी 2015