डॉ बीटी स्लिंग्सबी जीएचआईटी-फण्ड |
मलेरिया
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुसार, २१४ मिलियन लोगों को पिछले साल मलेरिया हुआ और ४३८,००० लोग मृत हुए. जीएचआईटी-फण्ड के डॉ स्लिंग्सबी ने कहा कि यदि हम ऐसी दवाओं पर नहीं शोध कर रहे हैं जो दवा प्रतिरोधक मलेरिया पर भी कारगर हों, तो एक तरह से हम समस्या बढ़ा ही रहे हैं. जीएचआईटी-फण्ड ने आर्थिक सहयोग के जरिये ताकेदा फार्मा, मेडिसिन्स फॉर मलेरिया वेंचर (एमएमवी), और मेलबोर्न विश्वविद्यालय को शोध करने में मदद की है कि ऐसे विकल्प तैयार हों जो दवा प्रतिरोधक मलेरिया पर भी कारगर हों.यह शोधकर्ता मलेरिया कीटाणु के कोशिकाओं में 'प्रोटियेसम' गतिविधि पर रोक लगाने वाली दवा खोज रहे हैं. ऐसी दवा कैंसर उपचार में भी उपयोग होती है. यदि 'प्रोटियेसम' गतिविधि पर रोक लगेगी तो मलेरिया कीटाणु मृत हो जायेगा.
त्वचीय और अंतर काला अजार
अंतर काला अजार पर तो फिर भी कुछ कार्य हुआ है और निवेश हुआ है, पर त्वचीय काला अजार पर नगण्य कार्य हुआ है. काला अजार से विश्व में २ मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हैं, और इस रोग में बड़ी पीड़ा होती है, विकृतियाँ होती हैं, त्वचा में अलसर बन जाते हैं और प्रमुख अंग भी प्रभावित हो सकते हैं, और यदि इसका उपचार न हो तो यह (अंतर काला अजार) घातक भी हो सकती है.
इसीलिए जीएचआईटी-फण्ड ने काला अजार सम्बंधित शोध में अमरीकी डालर १.८३ मिलियन का निवेश किया है. ऑहियो विश्वविद्यालय, नागासाकी विश्वविद्यालय और म्च्गिल्ल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस शोध पर कार्य करेंगे. दोनों प्रकार के काला अजार के लिए वैक्सीन बनाने पर शोध होगा.
डेंगू
डेंगू महामारी के रूप में विश्व भर में फैला हुआ है. ताज्जुब होगा यह जान कर कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के पास डेंगू सम्बंधित कोई मजबूत आंकड़ें तक नहीं हैं, सिर्फ कुछ शोध के आधार पर अनुमानित रिपोर्ट हैं. डेंगू पर कार्य अतिआवश्यक है जिससे कि इस पर रोक लग सके. जीएचआईटी-फण्ड के डॉ बीटी स्लिंग्सबी ने बताया कि डेंगू पर शोध होना इसलिए भी जरुरी है क्योंकि इसके अनेक प्रकार हैं (सीरो-टाइप) इसीलिए डेंगू के नियंत्रण के लिए एक वैक्सीन बनाना वैज्ञानिक रूप से बड़ी चुनौती है.
जीएचआईटी-फण्ड ने अमरीकी डालर ६१२,९०२ का अनुदान यूरोपियन वैक्सीन इनिशिएटिव्, नागासाकी विश्वविद्यालय और इंस्टिट्यूट पस्तुएर को दिया है जिससे कि इस दिशा में शोध हो सके.
टीबी
विश्व में पिछले साल, ९ मिलियन लोगों को टीबी हुई और १.५ मिलियन मृत हुए. वर्त्तमान में सबसे अधिक उपयोग होने वाली टीबी वैक्सीन, बीसीजी वैक्सीन, हालाँकि बच्चों को खतरनाक किस्म की टीबी से बचाती है और कुछ हद तक टीबी से बचाती है, परन्तु इस वैक्सीन से टीबी उन्मूलन नहीं हो सकता क्योंकि इसका प्रभाव सीमित है.
जीएचआईटी-फण्ड के डॉ स्लिंग्सबी ने बताया कि इसीलिए जीएचआईटी-फण्ड ने बीसीजी वैक्सीन के साथ उपयोग हो सकने वाला बूस्टर वैक्सीन के शोध में निवेश किया है जिससे कि बीसीजी वैक्सीन का प्रभाव अधिक समय तक रहे. इस शोध के नतीजे अक्टूबर २०१८ तक आने की उम्मीद है.
इस बात में कोई संदेह नहीं कि हमें बेहतर और अधिक प्रभावकारी जांचें, वैक्सीन और दवाएं चाहिए जिससे कि इन बीमारियों का नियंत्रण, और उन्मूलन हो सके. परन्तु जो जांच, वैक्सीन और दवा मौजूद हैं उनका उपयोग जिम्मेदारी से होना चाहिए जिससे कि दवा प्रतिरोधकता जैसी चुनौतियाँ हम स्वयं ही न बढ़ाएं.
बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
५ नवम्बर २०१५
प्रकाशित:
डायलाग इंडिया
सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)
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